Tuesday, December 3, 2024
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मुल्लों को दण्ड (148)

जब मुल्लों ने अकबर को इस्लाम विरोधी बताकर हल्ला मचाया तो अकबर ने मुल्लों को दण्ड देने का निश्चय किया।  अकबर ने मुल्लों को धागों की तरह बिखेर दिया!

जब अकबर ने इस्लाम की व्याख्या करने के विषय में स्वयं को समस्त उलेमाओं से ऊपर घोषित कर दिया तो सल्तनत के बहुत से मुल्ला अकबर से नाराज हो गए तथा अकबर का विरोध करने लगे। बहुत से मुल्लों ने अकबर के मुंह पर ही उसे खरी-खोटी सुनाई। 

अकबर को मुल्लों एवं उलेमाओं के विरोध में देखकर, अकबर के दरबारी ईमाम मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने अकबर के दरबार में जाना बंद कर दिया। इस पर काजी अली मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी को पकड़कर बादशाह के समक्ष ले गया। उस समय अकबर अजमेर में था। काजी ने अकबर से कहा कि इस इमाम को शहंशाह की तरफ से एक हजार बीघा जमीन दी गई थी किंतु यह दरबार में नहीं आता।

अकबर ने कहा कि इसकी जमीन के पट्टे में साफ लिखा है कि जमीन मुल्ला को इस शर्त पर दी गई थी कि यह बादशाह के दरबार में नित्य हाजिर होगा किंतु यदि यह हमारे दरबार में नहीं आना चाहता तो हम इसे जबर्दस्ती नहीं बुलाना चाहते। अतः इससे जमीन वापस ली जानी चाहिए किंतु यह बाल-बच्चे वाला है, इसलिए इससे आधी जमीन वापस ले ली जाए तथा आठ सौ बीघा जमीन इसके पास छोड़ दी जाए।

मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी तो पहले से ही बादशाह से चिढ़ा हुआ था, इसलिए जब उसने सुना कि बादशाह उसकी दो सौ बीघा जमीन ले रहा है तो मुल्ला ने नाराज होकर उसी समय कह दिया कि मैं बादशाह की नौकरी से त्यागपत्र देता हूँ। अकबर ने भी मुल्ला से नाराज होकर दूसरी तरफ मुंह फेर लिया। इस पर वहाँ मौजूद मुल्ला के हिमायतियों ने मुल्ला से कहा कि बादशाह की नौकरी छोड़ना ठीक नहीं है। इस पर मुल्ला ने फिर से बादशाह की नौकरी करना स्वीकार कर लिया।

अकबर अनुभव कर रहा था कि लगभग पूरे देश में मुल्ला, मौलवी, काजी और उलेमा लोग अकबर का विरोध कर रहे हैं, उन्हें भय था कि शहंशाह के इस कदम से कि वही इस्लाम की व्याख्या का अंतिम अधिकारी है, मुल्लों और उलेमाओं ने जनता में जो धाक और महत्ता जमा रखी है, वह धूमिल पड़ जाएगी।

मुल्ला और उलेमा इस बात का भी घनघोर विरोध कर रहे थे कि शहंशाह धरती पर अल्लाह का दूत है। मुल्लों और उलेमाओं की दृष्टि में केवल पैगम्बर ही अल्लाह के दूत होते हैं, किसी शहंशाह को यह अधिकार नहीं है कि वह स्वयं को अल्लाह का दूत या पैगम्बर घोषित करे। इसलिए मुल्ला लोग अकबर को ठीक उसी प्रकार नास्तिक ठहरा रहे थे जिस प्रकार जेजुईट पादरी अपनी पुस्तकों में अकबर पर नास्तिक होने का आरोप लगा रहे थे।

उधर अकबर भी अपने द्वारा आगे बढ़ाए गए कदम को पीछे नहीं खींचना चाहता था और मुल्लों को दण्ड देकर अपनी सत्ता की सर्वोच्चता को सिद्ध करना चाहता था। इस कारण दोनों पक्षों में जोरदार ठन गई। अकबर ने मुल्लों को दण्ड देने का अनोखा तीका ढूंढा। उसने मुल्लों और उलेमाओं को उनके स्थानों से दूर-दूर तबादले करने का निश्चय किया ताकि उनकी गुटबंदी बिखर जाए।

Teesra-Mughal-Jalaluddin-Muhammad-Akbar
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मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने मुंतखब उत् तवारीख में लिखा है कि बादशाह ने दिल्ली के काजी-अल-कुजात मुल्ला मुहम्मद यज्दी को दिल्ली से हटाकर जौनपुर का काजी-अल-कुजात नियुक्त कर दिया तथा बादशाह ने दिल्ली के निकट स्थित उसकी जागीरें जब्त कर लीं। इस पर मुल्ला मुहम्मद यज्दी ने जौनपुर पहुंचकर अकबर के खिलाफ फतवा जारी किया तथा अपनी पुरानी जमीनों पर अपना अधिकार घोषित कर दिया। अकबर जानता था कि जब वह मुल्लों को दण्ड देगा तो मुल्ले और जोर से हल्ला मचाएंगे।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि जौनपुर के काजी द्वारा शहंशाह के विरुद्ध फतवा जारी होते ही मुहम्मद मासूम काबुली, मुहम्मद मासूम खाँ फरखुंदी, मीर मुईज्जुलमुल्क, नयाबत खाँ, अरब बहादुर आदि मुल्लों एवं इमामों ने अकबर के विरुद्ध तलवारें खींच लीं। बहुत से स्थानों पर गंभीर झड़पें हुईं। इमामों ने कहा कि शहंशाह ने हमारी जमीनों पर अतिक्रमण किया है। अल्लाह उसकी खैर करे।

आखिरकार पेशराऊ खाँ के खिताब वाला मिहतर खाँ जब मासूम खाँ के यहाँ से अर्थात् जौनपुर के दरबार से वापस लौटा तथा उसने मुल्ला मुहम्मद यज्दी के फतवे के बारे में अकबर को बताया तो अकबर ने किसी बहाने से मीर मुईज्जुलमुल्क एवं मुल्ला मुहम्मद यज्दी को जौनपुर से वापस आगरा बुलाया। जब ये लोग आगरा से 15 कोस दूर फिरोजाबाद तक आ गए तो शहंशाह ने अपने सेवकों को आदेश दिए कि इन दोनों मुल्लों को उनके अंगरक्षकों से अलग करके एक नाव में बैठाकर ग्वालियर ले जाया जाये।

इस पर शहंशाह के सेवकों ने मुल्लों के अंगरक्षकों को एक नाव में बैठाया तथा मुल्ला लोगों को एक दूसरी पुरानी नाव में। जब मुल्ला लोग अकेले पड़ गए तब अकबर ने अपने सेवकों को आदेश भिजवाया कि इन मुल्लों से छुटकारा पा लिया जाए। इस पर जब मुल्ला लोगों की नाव गहरे पानी में चली गई तो नाविकों ने उन दोनों मुल्लों को मार डाला। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अकबर मुल्लों को दण्ड देने के नाम पर उन्हें मौत के घाट भी उतरवा सकता है।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि कुछ दिनों बाद बंगाल से काजी याकूब आगरा आया। संभवतः अकबर ने ही उसे बुलाया था। मुल्ला लिखता है कि शहंशाह ने काजी याकूब को भी उन दोनों मुल्लों की राह पर भेज दिया। इस प्रकार अकबर ने एक के बाद एक करके, जिन मुल्लों के बारे में उसे शक था, मिटा दिया।

लाहौर में भी उलेमा वर्ग ने अकबर का भारी विरोध किया था। मुल्ला बदायूनी लिखता है कि शहंशाह ने लाहौर के उलेमाओं को बिखरे धागे की तरह अलग-अलग कर दिया। काजी सद्र-उद्दीन लाहौरी जिसका स्वतंत्र चिंतन मख्दुम-उल-मुल्क से ऊँचा था, उसे अकबर ने लाहौर से हटाकर गुजरात के बहरोंच नामक शहर का काजी नियुक्त कर दिया।

इसके बाद शहंशाह ने मुल्ला अब्द-उश-शकूद गुलदार को जौनपुर का काजी तथा मुल्ला मुहम्मद मासूम को बिहार में नियुक्त कर दिया। शेख मुनव्वर को मालवा से निकालकर किसी और को वहाँ का सद्र बना दिया। शेख मुइन को अधिक उम्र होने के कारण लाहौर में ही रहने दिया गया। शहंशाह ने हाजी इब्राहीम सरहिंदी को गुजरात का सद्र बनाकर वहाँ भेज दिया।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि इस तरह प्रत्येक मुल्ला को उसके इच्छित पद पर पदोन्नति मिली किंतु उसके घर से दूर। मुल्लों ने अकबर का विरोध करने की चेष्टा की किंतु उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई।

अकबर जैसे शक्तिशाली बादशाह से टकराना तथा उससे जीत पाना इन निहत्थे मुल्लाओं, मौलवियों एवं उलेमाओं के वश की बात नहीं थी। कुछ ही दिनों में चारों तरफ से मच रहा शोर थम गया और अकबर मुल्लों को दण्ड देकर अपने उस लक्ष्य की ओर आगे बढ़ गया जो उसने मजहब के बारे में सोच रखा था।

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