ई.1489 में बहलोल लोदी की मृत्यु हो गई तथा उसका पुत्र निजाम खाँ, सिकंदर लोदी के नाम से दिल्ली का सुल्तान हुआ। वह हेमा नामक सुनार स्त्री के पेट से उत्पन्न हुआ था। सिकंदर का चेहरा बहुत सुंदर था और वह अपने चेहरे की सुन्दरता बनाये रखने के लिए दाढ़ी नहीं रखता था।
अब्दुल्ला ने ‘तारीखे दाऊदी’ में लिखा है कि जब निजाम खाँ छोटा बालक था, तब उसकी सुंदरता से प्रेरित होकर शेख हसन नामक एक मौलवी उससे प्रेम करने लगा। शहजादे को मौलवी के रंग-ढंग अच्छे नहीं लगे इसलिए शहजादे ने एक दिन मौलवी को पकड़ लिया तथा उसे आग के पास ले जाकर उसकी दाढ़ी जला दी।
कुछ इतिहासकारों के अनुसार पूर्व सुल्तान बहलोल लोदी के कई पुत्र थे तथा बहलोल ने मृत्यु से पहले अफगानी कबीलों के रिवाज के अनुसार अपनी सल्तनत को अपने पुत्रों में विभाजित कर दिया था, जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार जब बहलोल लोदी मृत्यु-शैय्या पर था तो उसकी चहेती स्त्री हेमा अपने पति के साथ युद्ध-शिविर में थी। बहलोल लोदी ने हेमा के पुत्र सिकंदर को अपना उत्तराधिकारी बनाया।
इस पर सिकंदर के चचेरे भाई ईसा खाँ ने हेमा को गालियां देते हुए यह कहा कि एक हिन्दू सुनार स्त्री का पुत्र अफगानों का सुल्तान नहीं बन सकता। ईसा खाँ चाहता था कि बहलोल लोदी अपने बड़े पुत्र बारबकशाह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे जो कि जौनपुर का गवर्नर था तथा जिसकी माता सुन्नी मुसलमान थी।
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ईसा खाँ द्वारा सुल्तान की स्त्री को गालियां दिए जाने पर कई अफगान सरदार ईसा खाँ तथा बारबक शाह से नाराज हो गए तथा बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद मिलौली गांव में हुई एक सभा में अफगान सरदारों ने मृत सुल्तान बहलोल लोदी की इच्छा को स्वीकार करते हुए उसके पुत्र निजाम खाँ को नया सुल्तान चुन लिया। खानखाना फारमूली ने निजाम खाँ के चयन में बड़ी भूमिका निभाई।
17 जुलाई 1489 को जलाली गांव में निजाम खाँ का राज्याभिषेक किया गया। वह सिकंदरशाह लोदी के नाम से दिल्ली सल्तनत का सुल्तान हुआ। इस पर मृत सुल्तान बहलोल के पुत्र बारबकशाह और बहलोल के भतीजों हुमायूं आजम एवं ईसा खाँ ने अफगान अमीरों के निर्णय का विरोध करते हुए बगावत का झण्डा बुलंद किया। सिकंदर लोदी के चाचा आलम खाँ आदि कुछ अन्य अमीरों ने बागियों का अनुसरण किया क्योंकि उन्हें भी यह सहन नहीं था कि एक हिन्दू औरत के पेट से उत्पन्न लड़का अफगानी अमीरों पर राज करे।
इस कारण सिकंदरशाह की स्थिति डांवाडोल हो गई किंतु उसने धैर्य से काम लेते हुए अपने सैनिकों को पक्ष में लेने का प्रयास किया तथा सैनिकों को चार महीनों का वेतन पुरस्कार के रूप में दे दिया। सिकंदर लोदी ने अपने पक्ष के अमीरों को अपने दरबार में बुलाकर उन्हें सुंदर वस्त्र एवं आकर्षक पद देकर सम्मानित किया।
सिकंदरशाह के बड़े भाई बारबकशाह ने स्वयं को जौनपुर का स्वतंत्र शासक घोषित किया। पाठकों को स्मरण होगा कि पूर्व सुल्तान बहलोल लोदी ने बारबक शाह को जौनपुर का गवर्नर नियुक्त किया था। सिकंदर लोदी ने अपने बड़े भाई बारबकशाह को प्रेम से समझाने का प्रयास किया किंतु जब बारबक शाह नहीं माना तो सुल्तान ने उसका दमन करके उसे बंदी बना लिया तथा जौनपुर को फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन कर लिया।
अब सिकंदर शाह ने अपने चाचा आलम खाँ पर आक्रमण किया। आलम खाँ ने पराजित होने के बाद सुल्तान के समक्ष उपस्थित होकर क्षमा याचना की। सिकंदर लोदी ने आलम खाँ को क्षमा कर दिया तथा उसे इटावा का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब सिकंदरशाह ने अपने चचेरे भाई ईसा खाँ से निबटने का बीड़ा उठाया।
ईसा खाँ ने मरहूम सुल्तान बहलोल लोदी के सामने सिकंदर लोदी की माँ को गालियां दी थीं। इसलिए सिकंदर लोदी ईसा खाँ को भलीभांति दण्डित करना चाहता था। जब सुल्तान की सेना ने ईसा खाँ पर आक्रमण किया तो ईसा खाँ ने भी एक सेना लेकर सुल्तान का सामना किया। दोनों पक्षों में हुए भयानक युद्ध के बाद ईसा खाँ युद्धक्षेत्र में घायल होकर भाग गया। कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई।
सिकंदर लोदी का चचेरा भाई हुमायूं आजम कालपी का शासक था। उसने भी सिकंदर को सुल्तान बनाए जाने का विरोध किया तथा सिकंदर लोदी द्वारा बारबकशाह को बंदी बनाए जाने के बाद स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया। सुल्तान सिकंदरशाह लोदी की सेनाओं ने हुमायूं आजम को युद्ध में परास्त करके उससे कालपी छीन ली।
बयाना का हाकिम भी हुमायूं आजम की सहायता कर रहा था। सिकंदर लोदी ने उससे बयाना छीन लिया तथा खानखाना फारूखी को बयाना का गवर्नर बना दिया। इसी प्रकार कुछ अन्य विरोधी अमीरों को भी सिकंदर लोदी ने युद्ध में हराकर उन्हें भलीभांति दण्डित किया। अपने विरोधियों को पूर्णतः परास्त करने में सिकंदर शाह को तीन साल का समय लग गया।
सल्तनत के बागियों से निबटकर सिकंदर लोदी ने अफगान अमीरों पर शिकंजा कसने का निर्णय लिया। पूर्व-सुल्तान बहलोल लोदी अफगानी कबीलों की परम्परा के अनुसार अपने अमीरों को बराबरी का सम्मान प्रदान करता था किंतु सिकन्दर लोदी ने अफगान सरदारों से समानता की अफगानी कबीलों की परम्परा का परित्याग करके, तुर्की सुल्तानों एवं हिन्दू राजाओं की परम्परा ‘सुल्तान अथवा राजा ही सर्वश्रेष्ठ है’, नीति का अनुसरण किया।
सिकन्दर लोदी ने अमीरों को अपने सामने खड़े रहने की व्यवस्था लागू की, ताकि उनके ऊपर सुल्तान की महत्ता प्रदर्शित हो सके। पूर्व सुल्तान बहलोल लोदी अपने अमीरों के साथ एक कालीन पर बैठता था जबकि सिकंदर लोदी सिंहासन पर बैठा करता था और उसके अमीर उसके सामने विनम्रता पूर्वक खड़े रहते थे।
सिकंदर लोदी ने नियम बनाया कि जब किसी अमीर अथवा प्रांतपति के पास शाही फ़रमान भेजा जाए तो अमीर अपने घर से बाहर आकर एवं गवर्नर अपने शहर से छः मील आगे आकर आदर के साथ शाही फरमान का स्वागत करे। ऐसा नहीं करना सुल्तान के प्रति अनादर माना जाता था और ऐसे अमीर को दण्डित किया जाता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता