Thursday, November 21, 2024
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क्या धरती उबलने वाली है!

धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। यदि आगामी 50 वर्षों में धरती पर तापक्रम बढ़ने की यही गति बनी रहती है तो वर्तमान में समुद्रों के किनारे स्थित संसार के कई बड़े महानगर आंशिक अथवा पूर्णतः समुद्र की गोद में समा जायेंगे जिनमें भारत के मुम्बई, मद्रास, कलकत्ता जैसे महानगरों को विशेष रूप से क्षति होगी।
ऐसा कैसे होता है!
पूरे संसार में स्थित ऊँचे पर्वतों पर तथा उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों पर तापक्रम कम होता है जिसके कारण वहां पानी अपनी ठोस अवस्था में जमा रहता है जिन्हें ग्लैशियर कहते हैं। इन ग्लैशियरों से पिघल कर बहने वाला पानी नदियों के रूप में धरती के ढलान की तरफ बहता हुआ समुद्रों तक पहुंचता है। यदि धरती का तापक्रम संतुलित रहता है तो प्रतिवर्ष जितनी बर्फ पिघलती है उतनी ही बर्फ इन स्थानों में होने वाली वर्षा के पानी के जम जाने से फिर से बन जाती है। जब धरती पर तापक्रम बढ़ता है तो यह चक्र असंतुलित हो जाता है और पर्वतों पर स्थित ग्लैशियर तेजी से पिघलने लगते हैं। ध्रुवों एवं ग्लैशियरों से जितने जल की क्षति होती है, उसकी तुलना में वर्ष के दौरान वर्षा से मिलने वाले जल की मात्रा कम रह जाती है जिससे समुद्रों में जल का स्तर बढ़ने लगता है तथा उनके किनारों पर स्थित धरती जल में डूबने लगती है। इसी को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं।

ऐसा क्यों होता है!
विकसित एवं विकासशील देशों में धरती का तापक्रम बढ़ाने वाले कारण अलग-अलग हैं। ऐशिया एवं अफ्रीका के गरम देशों में जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है जिसके कारण जंगलों की कटाई बड़े पैमाने पर हो रही है। जितने जंगल काटे गये हैं, उनके मुकाबले में वृक्षारोपण नहीं किया गया है। यदि किया भी गया है तो पेड़ों के जीवित रहने का प्रतिशत कम है। जबकि यूरोपीय एवं अमरीकी देशों में विकास की गति तीव्र होने से वहां ऊर्जा की खपत अधिक हो रही है जिसके कारण वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साईड, कार्बन मोनो ऑक्साईड तथा क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ रही है। कार्बन डाई ऑक्साईड में दो विशिष्ट गुण हैं। पहला यह कि यह भारी होती है तथा धरती की सतह के निकट रहती है। दूसरा यह कि यह तापक्रम की अवशोषक होती है। जब वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ता है तो कार्बन डाई ऑक्साईड उस तापक्रम को सोख कर धरती की सतह को गर्म कर देती है। परिणामतः तापक्रम वायुमण्डल से बाहर नहीं जा पाता और धरती का तापक्रम स्थायी रूप से बढ़ जाता है। इसे ग्रीन हाउस इफैक्ट कहते हैं।
इसे कैसे रोका जा सकता है!
इस प्रश्न का समाधान खोजने से पहले आदमी को दो चुनौतियों से जूझना है। आम आदमी के जीवन स्तर में गिरावट न आये तथा विकास की गति को और तेज किया जाये। इन दोनों चुनौतियों ने ग्लोबल वार्मिंग को भस्मासुर की तरह विश्वव्यापी कर दिया है। हम जानते हैं कि आबादी पर नियंत्रण करके वनों की कटाई को रोका जा सकता है तथा ऊर्जा की खपत को कम किया जा सकता है किंतु यह उपाय अब तक असफल रहा है। क्यों?
चूक कहाँ हो रही है!
सामाजिक मान्यताओं, धार्मिक विश्वासों एवं स्थापित परम्पराओं के चलते स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में जनसंख्या का भयानक विस्फोट हुआ है। हम चालीस करोड़ से एक सौ दस करोड़ का आंकड़ा पार कर चुके हैं। पुत्र की इच्छा में संतति की संख्या का विस्तार, बाल विवाह, बहु विवाह, संतति ईश्वर की देन, परिवार नियोजन के साधनों को ईश्वरीय इच्छा में रुकावट मानने की परम्परा आदि ऐसे कारण हैं जो हमें जनसंख्या के भस्मासुर से जीतने नहीं दे रहे।
क्या आप जानते हैं!
हमारे द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली हर वस्तु एवं हर सेवा में जबर्दस्त ऊर्जा की खपत होती है। कागज, दियासलाई, कपड़े, चीनी, तथा फर्नीचर आदि वस्तुओं से लेकर आवास, वाहन, सड़क एवं बिजली आदि सेवाओं के सृजन में असीमित ऊर्जा की खपत होती है जिससे वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ता है।
क्या धरती को बचाया जा सकता है!
निश्चित रूप से धरती को बचाया जा सकता है। अभी बहुत देर नहीं हुई है। हमारे पास धरती को गरम होने से रोकने के लिये बहुत से उपाय हैं। वस्तुतः हम ही धरती को नष्ट होने से रोकने के उपाय हैं।

हम क्या करें!
केवल दो काम करें! पहला काम तो यह कि अपनी मानसिकता बदलें और दूसरा काम यह कि अपनी आदतें बदलें। इन दोनों में समन्वय एवं संतुलन स्थापित करके अपनी जीवन शैली को ऐसे ढांचे मंे ढालें जिससे आपको कुछ शारीरिक श्रम करना पड़े, जीवन चलाने के लिये कम पैसों की आवश्यकता हो तथा आप दीर्घ आयु तक स्वस्थ जीवन जियें।
कैसी हो जीवन शैली!
परिवार को सीमित रखें। बच्चों को बड़ा होने देने पर ही उनका विवाह करें। लड़का और लड़की में भेद न करें। दो संतान के बाद परिवार नियोजन के साधन अपनायें। केवल लड़का वंश नहीं चला सकता जब तक लड़की नहीं होगी किसी का भी वंश कैसे चलेेगा!
बच्चों के शादी विवाह में व्यर्थ का दिखावा न करें। अपने परिवार के सदस्यों तथा निकटतम मित्रों को ही शादी विवाह का निमंत्रण दें। शादी विवाह में बड़ी मात्रा में भोजन व्यर्थ ही नष्ट होता है। बिजली एवं सजावट पर अत्यधिक ऊर्जा खर्च की जाती है।
घर में पानी का आवश्यकतानुसार उपयोग करें। व्यर्थ न बहने दें। घरों को प्रतिदिन धोने की आवश्यकता नहीं है। घर की पूर्ण सफाई के लिये झाड़ू एवं पौंछा पर्याप्त होता है। सार्वजनिक स्थलों पर लगे नलों को खुला न छोड़ें और न उन्हें तोड़ें। घर में आवश्यकता होने पर ही बिजली व पंखे चलायें।
जितने कागज की आवश्यकता हो, उतना कागज ही इस्तेमाल करें। उसे फाड़कर नष्ट न करें। जितने कपड़ों की आवश्यकता हो उतने ही कपड़े सिलवायें। अधिक संख्या में एक साथ सिलवाये गये कपड़े काम नहीं आते। वर्षों तक पड़े रहने से उनके रंग खराब हो जाते हैं, वे छोटे हो जाते हैं तथा फैशन से बाहर हो जाने के कारण छोड़ दिये जाते हैं जिससे ऊर्जा की जबर्दस्त बरबादी होती है।
आवश्यकता होने पर ही ईधन चालित वाहन का उपयोग करें। साइकिल पर चलना या पैदल चलना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अच्छा है। इसे अपनी शान के खिलाफ न समझें। इन छोटे-छोटे उपायों से न केवल आपके धन की बचत होगी अपितु आप तथा आपका परिवार स्वस्थ एवं दीर्घायु बनेंगे। साथ ही आप बचा सकेंगे अपनी प्यारी धरती माँ को नष्ट होने से।
निर्णय आपको करना है, आप किससे प्रेम करते हैं, अपनी खराब आदतों खराब स्वास्थ्य, खराब माली हालत और मुसीबतों से या अपनी अच्छी आदतों, अच्छी सेहत, सुख चैन की जिंदगी और धरती माता की सेहत से!

  • डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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