Sunday, December 22, 2024
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अहमदशाह अब्दाली का कहर

उत्तर भारत के लोगों पर अहमदशाह अब्दाली का कहर ठीक वैसा ही था जैसा उसके पूर्ववर्ती आक्रांताओं मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी, तैमूर लंग, बाबर और नादिरशाह आदि रक्त-पिपासुओं ने ढाया था। अहमदशाह अब्दाली ने निर्दोष हिन्दुओं के सिर काटकर उनकी मीनारें बनवाईं।

जब महाराजा सूरजमल ने अहमदशाह अब्दाली के आदेश को मानने से मना कर दिया तो फरवरी 1757 में अब्दाली ने महाराजा सूरजमल के राज्य पर आक्रमण के लिये दिल्ली से प्रस्थान किया। महाराजा सूरजमल ने अपने पुत्र जवाहरसिंह को मथुरा की रक्षा के लिए नियुक्त किया।

एक दिन राजकुमार जवाहरसिंह ने अचानक ही अब्दाली की सेना पर आक्रमण किया और उसके बहुत से सैनिकों को मारकर बल्लभगढ़ में जा बैठा। इस पर अब्दाली ने बल्लभगढ़ का रुख किया। अब्दाली ने बल्लभगढ़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। बल्लभगढ़ के दुर्ग में अब्दाली को केवल 12 हजार रुपये, सोने-चांदी के कुछ बर्तन, 14 घोड़े, 11 ऊँट और कुछ अनाज हाथ लगा। इसके साथ ही ब्रज क्षेत्र पर अहमदशाह अब्दाली का कहर आरम्भ हो गया।

राजकुमार जवाहरसिंह अपने आदमियों के साथ रात के अंधेरे का लाभ उठाकर बल्लभगढ़ से जीवित ही निकल गया। इससे चिढ़कर अब्दाली ने बल्लभगढ़ के समस्त नर-नारियों को मार डाला। इन मनुष्यों के सिर काटकर गठरियों में बांध कर घोड़ों पर रख दिये गये। कुछ लोगों को पकड़कर घोड़ों के पीछे बांध दिया गया ताकि वे भी कटे हुए सिरों को उठा सकें। यह अहमदशाह अब्दाली का कहर था।

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प्रातःकाल होने पर लोगों ने देखा कि प्रत्येक घुड़सवार एक घोड़े पर चढ़ा हुआ था। उसने उस घोड़े की पूंछ के साथ दस से बीस घोड़ों की पूंछों को बांध रखा था। समस्त घोड़ों पर लूट का सामान लदा हुआ था तथा बल्लभगढ़ से पकड़े गये स्त्री-पुरुष बंधे हुए थे। प्रत्येक आदमी के सिर पर कटे हुए सिरों की गठरियां रखी हुई थीं। अहमदशाह के सामने कटे हुए सिरों की मीनारें बनायी गईं। जो लोग इन सिरों को अपने सिरों पर रख कर लाये थे, उनसे पहले तो चक्की पिसवाई गयी तथा उसके बाद उनके भी सिर काटकर मीनार में चिन दिये गये।

जब अहमदशाह अब्दाली बल्लभगढ़ पर आक्रमण करने गया तब उसने नजीबुद्दौला तथा जहान खाँ को 20 हजार सिपाही देकर निर्देश दिये- ‘उस अभागे जाट के राज्य में घुस जाओ। उसके हर शहर और हर जिले को लूटकर उजाड़ दो। मथुरा नगर हिन्दुओं का तीर्थ है। मैंने सुना है कि सूरजमल वहीं है। इस पूरे शहर को तलवार के घाट उतार दो। जहाँ तक बस चले, उसके राज्य में और आगरा तक कुछ मत रहने दो। कोई चीज खड़ी न रहने पाये। उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि मथुरा में एक भी आदमी जीवित न रहे तथा जो मुसलमान किसी विधर्मी का सिर काटकर लाये उसे पाँच रुपया प्रति सिर के हिसाब से ईनाम दिया जाये।’

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इसके बाद अहमदशाह अब्दाली ने मथुरा पर आक्रमण किया। मथुरा से आठ मील पहले चौमुहा में राजकुमार जवाहरसिंह ने दस हजार जाट सैनिकों को लेकर अब्दाली का मार्ग रोका। नौ घण्टे तक दोनों पक्षों में भीषण लड़ाई हुई जिसमें जाट सैनिक परास्त हो गये। जाटों को भारी क्षति उठानी पड़ी। इसके बाद अब्दाली की सेना ने मथुरा में प्रवेश किया। 1 मार्च 1757 को अब्दाली मथुरा में घुसा, उस दिन होली के त्यौहार को बीते हुए दो ही दिन हुए थे।

अहमदशाह के सिपाहियों ने माताओं की छाती से दूध पीते बच्चों को छीनकर मार डाला। हिन्दू सन्यासियों के गले काटकर उनके साथ गौओं के कटे हुए गले बांध दिये। मथुरा के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को नंगा किया गया। जो पुरुष मुसलमान निकले उन्हें छोड़ दिया गया, शेष को मार दिया गया। जो औरतें मुसलमान थीं उनकी इज्जत लूट कर उन्हें जीवित छोड़ दिया गया तथा हिन्दू औरतों को इज्जत लूटकर मार दिया गया। मथुरा में विध्वंस मचाकर 6 मार्च 1757 को अहमदशाह अब्दाली ने वृंदावन की ओर रुख किया। वहाँ भी वही सब दोहराया गया जो बल्लभगढ़ और मथुरा में किया गया था। चारों ओर मनुष्यों के शवों के ढेर लग गये।

यह एक आश्चर्य की बात लग सकती है कि जिस समय अहमदशाह बल्लभगढ़, मथुरा और वृंदावन में कत्लेआम मचा रहा था, उस समय महाराजा सूरजमल डीग में बैठा था किंतु इसमें सूरजमल की सोची-समझी रणनीति काम कर रही थी। वह जानता था कि किले से बाहर निकलकर, वह अफगानिस्तान से आई सेना का मुकाबला नहीं कर सकेगा किंतु यदि अफगानिस्तान की सेना डीग, कुम्हेर अथवा भरतपुर पर आक्रमण करती है तो उसे इन तीन दुर्गों के मकड़जाल में फांसकर मारा जा सकता है।

सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि जो मराठे हिन्दू पदपादशाही स्थापित करने का स्वप्न देखते न थकते थे, उन्होंने इस विपत्ति में स्वयं को उत्तर भारत से दूर रखा। भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और लीला स्थली बुरी तरह नष्ट-भ्रष्ट की गईं किंतु नाना साहब पेशवा के मराठा योद्धाओं की धर्म के प्रति निष्ठा नहीं जाग सकी। पेशवा बालाजी बाजीराव को भारत के इतिहास में नाना साहब के नाम से भी जाना जाता है।

मथुरा और वृंदावन में हिन्दुओं का इतना रक्त बहा कि यमुना का पानी लाल हो गया। यमुना के तट पर शिविर गाढ़कर पड़ी हुई अब्दाली की सेना को वही रक्त-रंजित पानी पीना पड़ा। इससे अब्दाली की फौज में हैजा फैल गया और सौ-डेढ़ सौ आदमी प्रतिदिन मरने लगे। अनाज की कमी के कारण अब्दाली की सेना घोड़ों का मांस खाने लगी। इससे घोड़ों की कमी होने लगी।

अफगानिस्तान से आए हाड़-मांस से बने इंसानों को तो भारत में रह रहे इंसानों पर दया नहीं आई किंतु हिन्दुओं की पूज्य यमुना नदी इस काल में हिन्दुओं की रक्षा करने के लिए आगे आई। यमुना के रक्त रंजित जल को पीकर अब्दाली की सेना में हैजे का प्रकोप दिन पर दिन उग्र होने लगा किंतु अब्दाली ने इस बात की परवाह किये बिना, 21 मार्च 1757 को आगरा पर आक्रमण कर दिया।

अब्दाली को ज्ञात हुआ था कि दिल्ली से बहुत से व्यापारी तथा अमीर, अपना धन लेकर आगरा भाग आये हैं। इसलिये अब्दाली जितनी जल्दी हो सके आगरा को लूटना चाहता था। उसके पंद्रह हजार घुड़सवार आगरा में घुसकर लूट मचाने लगे। ठीक इसी समय अब्दाली की सेना में हैजे का प्रकोप इतना उग्र हो गया कि अब्दाली के जीवित बचे सैनिकों ने भारत में रहकर लड़ने से मना कर दिया और वे अपने घरों को लौटने के लिये विद्रोह करने पर उतारू हो गये।

इस पर अब्दाली ने अपना अभियान समाप्त कर दिया और दिल्ली के बादशाह आलमगीर (द्वितीय) को संदेश भिजवाया कि हम अपना अभियान समाप्त करके दिल्ली लौट रहे हैं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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