नसीराबाद की क्रांति ने अंग्रेजों को मुसीबत में डाल दिया। क्रांतिकारी सैनिकों ने नसीराबाद में मेजर स्पॉट्सवुड को गोली मार दी और कर्नल न्यूबरी को टुकड़ों में काट दिया! इससे भयभीत होकर अंग्रेज अधिकारियों के परिवार जंगलों की ओर भागने लगे।
मेरठ के क्रांतिकारी सिपाहियों ने दिल्ली पहुंच कर अंग्रेज अधिकारियों से दिल्ली को मुक्त करवा लिया है, यह सूचना आग की तरह सम्पूर्ण भारत में फैल गई। इसलिए कम्पनी सरकार की सेनाओं के साथ-साथ बहुत से देशी राज्यों में रखी गई सेनाओं में भी विद्रोह के अंकुर फूट पड़े।
कम्पनी सरकार ने राजपूताना में डाकुओं को पकड़ने के लिये कोटा रेजीमेंट, जोधपुर लीजियन, शेखावाटी ब्रिगेड आदि सेनाओं का गठन किया था तथा इन्हें रखने के लिये नसीराबाद, नीमच, देवली, ब्यावर, एरिनपुरा तथा खैरवाड़ा में कुल छः स्थानों पर सैनिक छावनियां स्थापित की थीं। इन छावनियों में लगभग पाँच हजार भारतीय सैनिक नियुक्त थे।
इनमें एक भी यूरोपीय सैनिक नहीं था। राजपूताने की लगभग समस्त सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिकों ने अँग्रेज अधिकारियों के विरुद्ध हथियार उठा लिये।
राजपूताने के मध्य में स्थित अजमेर, ब्रिटिश शासित क्षेत्र था। जिस समय मेरठ और दिल्ली में सैनिक क्रांति आरम्भ होने के समाचार अजमेर पहुंचे, उस समय अजमेर का तोपखाना बंगाल इन्फैण्ट्री की 15वीं रेजीमेंट के अधीन था। यह सेना कुछ समय पहले ही मेरठ से नसीराबाद आई थी। जिस समय विद्रोह हुआ, अजमेर-मेरवाड़ा का कमिश्नर कर्नल डिक्सन ब्यावर में था।
अजमेर का शस्त्रागार (मैगजीन), अजमेर की सघन बस्ती के बिल्कुल निकट स्थित था। इसमें इतना बारूद, शस्त्र, तोपें तथा राजकीय खजाना मौजूद था कि पूरे राजपूताना के विद्रोही सैनिकों को आपूर्ति करने के लिये पर्याप्त था। कर्नल डिक्सन ने अपने सहायक, ऑफिशियेटिंग सैकण्ड इन कमाण्ड लेफ्टिनेंट डब्लू कारनेल को रात्रि में ही ब्यावर से मेरवाड़ा बटालियन की दो कम्पनियों के साथ अजमेर के लिये रवाना किया ताकि रात में ही अजमेर पहुँचकर मैगजीन पर अधिकार कर ले।
ले. कारनेल अगली प्रातः मैगजीन के समक्ष प्रकट हुआ। उसने ब्रिटिश ऑफीसर इन कमाण्ड से अपनी सेना सहित मैगजीन से बाहर जाने के लिये कहा तो ब्रिटिश ऑफीसर इन कमाण्ड ने मैगजीन खाली करने से मना कर दिया। इस पर ले. कारनेल ने उस पर दबाव बनाया और मैगजीन पर कब्जा करके 15वीं बंगाल इन्फैण्ट्री को मैगजीन से बाहर निकाल दिया।
कारनेल, अँग्रेजों के परिवारों को मैगजीन के भीतर ले आया और उसने मैगजीन की बुर्जों पर पुरानी तोपें चढ़ा दीं। कारनेल ने मैगजीन के बीचों बीच एक कुआं खोदा तथा पर्याप्त रसद जमा करके, किसी भी आपात् स्थिति से निबटने के लिये तैयार होकर बैठ गया। जब 15वीं इण्डियन इनफैण्ट्री नसीराबाद पहुँची तो उनके साथियों ने उन्हें इस बात के लिये धिक्कारा कि उन्होंने निम्न जाति के मेर लोगों को मैगजीन सौंप दी।
राजपूताना के एजेण्ट टू दी गवर्नर जनरल कर्नल जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस को 19 मई 1857 को इस विद्रोह का समाचार मिला। उस दिन वह माउण्ट आबू में था। एजीजी ने कोटा कण्टिन्जेण्ट को अजमेर पहुंचने के निर्देश भेजे किंतु तब तक उसे आगरा भेजा जा चुका था।
एजीजी ने नसीराबाद की हिन्दुस्तानी सेना को आतंकित करने के लिये डीसा की लाइट इन्फैन्ट्री को नसीराबाद भेजने के आदेश भिजवाये ताकि नसीराबाद की क्रांति को दबाया जा सके। 23 मई 1857 को लॉरेंस ने राजपूताना की समस्त रियासतों के राजाओं से अपील की कि वे अपने राज्यों में व्यवस्था बनाये रखें तथा अपनी सेनाओं को ब्रिटिश शासन की सहायता के लिये राज्यों की सीमा पर तैनात करें।
23 मई 1857 को ही डीसा से लाइट इन्फैण्ट्री नसीराबाद के लिये चल पड़ी। उसके साथ लाइट फील्ड तोपखाना भी था। इसमें पूरी तरह यूरोपियन सैनिक थे। लॉरेन्स ने अपने सहायक, कैप्टेन फोर्ब्स को तोपखाने के साथ नसीराबाद के लिये रवाना किया। 15वीं नेटिव इन्फैण्ट्री की ग्रेनेडियर कम्पनी को भी अजमेर भेजा गया तथा उसे अजमेर दुर्ग में तैनात किया गया ताकि डीसा से आने वाली लाइट इन्फैण्ट्री को मजबूती दी जा सके।
अजमेर से कुछ दूरी पर स्थित नसीराबाद छावनी के बाहर यूरोपियन अधिकारियों के बंगले बने हुए थे। छावनी क्षेत्र में एक असिस्टेण्ट कमिश्नर, एक सिविल सर्जन तथा उसकी पत्नी, गवर्नमेंट कॉलेज का प्रिंसीपल, उसका एक सहायक तथा आधा दर्जन नॉन कमीशन्ड अधिकारी तोपखाने के पास ही रहते थे। नसीराबाद बारूद के ढेर पर बैठा था, किसी भी समय इस बारूद में आग लग सकती थी।
मेरठ, कानपुर, झांसी, बिठूर तथा दिल्ली क्रांति की आग में जल रहे थे तथा राजपूताना की छः सैन्य छावनियों में विद्रोह न हो, इसके लिए अंग्रेज अधिकारी जी-जान से जूझ रहे थे फिर भी राजपूताने में क्रांति सुलग उठी।
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28 मई 1857 को नसीराबाद की दो रेजीमेन्ट्स में विद्रोह हुआ। सबसे पहले 15वीं रेजीमेन्ट ने विद्रोह किया जो बहुत उद्दण्ड तथा अनुशासनहीन मानी जाती थी। इसके सैनिकों को व्यंग्य से पुरबिया (पूर्व के रहने वाले) कहा जाता था। उन्होंने शस्त्रागार से बन्दूकें लूट लीं और सरकारी बगंलों तथा निजी आवासों में घुसकर लूटपाट की और उन्हें जला दिया।
फर्स्ट बॉम्बे कैवेलरी तथा 30वीं नेटिव इनफैण्ट्री भी नसीराबाद में नियुक्त थीं। मेजर प्रिचार्ड ने इन टुकड़ियों के सिपाहियों को विद्रोहियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का आदेश दिया किंतु सैनिकों ने आदेश मानने से मना कर दिया परन्तु जब ब्रिटिश अधिकारियों के बच्चे नसीराबाद से अजमेर के लिये रवाना हुए तो फर्स्ट बॉम्बे कैवेलरी ने स्त्रियों तथा बच्चों को सुरक्षा प्रदान की। विद्रोहियों द्वारा इस टुकड़ी के दो अधिकारी मार डाले गये।
कर्नल स्पॉट्सवुड को गोली मारी गई तथा कर्नल न्यूबरी को टुकड़ों में काट दिया गया। लेफ्टीनेंट लॉक तथा केप्टेन हार्डी को बुरी तरह से घायल कर दिया। यह हमला होते ही अँग्रेज अधिकारियों ने अजमेर की सड़क पकड़ी। अंग्रेज इसे गदर कह रहे थे किंतु भारतीय सैनिक इसे नसीराबाद की क्रांति कह रहे थे।
30वीं नेटिव इन्फैण्ट्री के कैप्टेन फेनविक ने नसीराबाद छोड़ने से मना कर दिया। कुछ वफादार सिपाहियों ने कैप्टेन से प्रार्थना की कि वह भी अजमेर चला जाये किंतु फेनविक ने मना कर दिया। सिपाही उसे मारना नहीं चाहते थे। इसलिये चार सिपाही उसे पकड़कर ले गये और छावनी के बाहरी छोर पर ले जाकर छोड़ दिया।
अँग्रेज अधिकारी कुछ विश्वस्त भारतीय सैनिकों को अपने साथ लेकर अजमेर की तरफ चल दिये किंतु ब्रिगेडियर मकाउ के निर्देशों पर वे अजमेर न जाकर ब्यावर की तरफ मुड़ गये। 30वीं नेटिव इन्फैण्ट्री के 120 मजबूत सिपाही तथा एक भारतीय अधिकारी के सरंक्षण में ये अँग्रेज अधिकारी ब्यावर पहुँच गये। अँग्रेज अधिकारियों के नसीराबाद छोड़ते ही छावनी में लूटपाट और आगजनी तेज हो गई।
नसीराबाद के चर्च तथा ब्रिटिश अधिकारियों के बंगलों में आग लगा दी गई और सरकारी खजाना लूट लिया गया। अधिकारियों के बंगलों में रात भर लूट चलती रही। उसके बाद दुकानों में लूट आरम्भ हुई। विद्रोहियों ने सदर बाजार के कोने पर तोप लगा दी और धमकी दी कि यदि कोई उनके मार्ग में आया तो उसे तोप से उड़ा दिया जायेगा किंतु किसी को नहीं मारा गया न घायल किया गया!
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता