Thursday, November 21, 2024
spot_img

12. वेनेजिया में दूसरा दिन – 26 मई 2019

हैलो दीपा!

सुबह पाँच बजे आंख खुल गई। मधु ने चाय बनाई। इस चाय के कारण ऐसा लगता ही नहीं है कि हम अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर हैं। दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर डायरी लिखने बैठ गया। आठ बजे तक लिखता रहा। जैसे ही मैंने लिखने का काम पूरा किया, दीपा मेरी मेज के पास आकर कहने लगी- ‘मुझे गोद में उठाकर उस खिड़की में दिखाओ!’

मैंने उसे गोद में उठा कर खिड़की तक उठा लिया। वह बाहर झांकने लगी तो पास वाले मकान की खिड़की से एक कमजोर और कांपती हुई आवाज आई- ‘हैलो डॉल!’

मैंने देखा कि पास वाले मकान की खिड़की से एक अत्यंत वृद्ध महिला झांक रही हैं, संभवतः 90 वर्ष के आसपास की आयु रही होगी उनकी।

मैंने दीपा से कहा- ‘गुड मॉर्निंग बोलो दादीजी को।’ जब दीपा ने गुड मॉर्निंग कहा तो वृद्ध महिला बहुत खुश हुईं। उन्होंने पूछा- ‘व्हाट इज योअर नेम?’ जब दीपा ने अपना नाम बताया तो वह समझ नहीं पाईं। शायद कुछ ऊँचा भी सुनती थीं। दीपा तो मेरी गोदी से उतर कर भाग गई। वृद्धा उस कुर्सी पर वहीं बैठी रहीं।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

हम इस बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर थे। इटली के वृद्ध लोगों में कितना अकेलापन है, यह हमने रोम में अनुभव कर लिया था किंतु यहाँ वेनेजिया में भी परिस्थितियाँ कोई ज्यादा अलग नहीं थीं। यहाँ भी लोग बच्चों की बजाय मशीनों पर अधिक निर्भर हैं। यह वृद्धा तो संभवतः कई-कई दिन तक किसी आदमी की शक्ल तक नहीं देख पाती होंगी! उनके लिए आज का दिन बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया होगा क्योंकि उन्होंने आज के दिन की शुरुआत एक छोटी बच्ची से हैलो और गुडमॉर्निंग के साथ की।

सुबह का नाश्ता करके और दोपहर का भोजन साथ में लेकर हम लोग पौने ग्यारह बजे सर्विस अपार्टमेंट से निकल पाए। आज हम जिन गलियों से निकले, वे तो कल वाली गलियों से भी अधिक पतली थीं। आज हमारा कार्यक्रम मोटर बोट से पोण्टे दी रियाल्टो ब्रिज तक जाने का था जो हमारे घर से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था। वहाँ से हमें लगभग 1 किलोमीटर दूर बेसिलिका दी सान मार्को होते हुए सान माकर्’स स्क्वैयर तक जाना था। इसलिए हम पोण्टे दी रियाल्टा ब्रिज तक मोटर बोट से जाकर शेष मार्ग पैदल तय करना चाहते थे ताकि बोटिंग भी हो जाए और हमें पैदल भी नहीं जाना पड़े।

घर से निकलते ही विजय ने गूगल सर्च पर बोट पकड़ने के लिए टिकट खिड़की तक जाने का ऑप्शन डाला किंतु गूगल इस ऑप्शन को नहीं समझ पाया। हम अंदाज से ग्राण्ड नहर के किनारे तक पहुँचे और वहाँ खड़े इटैलियन नागरिकों से टिकट खिड़की के बारे में पूछताछ की। एक इटैलियन स्त्री ने बताया कि टिकट खिड़की यहाँ से बहुत दूर है (फार अवे!) इस पॉइंट से केवल पासधारी यात्री चढ़ सकते हैं। यदि आप बॉक्स से टिकट खरीदते हैं तो डेढ़ यूरो लगेगा और यदि किसी अन्य टिकट खिड़की से खरीदते हैं तो साढ़े सात यूरो प्रति टिकट लगेगा।

अब हमारी समझ में आया कि गूगल टिकट खिड़की क्यों नहीं ढूंढ पा रहा था। उसे यहाँ बॉक्स कहते हैं तथा वह इस नहर के दूसरी तरफ था। अब यह भी समझ आया कि कल चीनी दम्पत्ति घबराया हुआ क्यों था, उसे टिकट खिड़की मिल नहीं रही होगी और वहाँ लगी वैण्डिंग मशीन से 7.5 यूरो में टिकट निकल रहा होगा जो कि हमारी ही तरह चीनी लोगों को भी बहुत महंगा लग रहा होगा। पिताजी ने उस स्त्री से पूछा कि डेढ़ यूरो वाला टिकट कौन लोग खरीद सकते हैं तो वह स्त्री पिताजी की बात समझ ही नहीं पाई।

हम वहीं एक चर्च की सीढ़ियों पर बैठ गए। वहाँ बहुत से कबूतर धरती पर ही चक्कर लगाते हुए घूम रहे थे। दीपा ने उन्हें बिस्किट और चावल के अरवे (भुने हुए चावल) खिलाकर उनसे दोस्ती कर ली। हम आगे की रणनीति पर विचार करने लगे। पिताजी इतनी दूर पैदल नहीं चल सकते थे तथा उस स्थान तक जाने का और कोई साधन नहीं था। अतः हमने पिताजी को सर्विस अपार्टमेंट छोड़ने का निर्णय लिया।

ये शहर दिन भर दारू पीता है!

सर्विस अपार्टमेंट से पोण्टे दी रियाल्टो पहुचंने में हमें एक घण्टा लग गया। यहाँ एक चौड़ी सी नहर थी जिस पर एक प्राचीन काल का पक्का पुल बना हुआ था।  वेनेजिया के इस क्षेत्र में पर्यटकों की भीड़ अधिक है। जिस बाजार के बीच से होकर हम यहाँ तक आए थे वह एक मध्यम चौड़ाई की अर्थात् लगभग 20 फुट चौड़ी सड़क है जिसके दोनों तरफ दुकानें और रेस्टोरेंट बने हुए हैं। बीच-बीच में चौक भी आते हैं जहाँ देश-विदेश से आए स्त्री-पुरुष बैठे हुए वाइन और सिगरेट पीते रहते हैं और अपने सामने रखी हुई प्लेटों में से मांस के टुकड़े उठाकर खाते रहते हैं। विजय ने एक स्थान पर टिप्पणी की- ‘बड़ा अजीब शहर है, दिन भर दारू पीता है!’

नृत्यरत रूपसियां

हमने एक छोटे से चौक पर कुछ युवतियों के एक समूह को सफेद, महंगे और अलंकृत परिधानों में नृत्य करते हुए देखा। इन लड़कियों ने अपने चेहरे सावधानी पूर्वक लीप-पोत रखे थे तथा अपने सिर पर ऐसे हैट लगा रखे थे जिनसे उनके चेहरे का लगभग एक तिहाई भाग छिपा हुआ था। संभवतः यह सब उपक्रम इसलिए किया गया था ताकि उन्हें कोई पहचाने नहीं! नृत्य स्थल पर एक टोपी रखी हुई थी जिसमें कोई-कोई पर्यटक यूरो डाल रहे थे। हम लोगों ने कुछ देर रुककर उनका नृत्य देखा और यह सोचकर आश्चर्य किया कि इटली में युवाओं का इस तरह पैसा कमाना बुरा नहीं माना जाता, अपितु कला माना जाता है!

माई स्कर्ट इज लाउडर दैन योअर वॉइस!

दुनिया का शायद ही कोई देश ऐसा होगा जहाँ के पर्यटक यहाँ वेनेजिया में मौजूद नहीं हों। इन पर्यटकों में पुरुषों की बजाय लड़कियों की संख्या अधिक है। लड़कियों के छोटे-बड़े ऐसे समूह भी दिखाई दे जाते हैं जिनके साथ पुरुष सदस्य नहीं हैं। अलग-अलग देशों से आई इन लड़कियों के चेहरे-मोहरे, रूप-रंग, चाल-ढाल तथा आदतें बिल्कुल अलग-अलग हैं किंतु एक बात में इन युवतियों में जबर्दस्त समानता है। ज्यादातर लड़कियों की स्कर्ट घुटनों से बहुत ऊपर है।

इन्हें देखकर मुझे कुछ साल पहले निर्भया काण्ड के बाद दिल्ली में एक नारी सशक्तीकरण संस्था द्वारा निकाले गए एक विरोध-जुलूस का स्मरण हो आया जिसमें कुछ तख्तियों पर लिखा हुआ था- ‘माई स्कर्ट इज लाउडर दैन योअर वॉइस!’ बहुत सी लड़कियों ने इस प्रकार की स्कर्ट्स पहनी हुई हैं जिनमें यत्नपूर्वक अधोवस्त्र प्रदर्शन का प्रबंध किया गया था। शायद यही कारण रहा हो या कोई और, मैं निश्चय पूर्वक नहीं कह सकता कि  क्यों उस चर्च में घुटनों से ऊपर के स्कर्ट और पैण्ट पहनकर प्रवेश निषिद्ध किया गया है!

ओ अलबेली बीच बजरिया ना कर ऐसी बतियां!

यहाँ किसी भी गली में, किसी भी चौक में, किसी भी बाजार में तथा किसी भी पर्यटन स्थल पर युवा-जोड़े एक दूसरे का आलिंगन और स्नेह प्रदर्शन करते हुए दिखाई दे जाते हैं। शायद मेरी ही दृष्टि विकृत है जो मुझे यह सब दिखाई देता है किंतु इन्हें देखकर मुझे ‘मदर इण्डिया’ चलचित्र का वह गीत बार-बार याद आता है- ‘ओ अलबेली बीच बजरिया ना कर ऐसी बतियां, सुने सब लोगवा कटे नाक रे।’

जाने क्यों वह दुनिया ऐसी थी जिसमें उस फिल्म की नायिका की बातें सुनकर नायक की नाक कटने लगती थी। हो सकता है कि मैं गलत होऊं किंतु मुझे तो कम से कम यही लगता है कि वह पुरानी दुनिया ही अच्छी थी जिसमें बीच बाजार में बात करते हुए भी नाक कटती थी। उस दुनिया में तो बीच बाजार में ‘स्नेह-प्रदर्शन’ करने वाले कुत्ते-बिल्ली भी बुरे लगते थे। इटली की सड़कों पर कुत्ते-बिल्ली नहीं हैं किंतु उनकी कमी विदेशों से आए आलिंगनबद्ध पर्यटक कर देते हैं।

शरीर की दुःश्चिंताएं

अब तक डेढ़ बच चुका था और मेरे रक्त में शर्करा का स्तर कम होने लगा था। वैसे भी हम पौने ग्यारह बजे से लगातार चल ही रहे थे। हमने पोण्टे दी रियाल्टो ब्रिज पर बैठकर लड्डू और मठरी खाए जिन्हें मधु जोधपुर से बनाकर अपने साथ लाई थी। हिन्दुस्तानी आदमी कहीं भी चला जाए, लड्डू-मठरी के बिना उसका काम नहीं चलता। ये पिज्जा, पास्ता और बर्गर घर के बने इन लड्डू-मठरियों के सामने कुछ भी नहीं। लघुशंका की इच्छा भी होने लगी थी किंतु यह भारत नहीं था जहाँ सरकार और समाज, नगर निगम और सेठ आम व्यक्ति के लिए प्याऊ, पेशाबघर, शौचालय, सराय, टिन शेड आदि बनवाते हैं। यहाँ तो मनुष्य का जीवन ‘पैसा फैंको पेशाब करो!’ वाली उक्ति पर टिका हुआ है।

तुम हमारा समुद्र देखो!

लगभग सवा दो बजे हम सैन मार्क्’स स्क्वैयर पर पहुँचे। यहाँ हजारों आदमियों की भीड़ पहले से ही डटी हुई थी। इस चौक पर चारों ओर विशाल भवन बने हुए हैं। गगनचुम्बी सैन मार्को चर्च इनमें सबसे बहुत अनूठा, बहुत अलग और बहुत भव्य है। यह एक विशाल भवन है जिसके मुख्य द्वार के दोनों तरफ पर्यटकों की लम्बी-लम्बी कतारें लगी हुई थीं।

ये वे लोग थे जो टिकट लेकर घण्टों तक किसी भवन के बाहर प्रतीक्षा करने की हिम्मत और इच्छा रखते थे। पता नहीं क्यों ये लोग यह नहीं समझ पाते थे कि एक-दो चर्च भीतर से देख लिए तो काफी हैं! बाकी के चर्च उससे आखिर कितने अलग होंगे!

हमने बेसिलिका में भीतर नहीं जाने और बाहर के दृश्यों में ही समय व्यतीत करने का निर्णय लिया। यह समुद्र के किनारे पर बना हुआ एक विशाल चौक है। समुद्र में सैंकड़ों नावें और मोटरबोटें खड़ी थीं। चौक में सफेद रंग के सैंकड़ों समुद्री पक्षी उड़ान भर रहे थे। ऐसा लगता था मानो वे इंसान से कह रहे हों कि तुम हमारा समुद्र देखो और हम तुम्हारी धरती देखते हैं।

हाँ पेट भर गया!

कुछ देर बाद हमने बेसिलिका के बाईं ओर बने एक बरामदे में बैठकर दोपहर का खाना खाया। उसी समय एक भारतीय युवती हमारी बैंच पर आकर बैठ गई।

मैंने उससे पूछा- ‘कहाँ से आई हैं आप?’

लड़की ने जवाब दिया- ‘मध्य प्रदेश से।’

-‘आप भी खाना खाईए!’

 उसकी आंखों से साफ लगता था कि इटली में कुछ भारतीयों को रोटी-सब्जी खाते देखकर उसे आश्चर्य हो रहा था किंतु उसने केवल इतना ही कहा- ‘नहीं आप लोग खाइए। मैंने खाना खा लिया है।’

मैंने पूछा- ‘क्या खाया?’

लड़की ने हंसकर किंतु थोड़े से संकोच के साथ कहा- ‘पिज्जा!’

-‘क्या पिज्जा से पेट भर गया?’

मेरे इस प्रश्न पर उसने पहले से भी ज्यादा जोर से हंसकर कहा- ‘हाँ पेट भर गया!’

एक यूरो दे दीजिए!

लगभग तीन बजे हम वहाँ से लौट पड़े। रास्ते में हमने एक दुकान से केले खरीदे। दुकानदार भारत, बांगलादेश या पाकिस्तान का रहने वाला होगा। इसलिए हिन्दी जानता था। उसने छः केलों के लिए 2 यूरो मांगे। मैंने उससे केलों का वजन करने को कहा तो उसने कहा- ‘एक यूरो दे दीजिए।’

 आगे एक जनरल स्टोर से हमने दूध और सब्जियां खरीदीं। 650 ग्राम टमाटर, 900 मिलीलीटर दूध तथा 1500 ग्राम आलू के लिए हमें 5.75 यूरो अर्थात् 460 रुपए चुकाने पड़े। संभवतः यह वेनेजिया की सबसे सस्ती दुकान थी!

वेनेजिया में भी चलती है ट्राम!

सायं 6 बजे मैं, विजय एवं पिताजी रेल्वे स्टेशन की तरफ वाली नहर पर घूमने गए। इस समय यहाँ पर्यटकों की बहुत भीड़ थी। नहर के किनारे-किनारे बने प्लेटफॉर्म पर रखी कुर्सियों पर बैठकर लोग सिगरेट, शराब और मांस अर्थात् पदार्थ की तीनों अवस्थाओं गैस, द्रव और ठोस का सेवन कर रहे थे। हमें 28 मई को वापस भारत के लिए लौटना है।

एयरपोर्ट यहाँ से लगभग 13 किलोमीटर दूर है। इसलिए मैंने और विजय ने विचार किया कि हम यहाँ से एयरपोर्ट जाने का साधन पता कर लेते हैं। पिताजी वहीं नहर के किनारे बने पुराने चर्च की सीढ़ियों बैठ गए और हम गूगल की सहायता से टैक्सी स्टैण्ड की ओर बढ़े। लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद हम एक चौक में पहुँचे।

इस चौक से एक चौड़ी नहर तो 90 डिग्री पर मुड़ जाती है तथा यहीं पर एक और बहुत चौड़ी नहर आकर मिलती है। यहाँ बने एक पुलिया पर खड़े होकर तीनों तरफ की नहरों को देखा जा सकता है। चौड़ी नहर इतनी चौड़ी है कि वह समुद्र के मुहाने पर पहुँच जाने का अहसास करवाती है।

इसी चौक से बस सेवा, टैक्सी सेवा, मोटरबोट सेवा और ट्राम सेवा चलती हैं। इन चारों साधनों को एक साथ देखकर हम आश्चर्य चकित रह गए। हम तो सोच भी नहीं सकते थे कि वेनेजिया में ट्राम सेवा भी उपलब्ध है!

वेनिस शहर 100 से अधिक समुद्री टापुओं से मिलकर बना है जिनके बीच नहरों, पुलियाओं एवं नावों एवं स्टीमरों के माध्यम से आवागमन किया जाता है किंतु वेनिस शहर के कुछ टापू इतने बड़े हैं कि उनमें ट्राम सेवा आसानी से चलती है। हम शायद किसी बड़े टापू पर पहुँच गए।

यहाँ आकर हम रोम अथवा फ्लोरेंस में होने जैसा अनुभव कर रहे थे। यहाँ शहर खुली हवा में सांस ले रहा था। वेनेजिया की यह ट्राम सेवा केवल इसी द्वीप पर चलती है जो द्वीप के एक छोर से दूसरी छोर पर जाती है।

एयरपोर्ट  के लिए केवल बस सेवा और टैक्सी सेवा उपलब्ध है। वेनेजिया की नगरपालिका ने सभी साधनों के भाड़े की दरें निश्चित कर रखी हैं। हमें यदि बस से जाना है तो प्रति व्यक्ति 8 यूरो देने होंगे और यदि टैक्सी से जाना है तो प्रति टैक्सी 40 यूरो देने होंगे।

 हम यदि यहाँ से बस पकड़ते तो भी हमें 5 सदस्यों के लिए 40 यूरो ही देने होते। बस में यात्रा करने पर केवल 13 किलोमीटर के लिए प्रति व्यक्ति 640 रुपए का भाड़ा बहुत अधिक है। हम चाहे जिस भी साधन से जाएं हमें भारतीय मुद्रा में 3200 रुपए व्यय करने होंगे। जबकि दिल्ली में हमें पाँच व्यक्तियों की टैक्सी के लिए लगभग 350 रुपए और बस के लिए लगभग 75 रुपए चुकाने पड़ते।

 इस चौक से टैक्सी सेवा 24 घण्टे मिलती है जबकि बस, बोट और ट्राम रात में बंद रहती हैं। यहाँ से पूछताछ करके हम पुनः उसी पुलिया से होते हुए स्टेशन के सामने लौट आए जहाँ चर्च की सीढ़ियों पर पिताजी बैठे थे। थोड़ी देर वहीं नहर के किनारे बैठकर हम लोग फिर से अपने सर्विस अपार्टमेंट लौट लिए।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source