सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी ने एक ओर तो मुस्लिम अमीरों एवं जनता की निजी सम्पत्ति छीन ली तथा दूसरी ओर हिन्दू जमींदारों की भूमि को खालसा घोषित करके उन्हें निर्धनता के गर्त में धकेल दिया। अल्लाउद्दीन खिलजी ने किसानों पर पचास प्रतिशत मालगुजारी लगाकर, व्यापारियों पर चुंगी लगाकर एवं समस्त हिंदुओं पर जजिया तथा तीर्थकर आदि लगाकर उनका धन छीन लिया।
अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपने उन सैनिकों का भी भला नहीं किया जिनके बल पर वह अपने राज्य का विस्तार कर रहा था और भारत भर के हिन्दू राजाओं को लूटकर अपना खजाना भर रहा था। उसने सैनिकों को राज्य की ओर से दी गई समस्त प्रकार की भूमि छीनकर उन्हें विशुद्ध वेतन पर नौकरी प्रदान की।
अल्लाउद्दीन खिलजी जानता था कि तुर्की अमीर तो विद्रोही प्रकृति के थे ही किंतु गैर-तुर्की अमीर भी कुछ कम बदमाश नहीं थे। वे सब अपने-अपने गुट बनाकर सुल्तान को वश में करने के लिए षड़यंत्र एवं विद्रोह रचते रहते थे। अल्लाउद्दीन खिलजी की स्वेच्छाचारिता तथा निरंकुशता की नीति से बहुत से तुर्की एवं गैर-तुर्की अमीरों में उसके विरुद्ध अत्यधिक असन्तोष पनप गया।
उस काल में दिल्ली में हाजी मौला नामक एक असन्तुष्ट अधिकारी रहता था। वह काजी अलाउलमुल्क की मृत्यु के उपरान्त दिल्ली का कोतवाल बनना चाहता था। उसने अल्लाउद्दीन खिलजी के समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त की परन्तु अल्लाउद्दीन खिलजी ने तमर्दी नामक एक अन्य अधिकारी को दिल्ली का कोतवाल बना दिया।
इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-
सुल्तान के इस निर्णय से हाजी मौला को बड़ी निराशा हुई और वह सुल्तान के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा। जब सुल्तान रणथम्भौर के घेरे के दौरान सकंटापन्न स्थिति में था, तब हाजी मौला ने दिल्ली के कोतवाल तमर्दी की हत्या करके राजकोष पर अधिकार कर लिया। इस पर अल्लाउद्दीन ने उलूग खाँ को उसका दमन करने के लिए भेजा परन्तु उसके दिल्ली पहुँचने के पहले ही हमीदुद्दीन नामक एक सैनिक ने हाजी मौला की हत्या कर दी। अल्लाउद्दीन खिलजी के आदेश से हाजी मौला के समस्त सम्बन्धियों तथा समर्थकों की भी निर्दयता पूर्वक हत्या कर दी गई ताकि भविष्य में फिर कभी कोई व्यक्ति सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह करने की न सोचे।
पाठकों को स्मरण होगा कि अल्लाउद्दीन ने जलाली अमीरों को तो पहले ही नष्ट कर दिया था जिन्होंने धन अथवा पद के प्रलोभन से विरोधियों का साथ दिया था। उनकी सम्पत्ति छीनकर उनकी आँखें निकलवा ली थीं और उन्हें जेल में बंद कर दिया था। अब सुल्तान ने अन्य विरोधी अमीरों को उन्मूलित करने के लिए अनेक उच्च पदाधिकारियों तथा उनके सम्बन्धियों को विष दिलवा कर मरवा दिया।
अल्लाउद्दीन ने अनुभव किया कि सल्तनत का गुप्तचर विभाग ढंग से कार्य नहीं कर रहा है। इस कारण सुल्तान को समय रहते षड़यंत्रों तथा साम्राज्य के विभिन्न भागों में घटने वाली घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती। इसलिए सुल्तान ने गुप्तचर-विभाग का नए सिरे से संगठन किया। गुप्तचरों को अमीरों तथा राज्याधिकारियों के घरों, कार्यालयों, नगरों तथा गाँवों में नियुक्त किया गया। इससे अमीरों के बारे में छोटी से छोटी सूचना सुल्तान तक पहुँचने लगी। इसका परिणाम यह हुआ कि अमीरों, राज्याधिकारियों तथा साधारण लोगों की गुप्त बैठकें समाप्त हो गईं।
अल्लाउद्दीन ने यह भी अनुभव किया कि सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह का एक बड़ा कारण अमीरों की मद्यपान गोष्ठियों में होने वाली चर्चाएं हैं। इन गोष्ठियों में सुल्तान तथा अन्य अमीरों के विरुद्ध षड्यन्त्र रचे जाते थे। अतः अमीरों द्वारा किए जाने वाले मद्यपान को रोकना आवश्यक समझा गया। अल्लाउद्दीन ने स्वयं मद्यपान त्याग दिया और अन्य लोगों को भी शराब पीने से रोक दिया। अल्लाउद्दीन ने शराब पीने के अपने बहुमूल्य बर्तन तुड़वा दिए और आज्ञा दी कि दिल्ली में जितनी शराब है वह सड़कों पर फैंक दी जाये।
सुल्तान की आज्ञा का पालन किया गया और दिल्ली की सड़क शराब से भर गयी। सुल्तान ने यह भी आज्ञा दी कि यदि कोई व्यक्ति मद्यपान किये हुए मिले तो उसे दिल्ली के बाहर एक गड्ढे में फिंकवा दिया जाय। सुल्तान की आज्ञा का उल्लंघन करने वालों को कठोर दण्ड देने की व्यवस्था की गई।
अमीरों के परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध एवं दावतें भी विद्रोहों का कारण समझी गईं। इनके माध्यमों से अमीरों को धड़ेबंदी करने एवं सुल्तान के विरुद्ध संगठित होने का अवसर मिलता था। इस कारण जब कभी किसी एक अमीर के विरुद्ध कार्यवाही की जाती थी, तब उस गुट के अन्य अमीर भी विद्रोह पर उतर आते थे।
अल्लाउद्दीन खिलजी ने अमीरों की दावतें बन्द करवा दीं और उन्हें एक-दूसरे के यहाँ आने-जाने तथा दावत करने से मना कर दिया। बिना सुल्तान की आज्ञा के अमीर लोग परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध भी नहीं स्थापित कर सकते थे। इससे अमीरों के गुट धीरे-धीरे समाप्त होने लगे।
अल्लाउद्दीन के पूर्ववर्ती सुल्तानों की कमजोरी एवं उनकी हत्याओं के सिलसिले का लाभ उठाकर कुछ अमीरों ने अत्यधिक धन एकत्रित कर लिया था। इस धन का उपयोग सुल्तान के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने में होता था। धन कमाने की चिंता नहीं होने के कारण अमीरों को विद्रोहों के बारे में सोचने का अवकाश प्राप्त हो जाता था।
अल्लाउद्दीन खिलजी ने तरह-तरह के आरोप लगाकर धनी अमीरों की सम्पत्ति को छीनना आरम्भ किया जो उन लोगों को जागीर, इनाम अथवा दान के रूप में प्राप्त हुई थी। बहुत से लोगों की पेन्शनें छीन ली गईं। जिन्हें कर-मुक्त भूमि मिली थी, उनकी भूमि पर फिर से कर लगा दिया गया। इससे सुल्तान को पर्याप्त धन मिल गया और अमीरों की समृद्धि पर अंकुश लग गया। इस कारण वेश्याओं के अड्डे उजड़ गए। नाच-गाने और मुजरे बंद हो गए।
अल्लाउद्दीन ने अनुभव किया कि दिल्ली से दूर स्थित प्रांतीय एवं स्थानीय शासकों पर सुल्तान का प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं होने से, उन्हें भी दिल्ली के अमीरों की भांति धन एकत्रित करने तथा उसकी सहायता से विद्रोह करने का अवसर प्राप्त हो जाता था। इसलिए अल्लाउद्दीन खिलजी ने प्रांतीय सेनाओं पर अपना सीधा नियन्त्रण स्थापित करके प्रांतपतियों की शक्ति को कम करने का प्रयत्न किया।
अल्लाउद्दीन ने प्रान्तों में रहने वाली सेना की नियुक्ति तथा सैनिकों का नियन्त्रण, स्थानान्तरण, पद-वृद्धि आदि सारे कार्य अपने हाथ में ले लिये। उसने इस बात पर जोर दिया कि प्रान्तपति निर्धारित संख्या में सैनिक रखें तथा उन्हें पूरा वेतन दें। सुल्तान के इन उपायों से प्रांतपतियों पर भी सुल्तान का नियंत्रण स्थापित हो गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता