Friday, November 22, 2024
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महाराजा सूरजमल की विजय

मुगल शक्ति अहमदशाह अब्दाली के पहले आक्रमण में ही टूट चुकी थी, अब्दाली के दूसरे आक्रमण ने कुछ समय के लिए मराठों की भी कमर तोड़ दी। इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए महाराजा सूरजमल ने मुगल क्षेत्रों को जीत लिया। महाराजा सूरजमल की विजय भारत के इतिहास में नया मोड़ लाने वाली थी।

पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद उत्तर भारत की राजनीति में शून्यता आ गई। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने आगरा के लाल किले पर अधिकार करने का निर्णय लिया। ऐसा करके ही वह दो-आब क्षेत्र में एक ऐसी सशक्त शासन व्यवस्था स्थापित कर सकता था जो विदेशी आक्रांताओं का सामना कर सके तथा मराठों को भी दूर रख सके। 3 मई 1761 को सूरजमल के 4000 जाट सैनिक आगरा पहुंचे। उनका नेतृत्व बलराम कर रहा था।

बलराम ने आगरा नगर में अपनी चौकियां स्थापित करके प्रमुख स्थानों पर अधिकार जमा लिया। जब इन सैनिकों ने आगरा के लाल किले में प्रवेश करने की चेष्टा की तो दुर्गपति ने विरोध किया। इस झगड़े में 200 सैनिक मारे गये। इस दौरान महाराजा सूरजमल स्वयं मथुरा में बैठकर आगरा में हो रही गतिविधियों पर दृष्टि रख रहा था। 24 मई 1761 को सूरजमल यमुना पार करके कोइल पहुंच गया जिसे अब अलीगढ़ कहते हैं। जाट सेना ने कोइल तथा जलेसर पर अधिकार कर लिया।

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सूरजमल की सेना ने आगरा के लाल किले के किलेदार के परिवार को पकड़ लिया तथा किलेदार पर दबाव बनाया कि वह लाल किला सूरजमल को समर्पित कर दे। इस पर किलेदार ने एक लाख रुपये तथा पांच गांवों की जागीर मांगी। उसकी मांगें स्वीकार कर ली गईं। 12 जून 1761 को सूरजमल ने आगरा में प्रवेश किया तथा लाल किले पर अधिकार कर लिया। आगरा दुर्ग पर अधिकार के रूप में मिली महाराजा सूरजमल की विजय ने भारत भर में तहलका मचा दिया। आगारा दुर्ग से सूरजमल को बड़ी संख्या में विशाल तोपें, बारूद तथा हथियार प्राप्त हुए।

सूरजमल ने ताजमहल पर भी अधिकार कर लिया तथा उस पर लगे हुए चांदी के दो दरवाजे उखड़वा लिये और उन्हें पिघलवाकर चांदी निकलवा ली। ई.1774 तक आगरा, जाटों के अधिकार में रहा। पानीपत की लड़ाई के बाद रूहेलों ने मराठा सरदारों को भगाकर उनसे भौगांव, मैनपुरी, इटावा आदि क्षेत्र छीन लिये थे। सूरजमल ने रूहेलों पर आक्रमण करके उन्हें काली नदी के दूसरी ओर धकेल दिया तथा वहाँ की प्रजा को रूहेलों से मुक्ति दिलवाई।

अब्दाली ने रूहेलों को बुलंदशहर, अलीगढ़, जलेसर, सिकन्दराबाद, कासंगज तथा सोरों के क्षेत्र प्रदान किये थे। इससे पहले ये क्षेत्र महाराजा सूरजमल के अधिकार में हुआ करते थे। सूरजमल ने रूहेलों को खदेड़ कर अपने पुराने क्षेत्रों पर फिर से अधिकार कर लिया। इसी प्रकार अनूपशहर, सियाना, गढ़ मुक्तेश्वर एवं हापुड़ आदि क्षेत्रों से भी रूहेलों एवं अफगानियों को भगा दिया गया।

आगरा पर अधिकार करने के बाद महाराजा ने फरह, किरावली, फतहपुर सीकरी, खेरागढ़, कोलारी, तांतपुर, बसेड़ी तथा धौलपुर परगनों पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार मुगलों की दो राजधानियां आगरा एवं फतेहपुर सीकरी सूरजमल के अधिकार में आ गईं। महाराजा सूरजमल की विजय यात्रा निरंतर जारी रही और उनके शत्रु मुंह की खाकर पीछे हटते रहे।

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महाराजा सूरजमल ने अपने दो पुत्रों जवाहरसिंह तथा नाहरसिंह को सेनाएं देकर हरियाणा के क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिये भेजा। इस भू-भाग में इन दिनों मेव एवं बलूच मुसलमानों ने अपनी गढ़ियां स्थापित कर रखी थी।

रूहेलों एवं अफगानियों के बाद मेवों और बलूचों की बारी आनी ही थी। इन्हें मिटाये बिना दिल्ली पर सशक्त राजनीतिक सत्ता की स्थापना नहीं की जा सकती थी। इसलिये जाटों की एक टुकड़ी ने फरीदाबाद, बटेश्वर और राजाखेड़ा पर अधिकार कर लिया। सिकरवार राजपूतों से सिकरवाड़ ठिकाना एवं भदौरिया राजपूतों से भदावर ठिकाना भी जीत लिया गया।

इस प्रकार जाटों द्वारा ई.1762 से 1763 तक हरियाणा प्रदेश के विस्तृत क्षेत्र पर अधिकार कर लिया गया। जाटों के राजकुमार जवाहरसिंह की सेना ने रूहेलों से रेवाड़ी, झज्झर, पटौदी, चरखी दादरी, सोहना तथा गुड़गांव छीन लिये।

ई.1763 में फर्रूखनगर पर अधिकार करने को लेकर जाटों एवं बलोचों में युद्ध हुआ। जाटों का नेतृत्व राजकुमार जवाहरसिंह ने किया तथा बलोचों का नेतृत्व मुसावी खाँ ने किया। जब बलोचों का पलड़ा भारी पड़ने लगा तो स्वयं सूरजमल को युद्ध क्षेत्र में आना पड़ा। दो माह तक और घेरा डाला गया तथा जबर्दस्त दबाव बनाया गया।

अंत में मुसावी खाँ ने इस शर्त पर दुर्ग खाली करना स्वीकार किया कि राजा सूरजमल स्वयं गंगाजल हाथ में रखकर शपथ ले कि वह मुसावी तथा उसके आदमियों को दुर्ग से निरापद रूप से हट जाने देगा। महाराजा ने शपथ लेने से मना कर दिया। कुछ दिनों बाद महाराजा सूरजमल ने मुसावी खाँ को बंदी बनाकर भरतपुर भेज दिया। 12 दिसम्बर 1763 को दुर्ग पर सूरजमल का अधिकार हो गया।

गढ़ी हरसारू एक पक्की गढ़ी थी जो बड़ी संख्या में मेव डाकुओं को शरण देती थी। इसके नुकीले दरवाजों को तोड़ने में हाथियों का प्रयोग किया गया किंतु वे सफल नहीं हो सके। इस पर जवाहरसिंह ने अपने कुल्हाड़ी दल को गढ़ी का दरवाजा तोड़ने के लिये भेजा।

इन सैनिकों ने अपने सरदार सीताराम कोटवान के नेतृत्व में गढ़ी के दरवाजों पर हमला किया और दरवाजे को तोड़ दिया। जाट सेना तीव्र गति से गढ़ी में घुस गई और उसमें छिपे बैठे समस्त डाकुओं को मार डाला।

जाटों द्वारा रोहतक पर भी अधिकार कर लिया गया। इसके बाद सूरजमल ने दिल्ली से 12 कोस दूर स्थित बहादुरगढ़ का रुख किया। यहाँ पर बलोच सरदार बहादुर खाँ का अधिकार था। उसने नजीबुद्दौला से सम्पर्क किया किंतु सूरजमल ने किसी की नहीं सुनी और बहादुरगढ़ पर अधिकार कर लिया।

इस प्रकार सूरजमल ने दिल्ली, फतहपुर सीकरी एवं आगरा के चारों ओर के क्षेत्र रूहेलों, अफगानियों, मेवों और बलूचों से छीन लिए। ऐसा लगने लगा था कि दिल्ली पर भी एक दिन महाराजा सूरजमल की विजय होनी निश्चित है।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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