बंदासिंह बैरागी ने गुरु गोविंदसिंह के आदेश से सिक्खों में जागृति लाने एवं सिक्ख समुदाय में एकता स्थापित करने का कार्य आरम्भ किया था। इस कारण बंदा बैरागी मुगल बादशाहों को मार्ग के कांटे की तरह खटकता था। इस कारण फर्रूखसियर ने बंदासिंह बैरागी की हत्या की करवाई तथा उसके साथियों के टुकड़े करवा दिए !
गुरु गोविंदसिंह की मृत्यु के बाद बंदासिंह बैरागी ने सिक्खों का नेतृत्व किया तथा सरहिंद के सूबेदार वजीर खाँ को मारकर प्रथम सिक्ख राज्य की स्थापना की। बंदा बैरागी के राज्य में पंजाब के सरहिंद, हिसार तथा समाना और गंगा-यमुना दोआब के सहारनपुर आदि क्षेत्र सम्मिलित थे। बाद में इस राज्य को लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत कर लिया गया।
जलालाबाद के फौजदार अली हामिद खाँ ने कुछ सिक्खों को बंदी बना लिया। इस पर बंदा बैरागी के सिक्खों ने जलालाबाद के लिए कूच कर दिया। मार्ग में सिक्खों ने बेहाट नामक स्थान पर आक्रमण किया जहाँ के पीरजादा लोग, हिन्दू प्रजा को तंग करते थे और गायों का वध करते थे।
बंदा बहादुर के सिक्खों ने बेहाट पर कब्जा करके पीरजादों को मार दिया। इसके पश्चात् बंदा बहादुर ने जलालाबाद के निकट पहुंचकर वहाँ के फौजदार को संदेश भिजवाया कि वह बंदी बनाए गए सिक्खों को मुक्त कर दे किंतु फौजदार ने सिक्खों को मुक्त करने से मना कर दिया।
इस पर बंदा बहादुर की सेना ने नानौता पर हमला किया तथा वहाँ के शेखजादों को परास्त करके उन्हें दण्डित किया। इसी बीच कृष्णा नदी में बाढ़ आ जाने के कारण बंदा बहादुर को जालंधर की तरफ चले जाना पड़ा।
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सिक्खों ने जालंधर तथा अमृतसर के मुसलमान फौजदारों के विरुद्ध भी कार्यवाही की। उन्होंने जालंधर के फौजदार शम्स खाँ से कहा कि वह अपना खजाना सिक्खों को समर्पित कर दे। इस पर शम्स खाँ ने सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा कर दी तथा आसपास के मुस्लिम फौजदारों को सिक्खों से लड़ने के लिए आमंत्रित किया। सिक्खों ने जालंधर के फौजदार को परास्त कर दिया तथा उसके बाद रोहन पर कब्जा कर लिया।
बंदा बहादुर ने आठ हजार सिक्खों को लेकर अमृतसर पर आक्रमण किया तथा वहाँ से भी मुगल अधिकारियों को मार भगाया। इसके बाद सिक्ख सेना लाहौर की तरफ बढ़ी। लाहौर के मुल्लाओं ने भी सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की किंतु सिक्खों ने लाहौर के गाजियों को परास्त करके लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। जहाँ-जहाँ सिक्खों का अधिकार होता गया, वहाँ-वहाँ मुगल अधिकारियों को हटाकर सिक्ख अधिकारियों को नियुक्त कर दिया गया। बंदा ने लौहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया तथा वहाँ पर एक टकसाल स्थापित की।
बंदा बहादुर ने अपने राज्य से मुगलों की भू-राजस्व व्यवस्था समाप्त करके किसानों को उनके द्वारा जोती जाने वाली भूमि का मालिक बना दिया। किसानों के हित में की गई यह व्यवस्था उस काल की बड़ी घटनाओं में से एक थी किंतु इतिहासकारों ने इसका उल्लेख बहुत कम किया है। दिसम्बर 1710 में मुगल बादशाह बहादुरशाह ने बन्दा बैरागी के मुख्य केन्द्र लौहगढ़ पर अधिकार कर लिया परन्तु बन्दा बैरागी वहाँ से भाग निकला तथा पहाड़ों में जाकर छिप गया।
इससे पहले कि सिक्ख विद्रोह पूर्ण रूप से कुचल दिया जाता, फरवरी 1712 में बहादुरशाह की मृत्यु हो गई। इसके बाद बन्दा बैरागी ने फिर से अपने राज्य के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया।
बहादुरशाह के बाद जहाँदरशाह ने और उसके बाद फर्रूखसियर ने सिक्खों को दबाने के भरसक प्रयत्न किए। ईस्वी 1715 में अब्दुल समद ख़ाँ के नेतृत्व में मुगल सेना ने गुरूदास-नांगल नामक स्थान पर बन्दा बहादुर को घेर लिया। बंदा बैरागी ने स्वयं को गुरदासपुर के किले में बंद कर लिया।
आठ माह तक मुगल सेना से घिरे रहने के बाद रसद की कमी हो जाने के कारण 7 दिसम्बर 1715 को बन्दा बहादुर को आत्म-समर्पण करना पड़ा। बंदा बहादुर को उसके 794 साथियों सहित दिल्ली लाया गया, जहाँ उसे इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया।
जब बंदा बहादुर ने मुसलमान बनने से मना कर दिया तो उससे कहा गया कि यदि वह मुसलमान नहीं बनेगा तो उसके शरीर के टुकड़े कर दिए जाएंगे। बंदासिंह बैरागी इस पर भी अपने धर्म पर अडिग रहा। बंदा बैरागी की आंखों के सामने उसके प्रिय साथियों के टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को खिलाए गए।
तत्कालीन स्रोतों के अनुसार 5 मार्च से 12 मार्च 1715 तक, सात दिनों में प्रतिदिन 100 सिक्खों की हत्या की गई। 16 जून 1716 को फर्रूखसियर के आदेश से बंदासिंह बैरागी की हत्या की गई तथा उसके प्रमुख साथियों के शरीरों के टुकड़े कर दिये गये।
बंदासिंह बैरागी की हत्या के बाद सिक्ख नेतृत्व-विहीन हो गये। जब सिक्खों के सामने न गुरु रहा, न गुरु का बन्दा, तब सिक्खों ने सरबत खालसा और गुरुमत्ता की प्रथाएँ आरम्भ कीं।
वर्ष में दो बार- बैशाखी और दीवाली पर, सिक्खों ने विशाल सभाएँ करनी आरम्भ कीं जिन्हें सरबत खालसा कहा जाता था। सरबत खालसा में लिये गये निर्णयों को गुरूमत्ता कहा जाता था। बन्दा बहादुर के पश्चात् भी सिक्खों और मुगलों के बीच संघर्ष चलते रहे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता