औरंगजेब का इस्लाम अपने जमाने के तमाम मुसलमानों से अलग था। जो शिया मुसलमान तबर्रा बोलते थे, औरंगजेब उनकी हत्या करवा देता था। कुछ लोग उसे पीर एवं औलिया मानते थे तो कुछ लोग इसे औरंगजेब की कट्टरता कहते थे।
इस्लाम का प्रचार करने की धुन में मदमत्त हुए औरंगजेब ने केवल इतना ही नहीं किया था कि उसने लाल किलों से नचैयों, गवैयों, पत्थरसाजों एवं रंगसाजों को मार भगाया था जिन्हें वह कुफ्र की निशानियां कहता था, अपितु उसने कई ऐसी बातें भी कीं जो मुसलमानों को भी बुरी लगती थीं किंतु औरंगजेब के पास अपने तर्क थे जिनकी काट बड़े से बड़े मुल्ला-मौलवी के पास नहीं थी। मुल्ला-मौलवी चाहते थे कि बादशाह द्वारा जारी सिक्कों पर कलमा लिखा जाए क्योंकि यह परम्परा तैमूरी खानदान के बादशाहों द्वारा प्राचीन काल से चली आ री थी किंतु औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमा लिखवाना बन्द कर दिया क्योंकि वह गैर-मुसलमानों के हाथों में जाने से अपवित्र हो जाता था।
औरंगजेब ने भारत के प्रत्येक बड़े नगर में मुहतासिब अर्थात् आचरण-निरीक्षक निुयक्त किये। जिनका काम यह देखना था कि प्रजा, इस्लाम के अनुसार जीवन व्यतीत करती है या नहीं! अर्थात् प्रजा मद्यपान तो नहीं करती! कोई जुआ तो नहीं खेलता! लोग चरित्र-भ्रष्ट तो नहीं हो रहे! लोग नियमित रूप से दिन में पाँच बार नमाज पढ़ते हैं या नहीं और रमजान के महीने में रोजा रखते हैं या नहीं!
औरंगजेब ने इस्लाम के सिद्धान्तों का विरोध करने वालों तथा सूफी मत को मानने वालों को दण्डित किया। औरंगजेब ने सरमद को मरवा दिया जो सूफी मत का अनुयाई था और दारा शिकोह का पक्षधर था।
हिन्दुओं की अनेक प्रथाओं पर भी औरंगजेब का कहर टूटा। उसने हिन्दुओं की सती प्रथा पर पूरी तरह रोक लगा दी। क्योंकि इस्लाम में ऐसी किसी प्रथा का प्रावधान नहीं किया गया है। औरंगजेब ने मुसलमानों पर से सभी तरह के कर एवं चुंगी हटा दिए तथा हिन्दुओं पर लगने वाले कर एवं चुंगी दो-गुने कर दिए। जो हिन्दू इन करों से बचना चाहते थे, उन्हें इस्लाम स्वीकार करना अनिवार्य था। इस कारण बहुत से निर्धन हिन्दू अपनी दैन्य अवस्था से छुटकारा पाने की लालसा में मुसलमान बन गए।
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औरंगजेब स्वयं को अपनी प्रजा का सेवक कहता था और उसके जीवन को सुखी बनाने के लिये हर समय प्रयत्नशील रहता था। प्रजा का तात्पर्य मुस्लिम-प्रजा से था, हिन्दू-प्रजा से नहीं। हिन्दुओं को वह काफिर कहता था और उनके प्रति बड़ा अनुदार था।
औरंगजेब अपने खर्च के लिए राजकोष से धन नहीं लेता था। वह राजकाज से अवकाश मिलने पर नियमित रूप से टोपियां सिला करता था। इन टोपियों को खरीदने के लिए मुस्लिम अमीरों की भीड़ लगी रहती थी। इसी प्रकार वह कुरान की आयतों की नकल किया करता था। ये नकलें भी मुस्लिम अमीरों एवं आम रियाया में हाथों-हाथ बिक जाती थीं। इस धन से वह अपना व्यय चलाता था।
औरंगजेब सूफियों की तरह शिया मुसलमानों से भी घनघोर घृणा करता था। उसने दक्षिण के शिया राज्यों को उन्मूलित करने के लिए दिन-रात एक कर दिया जिन्हें वह दारूल-हार्श अर्थात् काफिर राज्य कहता था। जो शिया मुसलमान तबर्रा बोलते थे, औरंगजेब उनकी हत्या करवा देता था।
ई.1665 में औरंगजेब ने आदेश दिया कि राजपूतों के अतिरिक्त अन्य कोई हिन्दू हाथी, घोड़े अथवा पालकी की सवारी नहीं करेगा और अस्त्र-शस्त्र धारण नहीं करेगा। हिन्दुओं को मेले लगाने तथा त्यौहार मनाने की भी स्वतंत्रता नहीं थी।
ई.1668 में औरंगजेब ने आदेश निकाला कि हिन्दू अपने तीर्थ-स्थानों के निकट मेले न लगायें। होली तथा दीपावली जैसे हिन्दू-त्यौहार भी बाजार के बाहर और कुछ प्रतिबन्धों के साथ ही मनाये जा सकते थे।
हिन्दू अपने मंदिरों में शंख, घड़ियाल तथा खड़ताल बजाया करते थे। जब ये ध्वनियां औरंगजेब के कानों में पड़ती थीं तो उसे मर्मान्तक पीड़ा होती थी। इसलिए औरंगजेब जिस मार्ग से गुजरता था तथा जहाँ उसका पड़ाव होता था, वहाँ दूर-दूर तक के मंदिरों में पूजा करने तथा शंख एवं घण्टे बजाने पर रोक लगा दी जाती थी और मंदिरों को तोड़ दिया जाता था। जो मंदिर समय के अभाव में तोड़े नहीं जा सकते थे, उनके शिखर को तोड़कर शेष भाग को तिरपालों से ढक दिया जाता था ताकि कुफ्र की ये निशानियां बादशाह की दृष्टि में न पड़ें। औरंगजेब की कट्टरता का इससे अधिक प्रमाण और क्या हो सकता था!
इस प्रकार औरंगजेब की कट्टरता ने अकबर द्वारा स्थापित सहिष्णुता तथा सुलह-कुल की ‘मधु-मण्डित नीति’ को छोड़ दिया और हिन्दू प्रजा पर तरह-तरह के अत्याचार किये जिनके माध्यम से उसने हिन्दू धर्म, हिन्दू सभ्यता, हिन्दू संस्कृति तथा हिन्दू जाति को समाप्त करने का प्रयास किया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता