बलबन ने बंगाल के सुल्तान तुगरिल खाँ को मारकर अपने पुत्र बुगरा खाँ को बंगाल का गवर्नर बनाया किंतु ई.1282 में बलबन की मृत्यु के बाद बुगरा खाँ ने बंगाल में एक अगल राज्य की स्थापना की जो दिल्ली से स्वतंत्र होकर शासन करता रहा। खिलजियों के समय में बंगाल स्वतंत्र राज्य बना रहा। अल्लाउद्दीन खलजी ने बंगाल पर कोई चढ़ाई नहीं की।
गयासुद्दीन तुगलक के समय में बंगाल में शम्सुद्दीन के तीन पुत्रों- शिहाबुद्दीन, गयासुद्दीन बहादुर तथा नासिरूद्दीन में उत्तराधिकार का युद्ध हुआ। इस झगड़े में गयासुद्दीन बहादुर को सफलता प्राप्त हुई। उसने अपने भाइयों शिहाबुद्दीन तथा नासिरूद्दीन को लखनौती से मार भगाया और स्वयं को बंगाल का सुल्तान घोषित कर दिया।
शिहाबुद्दीन तथा नासिरूद्दीन ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। गयासुद्दीन ने उनका अनुरोध स्वीकार करके बंगाल पर आक्रमण किया। बंगाल के सुल्तान गयासुद्दीन बहादुर ने दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक का सामना किया परन्तु परास्त हो गया और कैद कर लिया गया। गयासुद्दीन तुगलक ने नासिरूद्दीन को लखनौती का शासक बना दिया। इस प्रकार बंगाल पर फिर से दिल्ली सल्तनत का अधिकार स्थापित हो गया।
दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के समय पूर्वी बंगाल में बहराम खाँ शासन कर रहा था। उसके अंगरक्षक फखरूद्दीन ने ई.1337 में उसकी हत्या कर दी और स्वयं पूर्वी बंगाल का शासक बन गया। दिल्ली साम्राज्य की दशा को देखकर उसने स्वयं को बंगाल का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया और अपने नाम की मुद्राएँ चलाने लगा। मुहम्मद बिन तुगलक की असमर्थता के कारण बंगाल स्वतंत्र हो गया।
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ई.1345 में हाजी इलियास ‘शम्सुद्दीन इलियास’ के नाम से बंगाल का शासक बना। उसके काल में फीरोजशाह तुगलक ने बंगाल को पुनः अधीन करने का प्रयास किया किन्तु वह बंगाल को जीतने के बाद मुस्लिम स्त्रियों का करुण क्रंदन सुनकर बंगाल पर अपना अधिकार किये बिना ही दिल्ली लौट गया।
ई.1357 में इलियास की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सिकन्दरशाह बंगाल का सुल्तान बना। उसके समय में भी फीरोजशाह तुगलक ने बंगाल पर आक्रमण किया परन्तु इस बार भी फिरोज को निराश होकर वापस दिल्ली लौटना पड़ा। सिकन्दरशाह ने अपनी नई राजधानी पंडुवा में अनेक भव्य भवनों का निर्माण करवाया।
सिकन्दरशाह के बाद गियासुद्दीन आजम बंगाल का सुल्तान बना। वह एक योग्य शासक था। तैमूर लंग के भारत-आक्रमण के समय यही गियासुद्दीन आजम बंगाल का सुल्तान था। ई.1410 में उसकी मृत्यु के बाद सैफुद्दीन इम्जाशाह सुल्तान बना। वह एक निर्बल शासक सिद्ध हुआ।
पंद्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में हिन्दू राजा गणेश ने बंगाल के तख्त पर अधिकार कर लिया। गणेश के पुत्र जादू ने इस्लाम स्वीकार करके जलालुद्दीन मुहम्मदशाह की उपाधि धारण की। उसने ई.1431 तक शासन किया। उसके बाद तीन-चार निर्बल शासकों ने बंगाल पर शासन किया।
गणेश के निर्बल वंशजों के बाद नसिरूद्दीन नामक एक तेज-तर्रार योद्धा बंगाल का स्वतंत्र सुल्तान बना जिसने 17 वर्षों तक बंगाल पर शासन किया। ई.1460 में उसकी मृत्यु के बाद बारबकशाह सुल्तान बना। बारबकशाह के बाद शम्मसुद्दीन युसुफशाह ने ई.1481 तक बंगाल पर शासन किया।
शम्मसुद्दीन युसुफशाह के उत्तराधिकारी सिकन्दर (द्वितीय) को पदच्युत करके जलाजुद्दीन फतेहशाह नया सुल्तान बना परन्तु ई.1486 में उसके हब्शी गुलामों के नेता बारबकशाह ने उसे मौत के घाट उतार कर तख्त पर कब्जा कर लिया। इसी प्रकार, ई.1490 में एक अन्य हब्शी सिद्दी बद्र ने सुल्तान महमूदशाह (द्वितीय) को मौत के घाट उतार कर बंगाल के तख्त पर अधिकार कर लिया।
ई.1493 मंे अल्लाउद्दीन हुसैनशाह बंगाल का सुल्तान बना। उसके वंशजों ने लगभग 50 वर्ष तक बंगाल पर शासन किया। ई.1494 में अल्लाउद्दीन ने जौनपुर के भगोड़े शासक हुसैन को अपने यहाँ आश्रय प्रदान किया। इस कारण उसका दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी से संघर्ष हो गया परन्तु अंत में दोनों पक्षों के मध्य सन्धि हो गई जिसके अनुसार बिहार की पूर्वी सीमा दिल्ली सल्तनत तथा बंगाल सल्तनत के बीच, सीमा निश्चित कर दी गई।
अल्लाउद्दीन हुसैनशाह ने उड़ीसा तक अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसने मगध तथा कूच बिहार में स्थित कामतपुर पर आक्रमण करके उसे जीत लिया।
ई.1518 में अल्लाउद्दीन हुसैनशाह की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र नासिरूद्दीन नुसरतशाह के नाम से तख्त पर बैठा। वह भी अपने पिता की भाँति भला तथा सफल शासक हुआ। उसने तिरहुत राज्य को जीतकर अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। नुसरतशाह को बंगला साहित्य और भवन-निर्माण में गहरी रुचि थी। उसने बड़ी सोना मस्जिद और जामा मस्जिद का निर्माण करवाया और महाभारत का बंगला भाषा में अनुवाद करवाया।
बाबरनामा के अनुसार बंगाल का यह मुसलमानी राज्य तत्कालीन हिन्दुस्तान में बड़ा शक्तिशाली और सम्मानित गिना जाता था। वी. ए. स्मिथ ने लिखा है- ‘नुसरतशाह नाम अब भी समस्त बंगाल में सुपरिचित है। उसके चौबीस वर्ष के शासनकाल में कोई विद्रोह अथवा उपद्रव नहीं हुआ। उसका शासन शान्तिपूर्ण तथा सुखमय रहा, प्रजा उससे प्रेम करती थी तथा पड़ौसी उसका सम्मान करते थे।’ बाबर के आक्रमण के समय यही नुसरतशाह बंगाल का सुल्तान था। इस प्रकार ई.1205 में इख्तियारुद्दीन के बंगाल पर अधिकार करने से लेकर ई.1526 में बाबर के दिल्ली का शासक बनने तक तीन सौ इक्कीस साल की अवधि में बंगाली सुल्तानों की छत्रच्छाया में बंगाल में इस्लाम का जोरों से प्रचार हुआ तथा बंगाल में लाखों व्यक्तियों को हिन्दू धर्म छोड़कर मुसलमान हो जाना पड़ा।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता