Friday, November 22, 2024
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मूर्तिभंजक औरंगजेब

मूर्तिभंजक औरंगजेब ने भारत के हजारों मंदिर तुड़वा दिए तथा देवमूर्तियां मस्जिदों तक जाने वाले रास्तों में गढ़वा दीं। उसने विश्वप्रसिद्ध उज्जैन, अयोध्या और जगन्नाथपुरी के मंदिर तोड़ दिए!

औरंगजेब ने आदेश जारी किया कि हिन्दू अपने पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार नहीं करें तथा नये मंदिर नहीं बनवायें। उसने हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तुड़वाकर दिल्ली तथा आगरा में मस्जिदों की सीढ़ियों तथा मार्गों में डलवा दिया जिससे वे मुसलमानों के पैरों से कुचली तथा ठुकराई जायें और उनका घोर अपमान हो।

मूर्तिभंजक औरंगजेब चाहता था कि देव-मंदिरों, हिन्दू-विद्यालयों एवं धर्म-ग्रंथों को नष्ट करके, हिन्दुओं के मेलों और तीज-त्यौहारों को बंद करके, हिन्दू न्याय एवं विधि को समाप्त करके तथा तीर्थों के वास्तविक नामों को बदलकर हिन्दुओं के मन से हिन्दू धर्म के गौरव को पूर्णतः मिटा दिया जाए।

मथुरा एवं वृंदावन के मंदिरों को तोड़ने के बाद मूर्तिभंजक औरंगजेब ने गदा बेग को 400 सिपाहियों के साथ उज्जैन के मंदिर तोड़ने के लिए भेजा तथा मालवा के सूबेदार वजीर खाँ को भी उज्जैन पहुंचने के आदेश दिए।

जब मुस्लिम सेना उज्जैन के सुप्रसिद्ध महाकाल मंदिर पर हमला करने पहुंची तो उज्जैन के रावत ने मुस्लिम सेना का प्रबल विरोध किया। उसने गदा बेग तथा उसके 121 सिपाहियों का वध कर दिया। रावत की बहादुरी को आज भी मालवा के लोकगीतों में स्मरण किया जाता है।

औरंगजेब के सेनापतियों ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर ‘त्रेता के ठाकुर’ को नष्ट कर दिया जहाँ भगवान ने अपनी लौकिक देह का त्याग किया था। अयोध्या का ‘स्वर्गद्वारम्’ नामक मंदिर भी तोड़ दिया गया जहाँ भगवान की लौकिक देह का अंतिम संस्कार किया गया था।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अयोध्या का ‘जन्मस्थानम्’ नामक मंदिर भी औरंगजेब के शासकाल में तोड़ा गया था जहाँ भगवान ने लौकिक देह में अवतार लिया था। अधिकतर इतिहासकारों की मान्यता है कि जन्मस्थानम् मंदिर को बाबर के शिया सेनापति मीर बाकी ने ई.1528 में ध्वस्त किया था।

ई.1672 में मंदिरों को तोड़ने का औरंगजेब का आदेश बंगाल प्रांत के प्रत्येक परगने में भेजा गया। ढाका जिले के धामारी गांव के यशोमाधव मंदिर से इस आदेश की एक प्रति प्राप्त हुई है।

उन्हीं दिनों औरंगजेब को सूचना मिली कि काबुल क्षेत्र में घोरबंद नामक थाने पर नियुक्त राजा मांधाता, घोरबंद दुर्ग में स्थित मंदिर में फूलों से मूर्तियों की पूजा करता है तथा आरती एवं भोग लगाता है। इस पर राजा मांधाता को घोरबंद से अन्यत्र भेज दिया गया तथा मंदिर को तोड़कर वहाँ मस्जिद बनवाई गई।

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उसी वर्ष हसन अली खाँ ने मूर्तिभंजक औरंगजेब को सूचित किया कि उसने इस्लामाबाद (मथुरा) में एक मंदिर तोड़ा है तथा एक हिन्दू बस्ती को नष्ट करके वहाँ हसनपुर नामक गांव बसाया है। जून 1681 में शाइस्ता खाँ को आदेश भेजकर ब्रह्मपुराण में वर्णित जगन्नाथपुरी के विश्व-प्रसिद्ध मंदिर को तुड़वाया गया।

21 सितम्बर 1681 को औरंगजेब ने बेलदारों के दारोगा जवाहर चंद को आदेश दिए कि वह बुरहानपुर जाए तथा अजमेर से बुरहानपुर तक के मार्ग में स्थित प्रत्येक मंदिर को तोड़ डाले। ई.1681 के अंतिम महीनों में दक्षिण के मोर्चे पर नियुक्त कोटा नरेश को ज्ञात हुआ कि औरंगजेब अजमेर से कोटा, बूंदी एवं माण्डू होता हुआ बुरहानपुर जाएगा। इसलिए कोटा नरेश ने अपने राज्याधिकारियों को पत्र भेजकर सूचित किया कि वे श्रीनाथजी के सेवकों से कहें कि वे भगवान के विग्रह को लेकर बोराम्बा अथवा बिसलपुर चले जाएं तथा तब तक वहाँ रहें जब तक कि औरंगजेब वहाँ से वापस न लौट जाए।

13 नवम्बर 1681 को औरंगजेब बुरहानपुर पहुंचा तथा उसने बुरहानपुर के मंदिरों की रिपोर्ट मांगी। उसे बताया गया कि बुरहानपुर में काफी संख्या में मंदिर हैं जिनके पुजारी उन्हें बंद करके चले गए हैं। औरंगजेब उन मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाना चाहता था किंतु बुरहानपुर के सूबेदार ने औरंगजेब को बताया कि बुरहानपुर में इतने मुसलमान नहीं हैं जो इन मंदिरों को तोड़ सकें। चूंकि औरंगजेब को अपनी सेना अपने विद्रोही पुत्र अकबर तथा शिवाजी के पुत्र शंभाजी के विरुद्ध भेजनी थी इसलिए उसने उन मंदिरों के दरवाजे तुड़वाकर उन्हें ईंटों से बंद करवा दिया।

ई.1682 में औरंगजेब के आदेशों से बनारस में स्थित सुप्रसिद्ध नंद-माधव अर्थात् बिंदु-माधव मंदिर को भी तोड़ डाला गया तथा उसके स्थान पर मस्जिद बनाई गई। इस विशाल मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल एवं राजा मानसिंह द्वारा अकबर की अनुमति से ई.1585 में करवाया गया था।

13 सितम्बर 1682 को औरंगजेब ने शहजादे आजमशाह को आदेश दिए कि वह शंभाजी के राज्य में पेडगांव स्थित शिव मंदिर को तोड़ डाले। आजमशाह द्वारा इस मंदिर को तोड़ दिया गया तथा इस गांव का नाम बदलकर रहमतपुर कर दिया गया। 2 नवम्बर 1687 को अब्दुल खाँ को हैदराबाद के मंदिरों को तोड़ने के आदेश दिए गए। ई.1690 में औरंगजेब ने एलोरा, त्रयम्बकेश्वर, पंढरपुर जाजुरी तथा यवत के मंदिर तुड़वाए।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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