तैमूर का भारत आक्रमण, मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। वह उस तेज तूफान की तरह आया जो अपने मार्ग में पड़ने वाली हर वस्तु को उजाड़ देता है। वह जिस तेजी से भारत में घुसा, उसी तेजी से वापस चला गया। उसके इस अभियान में लाखों हिन्दू मार डाले गए और लाखों हिन्दू गुलाम बनाकर मध्यएशिया को ले जाये गए। तैमूर के सैनिकों द्वारा लाखों गायें काट कर खाई गईं। तीर्थों की पवित्रता भंग की गई। स्त्रियों के सतीत्व लूटे गए। खेतों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया तथा बड़ी संख्या में हिन्दुओं को मुसलमान बनने पर विवश किया गया।
इस आक्रमण से भारत में इतने बड़े परिवर्तन हुए कि हम इसे भारत में नये युग का आरम्भ करने वाला कह सकते हैं। इस आक्रमण का न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से वरन् सामाजिक तथा आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा महत्त्व है। इस आक्रमण से तैमूर के वंशज भारत के घनिष्ट सम्पर्क में आ गए। तैमूर ने पंजाब अपने राज्य में मिला लिया और खिज्र खाँ को उस प्रान्त का शासन चलाने के लिए गर्वनर नियुक्त कर दिया। जब तक खिज्र खाँ जीवित रहा, तब तक वह समरकन्द की अधीनता में कार्य करता रहा। तैमूर की मृत्यु के उपरान्त उसका साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और खिज्र खाँ के उत्तराधिकारी स्वतंत्रता पूर्वक पंजाब में शासन करने लगे।
तैमूर के वंशज कभी इस बात को नहीं भूले कि कभी पंजाब उनके साम्राज्य का अंग था। इसलिए उनकी दृष्टि सदैव पंजाब पर लगी रहती थी। आगे चलकर जब बाबर ने पंजाब पर आक्रमण किया तब उसने दावा किया कि पंजाब पर उसके पूर्वज तैमूर का अधिकार था। तैमूर के आक्रमण से तुगलक साम्राज्य के प्रान्तपति दिल्ली से स्वतंत्र हो गए। ख्वाजाजहाँ ने जौनपुर में, दिलावर खाँ ने मालवा में तथा मुजफ्फर खाँ ने गुजरात में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। तैमूर के आक्रमण ने तुगलक वंश पर ऐसा घातक प्रहार किया कि थोड़े ही दिनों में उसका अन्त हो गया और दिल्ली में एक नये तुर्की राजवंश की स्थापना हुई।
तैमूर के आक्रमण का भारत पर सांस्कृतिक प्रभाव भी हुआ। भारत के विभिन्न प्रांत छोटे-छोटे राज्यों में बंटकर दिल्ली की छाया से मुक्त हो गए और स्वतंत्रतापूर्वक अपनी संस्कृति का सृजन तथा संवर्धन करने लगे। इस प्रकार मालवा, गुजरात, बंगाल, जौनपुर तथा बहमनी राज्यों में शिल्पकला की वृद्धि हुई। साहित्यिक क्षेत्र में जौनपुर की विशेष रूप से उन्नति हुई। जौनपुर मुस्लिम-साहित्यकारों तथा इस्लामिक विद्वानों का केन्द्र बन गया।
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गुजरात तथा बहमनी राज्यों में भी जौनपुर की भांति मुस्लिम साहित्य की विपुल उन्नति हुई। तैमूर भारत की भव्य शिल्प-कला से अत्यधिक प्रभावित हुआ था और उसने भारतीय कारीगरों को अपने साथ ले जाकर समरकन्द में कई मस्जिदें एवं भवन बनवाये। इससे भारतीय भवन निर्माण कला को विदेशी भूमि पर नया क्षेत्र तथा नया वायुमण्डल प्राप्त हुआ।
भारतीय भवन निर्माण कला ने मध्यएशिया को स्थापत्य कला के सम्मिश्रण से नया स्वरूप प्रदान किया और लगभग सवा-सौ वर्षों के उपरान्त पुनः विदेश से अपनी मातृ-भूमि में इसका प्रत्यागमन हुआ। भारत में इसका अपने नये स्वरूप में मुगल बादशाहों के आश्रय में विकास हुआ जो अपने चरम पर पहुँच गया।
तैमूर के आक्रमण का भारत पर आर्थिक प्रभाव भी पड़ा। इस आक्रमण ने भारत की आर्थिक व्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट कर दी। तैमूर के मार्ग में जितने समृद्ध नगर तथा गांव पड़े, सब नष्ट हो गए क्योंकि आक्रमणकारी जिधर से निकलते, गांवों को लूटते, उजाड़ते, जलाते तथा लोगों की हत्याएं करते जाते थे।
लाखों लोगों के शव खुले में पड़े हुए सड़ते रहे जिससे उत्तर भारत में भांति-भांति के रोग फैल गए। जनता की पीड़ा का कहीं अन्त नहीं था। कृषि तथा व्यापार नष्ट-भ्रष्ट हो गया और अकाल पड़ गया। इससे मानवों एवं पशुओं की मृत्यु हुई। आक्रमणकारी भारत की अपार सम्पत्ति लूटकर अपने देश ले गए और जनता में ऐसा भय और आंतक फैल गया कि लम्बे समय तक उत्तर भारत में हा-हाकार मचा रहा।
तैमूर के आक्रमण और तबाही से उत्तरी भारत में भारतीय समाज का ताना-बाना हिल गया। लोगों का मनोबल टूट कर बिखर गया। वे स्वयं को परास्त और निस्तेज अनुभव करने लगे। उन्होंने अपनी आँखों के सामने अपनी बहिन बेटियों की इज्जत लुटते देखी। अपने पुत्रों और भाइयों के कटे हुए सिरों के ढेर देखे। अपनी गायों को शत्रुओं द्वारा खाये जाते हुए देखा। उन्होंने अपने खेतों और घरों को जलते हुए देखा। वे एक दूसरे से आँख मिलाने लायक नहीं रहे।
चारों तरफ ऐसी भयानक बर्बादी मची कि हिन्दू जाति उस बर्बादी से फिर कभी उबर ही नहीं सके। वह दीर्घकाल के लिए निर्धन और पराजित हो गई। भारत के हिन्दू लम्बे समय तक विदेशी आक्रांताओं से न कोई युद्ध लड़ सके न किसी के समक्ष दृढ़ता पूर्वक खड़े हो सके।
भारत में जो मुसलमान मुहम्मद गौरी के समय से रह रहे थे, उनमें विजेता होने का भाव था और वे हिन्दू प्रजा को अपने से नीचे के स्तर का समझते थे किंतु तैमूर की सेना ने भारत में रह रहे मुसलमानों को भी नहीं बख्शा तथा उनका भी कत्लेआम मचाया। इससे कुछ समय के लिए भारत के हिन्दू तथा मुसलमान एक ही धरातल पर खड़े हुए दिखाई दिए। सुप्रसिद्ध इतिहासकार किशोरी शरण लाल ने लिखा है कि इस आक्रमण से हिन्दुओं तथा मुसलमानों में एकता की भावना उत्पन्न हुई किंतु यह बात सही प्रतीत नहीं होती।
तैमूर की वापसी के बाद सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद, अपने वजीर मल्लू इकबाल खाँ के भय से कन्नौज की तरफ भाग गया तथा दिल्ली पर वजीर मल्लू इकबाल खाँ का शासन स्थापित हो गया। कुछ दिन बाद मल्लू इकबाल खाँ ने पंजाब के प्रांतपति खिज्र खाँ सैयद के विरुद्ध अभियान किया जिसे तैमूर लंग ने भारत में अपना गवर्नर नियुक्त किया था। खिज्र खाँ सैयद ने मल्लू खाँ को मार दिया। इससे दिल्ली का तख्त खाली हो गया और एक अफगान सरदार दौलत खाँ लोदी ने दिल्ली को अपने अधिकार में ले लिया।
ई.1412 में सुल्तान नासिरुद्दीन महमूदशाह तुगलक की मृत्यु हो गई तथा ई.1414 में खिज्र खाँ सैयद ने दिल्ली पर अधिकार करके दिल्ली में एक नए शासक वंश की स्थापना की जिसे भारत के इतिहास में सैयद वंश कहा जाता है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता