एक तरफ चाँद के नहीं रहने से और दूसरी तरफ मुराद के मर जाने से खानखाना सभी तरह की दुविधाओं से बाहर निकल आया था और वह दक्षिण में जबर्दस्त दबाव बना रहा था। खानखाना के पुत्र एरच ने भी पिता का बहुत साथ दिया और मलिक अम्बर जैसे दुर्दांत शत्रु को वह लगातार पीटता जा रहा था। उधर शहजादा दानियाल, अपने श्वसुर अब्दुर्रहीम और साले ऐरच के मजबूत हाथों में दक्खिन का अभियान सौंप कर स्वयं शराब में डूब गया।
अकबर को जब दानियाल के बारे में तरह-तरह के समाचार मिलने लगे तो उसने दानियाल को लिखा कि वह आगरा आ जाये। दानियाल कतई नहीं चाहता था कि वह बादशाह के सामने जाये। वहाँ जाने से उसकी शराब और मौज-मस्ती में विघ्न पड़ जाने की पूरी-पूरी संभावना थी। अतः उसने बादशाह को पत्र भिजवाया कि खानखाना एक नम्बर का हरामखोर है। उस पर दृष्टि रखने के लिये मेरा दक्षिण में ही रहना आवश्यक है। इस पर अकबर ने उसे वापिस पत्र भिजवाया और लिखा कि मैं जानता हूँ कि हरामखोर कौन है! तू शराब पीने के लिये ही मेरे से दूर रहना चाहता है। खानखाना तेरी तरह से शराब नहीं पीता। तेरी तरह से झूठ नहीं बोलता। न ही तेरी तरह विश्वस्त सेवकों पर मिथ्या दोषारोपण करता है। तू फौरन आगरा चला आ अन्यथा भविष्य में तुझसे कोई सम्बंध नहीं रखूंगा।
इस पर भी दानियाल आगरा नहीं गया। अकबर ने क्रोधित होकर खानखाना को बहुत भला-बुरा लिखा कि तेरे रहते हुए भी दानियाल मौत के मुँह में जा रहा है। यदि दानियाल की शराब पर पाबंदी न लगायी तो मुझसा बुरा कोई नहीं होगा।
खानखाना ने दानियाल पर पहरा बैठा दिया और किसी को भी शहजादे के डेरे में शराब ले जाने की मनाही कर दी। इस पर भी दानियाल की चापलूसी में लगे हुए नमक हराम लोग बंदूक की नालियों में तेज शराब भरकर ले जाते और दानियाल को पिलाते। खानखाना इस बात को नहीं जान सका और एक दिन दानियाल अत्यधिक शराब पीकर मर गया।
जब खानखाना को मालूम हुआ कि शराब भीतर कैसे पहुँचाई जाती थी तो उसने नमक हराम लोगों को मृत्युदण्ड दिया लेकिन जाने वाला जा चुका था। उसे किसी तरह नहीं लौटाया जा सकता था।
दानियाल की मृत्यु से सबसे बड़ा कहर खानखाना पर ही टूटा था। उसकी बेटी जाना बेगम विधवा हो गयी। जाना बेगम ने दानियाल के शव के साथ ही मर जाने की चेष्टा की किंतु खानखाना ने किसी तरह बेटी को ऐसा करने से रोका।
जाना बेगम ने अपने पिता के कहने से जान तो नहीं दी किंतु उसने सदा-सदा के लिये फटे हुए, मैले-कुचैले कपड़े पहन लिये। पत्नी की मृत्यु के बाद खानखाना पर यह दूसरा कहर था। उससे बेटी का मुँह देखा नहीं जाता था। वह अंदर से टूटने लगा।