सदाशिव राव भाऊ मराठों का बड़ा सेनापति था। वह पेशवा नाना साहब प्रथम का चचेरा भाई था। अपने घमण्डी स्वभाव के कारण उसने मराठों की सेना को बड़े संकट में डाल दिया। जब अहमदशाह अब्दाली भारत के घावों से फिर से रक्त निकालने के लिए आया तो सदाशिव राव भाऊ नितांत अविवेकी सिद्ध हुआ।
हम चर्चा कर चुके हैं कि ई.1756 में अहमदशाह अब्दाली ने अपने पुत्र तिमूरशाह को लाहौर का सूबेदार बनाया था तथा मुगल बादशाह आलमगीर (द्वितीय) ने तिमूरशाह से अपनी पुत्री जौहरा बेगम का विवाह करके तिमूरशाह को लाहौर का सूबेदार स्वीकार कर लिया था किंतु ई.1758 में मराठों ने तिमूरशाह को लाहौर से मार भगाया तो अहमदशाह अब्दाली के लिए आवश्यक हो गया कि वह एक बार फिर भारत पर आक्रमण करे।
ईस्वी 1760 में अहमदशाह अब्दाली ने फिर से दिल्ली का रुख किया। इस बार वह पहले से भी अधिक विशाल सेना लेकर आया।
इस बार उसके तीन लक्ष्य थे। उसका पहला लक्ष्य था मीर बख्शी इमादुलमुल्क जिसने अब्दाली द्वारा नियुक्त नजीब खाँ को मीर बख्शी के पद से हटा दिया था। अहमदशाह का दूसरा लक्ष्य था मराठा सरदार सदाशिव राव भाउ जिसने तिमूरशाह को लाहौर से मारकर भगा दिया था। अब्दाली का तीसरा लक्ष्य था महाराजा सूरजमल जाट जिसने पिछले अभियान में 10 लाख रुपए देने का वादा किया था किंतु उसने अब्दाली को फूटी कौड़ी भी नहीं दी थी।
जिस समय अहमदशाह अब्दाली अफगानिस्तान से रवाना हुआ, ठीक उसी समय दक्षिण भारत में स्थित मैसूर राज्य के शासक हैदर अली ने दक्षिण की ओर से मराठों पर आक्रमण किया। हैदरअली ने कुछ ही समय पहले मैसूर के हिन्दू शासक एवं उसकी माता को बंदी बनाकर मैसूर का राज्य हड़प लिया था। नए बादशाह शाहआलम (द्वितीय) ने सोचा कि उत्तर की ओर से अहमदशाह अब्दाली तथा दक्षिण की ओर से हैदर अली मराठों को पीसकर नष्ट कर देंगे। इसलिए बादशाह ने मराठों की पसंद के वजीरों को हटाकर अवध के नवाब शुजाउद्दौला को अपना मुख्य वजीर तथा रूहेला सरदार नजीबउद्दौला उर्फ नजीब खाँ को मुख्तार खास नियुक्त कर दिया।
जब मराठों को यह ज्ञात हुआ कि अहमदशाह अब्दाली फिर से दिल्ली की ओर आ रहा है तो पेशवा नानासाहब ने अब्दाली का मार्ग रोकने के लिये अपने भतीजे सदाशिव राव भाऊ के नेतृत्व में एक विशाल सेना दिल्ली की ओर रवाना की। 7 मार्च 1760 को सदाशिव राव भाऊ दक्षिण से चला।
सदाशिव राव अब तक राजपूताना से लेकर दिल्ली, गंगा-यमुना के दोआब एवं पंजाब में लाहौर तथा मुल्तान तक कई लड़ाइयां जीत चुका था इसलिए वह अपनी जीत के प्रति आवश्यकता से अधिक आश्वस्त था। सदाशिवराव भाउ तथा अन्य मराठा सदार अपने साथ भारी-भरकम लवाजमा लेकर रवाना हुए। उन्होंने अपने परिवारों की स्त्रियों, नृत्यांगनाओं, रखैलों और दासियों को भी अपने साथ ले लिया। लगभग चालीस हजार मराठा स्त्री-पुरुष एवं बच्चे उत्तर भारत के तीर्थों की यात्रा के उद्देश्य से इस मराठा सेना के साथ हो लिए।
युद्ध क्षेत्र में पहुंचने से पहले मराठा सेनापतियों एवं उनके परिवारों ने पुष्कर, गढ़मुक्तेश्वर और प्रयागराज आदि तीर्थों में डुबकियां लगाईं और काशी में विश्वनाथ के दर्शन किये। वे बड़ी ही लापरवाही से दिल्ली की ओर बढ़े।
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सदाशिव राव भाऊ पेशवा नाना साहब का भतीजा तथा चिम्माजी अप्पा का सिरफिरा और घमण्डी पुत्र था। उसे शत्रु और मित्र की पहचान नहीं थी। फिर भी उसे महाराजा सूरजमल के महत्व की जानकारी थी और उसने महाराजा तथा उसकी सेना को अब्दाली के विरुद्ध अपने साथ ले चलने की इच्छा व्यक्त की। भाऊ ने महाराजा सूरजमल को मराठों की तरफ से लड़ने का निमंत्रण भिजवाया।
महाराजा सूरजमल इस शर्त पर मराठों को अपने 10 हजार सैनिकों सहित सहायता देने को तैयार हो गया कि मराठे भरतपुर राज्य में उपद्रव नहीं करेंगे तथा चौथ वसूली के लिये तकाजे करके उसे तंग नहीं करेंगे।
मराठों ने सूरजमल की ये शर्तें स्वीकार कर लीं। 8 जून 1760 को सदाशिव राव भाऊ ने मराठा सैनिकों पर, जाटों को सताने या उनके क्षेत्र में लूटपाट करने पर रोक लगा दी। इसके बदले में सूरजमल ने मराठों को एक माह के उपयोग जितनी खाद्य सामग्री प्रदान की।
आगरा से 20 मील दूर बाणगंगा नदी के तट पर सदाशिव राव भाऊ ने डेरा लगाया। वहीं से उसने महाराजा सूरजमल को लिखा कि वह अपनी सेना को लेकर आ जाये। महाराजा को भाऊ पर विश्वास नहीं हुआ। इस पर मल्हारराव होल्कर तथा सिन्धिया ने सूरजमल की सुरक्षा के लिये शपथ-पूर्वक वचन दिया।
30 जून 1760 को सूरजमल अपने 10 हजार सैनिक लेकर भाऊ के शिविर में पहुंचा। भाऊ ने स्वयं दो मील आगे आकर सूरजमल का स्वागत किया। भाऊ ने यमुनाजी का जल हाथ में लेकर सूरजमल के प्रति अपनी मित्रता की प्रतिज्ञा दोहराई।
सदाशिव राव भाऊ ने महाराजा सूरजमल की सलाह पर मथुरा में एक युद्ध परिषद आहूत की जिसमें मीर बख्शी इमादुलमुल्क को भी बुलाया गया। इस युद्ध परिषद में सबसे सुझाव मांगे गये कि अहमदशाह अब्दाली का सामना किस प्रकार किया जाये।
महाराजा सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को सलाह दी कि मराठा महिलाएं, अनावश्यक सामान और बड़ी तोपें जो इस लड़ाई में कुछ काम न देंगी, चम्बल के पार ग्वालियर तथा झांसी के किलों में भेज दी जायें और सदाशिवराव हल्के शस्त्रों से सुसज्जित रहकर अब्दाली का सामना करे। यदि मराठा सरदार अपनी महिलाओं को इतनी दूर न भेजना चाहें तो भरतपुर राज्य के किसी भी किले में भिजवा दें।
महाराजा सूरजमल ने भाऊ को यह भी सलाह दी कि अब्दाली से आमने-सामने की लड़ाई करने के स्थान पर छापामार युद्ध किया जाये तथा बरसात तक उसे अटकाये रखा जाये। जब बरसात आयेगी तो अब्दाली हिल भी नहीं पायेगा और संभवतः तंग आकर वह अफगानिस्तान लौट जाये।
सूरजमल को विश्वास था कि मराठों को सिक्खों तथा बनारस के हिन्दू राजा से भी सहायता प्राप्त होगी। क्योंकि अब्दाली ने सिक्खों का बहुत नुक्सान किया था। इसी प्रकार बनारस का राजा बलवंतसिंह अवध के नवाब शुजाउद्दौला का शत्रु था।
मल्हारराव होलकर ने महाराजा सूरजमल के बहुमूल्य सुझावों का समर्थन किया किंतु सदाशिव राव भाऊ अविवेकी व्यक्ति था, उसने सूरजमल के व्यावहारिक सुझावों को मानने से मना कर दिया।
वह न तो बरसात तक रुकने के पक्ष में था, न मराठा औरतों को युद्ध के मैदान से दूर रखने के पक्ष में था और न छापामार युद्ध करने के पक्ष में था। सदाशिव राव को अपने घमण्ड के कारण अब्दाली और उसकी सेना मच्छरों की भांति निर्बल लगती थी। इसलिए वह अब्दाली तथा उसकी सेना को तत्काल ही मसल कर नष्ट कर देना चाहता था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता