Sunday, September 8, 2024
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7. बाली द्वीप में हिन्दू सभ्यता का विकास

बाली में ऑस्ट्रोनेशियन मानव सभ्यता का प्रारम्भ

बाली, इंडोनेशिया का एक ”द्वीप प्रान्त” है। यह जावा द्वीप के पूर्व में तथा लोम्बोक द्वीप के पश्चिम में स्थित है। ईसा से लगभग 2000 साल पहले यहाँ मानवीय बस्तियों के बसने का क्रम आरम्भ हुआ। ये मानव ऑस्ट्रोनेशियन जाति के थे जो दक्षिण-पूर्वी एशिया तथा उष्णकटिबन्धीय प्रशान्त महासागर के द्वीपों से आकर यहाँ बस रहे थे।

ये लोग आदिवासी थे तथा सभ्यता के प्रारम्भिक चरण में थे जबकि इस काल में भारत में अत्यंत उन्नत सभ्यता एवं संस्कृति फल-फूल रही थी। बाली द्वीप से मिली एक अति प्राचीन मुद्रा पर जंगली भैंसे के कंधों पर हल रखकर चावल की खेती करने का दृश्य अंकित किया गया है।

बाली द्वीप में हिन्दू संस्कृति का प्रवेश

भारतीय हिन्दू, बाली तथा आसपास के द्वीपों पर सबसे पहले कब पहुंचे, यह ठीक से नहीं बताया जा सकता किंतु इतना स्पष्ट है कि ईसा के जन्म से सैंकड़ों साल पहले से ही हिन्दुओं की बस्तियां बड़ी संख्या में जावा, सुमात्रा, मलाया तथा बाली आदि द्वीपों पर बस गई थीं। सुमात्रा, जावा तथा बाली द्वीपों पर हिन्दुओं का सबसे बड़ा जमावड़ा था। बाली द्वीप से ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण कुछ लेख मिले हैं जो ईसा से दो शताब्दी से भी अधिक पुराने हैं। ब्राह्मी लिपि के ये लेख हिन्दू धर्म से सम्बन्धित हैं। बाली द्वीप का नाम भी बहुत पुराना है।

ईसा की चौथी एवं पांचवी शताब्दी में भारतीय राजकुमारों ने ईस्ट-इण्डीज द्वीपों पर अपने छोटे-बड़े अनेक राज्य स्थापित कर लिए थे। बाली तथा इसके आस-पास फैले हजारों द्वीपों पर हिन्दू जाति निवास करती थी। बाली से प्राप्त विष्णु, ब्रह्मा, शिव, नंदी, स्कन्द और महाकाल की मूर्तियों से इस तथ्य की पुष्टि होती है। बहुत से बौद्ध भी बाली और उसके निकटवर्ती द्वीपों पर आ जुटे। पौराणिक हिन्दू धर्म के साथ-साथ इन द्वीपों में बौद्ध धर्म का भी प्रसार हुआ। ये दोनों धर्म बाली तथा उसके निकटवर्ती द्वीप समूह पर सातवीं शताब्दी ईस्वी तक बिना किसी संघर्ष के फलते-फूलते रहे।

ई.914 का एक शिलालेख बाली से मिला है जिसमें श्री केसरी वर्मा नामक राजा का उल्लेख है। ई.989 के लगभग जावा के राजा मपू सिंदोक की प्रपौत्री महेन्द्रदत्ता (गुण-प्रिय-धर्मा-पत्नी) का विवाह बाली के राजा उदयन वर्मदेव (धर्मोद्यनवर्मदेव) के साथ हुआ। इस विवाह के कारण बाली में जावा की हिन्दू संस्कृति एवं हिन्दू धर्म का प्रचार और भी अधिक विस्तार पा गया। महेन्द्रदत्ता ने ई.1001 के लगभग ऐरलांग्गा नामक पुत्र को जन्म दिया जो बाली का राजा बना। ई.1098 में इसी वंश में राजकुमारी सकलेन्दु किरण का जन्म हुआ जिसने ई.1115 से 1119 तक बाली द्वीप पर शासन किया। उसके बाद सूराधिप, जयशक्ति, जयपंगुस, आदिकुंती केतन एवं परमेश्वर आदि राजा हुए। इस प्रकार बाली का यह हिन्दू राजवंश 1293 ईस्वी तक शासन करता रहा। 1293 ईस्वी में जावा के मजापहित वंश के राजा ने बाली द्वीप पर अधिकार कर लिया। उसके राज्य में कई हजार द्वीप थे।

बाली द्वीप पर इस्लाम का प्रवेश

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सातवीं शताब्दी ईस्वी में अरब में इस्लाम की आंधी उठी जो देखते ही देखते बवण्डर बनकर चारों तरफ फैलने लगी। सातवीं शताब्दी ईस्वी में ही अरब व्यापारियों के रूप में पहली बार मुसलमानों ने बाली द्वीप पर पैर रखा। उनके प्रभाव से कुछ लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। सोलहवीं शताब्दी आते-आते यह प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया कि बाली को छोड़कर शेष सभी द्वीपों के शासकों एवं प्रजा ने इस्लाम स्वीकर कर लिया। 15वीं शताब्दी में इस्लाम रूपी आन्धी के तेज झौंके इण्डोनेशयिाई द्वीपों को झकझोरने लगे।

अंततः 1478 ईस्वी में जावा का मजापहित हिन्दू साम्रज्य ध्वस्त हुआ और अधिकांश द्वीपों पर मुसलमान सुलतानों ने सत्ता हथिया ली। उन्होंने इन द्वीपों के हिन्दुओं पर भयानक अत्याचार किये। उन्हें बलपूर्वक मुसलमान बनाना, उनकी सम्पत्ति तथा स्त्रियों का हरण कर लेना तथा हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार देना, अत्यंत साधारण बात थी।

ऐसी स्थिति में जावा, सुमात्रा, मलाया और अन्य द्वीपों के अभिजात्य-वर्गीय हिन्दू भाग-भाग कर बाली आने लगे। बाली में एकत्रित हुए हिन्दुओं ने मुसलमानों से मोर्चा लेने का निर्णय लिया। मुसलमानों ने बहुत प्रयास किये किंतु हिन्दुओं की संगठित शक्ति के कारण बाली द्वीप में हिन्दुओं का तथा हिन्दू धर्म का पतन नहीं हुआ। आसपास के द्वीपों में रह रहे हजारों बौद्धों को भी यहीं शरण मिल सकी। जब मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मलाया द्वीप समूह (अब मलेशिया) से हिन्दू  सभ्यता का अंत कर दिया गया तब बाली द्वीप ने वहाँ के हिन्दू राजाओं एवं संस्कृति को भी शरण दी।

बाली में ही बचे हिन्दू और बौद्ध

लगभग 100 साल तक इण्डोनेशियाई द्वीपों में मुसलमानों के अत्याचार निर्बाध रूप से जारी रहे और तब तक जारी रहे जब तक कि बाली को छोड़कर शेष द्वीपों में मुस्लिम सत्ताएं स्थापित नहीं हो गईं तथा वहाँ की लगभग समस्त प्रजा ने इस्लाम स्वीकार नहीं कर लिया। परिणामतः ईस्ट-इण्डीज द्वीपों में केवल बाली द्वीप पर ही हिन्दू जनसंख्या बची रह गई।

बाली द्वीप पर डचों का अधिकार

ई.1597 में पहली बार डच लोगों का बाली द्वीप पर आगमन हुआ। उस समय बाली द्वीप पर हिन्दू राजा का शासन था। डचों ने बाली द्वीप पर अपनी आर्थिक गतिविधियां आरम्भ कीं जो धीरे-धीरे राजनीतिक गतिविधियों में बदल गईं। ई.1839 में डच लोगों ने बाली द्वीप पर अधिकार कर लिया तथा ई.1840 के आते-आते बाली द्वीप के उत्तरी तट पर डच लोगों का शासन हो गया। इसके बाद उन्होंने तेजी से बाली द्वीप के शेष भाग पर अधिकार जमाना आरम्भ किया। ई.1906 में डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना ने बाली के हिन्दू राजवंश के लगभग 200 लोगों को मार डाला तथा उनके साथ ही बाली के हजारोें हिन्दू सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया। ई.1911 में उन्होंने बाली द्वीप को डच साम्राज्य में शामिल कर लिया।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ई.1942 में जापान ने बाली द्वीप पर अधिकार कर लिया ताकि वह बाली द्वीप को आधार-शिविर की तरह उपयोग करके मित्र राष्ट्रों से भलीभांति लड़ सके। जापानियों के दबाव में डच लोगों को बाली द्वीप खाली करना पड़ा किंतु वे निकटवर्ती द्वीपों पर अपना अधिकार जमाए रखने में सफल रहे।

हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये जाने के बाद अगस्त 1945 में जापान ने मित्र राष्ट्रों के समक्ष घुटने टेक दिये। बाली के लोगों ने इसे अपने लिए सुअवसर समझा। उन्होंने अपनी स्वयं की एक सेना बना ली और बाली में रह रही जापानी सेना पर आक्रमण कर दिया। जापानियों को बाली द्वीप से भागना पड़ा किंतु इस समय स्वतंत्रता का सुख बाली के लोगों के भाग्य में लिखा ही नहीं था। 

जापान का पतन होने के बाद डच लोग पुनः बाली लौट आए ताकि वे अपने खोये हुए राज्य का फिर से निर्माण कर सकें। बाली के लोगों ने डच सेना से संघर्ष करने की तैयारी की तथा मरते दम तक लड़ने का निर्णय लिया। कर्नल नगुरा राय के नेतृत्व में बाली के लोगों ने डच लोगों पर बड़ा आत्मघाती आक्रमण किया किंतु हिन्दुओं के दुर्भाग्य से इस युद्ध में विजय डच लोगों के हाथ लगी। बाली की सेना पूर्णतः नष्ट हो गई और बाली द्वीप फिर से डच लोगों के अधीन हो गया। यह स्थिति भी अधिक समय तक बनी नहीं रह सकी।

ई.1949 में कुछ मुस्लिम आंदोलनकारियों ने सुकार्णो तथा हात्ता के नेतृत्व में इण्डोनेशिया के हजारों द्वीपों को सम्मिलित करते हुए ”रिपब्लिक ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ इण्डोनेशिया” नामक देश का निर्माण किया तथा उसमें बाली द्वीप को भी सम्मिलित कर लिया। डच सरकार ने इस नये देश को मान्यता दे दी। इसके बाद विश्व के अन्य देशों ने भी इण्डोनेशिया रिपब्लिक के निर्माण को स्वीकार कर लिया। डच लोगों को एक बार पुनः बाली द्वीप खाली करना पड़ा।

पांच लाख लोगों की हत्या

ई.1950-60 के बीच इण्डोनेशिया में एक बार फिर से राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न हुई जिसके कारण सेना को हस्तक्षेप करने का अवसर मिल गया। निरंकुश सेना ने इण्डोनेशिया के विभिन्न द्वीपों में लगभग 5 लाख लोगों को मार डाला। बाली द्वीप पर 80 हजार से 1 लाख लोग मारे गये।

आगूंग पर्वत में ज्वालामुखी विस्फोट

अभी सैनिक ताण्डव समाप्त भी नहीं हुआ था कि ई.1963 में आगूंग पर्वत में विस्फोट होने से बाली द्वीप पर हजारों लोग मारे गये तथा आर्थिक संकट खड़ा हो गया। हजारों बाली वासियों को द्वीप खाली करके अन्य द्वीपों को भाग जाना पड़ा।

पर्यटन को बनाया आर्थिक उन्नति का आधार

ई.1965-66 में सुहार्तो ने सुकार्नो की सरकार को अपदस्थ कर दिया। उसने बाली द्वीप को आर्थिक सम्बल देने के लिए पर्यटन को मुख्य आधार बनाया। इसके बाद से बाली की दशा में सुधार आने लगा। साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया गया। विश्व भर से पर्यटकों को बाली द्वीप पर लाने के प्रयास आरम्भ हुए। बाली के सुंदर सागरीय द्वीपों, चावल के हरे-भरे खेतों तथा प्राचीनतम हिन्दू मंदिरों को देखने के लिए लाखों लोग दुनिया भर से बाली आने लगे। बाली के लोगों को नये रोजगार प्राप्त हुए, लोगों में आत्मविश्वास तथा स्थिरता आने लगी।

मुस्लिम आतंकियों के बाली द्वीप पर हमले

बाली द्वीप को विश्व भर के पर्यटकों में अपनी पहचान बनाने की प्रक्रिया आरम्भ किए हुए अभी कुछ दशक भी नहीं बीते थे कि ई.2002 में एक मुस्लिम आतंकवादी ने बाली द्वीप के सबसे प्रमुख केन्द्र कुता में बम विस्फोट करके 202 अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को मार डाला। पूरे विश्व में इस हमले का बुरा प्रभाव पड़ा। केवल तीन साल बाद ई.2005 में एक बार पुनः मुस्लिम आतंकवादियों ने बाली द्वीप के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को निशाना बनाया। इसके बाद से बाली में आने वाले पर्यटकों की संख्या बहुत कम हो गई तथा बाली एक बार पुनः निर्धनता के खड्डे में जा गिरा।

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