भरत मुनि ने उर्वशी को श्राप देकर धरती पर भेज दिया!
श्रीहरिवंश पुराण सहित अनेक पुराणों में आए एक कथानक के अनुसार बुध एवं इला का पुत्र पुरुरवा हुआ। यही पुरुरवा चंद्रवंशी राजाओं का मूल पुरुष था।
राजा पुरुरवा और उर्वशी का उल्लेख वेदों में भी मिलता है। वही पुरुरवा और उर्वशी पुराणों की कथाओं में अलग-अलग प्रकार से विस्तार प्राप्त करते हुए एक अलौकिक कथा के पात्र बन जाते हैं। वेदों में जिस पुरुरवा का वर्णन मिलता है, वह सूर्य का प्रतीक है, उर्वशी उसकी एक किरण है तथा वे दोनों मिलकर आयु नामक अग्नि का निर्माण करते हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो वेदों में पुरुरवा, उर्वशी और आयु को अंतरिक्ष में व्याप्त रहने वाली तीन प्रकार की अग्नि माना गया है।
पुराणों में पुरुरवा को धरती का राजा, उर्वशी को स्वर्ग की अप्सरा तथा आयु को राजा पुरुरवा तथा उर्वशी का पुत्र बताया गया है। कुछ पुराणों में कहा गया है कि पहले अग्नि एक ही था, पुरुरवा ने उसे तीन बनाया।
विभिन्न पुराणों में आई इस कथा के अनुसार चंद्रमा का पौत्र एवं बुध का पुत्र राजा पुरुरवा प्रयागराज में राज्य करता था। वह तेजस्वी, दानशील, यज्ञकर्ता, ब्रह्मवादी, सत्यभाषी, रूपवान एवं अत्यंत शक्तिशाली था जिसके कारण उसका यश तीनों लोकों में विस्तृत हो गया।
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एक दिन अप्सरा उर्वशी अपनी सखियों के साथ धरती पर भ्रमण करने आई। उसे एक राक्षस ने देख लिया तथा उसका अपहरण कर लिया। उसी समय राजा पुरुरवा भी वहाँ से निकल रहा था। राजा ने राक्षस को मारकर अप्सरा को राक्षस के बंधन से मुक्त कर दिया। जब राजा ने अप्सरा को राक्षस के बंधन से मुक्त करवाया तो उर्वशी ने जीवन में पहली बार धरती के किसी पुरुष का स्पर्ष किया जिससे वह राजा पुरुरवा के प्रति सम्मोहित हो गई।
एक बार स्वर्ग में एक नाटिका का आयोजन किया गया। इस नाटिका में अप्सरा उर्वशी को देवी लक्ष्मी का अभिनय करना था। अभिनय के दौरान अप्सरा ने अपने प्रियतम के रूप में भगवान विष्णु के स्थान पर राजा पुरुरवा का नाम ले लिया। यह देखकर नाट्यकार भरत मुनि को क्रोध आ गया और उन्होंने उर्वशी को शाप दिया कि स्वर्ग की एक अप्सरा होने पर भी एक मानव की तरफ आकर्षित होने के कारण तू पृथ्वीलोक पर चली जा और मानवों की तरह संतान उत्पन्न कर।
एक अन्य पुराण में आई कथा के अनुसार एक बार इन्द्र की सभा में उर्वशी के नृत्य के समय राजा पुरुरवा उसके प्रति आकृष्ट हो गए जिसके चलते उर्वशी की ताल बिगड़ गई। इन्द्र ने रुष्ट होकर दोनों को मर्त्यलोक में जाकर रहने का शाप दिया।
इस श्रााप के कारण उर्वशी पृथ्वीलोक पर आकर राजा पुरुरवा से मिली। राजा पुरुरवा ने उसे अपनी पत्नी बनाने का प्रस्ताव दिया। अप्सरा ने राजा पुरुरवा के समक्ष कुछ शर्तें रखीं कि मैं कभी भी आपको निर्वस्त्र न देखूं। मेरे सकाम होने पर ही आप मेरे साथ सहवास करें। मेरे पलंग के पास सदा दो भेड़ बंधे रहें। उन भेड़ों की रक्षा आप करेंगे। मैं दिन में केवल घृत मात्र भोजन करूंगी। जब तक आप इन प्रतिज्ञाओं का पालन करते रहेंगे, मैं आपके साथ रहूंगी। अन्यथा मैं आपको छोड़कर स्वर्ग चली जाउंगी। राजा पुरुरवा ने अप्सरा की समस्त शर्तें स्वीकार कर लीं।
इसके बाद उर्वशी राजा पुरुरवा के साथ दस वर्ष तक रमणीय चैत्ररथ वन में, पांच वर्ष तक मंदाकिनी के तट पर बसी हुई अलकापुरी में, पांच वर्षों तक बदरीनारायण के वन में, छः वर्ष तक नंदनवन में, सात वर्ष तक उत्तरकुरु देश में, आठ वर्षों तक गंधमादन पर्वत के शिखरों पर, दस वर्षों तक मेरुपर्वत पर एवं आठ वर्ष तक उत्तराचल पर विहार करती रही।
इस विहार के दौरान राजा को अप्सरा के गर्भ से आयु, अमावसु, विष्वायु, श्रुतायु, दृढ़ायु, वनायु और शतायु नामक सात पुत्र प्राप्त हुए। ये सभी पुत्र स्वर्ग के देवपुत्रों के समान महान् आत्मबल से सम्पन्न थे।
जब उर्वशी को धरती पर निवास करते हुए उनसठ वर्ष बीत गए तब गंधर्वों को अप्सरा की चिंता हुई और वे उर्वशी को फिर से स्वर्ग में लाने का उपाय सोचने लगे। विश्वावसु नामक एक गंधर्व ने समस्त गंधर्वों से कहा कि यदि राजा की प्रतिज्ञा भंग हो जाए तो उर्वशी श्रापमुक्त हो जाएगी तथा राजा को छोड़कर स्वर्ग में चली आएगी। अतः मैं राजा की प्रतिज्ञा भंग करवाता हूँ। इतना कहकर विश्वावसु नामक गंधर्व स्वर्गलोक छोड़कर धरती पर आया तथा राजा पुरुरवा की राजधानी प्रयाग पहुंचा। उसने उर्वशी के पलंग के पास बंधे हुए एक भेड़ को चुरा लिया।
जब उर्वशी ने गंधर्वों के आने की आहट सुनी तो उसने विचार किया कि अब मेरे श्राप होने का समय आ गया है। उर्वशी ने राजा से कहा कि राजन् किसी ने मेरे एक बच्चे को चुरा लिया है। उर्वशी उन भेड़ों से मातृवत् स्नेह करती थी तथा उन्हें अपने बच्चे कहती थी।
उस समय राजा निर्वस्त्र था इसलिए वह प्रतिज्ञा भंग के भय से अपने पलंग पर सोया रहा किंतु जब उर्वशी ने फिर से कहा कि राजन् अनाथ स्त्री के समान मेरे पुत्रों को छीन लिया गया। अब राजा को उठना पड़ा। उसने सोचा कि रात के अंधेरे में उर्वशी उसे देख नहीं पाएगी किंतु जब राजा भेड़ को पकड़ने के लिए दौड़ा तो गंधर्वों ने बिजली चमका दी जिससे राजा का विशाल भवन प्रकाशित हो गया तथा राजा भी दिखाई देने लगा। जैसे ही उर्वशी ने निर्वस्त्र राजा को देखा, वह अंतर्धान हो गई।
जब राजा भेड़ को पकड़कर अपने महल में लौटा तो उसने उर्वशी को कहीं भी नहीं पाया। राजा शोक से कातर होकर उर्वशी को ढूंढने लगा। एक दिन दिन उसने कुरुक्षेत्र के प्लक्षतीर्थ की हैमवती पुष्करिणी में उर्वशी को देखा जो अपनी पांच सखियों सहित स्नान कर रही थी।
तब राजा ने उर्वशी को देखकर उसे फिर से अपने पास लौट आने को कहा। इस पर उर्वशी ने कहा कि है राजन्! मैं आपके द्वारा गर्भवती हूँ जिससे आपको पुत्र प्राप्त होगा। उसके बाद हर साल एक रात्रि के लिए मैं आपके पास आया करूंगी तथा मुझसे प्रतिवर्ष आपको एक पुत्र प्राप्त होगा।
उर्वशी के प्रति राजा की निष्ठा देखकर गंधर्व भी राजा पुरुरवा से प्रसन्न हो गए। तब उर्वशी ने राजा से कहा कि तुम गंधर्वों से कहा कि वे तुम्हें अपने लोक में ले लें। राजा ने गंधर्वों से वही वरदान मांग लिया। इस पर गंधर्वों ने राजा को एक थाली में अग्नि रखकर दी तथा राजा से कहा कि आप इस अग्नि से यज्ञ करें जिससे आप हमारे लोक में आ जाएंगे। राजा ने वैसा ही किया और वह गंधर्वों के लोक में पहुंच गया।
राजा ने वैसा ही किया और वह गंधर्वों के लोक में पहुंच गया। कुछ पुराणकारों का कहना है कि इस यज्ञ के बाद विश्व में व्याप्त रहने वाला ‘एक अग्नि’ तीन अग्नियों में बदल गया। विभिन्न पुराणों में यह कथा थोड़े-बहुत अंतर के साथ मिलती है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता