Wednesday, February 5, 2025
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अकबर का राज्य! (140)

यह सही है कि अकबर के संरक्षक बैराम खां ने अकबर का राज्य स्थापित किया था और उसे दुश्मनों से बचाया था किंतु जिस समय बैराम खाँ इतिहास के नेपथ्य में गया, उस समय तक अकबर का राज्य बहुत छोटा था। उसने अपने बाहुबल, हिम्मत और अपनी सेनाओं के बल पर अपना राज्य बढ़ाया था किंतु अकबर का राज्य बढ़ाने में जितना योगदान अकबर के अपने मजहब के लोगों का था, उससे कहीं अधिक योगदान उन लोगों का था जो अकबर के मजहब के नहीं थे!

अकबर की रगों में समरकंद के सुन्नियों, ईरान के शियाओं एवं खुरासान के सूफियों का रक्त बहता था, इस कारण वह इस्लाम की तीनों प्रमुख शाखाओं का संयुक्त वारिस था।

बहुत से इतिहासकारों ने लिखा है कि अकबर ने हिंदुओं के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया जो कि उसके पूर्ववर्ती मुस्लिम बादशाहों से बिल्कुल उलट था। इनमें पं. जवाहरलाल नेहरू एवं डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव प्रमुख हैं।

जवाहरलाल नेहरू ने जेल की कोठरियों से अपनी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी के नाम बहुत से पत्र लिखे थे जिन्हें सस्ता साहित्य मण्डल द्वारा विश्व इतिहास की झलक के नाम से प्रकाशित किया गया।

इन पत्रों में नेहरू ने लिखा है कि अकबर के उदार दृष्टिकोण के कारण अकबर को अपने मजहब के लोगों की बजाय दूसरे मजहबों के लोगों से अधिक सहयोग मिला।

वे लिखते हैं कि बैराम खाँ ने शिया होते हुए भी सुन्नी मत को मानने वाले अकबर के लिये नये सिरे से मुगल राज्य की रचना की। हिन्दू अमीरों राजा टोडरमल तथा बीरबल ने अकबर को पूरा विश्वास, समर्थन तथा सहयोग दिया तथा उसके राज्य को उस युग के विश्व के लिये आदर्श बना दिया। यहाँ तक कि इन हिन्दू उमरावों ने अकबर के लिये अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।

इन उमरावों के अतिरिक्त आम्बेर, जोधपुर, बीकानेर, बूंदी एवं जैसलमेर आदि हिन्दू राज्यों के शासकों ने अकबर के राज्य-विस्तार के लिए जीवन भर अकबर के शत्रुओं से युद्ध किया।

अकबर इन राजाओं की सेनाओं पर अपनी सेनाओं से भी अधिक भरोसा करता था, इसलिए अकबर में धार्मिक सहिष्णुता का भाव जीवन भर निरंतर बना रहा।

डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि अकबर का जन्म और पालन-पोषण अपेक्षाकृत अधिक उदारतापूर्ण वातावरण में हुआ था। अकबर का जन्म अमकरकोट के हिंदू सरदार के घर में हुआ था जहाँ उसे एक महीने तक रहना पड़ा था।

बीस वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही अकबर ने युद्ध में सैनिकों को बंदी बनाने और उन्हें मुसलमान बनाने के बुरे नियम को बंद करवा दिया। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार यदि तात्विक दृष्टि से देखा जाए तो अकबर अत्यंत धार्मिक व्यक्ति था।

वह जीवन और मृत्यु की समस्याओं पर गंभीर विचार किया करता था और 20 वर्ष की आयु पूरी करने पर धर्म और राजनीति में समन्वय और सामंजस्य स्थापित न कर पाने के कारण उसका मन गहरी पीड़ा का अनुभव करने लगा था।

अकबर की यह आध्यात्मिक चेतना ही उसके द्वारा ई.1563 में हिंदुओं से लिए जाने वाले तीर्थयात्री-कर बंद किए जाने के लिए उत्तरदाई है। दूसरे वर्ष अर्थात् ई.1564 में अकबर ने एक और क्रांतिकारी कदम उठाया। उसने जजिया-कर जो गैर मुसलमानों पर लगाया जाता था और जिसे पूर्व कालीन तुर्क-अफगान सुल्तानों, यहाँ तक कि अकबर के पिता और पितामह ने भी वसूल करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझा, समाप्त कर दिया।

इन बातों द्वारा अकबर की धार्मिक नीति में अपने पूर्वजों की अपेक्षा मूलतः परिवर्तन का आभास मिलता है। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार अकबर अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत वर्षों तक एक निष्ठावान किंतु उदार मुसलमान था। जिस समय अकबर ने सुलह-कुल की नीति का निर्माण नहीं किया था, उस समय आम्बेर के राजा भारमल ने अपनी पुत्री हीराकंवर का विवाह अकबर के साथ किया।

इस विवाह ने अकबर के धार्मिक विचारों में बहुत परिवर्तन किया। उसने काफिर समझे जाने वाले हिन्दुओं की अच्छाइयों, आदर्शों एवं नैतिक जीवन को निकटता से देखा। इससे अकबर में हिन्दू धर्म के प्रति आदर का जो भाव उत्पन्न हुआ, वह जीवन भर बना रहा।

भारत में तेरहवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक हिन्दुओं तथा मुसलमानों दोनों में ही धार्मिक तथा आध्यात्मिक आन्दोलन चले। बहुत से धर्म सुधारक विभिन्न धर्मों के बीच लौकिक एकता की खोज तथा धार्मिक समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे थे।

इस कारण देश के सामाजिक तथा धार्मिक जीवन में उदारता तथा सहिष्णुता के भाव उत्पन्न हो रहे थे। कुछ इतिहासकारों के अनुसार अकबर पर भी उन महान विचारों का प्रभाव पड़ा।

अपनी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी को लिखे एक पत्र में नेहरू ने लिखा है कि अकबर के शासन काल में ही यूरोप में मुगलों के लिए महान्-मुगल शब्द काम में लिया जाने लगा। नेहरू लिखते हैं कि वह जमाना यूरोप में नीदरलैण्ड के विद्रोह का और इंग्लैण्ड में शेक्सपीयर का था।

अपनी पुत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी को लिखे पत्र में नेहरू ने लिखा है- ‘जिन दो संस्कृतियों एवं मजहबों का इस देश में साथ आ पड़ा था, उन दोनों के समन्वय के लिए भारत में कैसी खामोश ताकतें काम कर रही थीं।

मैंने तुमको भवन-निर्माण की नई शैली और भारतीय भाषाओं खासकर उर्दू या हिंदुस्तानी के विकास के बारे में लिखा था और मैं तुमको रामानंद, कबीर और गुरु नानक जैसे सुधारक और धर्म-गुरुओं के बारे में भी लिख चुका हूँ जिन्होंने इस्लाम और हिन्दू धर्म के एक से पहलुओं पर जोर देकर और उनके बहुत से रीति-रस्म और आडम्बरों की निंदा करके दोनों को एक-दूसरे के नजदीक लाने की कोशिश की थी।’

नेहरू लिखते हैं- ‘उस समय समन्वय की यह भावना चारों ओर फैली हुई थी। और अकबर के दिमाग ने जो हर बात को बारीकी से महसूस करता था और ग्रहण करता था, जब इस भावना को हजम किया तो उसमें बहुत बड़ा जवाबी असर हुआ होगा।

वास्तव में वह इस भावना का सबसे बड़ा व्याख्या करने वाला बन गया था। एक राजनीतिक की हैसियत से भी अकबर इसी नतीजे पर पहुंचा होगा कि उसका बल और राष्ट्र का बल इसी समनवय से बढ़ सकते हैं। वह एक बहुत बहादुर, लड़ाका और कुशल सेनानायक भी था।

अशोक की तरह वह लड़ाइयों से नफरत नहीं करता था किंतु तलवार की विजय से वह स्नेह की विजय को ज्यादा अच्छी समझता था और यह भी जानता था कि ऐसी विजय ज्यादा टिकाऊ होती है। इसलिए वह पक्के इरादे के साथ हिन्दू सरदारों और हिन्दू जनता का स्नेह हासिल करने में जुट गया।’

नेहरू ने लिखा है-

‘इस तरह अकबर ने राजपूतों को अपनी तरफ कर लिया और वह जनता का प्यारा बन गया। वह पारसियों और उसके दरबार में आने वाले जेजुइट पादरियों तक से अच्छा व्यवहार करता था जिन्होंने उसे ईसाई बनाने का प्रयास किया।

अकबर की उदारता और अकबर द्वारा इस्लामी शरीयत के खिलाफ की गई कार्यवाहियों से मुसलमान अमीर अकबर से नाराज हो गए और अकबर के खिलाफ कई विद्रोह हुए।’

अकबर के गुणों से सम्मोहित पण्डित नेहरू ने लिखा है- ‘महान! पुरुषों में चुम्बक जैसा आकर्षण होता है जो लोगों को अपनी ओर खींचता है। अकबर में यह दैहिक आकर्षण-शक्ति और मोहनी अत्यधिक मात्रा में थी।

जेजुइट लोगों के अद्भुत विवरण के अनुसार अकबर की वश में करने वाली आंखें इस तरह झिलमिलाती थीं जिस तरह सूर्य की रौशनी में समुद्र। फिर इसमें ताज्जुब की क्या बात है, अकबर का यह व्यक्तित्व हमको आज भी मोहता है और उसका शाही व मर्दाना स्वरूप उन ढेरों लोगों से बहुत ऊँचा दिखलाई पड़ता है, जो सिर्फ बादशाह हुए हैं।’                                      

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक तीसरा मुगल जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर से!

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