कई इतिहासकारों की दृष्टि में अल्लाउद्दीन खिलजी दिल्ली के सुल्तानों में सर्वश्रेष्ठ था किंतु कई अन्य इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं हैं। वी. ए. स्मिथ ने उसके शासन को सर्वथा गौरवहीन बताते हुए लिखा है कि वह वास्तव में बड़ा ही बर्बर तथा क्रूर शासक था और न्याय का बहुत कम ध्यान रखता था। इसके विपरीत एल्फिन्स्टन के विचार में अल्लाउद्दीन का शासन बड़ा ही गौरवपूर्ण था।
जो विद्वान अल्लाउद्दीन को दिल्ली सल्तनत का सर्वश्रेष्ठ सुल्तान मानते हैं उनका मानना है कि अल्लाउद्दीन एक वीर सैनिक तथा कुशल सेनानायक था। वह महत्त्वाकांक्षी, साहसी, दृढ़प्रतिज्ञ तथा प्रतिभावान शासक था। दिल्ली के सुल्तानों में कोई भी ऐसा नहीं है जौ सैनिक दृष्टिकोण से उसकी समता कर सके। सुल्तान में ऐसे गुण थे कि जो भी लोग उसकी अधीनता में कार्य करते थे, वे उसके अनुगामी हो जाते थे और सदैव सुल्तान के हित-साधन में संलग्न रहते थे।
यद्यपि अल्लाउद्दीन के पूर्ववर्ती तुर्क सुल्तानों ने भी भारत विजय का कार्य किया था परन्तु लगभग सम्पूर्ण भारत में तुर्क साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक अल्लाउद्दीन खिलजी ही था। उसने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं से प्रेरित होकर साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया और एक अत्यन्त विशाल साम्राज्य की स्थापना की।
साम्राज्य संस्थापक के रूप में अल्लाउद्दीन ने तीन बड़े कार्य किए-
1. उत्तर भारत के राजपूत राज्यों पर विजय, जिससे अब तक के सुल्तान बचते रहे थे।
2. दक्षिण भारत की विजय जिसे करने की हिम्मत किसी अन्य सुल्तान ने नहीं की थी।
3. पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था।
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अल्लाउद्दीन के केवल ये तीन कार्य ही उसे दिल्ली के सुल्तानों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान करने के लिए पर्याप्त हैं। अल्लाउद्दीन ने लगभग बीस वर्ष तक अत्यन्त सफलतापूर्वक शासन किया। उसके सम्पूर्ण शासन काल में शान्ति तथा सुव्यवस्था स्थापित रही। राज्य में चोरी, डकैती तथा लूटमार नहीं होती थी। उसका दण्ड विधान इतना कठोर था कि लोगों को अपराध करने तथा झगड़ा करने का साहस नहीं होता था।
अल्लाउद्दीन में उच्चकोटि की मौलिकता थी। उसके पूर्ववर्ती सुल्तानों ने जो संस्थाएं स्थापित की थीं, अल्लाउद्दीन उनसे संन्तुष्ट नहीं रहा और उसने उन संस्थाओं में कई बड़े परिवर्तन किये। उसने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए स्थायी सेना की व्यवस्था, भूमि सम्बधी नियमों का निर्माण, बाजारों का प्रबंधन आदि ऐसे कार्य किए जो उससे पहले किसी ने नहीं किए थे।
इन इतिहासकारों की दृष्टि में अल्लाउद्दीन खिलजी दिल्ली का प्रथम सुल्तान था जिसने सम्पूर्ण उत्तरी भारत तथा दक्षिण पर सत्ता स्थापित करके राजनीतिक एकता स्थापित की। उसने प्रान्तीय शासन को केन्द्रीय शासन के अनुशासन तथा नियंत्रण में लाकर शासन में एकरूपता स्थापित की। इल्तुतमिश ने मुल्ला-मौलवियों को राज्यकार्य में हस्तक्षेप करने की पूरी छूट दी थी जबकि रजिया ने मुल्ला-मौलवियों को मुंह नहीं लगाया। बलबन ने मुल्ला-मौलवियों को सिर पर तो बैठाया किंतु उन्हें राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। मुल्ला-मौलवियों के मामले में अल्लाउद्दीन ने बलबन की नीति का अनुसरण किया।
अल्लाउद्दीन की शासन-व्यवस्था का महत्त्व इस बात से प्रकट होता है कि शेरशाह सूरी तथा अकबर ने भी अपनी शासन व्यवस्था में उसके सिद्धांतों का समावेश किया। अल्लाउद्दीन स्वयं शिक्षित नहीं था परन्तु उसके दरबार में अमीर खुसरो, जियाउद्दीन बरनी तथा अमीर हसन आदि विद्वान रहते थे। अल्लाउद्दीन ने कई दुर्ग, मस्जिद एवं महल बनवाए।
अल्लाउद्दीन को श्रेष्ठ मानने वाले इतिहासकारों के अनुसार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर उसे दिल्ली के सुल्तानों में सर्वोत्कृष्ट स्थान मिलना चाहिए किंतु जो इतिहासकार अल्लाउद्दीन खिलजी को दिल्ली के सुल्तानों में सर्वश्रेष्ठ नहीं मानते, उनके अनुसार अल्लाउद्दीन ने कोई ऐसा कार्य नहीं किया जो स्थायी हो सका।
अल्लाउद्दीन के समकालीन शेख वशीर दीवाना ने लिखा है- ‘अल्लाउद्दीन के राज्य की कोई स्थायी नींव नहीं थी और खिलजी वंश के विनाश का कारण अल्लाउद्दीन के शासन की स्वाभाविक दुर्बलता थी।’
जदुनाथ सरकार ने लिखा है- ‘स्वेच्छाचारी शासन स्वभावतः अनिश्चित तथा अस्थायी होता है।’ अल्लाउद्दीन का शासन भी स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश था। राज्य की सारी शक्तियां केवल सुल्तान में केन्द्रीभूत थीं। इसलिए अल्लाउद्दीन का शासन अच्छा नहीं माना जा सकता और न ही उसे दिल्ली सल्तनत का सबसे महान सुल्तान माना जा सकता है। अल्लाउद्दीन ने अपनी सेना के बल पर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी और सेना के बल पर ही बीस साल तक उस पर शासन किया था। जिस सुल्तान का शासन जनता की इच्छा पर आधारित नहीं होकर सैनिक शक्ति द्वारा चलाया जाये, वह महान् नहीं माना जा सकता।
यदि हम इतिहासकारों की राय से निरपेक्ष होकर आकलन करें तो हम जान लेते हैं कि अल्लाउद्दीन का शासन बड़ा ही क्रूर, निर्दयी तथा गौरवहीन था। वह बर्बरता तथा नृशंसता के साथ लोगों को दण्ड देता था। साधारण अपराधों के लिए भी अंग-भंग तथा मृत्यु दण्ड दिया करता था। वह बड़ा ही स्वार्थी था और अपने हित के लिए अपने निकटतम सम्बन्धियों एवं राज्याधिकारियों की हत्या करने में संकोच नहीं करता था।
सुल्तान का व्यक्तिगत जीवन बड़ा ही घृणित था। वह अस्वाभाविक संसर्ग का व्यसनी था। उसने दूसरे राजा की पत्नी छीनकर उसे अपनी बेगम बनाया। उसने अपने उन पुत्रों को जेल में डाला जिन्हें आगे चलकर सुल्तान बनना था!
सुल्तान अपनी हिन्दू प्रजा को घृणा तथा सन्देह की दृष्टि से देखता था तथा उसे सब प्रकार से अपमानित एवं पददलित करने का प्रयत्न करता था। हिन्दुओं को दरिद्र तथा विपन्न बनाना उसकी नीति का एक अंग था ताकि वे कभी भी सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह न कर सकें। अल्लाउद्दीन की समस्त सुधार योजनाएं सुल्तान तथा सल्तनत की स्वार्थपूर्ति के उद्देश्य से आरम्भ की गई थीं न कि लोक-कल्याण के लिये। उसकी योजनाओं से केवल उसके सैनिकों को लाभ हुआ, जनसाधारण को नहीं। उसकी सारी योजनाएं युद्धकालीन थीं जो शान्ति कालीन शासन के लिए अनुपयुक्त थीं।
अल्लाउद्दीन ने ऐसे युग में शासन किया था जब केन्द्रीभूत शासन की आवश्यकता थी परन्तु केन्द्रीभूत शासन की भी कुछ सीमाएं होती हैं। अल्लाउद्दीन इन सीमाओं का उल्लंघन कर गया। उसने केवल थोड़े से व्यक्तियों की सहायता से शासन किया, इसलिए उसका शासन लोकप्रिय नहीं बन सका और जब इन सहायकों की मृत्यु हो गई, तब उसके साम्राज्य का पतन हो गया।
अल्लाउद्दीन में साहित्य तथा कला के संवर्द्धन की प्रवृत्ति नहीं थी। उसका सारा ध्यान सेना को प्रबल बनाने तथा राज्य जीतने की ओर रहा। इसलिए सांस्कृतिक दृष्टि से उसका शासन गौरवहीन था। अल्लाउद्दीन अपने अमीरों को नीचा दिखाने के लिए प्रायः निम्न वर्ग के अयोग्य लोगों को प्रोत्साहन देकर उन्हें उच्च पद दिया करता था जो साम्राज्य के लिए बड़ा घातक सिद्ध हुआ।
अल्लाउद्दीन ने अपने पुत्रों को उचित शिक्षा नहीं दिलवाई और अपने उत्तराधिकारियों की रक्षा करने की बजाय उन्हें कारागृह में बंद कर दिया। उपर्युक्त तर्कों आधार पर कहा जा सकता है कि अल्लाउद्दीन का शासन सर्वथा गौरवहीन था और दिल्ली के सुल्तानों में उसे सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान नहीं किया जा सकता।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता