जब से पड़ौसी देश बांगलादेश में हिन्दुओं का भयानक नरसंहार हुआ है, तब से भारत का हिन्दू मतदाता तो अपने भविष्य को लेकर चिंतित है ही, साथ ही सैंकड़ों विपक्षी सांसद एवं विधायक भी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
इस चिंता के कारण बहुत स्पष्ट हैं। भारत के मतदाताओं को टीवी चैनलों पर जो दृश्य देखने को मिले, उन्हें देखकर न केवल घरेल महिलाओं ने अपितु स्कूली बच्चों तक ने ये सवाल पूछे कि बांगलादेश में हिन्दुओं को क्यों मारा जा रहा है, उनके घरों और मंदिरों को क्यों जलाया जा रहा है? औरतों और गायों को काटकर सड़कों पर क्यों फैंका जा रहा है! ये सवाल उन लोगों ने किये जिनका राजनीति से, साम्प्रदायिकता से, जातिवादी पार्टीबाजी से कोई लेना-देना नहीं है।
यदि बांगलादेश में हिन्दुओं का कत्लेआम किए जाने की पैशाचिक घटना भारत के 2024 लोकसभा चुनावों से पहले हुई होती तो निश्चित रूप से लोकसभा चुनावों के परिणाम कुछ और ही रहे होते। यदि बात यहीं तक रहती तो संभव है कि अगले चुनावों तक लोग बांग्लादेश में हुए हिन्दुओं के कत्लेआम को भूल जाते किंतु उसके बाद भी भारत में कुछ न कुछ घटनाएं ऐसी घट रही हैं, जिनके कारण हिन्दू मतदाता उद्वेलित हैं। हिन्दुओं की यह उद्विग्नता देखकर विभिन्न दलों में बैठे सैंकड़ों विपक्षी सांसद एवं विधायक भी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
लोकसभा में राहुल गांधी, असदुद्दीन ओबेसी तथा चिराग पासवान आदि नेताओं के हल्ला मचाए जाने पर सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन बिल जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी में भिजवा दिया। इसके बाद से विपक्षी सांसद एवं विधायक अधिक परेशान हैं। क्योंकि जब यह बिल जेपीसी को भेजा गया, तब मुल्ला-मौलवियों ने यह अभियान चलाया कि मुसलमान जेपीसी को अपना विरोध भिजवाएं।
इसकी प्रतिक्रिया में हिन्दू भी इसी काम पर लग गए। करोड़ों व्हाट्सैप ग्रुप्स में पूर्णतः तैयार ईमेल के ड्राफ्ट्स पिछले लगभग एक महीने से घूम रहे हैं जिनमें यह कहा गया है कि यदि आपने जेपीसी को यह मेल अपना नाम लिखकर नहीं भिजवाया तो संसद में वक्फबोर्ड संशोधन बिल पास नहीं हो सकेगा और एक दिन वक्फ बोर्ड आकर आपके घरों, दुकानों, जमीनों पर कब्जा कर लेगा।
करोड़ों व्हाट्सैप ग्रुप्स में घूम रहे इन संदेशों ने देश के सौ करोड़ हिन्दुओं को चिंतित कर दिया है। वे धड़ाधड़ जेपीसी को ईमेल भेज रहे हैं तथा वक्फबोर्ड संशोधन बिल का समर्थन कर रहे हैं।
इन संदेशों को जेपीसी कैसे देखेगी, यह तो नहीं कहा जा सकता किंतु इतना तय है कि जब तक जेपीसी अपनी रिपोर्ट लेकर संसद के सामने हाजिर होगी, तब तक हिन्दुओं का मन पूरी तरह से उन राजनीतिक दलों से उचाट हो चुका होगा जो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में वक्फबोर्ड जैसे घातक प्रावधानों वाले कानून बनाते हैं और उसका समर्थन करते हैं। इस स्थिति में विपक्षी सांसद और विधायक कौनसा मुंह लेकर जनता के बीच जाएंगे?
करोड़ों हिन्दू व्हाट्सैप ग्रुप्स में खुलकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि हिन्दू अस्मिता के प्रश्न पर भी जो विपक्षी सासंद और विधायक हिन्दुओं के साथ आकर खड़े नहीं होते, वे हमारे किस काम के हैं, हम उन्हें वोट क्यों दें? वे तो हमारी जमीनें, घर एवं दुकान सब लुटवा देंगे!
11 सितम्बर को शिमला में अवैध मस्जिद के विरोध में हुए लाखों हिन्दुओं के प्रदर्शन पर हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा करवाए गए वहशी लाठी चार्ज के दृश्य भी दिन भर टेलिविजन चैनलों पर चलते रहे। इन दृश्यों के छोटे-छोटे टुकड़े व्हाट्सैप ग्रुप्स में भेजे जा रहे हैं।
ये सब ऐसी घटनाएं हैं जिनसे भारत का हिन्दू मतदाता अब पछता रहा है कि जातीय नेताओं के बहकावों में आकर उन्होंने कांग्रेस, राजद तथा समाजवादी पार्टी जैसी तथाकथित सैक्यूलर पार्टियों को वोट क्यों दिए जो सैक्यूलर होने की आड़ में वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन नहीं होने दे रहीं।
ये तथाकथित सैक्यूलर पार्टियां जो कि वास्तव में जातिवादी राजनीति करने वाली पाटियां हें उस कानून को देश में लागू क्यों रखना चाहती हैं जिस कानून के बल पर वक्फबोर्ड हिन्दुओं की सम्पत्तियों पर बिना किसी प्रमाण के, बिना किसी आधार के अपना अधिकार जता सकता है और हिन्दुओं को उस सम्पत्ति से बेदखल कर सकता है?
कांग्रेस द्वारा बनाए गए वक्फ बोर्ड कानून में हिन्दुओं के लिए इतना रास्ता भी नहीं छोड़ा गया है कि वे अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए किसी कोर्ट में जा सकें। इसके कारण वक्फ बोर्ड पूरे के पूरे गांव पर, हजारों साल पुराने हिन्दू मंदिरों पर, दुकानों और सरकारी कार्यालयों पर अपना दावा ठोक चुका है।
यह देखकर भी हैरानी होती है कि वक्फ बोर्ड कानन में कलक्टर को वक्फ बोर्ड का छोटा सा आज्ञाकारी सेवक मात्र बना दिया गया है।
व्हाट्सैप ग्रुप्स में घूम रहे संदेशों को पढ़कर हिन्दू यह सवाल भी पूछ रहे हैं कि जब वक्फ बोर्ड हिन्दुओं की सम्पत्ति पर दावा करता है तो वह सम्पत्ति हिन्दू की है या नहीं, इस दावे का फैसला केवल मुसलमान ही क्यों कर सकते हैं? वक्फ बोर्ड में हिन्दू सदस्य क्यों नहीं होंगे? इस दावे से पीड़ित हुए पक्ष की सुनवाई न्यायालय क्यों नहीं कर सकते?
यदि भारत सरकार द्वारा लोकसभा में रखा गया वक्फ बोर्ड संशोधिन बिल बिना किसी हूल हुज्जत के लम्बी सी ‘आई’ और छोटा सा ‘नोज’ सुनकर पारित हो गया होता तो हिन्दू मतदाताओं को इस कानून के घातक प्रावधानों के बारे में इतना पता नहीं चला होता किंतु विपक्ष ने इसे जेपीसी में भिजवाकर सभी हिन्दुओं के कान खड़े कर दिए हैं।
जब तक आम हिन्दू को वक्फ बोर्ड कानून के प्रावधानों की बात पता नहीं थी, तब तक विपक्षी सांसदों एवं विधायकों को कोई खतरा नहीं था किंतु अब आम हिन्दू वक्फ बोर्ड कानून के भयानक पंजों एवं तीखे दांतों को अच्छी तरह पहचान चुका है। अब हिन्दू मतदाता अधिक दिनों तक जातीय आधारों पर वोट खींचने वाली पार्टियों के चक्कर में पड़े नहीं रहेंगे। यही कारण है कि आज विपक्षी सांसद एवं विधायक चिंतित हैं।
हिन्दू मतदाताओं, विपक्षी सांसदों एवं विधायकों की चिंता में जो कुछ कसर बाकी रह गई थी, उस कसर को राहुल गांधी अमरीका में जाकर पूरी कर रहे हैं। विदेशी धरती पर पहुंचकर हिन्दुओं के जख्मों पर नमक छिड़कने की सीख पता नहीं किसने राहुल गांधी को दी होगी! क्या सैम पित्रोदा ने? या फिर इल्हान ओमर ने या फिर शायद किसी को पता नहीं! राहुल की इन देश विरोधी बातों से भी उनकी अपनी पाटी के हिन्दू सांसद एवं विधायक अवश्य ही असमंजस में होंगे!
विपक्षी सांसद एवं विधायक अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कितने चिंतित हैं, इस बात का अनुमान इस तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव 2024 के बाद बीजू जनता दल के दो सांसद राज्यसभा से स्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं तथा वाईएसआर पार्टी के दो सांसद राज्यसभा से स्तीफे देकर टीडीपी में चले आए हैं।
शिमला की अवैध मस्जिद के खिलाफ कांग्रेस के ही एक मंत्री ने विधान सभा में मामला उठाया तथा कांग्रेस की सैक्यूलर नीति की आड़ में चली जा रही चाल का विरोध किया। यह सब इसलिए ताकि उनका राजनीतिक भविष्य अधर में न रहे।
–डॉ. मोहनलाल गुप्ता