गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित रामाज्ञा-प्रश्न में ज्योतिष शास्त्र की अनूठी पद्धति का प्रयोग हुआ है। ‘रामाज्ञा-प्रश्न’ सर्गों एवं सप्तकों में विभक्त है तथा इसकी रचना दोहा-छन्द में हुई है। इस ग्रंथ की भाषा सहज अवधी है। यह रामकथा के विविध प्रसंगों की मिश्रित रचना है।
रामाज्ञा-प्रश्न के कुछ दोहे वाल्मीकि रामायण के श्लोकों से साम्य रखते हैं। मान्यता है कि अपने मित्र गंगाराम ज्योतिषी की सहायता करने के लिए गोस्वामीजी ने केवल छः घण्टे में ‘रामाज्ञा-प्रश्न’ की रचना की। इस ग्रन्थ में सात सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग में सात-सात सप्तक हैं। सभी सप्तकों में सात-सात दोहे हैं। इसके सातवें सर्ग के सातवें सप्तक में गोस्वामीजी ने शकुन-प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने की विधि बतलायी है।
रामाज्ञा-प्रश्न में ज्योतिष जानने के सम्बन्ध में कहा गया है-
‘सुदिन साँझ पोथी नेवति, पूजि प्रभात सप्रेम।
सगुन बिचारब चारु मति, सादर सत्य सनेम।।
अर्थात्- किसी शुभ दिन सन्ध्या के समय श्रद्धापूर्वक पोथी को प्रणाम करके उसे सादर निमन्त्रित करें। फिर अगली प्रातः पोथी की विधिवत् पूजा करके भगवान् श्रीराम, सीतामाता, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी का स्मरण-ध्यान करें। इसके बाद प्रसन्न मन से शकुन-विचार करना चाहिये तथा शकुन-फल विचार की जो विधि गोस्वामीजी द्वारा बतायी गयी है, उसी विधि से फल की घोषणा करनी चाहिये।
प्रश्न पूछने से पहले एक कागज पर लाल स्याही से तीन वृत्त बनाए जाते हैं। तीनों वृत्तों के नीचे उनकी क्रम संख्या- एक, दो और तीन लिखते हैं। तीनों वृत्तों के केन्द्र में एक-एक छोटा वृत्त बनाया जाता है। फिर तीनों वृत्तों को छः खण्डों में विभक्त करके सब में एक से सात तक की संख्या लिखी जाती है। किसी वृत्त में कोई संख्या दुबारा नहीं होगी।
प्रथम वृत्त का अंक सर्ग का वाचक, दूसरे वृत्त का अंक उक्त सर्ग के सप्तक का वाचक तथा तीसरे वृत्त का अंक उस सप्तक की दोहा-संख्या का निर्धारक होता है। अब प्रश्नकर्ता अपने प्रश्न को मन-ही-मन स्मरण करते हुए तीनों वृत्तों में बारी-बारी से किसी अंक पर पेंसिल की नोक रखे। शकुन विचारने वाला व्यक्ति प्रश्नकर्ता द्वारा क्रम संख्या एक, दो एवं तीन के वृत्तों के उन अंकों को क्रम से नोट कर ले जिन पर प्रश्नकर्त्ता ने पेंसिल की नोंक रखी है।
इसके बाद प्रश्नकर्ता से अपना प्रश्न पूछने के लिए कहा जाए। पहले से ही नोट किए गए अंकों का उपयोग करते हुए सर्ग, सप्तक एवं दोहे को ज्ञात कर ले। इस प्रकार प्राप्त दोहे के सरलार्थ से प्रश्न के शुभ-अशुभ फल की घोषणा की जाती है। प्रश्न के स्वभाव के अनुकूल दोहा निकले, तब कार्य में सफलता तथा विपरीत अभिप्राय युक्त दोहा निकले तो कार्य की असफलता समझनी चाहिये। एक दिन में तीन से अधिक प्रश्न शकुन-विचार हेतु इस ग्रन्थ से नहीं करने चाहिये तथा एक प्रश्न केवल एक बार ही करना चाहिये, उसे दोहराना नहीं चाहिए।
प्रश्न करने के लिए विषयों के दिन भी निर्धारित किए हुए हैं-
(1) राजकाज, रत्नों, स्वर्णादि धातुओं एवं घोड़े आदि पशुओं से सम्बन्धित प्रश्न रविवार के दिन पूछने चाहिये।
राज काज मनि हेम हय राम रूप रबि बार।
कहब नीक जय लाभ सुभ सगुन समय अनुहार।।
(2) रसदार वस्तु, गाय, कृषि, यज्ञादि कर्म एवं किसी भी शुभ कार्य से सम्बन्धित शकुन का विचार सोमवार को करना चाहिये-
रस गोरस खेती सकल बिप्र काज सुभ साज।
राम अनुग्रह सोम दिन प्रमुदित प्रजा सुराज।।
(3) भूमि-लाभ, युद्ध-विजय इत्यादि प्रश्नों का शकुन-विचार मंगलवार को करना चाहिये-
मंगल मंगल भूमि हित, नृप हित जय संग्राम।
सगुन बिचारब समय सुभ करि गुरु चरन प्रणाम।
(4) वाणिज्य, विद्या, वस्त्र एवं गृह से सम्बन्धित प्रश्न का शकुन-विचार बुधवार को करना चाहिये-
बिपुल बनिज बिद्या बसन बुध बिसेषि गृह काजु।
सगुन सुमंगल कहब सुभ सुमिरि सीय रघुराजु।।
(5) यज्ञ, विवाहादि उत्सव, व्रत एवं राजतिलक सम्बन्धी शकुन-फल का विचार गुरुवार को करना चाहिये।
गुरु प्रसाद मंगल सकल, राम राज सब काज।
जज्ञ बिबाह उछाह ब्रत, सुभ तुलसी सब साज।।
(6) यन्त्र, मन्त्र, मणियों एवं औषधियों से सम्बन्धित शकुन का विचार शुक्रवार के दिन करना चाहिये-
सुक्र सुमंगल काज सब कहब सगुन सुभ देखि।
जंत्र मंत्र मनि ओषधी सहसा सिद्धि बिसेषि।।
(7) लोहे, हाथी, भैंस-जैसी काली वस्तुओं से सम्बद्ध प्रश्न का शकुन- विचार शनिवार के दिन ही करना चाहिये।
राम कृपा थिर काज सुभ, सनि बासर बिश्राम।
लोह महिष गज बनिज भल, सुख सुपास गृह ग्राम।।
इस प्रकार हम देखते हैं कि रामाज्ञा-प्रश्न में ज्योतिष सम्बन्धी शंका समाधान की अनूठी पद्धति को अपनाया गया है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता