मराठा सेनापति रघुनाथ राव भट्ट नाना साहब पेशवा के आदेश पर मराठा सरदारों की सेना लेकर दिल्ली की तरफ रवाना हुआ ताकि अहमदशाह अब्दाली से दिल्ली को मुक्त करवाया जा सके किंतु जब तक वह दिल्ली पहुंच पाता, तब तक अब्दाली स्वयं ही दिल्ली छोड़कर जा चुका था।
अहमदशाह अब्दाली अपने साथ बड़ी संख्या में तोपें खींचकर लाया था। जब वह अफगानिस्तान लौटने लगा तो उसने बड़ी संख्या में तोपों को दिल्ली तथा उसके आसपास ही छोड़ दिया क्योंकि उन्हें खींचने वाले पशुओं पर अब लूट का माल लदा हुआ था। जब अब्दाली दिल्ली से निकल गया तो भरतपुर का महाराजा सूरजमल उन तोपों को दिल्ली से खींचकर अपने किलों में ले आया। जदुनाथ सरकार ने फॉल ऑफ दी मुगल एम्पायर में लिखा है कि दिल्ली में किसी के पास एक तलवार तक न रही।
अहमदशाह अब्दाली के दिल्ली से निकलते ही नए मीर बख्शी नजीब खाँ रूहेला ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। उसके सिपाही दिल्ली की गलियों में घूमने लगे और लाल किले पर पहरा देने लगे। लाल किला फिर से सिपाहियों के पहरे में बंद हो गया। बाहर से देखने पर ऐसा लगता था जैसे भीतर सब-कुछ सामान्य हो गया है किंतु भीतर कुछ भी सामान्य नहीं था। किले के भीतर मनुष्य नहीं, चलती-फिरती लाशें रहती थीं।
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एक ओर तो मुगल बादशाह आलमगीर का मीरबख्शी इमादुलमुल्क बादशाह आलमगीर से नाराज होकर मराठों की शरण में भाग गया था और उसने मराठों से प्रार्थना की थी कि वे दिल्ली पर आक्रमण करके बादशाह आलमगीर को दण्डित करें। जबकि दूसरी ओर बादशाह आलमगीर ने मराठों से अहमदशाह अब्दाली के विरुद्ध सहायता की पुकार लगाई थी और तीसरी ओर मराठों के पेशवा नाना साहब अर्थात् बालाजी बाजी राव ने दिल्ली को अपना संरक्षित राज्य जानकर संकट की घड़ी में अपने चचेरे भाई रघुनाथ राव तथा मराठा सरदार मल्हारराव होलकर को आदेश दिए थे कि वे अहमदशाह अब्दाली का मार्ग रोकने के लिए दिल्ली पहुंचें।
इन सब कारणों से मराठा सेनापति रघुनाथ राव भट्ट, मल्हारराव होलकर, सखाराम बापू आदि मराठा सरदार अपनी-अपनी सेनाएं लेकर दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे। इमादुलमुल्क भी अपनी सेना लेकर उनके साथ था किंतु जब तक ये लोग दिल्ली पहुंच पाते, तब तक अहमदशाह अब्दाली दिल्ली, मथुरा, आगरा, बल्लभगढ़ आदि को लूटकर पुनः अफगानिस्तान के लिए लौट चुका था।
मराठों को मार्ग में हुई देरी का कारण बहुत स्पष्ट था। मराठों को राजपूताना राज्यों एवं गंगा-यमुना के दो-आब से चौथ वसूली करने में काफी समय लग गया। मराठों की विवशता यह थी कि विशाल सेनाओं का व्यय उठाने के कारण पेशवा नाना साहब स्वयं कर्ज में डूबा हुआ था और उसने रघुनाथ राव को उसकी सेना के खर्च के लिए कोई राशि नहीं दी थी। रघुनाथ राव को दिल्ली पर आक्रमण करने से पहले राजपूताना राज्यों एवं गंगा-यमुना के दोआब से ही चौथ वसूली करनी थी।
मराठा सेनापति रघुनाथ राव सबसे पहले मेवाड़ रियासत पहुंचा तथा उसने महाराणा से रुपयों की मांग की। कर्ज में डूबी हुई मेवाड़ रियासत के महाराणा राजसिंह (द्वितीय) ने रघुनाथ राव को एक लाख रुपए दिए जिसे लेकर रघुनाथ राव जयपुर की तरफ बढ़ा। इस काल में प्राचीन आम्बेर राज्य को जयपुर राज्य कहा जाने लगा था। जयपुर की सेनाओं ने मराठों को बहुत समय तक रोके रखा। यहाँ तक कि रघुरनाथ राव की सेना भूखी मरने लगी और उसे अपना पेट भरने के लिए प्रतिदिन किसी न किसी गांव पर आक्रमण करके वहाँ से राशन-पानी लूटना होता था।
इस दौरान मराठा सेनापति रघुनाथ राव ने पेशवा नाना साहब को पत्र लिखकर धन भिजवाने की मांग की। उसने पेशवा नाना साहब को सूचित किया कि मैं अपना पेट गांवों को लूटकर भर रहा हूँ। यह देश किलों एवं परकोटों में बंद है तथा अनाज का एक दाना भी लड़ाई किए हुए बिना एकत्रित करना संभव नहीं है। मेरे पास एक भी पैसा नहीं है तथा मुझे कहीं से भी ऋण नहीं मिल सकता है। मेरे सैनिकों को लगातार एक या दो दिन तक व्रत रखना पड़ रहा है।
रघुनाथराव ने जयपुर राज्य के अधीन बरवाड़ा को घेर लिया तथा जयपुर नरेश माधोसिंह (प्रथम) से 50 लाख रुपयों तथा 14 लाख रुपए वार्षिक आय वाली जागीर की मांग की। जयपुर राज्य का मंत्री कनीराम मराठों को 11 लाख रुपए देना चाहता था। इस दौरान बरवाड़ा के शेखावतों ने मराठों का डटकर सामना किया और उन्हें बरवाड़ा से आगे नहीं बढ़ने दिया।
इस पर 12 जुलाई 1757 को रघुनाथ राव ने पेशवा नाना साहब को दुबारा पत्र लिखकर सूचित किया कि मेरे पास बिल्कुल भी धन नहीं है। यहाँ मुझे कोई ऋण देने को तैयार नहीं है तथा मेरे सैनिकों पर भी कर्जा चढ़ गया है। यहाँ पर हर वस्तु का भाव बहुत ज्यादा है। मैं प्रतिदिन किसी न किसी गांव को लूटकर खाना जुटा रहा हूँ।
अंत में जयपुर के राजा माधोसिंह ने रघुनाथ राव को ग्यारह लाख रुपए देना स्वीकार किया जिसमें से 6 लाख रुपए उसी समय चुका दिए और शेष राशि बाद में देने का भरोसा दिया।
जयपुर से रुपए मिलने के बाद रघुनाथ राव दिल्ली की ओर बढ़ा किंतु जब तक वह दिल्ली पहुंचता, तब तक अहमदशाह अब्दाली दिल्ली, बल्लभगढ़, मथुरा और आगरा को लूटकर लाहौर के लिए प्रस्थान कर चुका था। कहने को तो अहमदशाह अब्दाली लौट गया था किंतु अब रूहेलों का सरदार नजीब खाँ मुगलिया सल्तनत का मीर बख्शी था तथा अहमदशाह अब्दली का प्रतिनिधि होने के कारण समस्त अधिकारों का स्वामी भी। लाल किला अब नजीब खाँ के नियंत्रण में था और बादशाह उसके भीतर मूक कठपुतली की तरह बैठा हुआ था।
मराठों की शरण में रह रहे, दिल्ली के पुराने मीर बख्शी इमादुलमुल्क ने मराठा सरदार रघुनाथ राव से प्रार्थना की कि वह दिल्ली पर अधिकार करके नजीब खाँ रूहेला को नष्ट कर दे। इस पर खिज्राबाद की ओर से रघुनाथ राव, गंगा-यमुना के दोआब की ओर से सखाराम बापू एवं रेवाड़ी की ओर से शमशेर बहादुर खाँ दिल्ली की ओर बढ़े।
नए मीर बख्शी नजीब खाँ ने खिज्राबाद की तरफ खाइयां खुदवा कर उनके निकट अपनी तोपें खड़ी करवा दीं। ताकि मराठ सेनाएं दिल्ली में न घुस सकें। फिर भी सखाराम बापू ने दिल्ली में घुसकर पटपड़गंज पर अधिकार कर लिया। मराठों ने दिल्ली को चारों ओर से घेरकर अनाज की आपूर्ति रोक दी।
इसके बाद मराठों ने दो तरफ से दिल्ली पर धावा बोला। नजीब खाँ के रूहेला सैनिकों ने दिल्ली में स्थित इमादुलमुल्क का घर लूट लिया। रूहेलों ने इमादुलमुल्क के हरम की औरतों को पकड़कर उन्हें बेइज्जत किया। इस पर मराठे तेजी से आगे बढ़ते हुए लाल किले के निकट जा पहुंचे और उन्होंने लाल किले को चारों ओर से घेर लिया। इस घेराबंदी के कारण लाल किले में अनाज की आवक बंद हो गई।