फहीम के गिरते ही खानखाना गिरफ्तार कर लिया गया। उसका डेरा परवेज के डेरे के पास लगाया गया। खानखाना के डेरे के बाहर सामान्य सिपाहियों और छोटे ओहदेदारों के स्थान पर महावतखाँ जैसे सेनापति पहरा देते थे ताकि खानखाना कैद से न भाग छूटे।
खानखाना की ओर से निश्चिंत होकर परवेज ने बनारस के पास खुर्रम को जा घेरा। इस समय खुर्रम के पास सात हजार सैनिक थे जबकि परवेज के पास चालीस हजार सैनिक थे। खुर्रम ने मैदान छोड़कर भाग जाने की योजना बनायी किंतु भीम सिसोदिया ने उसे भागने के बजाय रण में जूझ मरने की सलाह दी।
खुर्रम आधे मन से लड़ने के लिये तैयार हुआ। शीघ्र ही परवेज की सेना ने खुर्रम की सेना को मार भगाया। परवेज की ताकत देखकर खुर्रम मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ किंतु भीम सिसोदिया ने मैदान छोड़ने से मना कर दिया। उसने इस युद्ध में ऐसी तलवार चलाई कि देखने वालों ने दाँतों तले अंगुली दबा ली।
जब ये समाचार जहाँगीर को प्राप्त हुए तो जहाँगीर ने महावतखाँ को सात हजारी जात और सात हजारी सवार का मनसबदार बनाया। खानखाना के तुमन तौग भी महावतखाँ को सौंप दिये गये और उसका दर्जा खानखाना के बराबर कर दिया गया।
इतने वर्षों की निष्ठा का यही परिणाम अब्दुर्रहीम को प्राप्त हुआ कि वह तो खानखाना से कैदी हो गया और महावतखाँ जैसा अदना आदमी खानखाना हो गया। महावतखाँ यह समाचार सुनाने अब्दुर्रहीम के डेरे में गया। उसने कहा- ‘अब तू अकेला खानखाना न रहा। मैं भी खानखाना हूँ।’
नियति की ऐसी करनी देखकर खानखाना ने उससे कहा-
‘उरग, तुरंग, नारी नृपति, नीच जाति, हथियार।
रहिमन इन्हें सँभारिये, पलटत लगै ने बार।’
– ‘अब्दुर्रहीम! तू मौलवियों की तरह दूसरों को तो बहुत इल्म बाँटता फिरता है। जो तू ऐसा ही ज्ञानी है तो फिर तू इस दुर्दशा को क्यों पहुँचा?
रहीम ने कहा-
‘करम हीन रहिमन लखो, धँसो बड़े घर चोर।
चिंतत ही बड़ लाभ के, जागत व्हैगो भोर। ‘[1]
रहीम का उक्ति सुनकर महावतखाँ ठहाका लगा कर हँसा। उसने कहा- ‘किस मिट्टी का बना है तू जो इस मुसीबत में भी परिहास करता है!’
[1] महावतखाँ! तू रहीम को भाग्यहीन ही जान जो बड़े घर में चोरी करने के लिये घुस गया और यह सोचते-सोचते सवेरा हो गया कि आज तो बड़ा लाभ हुआ। अर्थात् कुछ प्राप्त किये बिना ही पकड़ा गया।