बैरामखाँ ने तुहमास्प से ईरानी सेना प्राप्त की और उससे तथा हूमायूँ से एक-एक फरमान लेकर फिर से हिन्दुस्थान आया। ये फरमान उसने हुमायूँ के भाई कामरान के नाम लिखवाये थे ताकि भाई को भाई के खिलाफ नहीं लड़ना पड़े और उनमें प्रेम हो जाये। बैरामखाँने हिन्दुकुश पर्वत पार कर कांधार पर आक्रमण किया। कांधार उस समय असकरी के अधिकार में था। बैरामखाँ ने कांधार को जीत कर असकरी को गिरफ्तार कर लिया।
जब बैरामखाँ ने ईरान से हिन्दुस्थान के लिये कूच किया था तब हुमायूँ ने उसे निर्देश दिये थे कि हिन्दुस्थान की जमीन पर किसी भी खुदा के बंदे को[1] बंदी नहीं बनाया जाये। बैरामखाँ ने इस लड़ाई में और आगे भी जितनी लड़ाईयाँ लड़ीं उन सबमें इस निर्देश का उल्लंघन विशेष अवसर आने पर ही किया। उसने कभी भी किसी मुसलमान सिपाही को बंदी नहीं बनाया लेकिन वह जानता था कि हुमायूँ का आदेश कामरान और अस्करी जैसे मक्कारो के लिये नहीं था।
कंधार के सारे समाचार ईरान को भिजवाकर बैरामखाँ काबुल के लिये रवाना हुआ। उन दिनों काबुल पर कामरान अधिकार जमाये बैठा था और अपने आप को बादशाह कहता था। बैरामखाँ सफर के दौरान बिल्कुल चुप रहता था और पूरे रास्ते सोचते हुए ही चलता था। इस दौरान वह अनुमान लगाता था कि आगे क्या होने वाला है! कांधार से काबुल तक की यात्रा के दौरान बैरामखाँ इस बात पर निरंतर चिंतन करता रहा कि जब वह कामरान के सामने पेश होगा तो कामरान उसके साथ क्या-क्या बदसलूकी कर करेगा!
समस्त अप्रिय स्थितियों का अनुमान करके बैरामखाँ पूरी तैयारी के साथ कामरान के सामने पेश हुआ। कामरान उस समय चारबाग में दरबार कर रहा था। उसने बैरामखाँ को बड़ी हिकारत भरी निगाह से देखा और उसके आने का कारण पूछा। बैरामखाँ ने सोचा कि यदि वह दोनों फरमान इस समय कामरान को देता है तो अहसान फरामोश कामरान बैठे-बैठे ही हाथ में लेगा। इससे बादशाह का अपमान होगा। बैरामखाँ ने रास्ते में जैसा सोचा था, ठीक वैसा ही घटित हो रहा था। ऐसी स्थिति कतई नहीं थी कि वह कामरान से खड़ा होने के लिये कहे किंतु बैरामखाँ तो पूरी तैयारी करके गया था। उसने अपने कपड़ों में से कुरान निकाली और कहा- ‘बादशाह हुजूर ने आपके लिये यह कुरान भिजवाई है।’
जब अहसान फरामोश कामरान कुरान की ताजीम को खड़ा हुआ तो बैरामखाँ ने कहा- ‘और यह फरमान भी।’
बैरामखाँ ने कुरान और दोनों बादशाहों के फरमान एक साथ कामरान के हाथ में रख दिये। कामरान तिलमिला कर रह गया और कुछ भी न कर सका। इसके बाद बैरामखाँ ने ढेर सारे उपहार कामरान को दिये ताकि कामरान किसी तरह हुमायूँ के प्रति वफादार हो जाये। साथ ही साथ बैरामखाँ ने बड़ी तरकीब से कामरान को धमकाया कि तू हुमायूँ के प्रति वफादार हो जा अन्यथा मिर्जा असकरी को जिस तरह गिरफ्तार किया गया है, वही स्थिति कामरान के साथ भी हो सकती है। बदले में कामरान ने भी बैरामखाँ को धमकाया कि बालक अकबर अब तक मेरे पास है, यदि मिर्जा अस्करी को कुछ हुआ तो बालक भी सुरक्षित नहीं रहेगा।
[1] इस्लाम के अनुयायी को।