अरबवासियों का परिचय
अरब एशिया महाद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित एक प्रायद्वीप है। इसके दक्षिण में हिन्द महासागर, पश्चिमी में लालसागर और पूर्व में फारस की खाड़ी स्थित है। इस क्षेत्र के निवासी प्राचीन काल से कुशल नाविक रहे हैं और उनकी विदेशों से व्यापार करने में रुचि रही है। अरब एक रेगिस्तान है परन्तु उसके बीच-बीच में उपजाऊ भूमि भी है जहाँ पानी मिल जाता है। इन्हीं उपजाऊ स्थानों में इस देश के लोग निवास करते हैं। ये लोग कबीले बनाकर रहते थे। प्रत्येक कबीले का एक सरदार होता था। इन लोगों की अपने कबीले के प्रति बड़ी भक्ति होती थी और ये उसके लिए अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए तैयार रहते थे। ये लोग तम्बुओं में निवास करते थे और खानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे। ये लोग एक स्थान से दूसरे स्थान में घूमा करते थे और लूट-खसोट करके पेट भरते थे। ऊँट उनकी मुख्य सवारी थी और खजूर उनका मुख्य भोजन था। ये लोग बड़े लड़ाके होते थे।
अरबवालों का भारत के साथ सम्बन्ध
अरबवालों का भारत के साथ अत्यन्त प्राचीन काल में ही सम्बन्ध स्थापित हो गया था। अरब नाविकों द्वारा भारत तथा पाश्चात्य देशों के साथ व्यापार होता था। धीरे-धीरे भारत के साथ अरबवासियों के व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ने लगे और वे भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर आकर बसने लगे। कुछ भारतीय राजा, जिन्हें नाविकों की आवश्यकता थी, उन्हें अपने राज्य में बसने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। इस प्रकार इनकी संख्या बढ़ने लगी। जब अरब में इस्लाम का प्रचार हो गया तब भारत में आने वाले व्यापारियों ने व्यापार करने के साथ-साथ इस्लाम का प्रचार करना भी आरम्भ कर दिया। हिन्दू समाज में निम्न समझी जाने वाली जातियों के लोगों ने इस्लाम को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार अरबवालों का भारतीयों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध के साथ-साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध भी स्थापित हो गया।
सातवीं शताब्दी के मध्य में जब अरब में खलीफाओं का उत्थान आरम्भ हुआ तब उन्होंने साम्राज्यवादी नीति अपनाई और अपने साम्राज्य का विस्तार आरम्भ किया। खलीफाओं को भारत आने वाले व्यापारियों से भारत की अपार सम्पति का पता लग गया था। उन्हें यह भी मालूम हो गया कि भारत के लोग मूर्ति पूजक हैं। इसलिये उन्होंने भारत की सम्पत्ति लूटने तथा मूर्ति-पूजकों के देश पर आक्रमण करने का निश्चय किया।
अरबवासियों के भारत पर आक्रमण करने के लक्ष्य
अरबवालों के भारत पर आक्रमण करने के तीन प्रमुख लक्ष्य प्रतीत हेाते हैं। उनका पहला लक्ष्य भारत की अपार सम्पति को लूटना था। दूसरा लक्ष्य भारत में इस्लाम का प्रचार करना तथा मूर्तियों और मन्दिरों को तोड़ना था। तीसरा लक्ष्य भारत में अपना साम्राज्य स्थापित करना था। अपने इन ध्येयों की पूर्ति के लिए उन्हें भारत पर आक्रमण करने का कारण भी मिल गया। अरब व्यापारियों के एक जहाज को सिन्ध के लुटेरों ने लूट लिया। ईरान के गवर्नर हज्जाज को, जो खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ शासन करता था, भारत पर आक्रमण करने का बहाना मिल गया। उसने खलीफा की आज्ञा लेकर अपने भतीजे तथा दामाद मुहम्मद बिन कासिम की अध्यक्षता में एक सेना सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेज दी।
मुहम्मद बिन कासिम का आक्रमण
इन दिनों सिंध में दाहिरसेन नामक राजा शासन कर रहा था। मुहम्मद बिन कासिम ने 711 ई. में विशाल सेना लेकर देबुल नगर पर आक्रमण किया। इस आक्रमण से नगरवासी अत्यन्त भयभीत हो गये और वे कुछ न कर सके। देबुल पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। देबुल में मुहम्मद बिन कासिम ने कठोरता की नीति का अनुसरण किया। उसने नगरवासियों को मुसलमान बन जाने की आज्ञा दी। सिंध के लोगों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। इस पर मुहम्मद बिन कासिम ने उनकी हत्या की आज्ञा दे दी। सत्रह वर्ष से ऊपर की आयु के समस्त पुरुषों को तलवार के घाट उतार दिया गया। स्त्रियों तथा बच्चों को दास बना लिया गया। नगर को खूब लूटा गया और लूट का सामान सैनिकों में बाँट दिया गया।
देबुल पर अधिकार कर लेने के बाद मुहम्मद बिन कासिम की विजयी सेना आगे बढ़ी। नीरून, सेहयान आदि नगरों पर प्रभुत्व स्थापित कर लेने के उपरान्त वह दाहिरसेन की राजधानी ब्राह्मणाबाद में पहुँची। यहाँ पर दाहिर उसका सामना करने के लिए पहले से ही तैयार था। उसने बड़ी वीरता तथा साहस के साथ शत्रु का सामना किया परन्तु वह परास्त हो गया और रणक्षेत्र में ही उसकी मृत्यु हो गई। उसकी रानी ने अन्य स्त्रियों के साथ चिता में बैठकर अपने सतीत्व की रक्षा की।
ब्राह्मणाबाद पर प्रभुत्व स्थापित कर लेने के बाद मुहम्मद बिन कासिम ने मुल्तान की ओर प्रस्थान किया। मुल्तान के शासक ने बड़ी वीरता तथा साहस के साथ शत्रु का सामना किया परन्तु जल के अभाव के कारण उसे आत्म समर्पण कर देना पड़ा। यहाँ भी मुहम्मद बिन कासिम ने भारतीय सैनिकों की हत्या करवा दी और उनकी स्त्रियों तथा बच्चों को गुलाम बना लिया। जिन लोगों ने उसे जजिया कर देना स्वीकार कर लिया उन्हें मुसलमान नहीं बनाया गया। यहाँ पर हिन्दुओं के मन्दिरों को भी नहीं तोड़ा गया परन्तु उनकी सम्पति लूट ली गई। मुल्तान विजय के बाद मुहम्मद बिन कासिम अधिक दिनों तक जीवित न रह सका। खलीफा उससे अप्रसन्न हो गया। इसलिये उसने उसे वापस बुला कर उसकी हत्या करवा दी।
सिन्ध में अरबी शासन व्यवस्था
सिन्ध पर अधिकार कर लेने के उपरान्त अरबी आक्रमणकारियों को वहाँ के शासन की व्यवस्था करनी पड़ी। चूंकि मुसलमान विजेता थे इसलिये कृषि करना उनकी शान के खिलाफ था। फलतः कृषि कार्य हिन्दुओं के हाथ में रहा। इन किसानों को नये विजेताओं को भूमि कर देना पड़ता था। यदि वे सिंचाई के लिए राजकीय नहरों का प्रयोग करते थे तो उन्हे 40 प्रतिशत और यदि राजकीय नहरों का प्रयोग नहीं करते थे तो केवल 25 प्रतिशत कर देना पड़ता था। जिन हिन्दुओं ने इस्लाम को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था, उन्हें जजिया नामक कर देना पड़ता था। इससे जनसाधारण की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। हिन्दू प्रजा को अनेक प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। वे अच्छे वस्त्र नहीं पहन सकते थे। घोड़े की सवारी नहीं कर सकते थे। न्याय का कार्य काजियों के हाथों में चला गया जो कुरान के नियमों के अनुसार न्याय करते थे। इसलिये हिन्दुओं के साथ प्रायः अत्याचार होता था। अरब वाले बहुत दिनों तक सिन्ध में अपनी प्रभुता स्थापित न रख सके और उनका शासन अस्थायी सिद्ध हुआ।
अरब आक्रमण का प्रभाव अरब आक्रमण का भारत पर राजनीतिक दृष्टिकोण से कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। लेनपूल ने इस आक्रमण को भारत के इतिहास की एक घटना मात्र कहा है जिसका भारत के इतिहास पर कोई प्रभाव नही पड़ा परन्तु इतना तो स्वीकार करना ही पडेगा कि इस समय से सिन्ध पर मुसलमानों के बार-बार आक्रमण होने आरम्भ हो गये। अरबी यात्री तथा इस्लाम प्रचारक इस मार्ग से निरन्तर भारत आने लगे और भारत के विषय में लिखते-पढ़ते रहे। इससे आगे चलकर तुर्कों को भारत विजय करने में सहायता मिली। अरब आक्रमण का सांस्कृतिक प्रभाव महत्त्वपूर्ण था। इस आक्रमण के बाद मुसलमान सिन्ध के नगरों में बस गये। उन्होंने हिन्दू स्त्रियों से विवाह कर लिये। इस प्रकार अरब रक्त का भारतीय रक्त में सम्मिश्रण हो गया। अरब आक्रमणकारियों ने सिन्ध में इस्लाम का प्रचार किया। हिन्दू समाज में निम्न मानी जाने वाली जातियों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। अरब आक्रमणकारी भारतीयों की उत्कृष्ट संस्कृति की ओर आकृष्ट हुए। उन्होंने भारतीय ज्योतिष, चिकित्सा, रसायन, दर्शन आदि सीखने का प्रयत्न किया। बगदाद के खलीफाओं विशेषकर खलीफा हारूँ रशीद ने इस कार्य में बड़ी रुचि ली। उन्होंने भारतीय विद्वानों तथा वैद्यों को बगदाद बुलाया और उनका आदर-सम्मान कर उनसे बहुत कुछ सीखा। अरबवालों ने भारतीयों से शतरंज का खेल, गणित के अनेक सिद्धान्त, शून्य से नौ तक के अंक, दशमलव प्रणाली तथा औषधि विज्ञान की अनेक बातें सीखीं।