भारतीय संस्कृति को आधुनिक विज्ञान ने अत्यधिक प्रभावित किया है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने एक ओर मानव जीवन को सुखी बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है तो दूसरी ओर विश्व के विनाश का खतरा भी पैदा कर दिया है।
भारतीय संस्कृति के केन्द्र में प्राचीन काल में धर्म की बहुलता थी, मध्य-काल में विदेशी संस्कृतियों से संघर्ष की बहुलता रही तथा आधुनिक काल में वैज्ञानिक चिंतन की बहुलता है। फिर भी यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि भारतीयों के पास वैज्ञानिक चिंतन आधुनिक काल में ही आया। जब दुनिया के अधिकांश देश जंगलों में निवास करने वाली आदिवासी व्यवस्था से बाहर भी नहीं निकल पाए थे तब भी भारतीयों के पास उन्नत विज्ञान था।
वेदों में विज्ञान सम्बन्धी बहुत सी बातें हैं। भारतीय ऋषियों को खगोल विज्ञान, नक्षत्र विज्ञान, सौर विज्ञान, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद एवं रसायन विज्ञान का भी अच्छा ज्ञान था। प्राचीन काल के वैज्ञानिकों में महर्षि कणाद, वराह मिहिर, ब्रह्मगुप्त, आर्यभट्ट, चरक, सुश्रुत, बोधायन, भास्कराचार्य आदि के नाम श्रद्धा से लिए जाते हैं। आधुनिक काल के वैज्ञानिकों में जगदीश चन्द्र बोस, सी. वी. रमन, विक्रम साराभाई, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि के निाम लिए जा सकते हैं।
सुश्रुत
भारतीय चिकित्सा में शल्य चिकित्सा के पितामह और सुश्रुत संहिता के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म ई.पू. छठी शताब्दी में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा विज्ञान में विशेष स्थान प्राप्त है। सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है। यहाँ किस विश्वामित्र से आशय है, यह स्पष्ट नहीं है। सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था।
काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है। औपधेनव तथा वैतरणी आदि सुश्रुत के सहपाठी थे। सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी मिलता है। अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है; वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता; इससे अनुमान होता है कि सुश्रुत संहिता के अतिरिक्त दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी।
कुछ विद्वान सुश्रुत के उत्तरतंत्र को किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा बनाया गया मानते हैं। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पक्षों को विस्तार से समझाया गया है। सुश्रुत शल्य क्रिया के लिए 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए ही बनाए गए थे। इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि सम्मिलित हैं। सुश्रुत ने 300 प्रकार की शल्य-प्रक्रियाओं की खोज की।
सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता प्राप्त की। सुश्रुत नेत्रों की शल्य चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुत संहिता में मोतियाबिंद के ऑपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्य या अन्य औषधियां देते थे। मद्य संज्ञाहरण का कार्य करता था।
इसलिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी। सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे। उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया। प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे।
मानव शारीर की भीतरी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे। सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया। उन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर सरंचना, काय-चिकित्सा, बाल-रोग, स्त्री-रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी।