तुर्की अमीरों ने हिन्दुस्तानी मुस्लिम अमीरों को परास्त करके खुसरोशाह को मार दिया और दिपालपुर का गवर्नर गाजी तुगलक ‘गयासुद्दीन तुगलक गाजी’ के नाम से दिल्ली का सुल्तान बन गया। उस समय सल्तनत की दशा बड़ी शोचनीय थी। इस कारण नये सुल्तान के समक्ष कई कठिनाइयां मुँह बाये खड़ी थीं। केन्द्रीय सरकार के शक्तिहीन हो जाने के कारण दिल्ली सल्तनत छिन्न-भिन्न हो रही थी।
प्रांतीय गवर्नर तथा हिन्दू राजा स्वयं को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र करने का प्रयास कर रहे थे। पंजाब में जो नव-मुस्लिम बस गए थे, वे सदैव षड्यन्त्र रचा करते थे और विद्रोह करने के लिए उद्यत रहा करते थे। पंजाब के खोखर जाट अब भी स्वतंत्र होने का प्रयास करते थे। सिन्ध में भी गड़बड़ी फैली हुई थी। दक्षिणी सिन्ध लगभग स्वतन्त्र हो गया था।
गुजरात में भी अशान्ति फैली थी और वहाँ के गवर्नर स्वतन्त्र होने का प्रयत्न कर रहे थे। बंगाल का प्रान्त दिल्ली से दूर होने के कारण स्वतंत्र होने का प्रयत्न करता रहता था। राजपूताना के वीर राजपूत भी अपने खोई हुई स्वतन्त्रता को पुनः प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे थे। दक्षिण के राज्य भी धीरे-धीरे स्वतन्त्र हो रहे थे।
गयासुद्दीन की दूसरी सबसे बड़ी कठिनाई सल्तनत की आर्थिक विपन्नता थी। मुबारक खिलजी तथा खुसरोशाह ने राजकोश का सारा धन सेना तथा अयोग्य व्यक्तियों को बाँट दिया था। इससे राजकोष बिल्कुल रिक्त हो गया था। अल्लाउद्दीन के कठोर नियमों के कारण बहुत से किसान खेत छोड़कर भाग गए थे इसलिए कृषि की दशा भी अच्छी नहीं थी।
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गयासुद्दीन ने अपना शासन जमाने के लिए कई कार्य किये तथा नई सुधार योजनाएं आरम्भ कीं। सबसे पहले गयासुद्दीन ने आर्थिक सुधारों की ओर ध्यान दिया। जिन लोगों ने राज्य का धन हड़प लिया था, विशेषकर जिन लोगों ने खुसरो से रिश्वत ली थी, उन्हें सारा धन राजकोष में वापस जमा करवाने के लिए बाध्य किया गया।
जिन लोगों ने खिलजी राजवंश की महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया था, उन्हें दण्डित किया गया। खिलजी राजवंश की महिलाओं में से जो विवाह के योग्य थीं, उनके लिए उचित वर ढूँढ़ कर उनका विवाह किया गया। अन्य महिलाओं को पेंशन देने की व्यवस्था की गई।
जिन लोगों ने खुसरोशाह के विरुद्ध गयासुद्दीन तुगलक की सहायता की थी, उन्हें पदों तथा जागीरों से पुरस्कृत किया गया। उसने अपने सम्बन्धियों को भी अनुग्रहीत किया। इस प्रकार गयासुद्दीन ने अमीरों तथा अपने सम्बन्धियों को सन्तुष्ट करके बड़ी सतर्कता के साथ शासन का कार्य आरम्भ किया।
जिस समय गयासुद्दीन तुगलक तख्त पर बैठा, उस समय भारत में मुस्लिम जनता की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। पंजाब, सिंध, अवध, गंगा-यमुना दो-आब, मध्यगंगा क्षेत्र, बिहार एवं बंगाल से लेकर गुजरात, मालवा तथा दक्षिण भारत के अनेक हिस्सों में मुसलमान रहने लगे थे। दिल्ली में बड़ी संख्या में मुसलमान परिवार रहते थे। ये लोग विगत 130 वर्षों में या तो भारत में बाहर से आए थे, अथवा वे हिन्दुओं से मुसलमान बनाए गए थे।
मुस्लिम प्रजा में केवल वे ही लोग धनी एवं सम्पन्न हो पाए थे जो शासन का हिस्सा बन गए थे किंतु ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम थी। अधिकांश मुसलमान गरीब और दुखी थे, इनमें भारतीय मुसलमानों की संख्या अधिक थी। बहुसंख्य हिन्दू प्रजा जो सदियों से सुखी एवं सम्पन्न थी, विगत 130 साल में तेजी से गरीब होती जा रही थी।
गयासुद्दीन तुगलक के आर्थिक सुधार दो सिद्धांतों पर अधारित थे जिनमें से पहला सिद्धांत यह था कि कोई धनी व्यक्ति और अधिक धनी न हो और दूसरा सिद्धांत यह था कि कोई भी निर्धन व्यक्ति इतना दरिद्र न हो कि उसका भरण-पोषण भी कठिन हो जाये। तीसरा अघोषित सिद्धांत यह था कि आर्थिक सुधार के नियम केवल मुस्लिम प्रजा के लिए लागू होने वाले थे, हिन्दुओं को प्रजा नहीं माना जाता था, उन्हें जिम्मी माना जाता था, जिन्हें न भरपेट खाने का अधिकार था, न सम्पत्ति रखने का अधिकार था और न जीने का!
गाजी तुगलक ने राजधानी दिल्ली के शासन पर पकड़ बनाने के बाद कृषि सुधारों की ओर ध्यान दिया। चूंकि गांवों में भी बहुत से हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया गया था इसलिए अब मुस्लिम-किसान भी पर्याप्त संख्या में हो गए थे। गयासुद्दीन तुगलक ने इन किसानों के साथ उदारता का व्यवहार किया। राज्य की ओर से भूमि का निरीक्षण करवा कर भूमि-कर निश्चित कर दिया। उपज का सातवाँ अथवा दसवाँ भाग राज्य द्वारा लेना तय किया गया। मुस्लिम किसानों को अनेक प्रकार की सुविधायें दी गईं। उन्हें हल-बीज के लिए राज्य की ओर से धन दिया गया और सिंचाई के लिए कुएँ तथा नहरें खुदवाई गईं।
गयासुद्दीन ने न्याय विभाग में भी सुधार किया। उसने प्राचीन निर्णयों तथा कुरान के सिद्धान्तों के आधार पर एक न्याय विधान बनवाया और तदनुसार न्याय करने की आज्ञा दी। इस प्रकार गयासुद्दीन तुगलक, दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने न्याय विधान बनवाया।
गयासुद्दीन ने सल्तनत के विभिन्न भागों में डाक पहुँचाने की सुन्दर व्यवस्था की। डाक वितरण के लिए घुड़सवार तथा पैदल सिपाही लगाये गए जो डाक लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान जाते थे। प्रत्येक मार्ग पर निश्चित दूरी पर चौकियाँ बनाई गई। जहाँ पर पत्र-वाहक सदैव उपस्थित रहते थे। ये पत्र-वाहक एक हाथ में थैला और दूसरे हाथ में लाठी होती थी। उनके सिरों पर घन्टियाँ लगी रहती थीं। पत्र-वाहक दौड़ता हुआ जाता था। घन्टी की आवाज से अगली चौकी के पत्र-वाहक को पता लग जाता था कि डाक आ रही है।
गयासुद्दीन ने इस्लाम स्वीकार करने वाले परिश्रमशील तथा अध्यवसायी व्यक्तियों को प्रोत्साहन दिया। अति निर्धन मुसलमानों के लिए उसने एक दानशाला की व्यवस्था की। जहाँ फकीरों, भिखारियों तथा जरूरतमंद लोगों की आर्थिक सहायता की जाती थी।
गयासुद्दीन ने सेना में भी कई सुधार किये। उसने सैनिकों के साथ उदारता का व्यवहार किया। सेना का वेतन वह अपने सामने बँटवाता था जिससे धन का अपव्यय न हो। उसने अपनी सेना में, योग्य सेनापतियों की अधीनता में हजारों नये घुड़सवारों को भर्ती किया। घोड़ों का अच्छी तरह निरीक्षण किया जाता था और उन्हें दागा जाता था।
गयासुद्दीन के समय की शासन व्यवस्था मुस्लिम प्रजा के हित के लिए बनाई गई थी। गरीब एवं अमीर मुसलमान के बीच न्याय करते समय समानता के सिद्धान्त का पालन किया जाता था। वह अपने कर्मचारियों को अच्छा वेतन देता था। परिश्रमी तथा ईमानदार व्यक्तियों को ऊँचे पदों पर नियुक्त करता था तथा योग्य व्यक्तियों को समुचित पुरस्कार देता था। उसने सूबेदारों से राजस्व वसूलने के अधिकार छीन लिये। पुलिस विभाग में भी उसने कुछ परिवर्तन किये।
गयासुुद्दीन तुगलक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। डॉ.आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने लिखा है कि हिन्दुओं के प्रति उसका व्यवहार उदार नहीं था। पूर्वसुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने हिन्दुओं पर जो कर लगाये थे वे ज्यों के त्यों जारी रहे। उसने हिन्दुओं के नाम यह फरमान जारी किया कि वे पूंजी का संग्रह न करें। जहाँ मुस्लिम-किसान राज्य को अपनी उपज का 10 से 15 प्रतिशत कर दे रहे थे, वहीं हिन्दुओं को अपनी फसल का पचास प्रतिशत कर के रूप में देना पड़ता था ताकि वे धन संग्रहण न कर सकें।
हिन्दुओं को लूटना, उनको जबरन मुसलमान बनाना तथा उनके देवालयों को धराशायी करना उसके शासन में भी पूर्ववत् बना रहा। युद्ध के समय में वह हिन्दुओं के मन्दिरों तथा मूर्तियों को विध्वंस करने में लेश-मात्र भी संकोच नहीं करता था। इन सब उपायों से गयासुद्दीन तुगलक ने मुसलमान जनता के आर्थिक एवं धार्मिक जीवन को ऊँचा उठाने के प्रयास किये।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता