Wednesday, April 16, 2025
spot_img

शाहजहाँ की कैद

शाहजहाँ की कैद न केवल अकबर के समय से लेकर अब तक चली आ रही मुगलिया राजनीति का पटाक्षेप थी अपितु आने वाले क्रूर शासन की पक्की सबूत थी।

शामूगढ़ के मैदान में जिस समय औरंगजेब महाराजा रूपसिंह का सामना कर रहा था, उस रामसिंह राठौड़ के नेतृत्व में राजपूतों के एक समूह ने शहजादे मुरादबक्श को घेर रखा था। रामसिंह राठौड़ अपने राजपूतों सहित मुरादबक्श के हाथी पर झपटा और जोर से चिल्लाया- ‘तू दारा से सिंहासन छीनने चला है?’ इतना कहकर रामसिंह ने अपना भाला मुरादबक्श की ओर बड़े वेग से फैंका। मुरादबक्श एक ओर को झुक गया और रामसिंह का भाला अपने लक्ष्य को भेद नहीं सका।

रामसिंह के राजपूत सिपाही भी मुरादबक्श पर टूट पड़े। इस कारण मुरादबक्श के हाथी का महावत वहीं मारा गया तथा हाथी का हौदा राजपूतों के बाणों से भर गया। इसी समय बूंदी का महाराजा छत्रसाल हाड़ा भी अपने राजपूतों सहित आ धमका। अब तो शहजादे मुरादबक्श के प्राण सचमुच ही संकट में पड़ गए।

मुरादबक्श के अंगरक्षकों को लगा कि यदि उन्होंने अपने प्राणों के प्रति किंचित् भी मोह दिखाया तो शहजादे के प्राण जाने निश्चित हैं। इसलिए वे प्राण हथेली पर लेकर राजपूत सिपाहियों पर टूट पड़े। देखते ही देखते ऐसा घमासान मचा, जैसा आज से पहले कभी नहीं देखा गया था।

बूंदी नरेश छत्रसाल हाड़ा ने 52 लड़ाइयां लड़ी थीं और उनमें से एक भी लड़ाई नहीं हारी थी किंतु आज की लड़ाई का परिणाम जानने से पहले ही वह रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुआ।

राजा रामसिंह राठौड़, भीमसिंह गौड़, शिवराम गौड़ आदि कई वीर योद्धा इसी संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुए। ठीक इसी समय औरंगजेब भी महाराजा रूपसिंह से अपना पीछा छुड़ाकर  मुराद को ढूंढता हुआ इसी ओर आ निकला।

इस रोचक इतिहास का वाीडियो देखें-

राजपूत अब भी मैदान में टिके हुए थे और लड़ रहे थे किंतु जिस दारा के लिए वे लड़ रहे थे वह तो मैदान छोड़कर कभी का भाग चुका था।

इस युद्ध में दारा की तरफ के नौ बड़े राजपूत राजा एवं सरदार खेत रहे जबकि औरंगजेब की तरफ के 19 बड़े अमीर एवं उमराव मारे गए। शाम होते-होते युद्ध थम गया। जो सैनिक प्राण गंवा चुके थे, उनके शव हाथियों के पैरों के नीचे कुचले जाकर क्षत-विक्षत हो चुके थे। घायल सिपाही धरती पर पड़े-पड़े पानी-पानी चिल्ला रहे थे किंतु उन्हें पानी की बूंद पिलाने वाला वहां कोई नहीं था।

जो सैनिक अभी जीवित थे, वे भी थक चुके थे और वे अपने हाथों में पकड़ी हुई तलवारों और भालों पर नियंत्रण खोते जा रहे थे। इसलिए युद्ध अपने-आप ही बंद हो गया। औरंगजेब तथा मुराद ने वह रात नूरमंजिल में व्यतीत की। यहाँ उन्हें बादशाह का पत्र मिला जिसमें कहा गया था कि दोनों शहजादे तत्काल बादशाह से आकर मिलें।

To purchase this book, please click on photo.

औरंगजेब ने अपने साथी अमीरों से सलाह की तो उन्होंने औरंगजेब से कहा कि उस बूढ़े बादशाह के धोखे में न आए। यदि औरंगजेब वहाँ गया तो बादशाह की तातारी जनाना अंगरक्षक औरंगजेब को धोखे से मार डालेंगी।

औरंगजेब को यह सलाह उचित लगी इसलिए उसने बादशाह के निमंत्रण का कोई जवाब नहीं दिया तथा यमुना नदी से लाल किले में जाने वाली नहर को बंद कर दिया।

शाहजहाँ ने औरंगजेब को पत्र लिखा कि वह अपने बूढ़े और बीमार बाप को प्यासा न मारे। इस बार औरंगजेब ने अपने बाप को जवाब भिजवाया- ‘यह सब आपकी करनी का ही फल है।’

तीन दिन में पानी के बिना किले के भीतर रह रहे लोगों की हालत खराब हो गई। इस पर 9 जून 1658 को प्यास से तड़पते हुए बादशाह ने अपने सैनिकों को आदेश दिए- ‘लाल किले के दरवाजे खोल दिए जाएं।’

उसी दिन औरंगजेब के शहजादे मुहम्मद ने लाल किले में घुसकर अपने दादा शाहजहाँ को कैद कर लिया तथा उस पर सख्त पहरा बैठा दिया। शाहजहाँ की कैद न केवल शाहजहाँ को ही आश्चर्य चकित करने वाली थी अपितु समूची मुगलिया सल्तनत को भौंचक्की कर देने वाली थी।

जिन अदने से मुगल सिपाहियों की आंखें कभी बादशाह की तरफ उठने का साहस नहीं करती थीं, अब वे दिन-रात बादशाह को घूरा करती थीं और बादशाह की तरफ से की गई छोटी सी हरकत की खबर औरंगजेब के पुत्र मुहम्मद तक पहुंचाया करती थीं।

दस दिनों से औरंगजेब और मुराद नूरमंजिल में रह रहे थे किंतु जैसे ही बादशाह को बंदी बनाया गया, दोनों शहजादे लाल किले में घुस गए।

औरंगजेब लालकिले में आ रहा है, यह सुनकर बहिन जहाँआरा ने अपने काले कपड़े उतार कर फिर से रंगीन कपड़े पहन लिए और औरंगजेब के लिए आरती का थाल सजाने लगी। अब बीमार और बूढ़े बादशाह तथा स्वयं जहाँआरा का भविष्य औरंगज़ेब के रहमोकरम पर आकर टिक गया था।

औरंगजेब न तो बादशाह से मिला और न जहाँआरा से। शहजादी रोशनआरा ने अपने विजेता भाई की आरती उतारी और बलैयाएं लेकर ऊपर वाले से दुआ मांगी कि उसका नेकदिल भाई बुरी नजरों से दूर रहे। शेष तीनों शहजहादियां अपने अपने कमरों में बंदियों की तरह पड़ी हुई अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाती रहीं।

शाहजहाँ की शहजादियों ने जिस पिता को तख्त से उतारने के लिए हजार षड़यंत्र रचे थे, आज उसी शाहजहाँ की कैद उनके समस्त दुखों का कारण बन गई थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source