गंदगी और बदबू से विदा तथा मासप्रियो का उपदेश
जैसे-तैसे प्रातः हुई। हम अपनी आदत के अनुसार प्रातः पांच बजे उठ गए। टॉयलेट में हमने अपने स्तर पर व्यवस्थाएं कीं। मधु और भानु ने बाहर उसी बरामदे में चाय बनाई और चिवड़ा भी तैयार कर लिया। ठीक नौ बजे मि. अन्तो अपनी गाड़ी लेकर आ गया। हमने गाड़ी में सामान रखा और मकान मालकिन से विदा लेने के लिए पास वाले घर में गए क्योंकि मासप्रियो इस समय स्कूल गया हुआ था। मकान मालकिन कम उम्र की भली सी लड़की थी। उसकी आंखें बता रही थी कि उसे अपने अतिथियों को हुई तकलीफ के लिए खेद था। संभवतः उसका पति समझ ही नहीं पाया होगा कि बेहतर आवासीय सुविधा किसे कहते हैं, सफाई में रहना किसे कहते हैं, और एक शाकाहारी परिवार के लिए मांस-मछली की उपस्थिति से होने वाली तकलीफ किसे कहते हैं!
विजय ने चलते समय मि. मासप्रियो को एक मेल लिखा कि हम जा रहे हैं हम क्षमा चाहते हैं कि हम यहाँ अधिक नहीं रुक सके। इस पर मासप्रियो ने मेल पर ही विजय को उपदेश दिया कि आपको सावधानी से अपने लिए अपार्टमेंट बुक करवाने चाहिये। आपके साथ छोटी बच्ची है, दादाजी हैं, स्त्रियां हैं और आप इतने लापरवाह हैं। हम तो प्राकृतिक वातावरण चाहने वालों को अपना अपार्टमेंट देते हैं। बहुत से देशों के विदेशी यहाँ आकर ठहरे हैं और उन्होंने यहाँ की सुविधाओं की तारीफ की है। आपको पता होना चाहिये कि दिन में काटने वाले मच्छरों से डेंगू होता है। संभवतः वह यह कह रहा था कि मासप्रियो ने हमें बिना डेंगू वाले मच्छरों के बीच रखा था और अब हम जहाँ जा रहे हैं वहाँ हमारा सामना डेंगू वाले मच्छरों से होगा।
उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाली स्थिति संभवतः इसी को कहते हैं। उसे इन बातों से कोई मतलब नहीं था कि हमें कितनी परेशानी हुई थी और वैबसाइट को दिये गए हमारे रुपए भी बर्बाद हो गए थे। मासप्रियो के उपदेशों का क्या प्रत्युत्तर दिया जा सकता था। संभवतः मासप्रियो सही कह रहा था क्योंकि जिन विदेशियों को यहाँ की सुविधाएं पसंद आई होंगी उनमें ताजे मुर्गे की उपलब्धता, गंदे पानी के हौद में से स्वयं ही मछलियों को छांटकर पकवाने की सुविधा और गली में बहुतायत से फिर रहे सूअरों की हर समय उपलब्धता जैसे सुविधाएं उन विदेशियों को शायद कहीं और नहीं मिलने वाली थीं। उन्हें लैट्रिन धोने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि वे तो इस कार्य के लिए टिश्यू पेपर का प्रयोग करते हैं। शराब के नशे में धुत्त होने के बाद किसी पंखे और एसी की जरूरत भी उन्हें कैसे हो सकती थी। इसलिए उनके लिए यहाँ सुख ही सुख पसरा हुआ था। गलत हम ही थे, हमारे जैसे लोग तो अपने ही देश में असहिष्णु कहलाते हैं क्योंकि हम दूसरों के साथ सामंजस्य क्यों नहीं बैठा पाते, फिर यदि विदेश में हमें कोई उपदेश दे रहा था, तो शायद ठीक ही दे रहा था!
मि. अन्तो की निराशा
मि. अन्तो हमें योग्यकार्ता शहर के मध्य भाग में स्थित प्रेसीडेंसी बिल्डिंग दिखाने ले गया। इस बिल्डिंग को देखने के लिए अच्छा खासा टिकट था और हमें कार से उतरकर काफी पैदल भी चलना पड़ता। रात की अनिद्रा ने हमें इस लायक नहीं छोड़ा था कि हम इतना पैदल चलें। भारत में ऐसी बिल्डिंगों को बिना कोई पैसा दिये देखा जा सकता है। इसलिए हमने इसे केवल बाहर से ही देखा। हमने भीतर जाने से मना कर दिया। मि. अन्तो को हमारी इस अरुचि से निराशा हुई किंतु वह मुस्कुराकर बोला ऑलराइट हम वाटर फोर्ट में चलते हैं जहाँ किंग अपनी क्वीन के साथ नहाता था।
बेचाक और डोकार
राजा के महल के चारों ओर शानदार सड़कें बनी हुई थीं जिन पर कारों और पैदल चलने वालों को तांता लगा हुआ था। सड़क के एक किनारे पर खड़े हुए हमें विचित्र प्रकार के रिक्शे चलते हुए दिखाई दिए। इन्हें नई दिल्ली में चलने वाले साइकिल रिक्शों की तरह मनुष्य द्वारा चलाया जाता है किंतु उन्हें खींचने की बजाय धकेला जाता है। अर्थात् आगे की तरफ दो यात्रियों के बैठने की जगह बनी हुई है और रिक्शा चालक की सीट रिक्शे के पिछले भाग में बनी हुई है। ऐसा संभवतः पर्यटकों की सुविधा के लिए किया गया था ताकि वे आराम से सड़कों का व्यू देख सकें। हालांकि ऐसे रिक्शे में रिक्शा चालक को अधिक ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है।
मि. अन्तो से ज्ञात हुआ कि पर्यटकों की सुविधा के लिए जालान मालियो से लेकर बोरो केरटॉन तक इसी तरह के रिक्शे चलते हैं जिन्हें जावाई भाषा में बेचाक (Becak) कहा जाता है। जावाई भाषा में अंग्रेजी के सी लैटर को हिन्दी भाषा का ‘च’ उच्चारित किया किया जाता है। शीघ्र ही हमारा ध्यान घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले तांगों पर गया। ये हल्के रथों की आकार में बने हुए हैं। इस तरह के रिक्शे किसी समय दिल्ली की सड़कों पर भी चला करते थे। इन्हें जावाई भाषा में एन्डोंग एवं डोकार कहा जाता है।
जल महल और राजस्थानी परिधान वाली महिलाओं का समूह कुछ ही देर में हम लोग जल महल के सामने थे। यह एक बड़ा सा महल था जिसे चारों ओर ऊंची चारदीवारी से घेरा गया था। महल के बाहर एक सूचना पट्ट लगा हुआ था जिस पर इस स्थान का नाम नगायोग्यकार्ता तथा भवन का नाम कांटोर कागुनगन डालेम लिखा हुआ था। हमारा सारा सामान कार में लदा हुआ था क्योंकि हम पुराना अपार्टमेंट खाली करके आए थे और नए अपार्टमेंट में पहुंचने का समय नहीं हुआ था। यद्यपि मि. अन्तो एक सुसभ्य और सुशिक्षित मनुष्य जान पड़ता था तथापि परदेश में किसी तरह का खतरा नहीं उठाया जा सकता था। अतः पिताजी कार में बैठे रहे और शेष सदस्य जल महल देखने कार से नीचे उतरे। यहाँ प्रति पर्यटक 25 रुपए का टिकट था।
यह वास्तव में एक भव्य जल महल था। एक ऐसा महल जिसके भीतर नहाने के ताल थे और उसके चारों ओर वस्त्र बदलने के कक्ष। महल कई हिस्सों में विभक्त था। हर हिस्से के प्रवेश-द्वार के ऊपर राक्षसी आकृतियों के चेहरे वाली मूर्तियां लगी हुई थीं। महल के मुख्य प्रवेश द्वार पर भी ऐसी ही एक मूर्ति का चेहरा लगा था। संयोगवश उसी समय जल महल में महिलाओं का एक समूह आया जिसके परिधान देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई। लगभग बीस महिलाओं के इस समूह की प्रत्येक महिला ने एक जैसे परिधान धारण कर रखे थे। दूर से देखने पर लगता था कि इन्होंने राजस्थानी महिलाओं की तरह छींट का घाघरा और गुलाबी रंग का ओढ़ना धारण कर रखा था किंतु निकट से देखने पर ज्ञात हुआ कि उन्होंने छींट का घाघरा नहीं अपितु एक चोगा पहन रखा था जिस पर सिर से लेकर कमर तक ओढ़ी गई गुलाबी ओढ़नी के कारण ऐसा लगता था कि उन्होंने राजस्थानी ढंग के परिधान धारण कर रखे हैं। इन स्त्रियों से बात करके यह जानना कठिन था कि वे किस देश से अथवा इण्डोनेशिया के किस द्वीप आई हैं। वे सभी महिलाएं पढ़ी-लिखीं और शिष्ट जान पड़ती थीं किंतु अंग्रेजी का एक भी शब्द नहीं समझती थीं। उन्होंने धूप के चश्मे लगा रखे थे, हाई हील की सैण्डिलें पहन रखी थीं तथा उनके कंधों पर महंगे लेडीज बैग लटक रहे थे। वे सैल्फी भी ले रही थीं। यह तय था कि ये महिलाएं इस द्वीप की नहीं थीं क्योंकि इस द्वीप पर रहने वाली महिलाओं के परिधान भिन्न प्रकार के थे।
मिस रोजोविता से भेंट
जल महल से बाहर आते-आते हमें लगभग 11.30 बज गए। अब हम आराम से अपने नए सर्विस अपार्टमेंट जा सकते थे। इसलिए हमने मि. अन्तो से अनुरोध किया कि वह हमें नए अपार्टमेंट में ले चले ताकि कार में लदा सामान वहाँ उतारा जा सके तथा दोपहर का भोजन बनाया जा सके। हम लोग मि. मासप्रियो के अपार्टमेंट से चाय और चिवड़ा लेकर निकले थे। लगभग आधे घण्टे में हम नए अपार्टमेंट के सामने थे। यह अपार्टमेंट योग्यकार्ता स्पेशल रीजन के नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र में स्थित है। इसे जावा द्वीप का मध्यवर्ती क्षेत्र कहा जा सकता है। जावा का राजा इसी क्षेत्र में निवास करता था, इसलिए इसे योग्यकार्ता स्पेशल रीजन कहा जाता है। यहाँ गलियों और मकानों के नम्बर एक के बाद एक लगे हुए थे इसलिए मिस रोजोविता को ढूंढने में हमें कोई कठिनाई नहीं हुई। मिस रोजोविता हमें अपार्टमेंट के सामने वाले बंगले में मिल गईं। हमें ज्ञात हुआ कि हमने सर्विस अपार्टटमेंट के रूप में जिस बंगले को बुक करवाया था, ठीक उसके सामने वाले बंगले में मिस रोजोविता अपने परिवार के साथ रहती थीं। मिस रोजोविता ने हाथ मिलाकर हम सभी का स्वागत किया। वे प्रसन्नचित्त, मिलनसार और हंसमुख क्रिश्चियन महिला हैं तथा बहुत पढ़े-लिखे परिवार की सदस्य हैं। उनके पिता किसी समय योग्यकार्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हुआ करते थे और किसी जमाने में उन्हें अमरीका की एक प्रतिष्ठित संस्था द्वारा बैस्ट मैन ऑफ योग्यकार्ता सिटी का पुरस्कार दिया गया था। ये सारी जानकारी हमें बंगले में लगे मैडलों, पुरस्कारों और चित्रों के माध्यम से हुई।
नया अपार्टमेंट
हमारा नया अपार्टमेंट समस्त सुख-सुविधाओं से सम्पन्न एक आरामदेह अपार्टमेंट था, जहाँ दीपा आराम से खेल सकती थी और उसके किसी हौद में गिरने का खतरा नहीं था। हम मच्छरों की पिन-पिन, मुर्गों की बांग और मुल्लाओं की अजान सुने बिना, पूरी रात आराम से सो सकते थे। इस बंगले की किचन से लेकर बैडरूम, कॉमन रूम, लॉबी, बाथरूम तथा टॉयलेट, सभी कुछ एक विशिष्ट योजना के अनुसार बनाए गए थे।
किचन बहुत बड़ी थी जिसमें खाना बनाने के साथ-साथ, बड़ी डायनिंग टेबल लगी हुई थी। फ्रिज, गैस-प्लेट और वाटर कूलर से लेकर कीमती क्रॉकरी, कटलरी, यूटेन्सिल्स, मिनरल वॉटर किसी चीज की वहाँ कमी नहीं थी। सब-कुछ बहुत साफ-सुथरा और सलीके से लगा हुआ था। सारे कमरों में आरामदेह डलब-बैड सोफे और एयरकण्डीशनर लगे हुए थे। टीवी देखने के लिए अलग से एक कमरा था जहाँ बहुत महंगा सोफा रखा था। ड्राइंगरूम में केन का महंगा फर्नीचर था और एक कोने में एक्सरसाइज करने के लिए साइकिल भी रखी हुई थी। यह ऐसा घर था जिसका आराम किसी पांच सितारा होटल में भी उपलब्ध नहीं हो सकता था। इस घर के लिए हमें बहुत कम राशि व्यय करनी पड़ी थी जबकि किसी पांच सितारा होटल के लिए हमें कई गुना राशि व्यय करनी पड़ती। हम अपने चयन पर इतने प्रसन्न थे कि कल रात की सारी मनहूसियत शीघ्र ही हमारे मस्तिष्क से गायब हो गई। लगभग एक घण्टे में भोजन तैयार हो गया। हमने दोपहर का भोजन भी उसी समय कर लिया ताकि हमारा आज का दिन बर्बाद नहीं हो। हम आज परमबनन मंदिर देखना चाहते थे। हमारे विचार से यह देवताओं का बनाया हुआ वही मंदिर था जिसे देखने की लालसा में हम जावा आए थे।
बंगले की दीवारों पर भारतीय झाड़ू
मिस रोजोविता के बंगले के कमरों की दीवारें विभिन्न प्रकार की कलात्मक सामग्री से सजाई गई थीं। इनमें से एक ऐसी चीज भी थी जिसे सजावट की वस्तु के रूप में देखना किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं था। यह थी नारियल की सीकों से बनी एक भारतीय झाड़ू। दो कमरों में इन झाड़ुओं को कलाकृतियों की तरह लटकाया गया था।
जंगल में जावा संस्कृति की पोषाकों का प्रदर्शन
मि. अन्तो हमें योग्यकार्ता से लेकर सेंट्रल जावा के लिए रवाना हुआ। मिस रोजोविता के अपार्टमेंट से परमबनन मंदिर तक की दूरी लगभग 40 किलोमीटर थी। बाहर धूप काफी तेज थी। मार्ग में एक स्थान पर लगभग 15-20 व्यक्ति विशिष्ट प्रकार के परिधान पहनकर खड़े थे। उनके सिर पर लाल, हरे एवं नीले रंग की टोपियां थीं जिनके किनारे आग की लपटों की तरह ऊपर की ओर उठे हुए थे। उन्होंने अपने हाथों में लम्बे भाले ले रखे थे जिन्हें लेकर वे अपने स्थान पर सीधे खड़े थे।
उनकी कमर पर दोहरी तहमद या घुटनों से कुछ नीचे आने वाली चौड़ी सलवार थी। वे लोग धड़ के ऊपरी भाग में लम्बे कोट धारण किये हुए थे तथा कपड़े से बनी एक छोलदारी के नीचे खड़े थे। हमने मि. अन्तो से पूछा कि ये लोग कौन हैं और इस जंगल में क्यों खड़े हैं? मि. अन्तो ने बताया कि ये लोग पर्यटकों का मनोरंजन करने के लिए जावा द्वीप की संस्कृति को दर्शाने वाले कपड़े पहनकर खड़े हैं। मैंने उनके कुछ चित्र उतारे। मैंने अनुभव किया कि इन लोगों को अच्छा लगता था जब कोई विदेशी पर्यटक इनके फोटो खींचता था। वे फोटो खिंचवाने के लिए सीधे खड़े हो जाते थे और कैमरे की तरफ देखते थे।
मंदिर में प्रवेश के लिए 1100 रुपए का शुल्क
परमबनन शिव मंदिर, योग्यकार्ता नगर से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर, मध्य जावा क्षेत्र में स्थित है। मार्ग में एक स्थान पर रुककर, मि. अन्तो ने हमारे लिए परमबनन मंदिर में प्रवेश हेतु रियायती टिकटों का प्रबंध किया। विदेशी पर्यटकों से प्रति पर्यटक लगभग 1100 भारतीय रुपए का शुल्क लिया जाता है, हमें यह टिकट लगभग 1000 रुपए प्रति व्यक्ति की दर से मिल गया। हमें बताया गया कि इस मंदिर का प्रबन्धन यूनेस्को द्वारा किया जाता है तथा प्रवेश शुल्क का निर्धारण भी यूनेस्को द्वारा किया जाता है। हम यह सोचकर विस्मित थे कि आखिर इस मंदिर में ऐसी क्या विशेषता है जिसमें प्रवेश के लिए यूनेस्को द्वारा विदेशी पर्यटकों से इतनी भारी राशि ली जाती है! कार से उतरते ही मि. अन्तो ने हमें कार की डिक्की से निकाल कर दो बड़ी छतरियां दीं तथा सुझाव दिया कि इन्हें साथ रखिये, आपको इनकी आश्यकता होगी। हमें आश्चर्य हुआ कि आकाश में दूर-दूर तक बादल दिखाई नहीं दे रहे तथा धूप भी इतनी तेज नहीं लग रही, फिर भी हमने मि. अन्तो का सुझाव मान लिया।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा शानदार चाय से स्वागत
मि. अन्तो हमें छोड़ने के लिए मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित कार्यालय तक आया तथा वहाँ के कर्मचारी को उसने रियायती कूपन दिए। यह सब उसने हमारे बिना कहे किया। कार्यालय से टिकट लेकर हमें सौंपते हुए मि. अन्तो ने कहा कि यहाँ चाय अवश्य पिएं, यह विदेशी पर्यटकों के टिकट में शामिल है, इसके लिए आपको अलग से शुल्क नहीं देना पड़ेगा। हमने मि. अन्तो का आभार व्यक्त किया और चाय की स्टॉल की तरफ बढ़ गए। यूनेस्को के कर्मचारियों द्वारा जावा द्वीप पर विदेशी अतिथियों के लिए चाय का अर्थात् दूध वाली चाय का शानदार प्रबंध किया गया था। यह अलग बात थी कि दूध, पाउडर को पानी में घोलकर बनाया गया था।
दो अनजान देशों के दो अनजान बच्चों का अपूर्व स्नेह-मिलन
जब हम लोग चाय पी रहे थे तभी दीपा की दृष्टि बेबी ट्रॉली में बैठे एक विदेशी बच्चे पर पड़ी जो मुश्किल से आठ-नौ माह का रहा होगा। यह परिवार किसी पूर्वी एशियाई देश से आया हुआ लग रहा था। दीपा उसकी ट्रॉली पर चढ़ गई और बच्चे को दुलारने-पुचकारने लगी। हमने दीपा को उस बच्चे से अलग करने का प्रयास किया किंतु दीपा हाथ आए अपने से छोटे बच्चे को आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी। वह बच्चा भी दीपा से लिपट गया। उस बच्चे के अभिभावक भी हमारी ही तरह, दो भिन्न देशों के अपरिचित बच्चों का यह स्नेह-मिलन देखकर कम आश्चर्य में नहीं थे। लगभग एक घण्टे बाद जब मंदिर परिसर में इन दानों बच्चों का एक बार पुनः सामना हुआ तो स्नेह-मिलन की यह प्रक्रिया पूर्ववत् पुनः दोहराई गई।