Thursday, November 21, 2024
spot_img

राजा खट्वांग

राजा खट्वांग अपनी मृत्यु की जानकारी होते ही स्वर्ग छोड़कर अयोध्या आ गए !

ईक्ष्वाकु वंश के द्वापर युगीन राजाओं में खट्वांग भी महाप्रतापी, धर्मपरायण एवं सत्यव्रती राजा हुए हैं। इनकी कथा अनेक पुराणों एवं महाभारत में भी मिलती है। कुछ पुराणों में इन्हें राजा दिलीप भी कहा गया है।

ईक्ष्वाकु वंश में दिलीप नामक एक राजा, खट्वांग से बहुत पहले भी त्रेता युग में हुए थे, वे राजा भगीरथ के पिता थे। ईक्ष्वाकु वंश के दिलीप नामक एक राजा द्वापर युग में भी हुए थे। आज हम जिस राजा दिलीप की कथा सुनाने जा रहे हैं, उनका वास्तविक नाम राजा खट्वांग है और वे त्रेता युगीन राजा हैं।

कुछ पुराणों में खट्वांग के पुत्र का नाम दीर्घबाहु दिलीप लिखा गया है किंतु हम इस समय स्वयं को राजा खट्वांग पर ही केन्द्रित करते हैं जिन्हें कुछ पुराणों ने राजा दिलीप भी कहा है। विष्णु पुराण का कथन है कि राजा दिलीप जैसा पृथ्वी पर कोई राजा नहीं हुआ, जिसने मात्र कुछ क्षण पृथ्वी लोक पर रहकर मनुष्यों में अपनी दानवृत्ति का प्रकाश फैलाया तथा सत्य और ज्ञान का आचरण करके अमरता प्राप्त की।

राजा खट्वांग के समय एक बड़ा देवासुर संग्राम लड़ा गया जिसमें देवताओं का पक्ष बहुत कमजोर था। इसलिए देवताओं ने अयोध्या के राजा खट्वांग को देवताओं की सहायता के लिए आमंत्रित किया। राजा खट्वांग ने देवासुर संग्राम में भाग लेकर देवताओं को विजय दिलवाई। उन्होंने अनेक दानवों का संहार किया और बचे हुए दानवों को भयभीत करके युद्ध से भगा दिया। राज खट्वांग की सहायता से प्रभावित होकर देवताओं ने राजा खट्वांग से वरदान मांगने को कहा।

इस पर राजा खट्वांग ने देवताओं से पूछा कि पहले आप मुझे यह बताइये कि मेरी कितनी आयु शेष बची है ताकि मैं उसी के अनुसार वरदान मांगूं। इस पर देवताओं ने उत्तर दिया- ‘मात्र एक मुहूर्त’।

पूरे आलेख के लिए देखिए यह वी-ब्लॉग-

इस पर देवताओं ने उत्तर दिया- ‘मात्र एक मुहूर्त’।

पुराणों के अनुसार एक मुहूर्त में दो घड़ी होती हैं और एक घड़ी में 24 मिनट होते हैं। अर्थात् राजा खट्वांग के पास केवल 48 मिनट का जीवन शेष बचा था। देवताओं का उत्तर सुनकर राजा खट्वांग ने कहा- ‘मैं वरदान लेकर क्या करूंगा।’

राजा खट्वांग ने उसी क्षण स्वर्ग छोड़ दिया और वह अनारुद्ध-गति नामक विमान पर बैठकर वायु वेग से पृथ्वी पर आ गए और भगवान् श्री हरि विष्णु की स्तुति करने लगे। कुछ ही देर में यमराज आ गए और राजा खट्वांग को अपने साथ बैकुण्ठ में ले गए। इस अलौकिक घटना से तीनों लोकों में राजा खट्वांग का यश फैल गया।

महाभारत में शुकदेवजी राजा परीक्षित को राजा खट्वांग की कथा सुनाते हैं जिसके अनुसार जैसे ही राजा खट्वांग को ज्ञात हुआ कि वह दो घड़ी में मृत्यु को प्राप्त होने वाला है तो वह स्वर्ग छोड़कर धरती पर आ गया और उसने अपनी सम्पत्ति निर्धनों तथा ब्राह्मणों को दान कर दी तथा उसी समय वैराग्य धारण करके सरयू तट पर तप करने लगा और अंत में योग क्रिया द्वारा स्वयं को अपने शरीर से मुक्त कर लिया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

विष्णु पुराण के अनुसार मृत्यु निकट आई जानकर खट्वांग ने कहा- ‘हे परामत्न्! यदि मुझे ब्राह्मणों की अपेक्षा कभी अपना आत्मा प्रियतर नहीं हुआ, यदि मैंने कभी स्वधर्म का उल्लघंन नहीं किया और सम्पूर्ण देव, मनुष्य, पशु, पक्षी और वृक्षादि में श्री अच्युत के अतिरिक्त मेरी अन्य दृष्टि नहीं हुई तो मैं निर्विघ्न पूर्वक उन मुनिजन पूजित प्रभु को प्राप्त होऊं।’ ऐसा कहते हुए राजा खट्वांग ने सम्पूर्ण देवताओं के गुरु, अकथनीय स्वरूप, सत्तामात्र शरीर, परमात्मा भगवान् वासुदेव में अपना चित्त लगा दिया और उन्ही में लीन हो गए।

श्रीमद्भागवत में भी राजा खट्वांग की वैसी ही कथा मिलती है जैसी महाभारत में दी गई है। विविध ग्रंथों में कहा गया है कि इस विषय में पूर्वकाल में सप्तर्षियों द्वारा कहा हुआ श्लोक सुना जाता है जिसमें कहा गया है कि खट्वांग के समान पृथिवी तल में अन्य कोई भी राजा नहीं होगा, जिसने एक मूहूर्त मात्र जीवन के रहते ही स्वर्गलोक से भूमण्डल में आकर अपनी बुद्धि द्वारा तीनों लोकों को सत्य-स्वरूप भगवान् वासुदेव मय देखा।

इस कथा का मूल भाव यह है कि मनुष्य को मृत्यु से डरना नहीं चाहिए, वह तो अवश्यम्भावी है। इसलिए मृत्यु की तैयारी करनी चाहिए। यह तैयारी दान-दक्षिणा, जप-तप एवं व्रत आदि से हो सकती है।

इस कथा में दो घड़ी का जो रूपक दिया गया है, उसका तात्पर्य सम्पूर्ण मानव जीवन के कुल मूल्य से है। प्रत्येक मनुष्य को एक निश्चित जीवन मिलता है किंतु प्रत्येक मनुष्य यह समझता है कि मृत्यु अभी दूर है, इसलिए वह अपनी आयु का एक बड़ा हिस्सा विद्याध्ययन करने, धनार्जन करने एवं पुत्र-पौत्रादि का सुख प्राप्त करने में लगा देता है।

इन सब सुखों एवं उपलब्धियों में खोया हुआ मनुष्य जब मृत्यु के निकट पहुंचता है तो उसे अपना जीवन बहुत छोटा जान पड़ता है, केवल दो घड़ी के समान अति संक्षिप्त। जबकि कामनएं ज्यों की त्यों बाकी रहती हैं, उन्हें पाने की अभिलाषा अब भी अधूरी होती है। वह मरना नहीं चाहता किंतु मृत्यु सिर पर आकर खड़ी हो जाती है, अब वह इतना भी नहीं सोच पाता कि मैं इस मृत्यु की तैयारी कैसे करूं!

राजा खट्वांग की कथा के माध्यम से हमारे ऋषियों ने हमारे सामने एक स्पष्ट लक्ष्य प्रक्षेपित किया है। यह लक्ष्य समय का सदुपयोग करने के रूप में हमारे सामने रखा गया है। जो मनुष्य, जीवन के इस लक्ष्य को जितनी जल्दी पहचान लेता है, वह उतने ही लाभ में रहता है।

जिस प्रकार एक विद्यार्थी वर्ष भर पढ़कर एक दिन परीक्षा देता है, उसी प्रकार मनुष्य को समस्त जीवन एक लक्ष्य के साथ व्यतीत करने के पश्चात् मृत्यु रूपी परीक्षा देनी होती है। अतः राजा खट्वांग की कथा मनुष्य को चीख-चीख कर बताती है कि मृत्यु दूर नहीं है, वह प्रतिक्षण आ रही है, उसके स्वागत की तैयारी में जुटो, हरिस्मरण, दान-पुण्य, त्याग-तपस्या और दूसरों की सेवा से ही मनुष्य उस योग्यता को प्राप्त कर सकता है कि वह मृत्यु रूपी परीक्षा में सहज ही उत्तीर्ण हो जाए।

इस कथा से हमें एक और बड़ा संकेत मिलता है कि स्वर्ग की प्राप्ति हमारा अंतिम लक्ष्य नहीं है। हमारा अंतिम लक्ष्य श्री हरि विष्णु की प्राप्ति है। श्री हरि विष्णु की प्राप्ति का मार्ग धरती से खुलता है। इसीलिए खट्वांग मृत्यु निकट जानकर स्वर्ग छोड़कर धरती पर आ गया। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वर्ग और नर्क में जीवात्मा को कर्म करने का अधिकार नहीं होता, वहाँ तो कर्मों से प्राप्त फल का भोग किया जाता है।

कर्म करने का अधिकार केवल धरती पर है और वह भी केवल मनुष्य देहधारी जीवात्मा को। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह धरती पर रहकर ऐसे कर्म करे कि उसे स्वर्ग और नर्क दोनों में न भटकना पड़े। वह अपने वास्तविक लक्ष्य की ओर अग्रसर हो।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source