औरंगजेब अपने जीवन काल में ही भारत को मुसलमानों की भूमि बनाना चाहता था। इसके लिए उसने जीवन भर भयानक षड़यंत्र रचे। एक बार उसने हिन्दू राजाओं की सुन्नत करने का षड़यन्त्र रचा!
बाबर से लेकर औरंगजेब तक सारे मुगल बादशाहों की इच्छा रही कि पूरे हिन्दुस्तान को इस्लाम में परिवर्तित कर लिया जाये किंतु हिन्दू जनता के प्रतिरोध और हिन्दू धर्म-गुरुओं के प्रयत्नों के कारण ऐसा करना संभव नहीं हो सका। हिन्दू धर्म और इस्लाम में बहुत सी ऐसी बातें थीं जिनके कारण ये दोनों एक दूसरे के निकट नहीं आ सके।
हिन्दू सदियों से चले आ रहे मूर्ति-पूजन, गौ-संरक्षण, गंगा-स्नान, बहुदेव-पूजन, जाति-प्रथा एवं सगोत्रीय-विवाह-निषेध आदि बातों को छोड़ने को तैयार नहीं थे जबकि इस्लाम इन बातों को सहन करने को तैयार नहीं था। हिन्दू, चोटी तिलक एवं जनेउ को छोड़ने को तैयार नहीं थे जबकि इस्लाम सुन्नत, अजान और हज में विश्वास रखता था। इसी प्रकार के और भी बहुत से कारण थे जिनके कारण देनों के बीच की दूरियां बनी रहीं।
जब छत्रपति शिवाजी आगरा से निकल भागे तो औरंगजेब को लगा कि समस्त हिन्दू राजाओं ने मिलकर औरंगजेब के विरुद्ध षड़यंत्र किया है तथा शिवाजी को आगरा से निकल भागने में सहायता पहुंचाई है। इसलिए औरंगजेब मन ही मन समस्त हिन्दू राजाओं के विनाश का उपाय सोचने लगा।
ई.1192 में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की हत्या से लेकर ई.1666 में शिवाजी के आगरा से भाग निकलने तक अर्थात् विगत लगभग 500 साल से मुस्लिम शासक भारत पर केन्द्रीय शक्ति के रूप में शासन कर रहे थे। भारत के बहुत से प्रांतों में भी मुस्लिम सूबेदार एवं सुल्तान हो गए थे किंतु अब भी हिन्दू-शासक इतनी बड़ी संख्या में थे तथा इतने शक्तिशाली थे कि उन्हें एक साथ नष्ट करना किसी भी केन्द्रीय शक्ति के लिए संभव नहीं था।
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यदि कोई भी मुस्लिम शासक इन्हें एक साथ नष्ट करने का प्रयास करता तो वह स्वयं ही नष्ट हो जाता। इसके विपरीत, यदि हिन्दू राजाओं को एक-एक करके नष्ट किया जाता तो इस कार्य में सदियां बीत जातीं। इसलिए औरंगजेब ऐसी योजना बनाने में लग गया जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे! स्वातंत्र्यपूर्व राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार महामहोपध्याय गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने बीकानेर राज्य का इतिहास नामक ग्रंथ में एक घटना का उल्लेख किया है।
यद्यपि यह घटना किसी भी मुस्लिम तवारीख में उपलब्ध नहीं है तथापि बीकानेर राज्य की कुछ प्राचीन ख्यातों एवं जयपुर राज्य की ख्यात में इस घटना का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार ई.1666 में औरंगजेब ने हिन्दू राजाओं के विरुद्ध एक भयानक षड़यंत्र रचा।
उसने अपने अधीनस्थ समस्त बड़े हिन्दू राजाओं और मुस्लिम अमीरों को इकट्ठा करके ईरान की ओर प्रस्थान किया। उसकी योजना थी कि वह समस्त हिन्दू राजाओं को ईरान ले जाकर एक साथ हिन्दू राजाओं की सुन्नत करवा दे ताकि सभी बड़े हिन्दू राजा एक साथ मुसलमान बन जाएं और भारत से कुफ्र का सफाया किया जा सके।
बीकानेर की ख्यातों के अनुसार साहबे के एक सैयद फकीर को अस्तखां नामक एक मुगल अमीर से मालूम हुआ कि बादशाह सब को एक-दीन अर्थात् मुस्लिम करना चाहता है। उस फकीर ने इस बात की खबर बीकानेर नरेश महाराजा कर्णसिंह को दी। इस पर हिन्दू राजाओं ने एक गुप्त-बैठक की कि अब क्या करना चाहिये? उस समय औरंगजेब तथा समस्त हिन्दू राजा अटक नदी के इस तरफ डेरा डाले हुए थे जो कि भारत की अंतिम सीमा थी।
उन्हीं दिनों आम्बेर नरेश मिर्जाराजा जयसिंह की माता की मृत्यु का समाचार पहुंचा, जिससे हिन्दू राजाओं को 12 दिन तक वहीं पर रुक जाने का अवसर मिल गया। इसके बाद सारे राजा, महाराजा कर्णसिंह के पास गए और उससे कहा कि आपके बिना हमारा उद्धार नहीं हो सकता। आप यदि नावें तुड़वा दें तो हमारा बचाव हो सकता है, क्योंकि ऐसा होने से देश को प्रस्थान करते समय शाही सेना हमारा पीछा नहीं कर सकेगी।
बीकानेर नरेश कर्णसिंह ने धर्म की रक्षा के लिये अपना सिर कटवाने का निश्चय करके योजना निर्धारित की कि बादशाह को अटक नदी के पार चले जाने दिया जाए। जब बादशाह चला जाए तब सारे हिन्दू सरदार नदी पार करने की बजाय अपनी-अपनी नावें जलाकर अपने-अपने राज्य को लौट जायें।
इस निश्चय के अनुसार, जैसे ही बादशाह ने नदी पार की वैसे ही हिन्दू नरेशों ने नावें इकट्ठी करके उनमें आग लगा दी। इसके बाद वहाँ उपस्थित समस्त हिन्दू राजाओं ने महाराजा कर्णसिंह का बड़ा सम्मान किया और उसे जंगलधर पादशाह की उपाधि दी। इस उपलक्ष्य में बीकानेर नरेश ने साहिबे के फकीर को बीकानेर राज्य में प्रतिघर प्रतिवर्ष एक पैसा उगाहने का अधिकार प्रदान किया।
जैसे ही औरंगजेब को हिन्दू राजाओं के निश्चय का पता लगा तो वह कुरान हाथ में लेकर फिर से नदी पार करके अटक के इस पार आया। उसने राजाओं से नावें जलाने का कारण पूछा। तब राजाओं ने जवाब दिया कि- ‘तुमने तो हमें मुसलमान बनाने का षड़यंत्र रच लिया इसलिये तुम हमारे बादशाह नहीं। हमारा बादशाह तो बीकानेर का राजा है। जो वह कहेगा वही करेंगे, धर्म छोड़कर जीवित नहीं रहेंगे।’
तब औरंगजेब ने समस्त राजाओं के सामने कुरान हाथ में रखकर कसम खाई कि- ‘अब ऐसा नहीं होगा, जैसा तुम लोग कहोगे, वैसा ही करूंगा। आप लोग मेरे साथ दिल्ली चलो। आप लोगों ने कर्णसिंह को जंगलधर बादशाह कहा है तो वह जंगल का ही बादशाह रहेगा।’
इस प्रकार हिन्दू राजाओं की सुन्नत तो नहीं हो सकी। हिन्दू नरेशों की एकता एवं दृढ़ता को देखकर औरंगजेब की हिम्मत नहीं हुई कि उनके साथ कोई जबर्दस्ती करे किंतु कुछ समय बाद औरंगजेब ने अपनी सेना को बीकानेर राज्य पर आक्रमण करने के आदेश दिए। कुछ दिन बाद औरंगजेब ने सेना के अभियान को रोक दिया तथा एक संदेशवाहक को बीकानेर भेजकर महाराजा कर्णसिंह को बादशाह के समक्ष उपस्थित होने के आदेश भिजवाए।
महाराजा कर्णसिंह अपने दो कुंवरों केसरीसिंह तथा पद्मसिंह को अपने साथ लेकर औरंगजेब के दरबार में उपस्थित हुआ। औरंगजेब की योजना थी कि महाराजा कर्णसिंह को आगरा में मरवा दिया जाए तथा उसके बाद महाराजा कर्णसिंह के दासी-पुत्र वनमालीदास को बीकानेर का शासक बना दिया जाए जिसने राज्य मिलने के बाद मुसलमान हो जाने का वचन दिया था।
जब औरंगजेब ने देखा कि कि हिन्दू राजाओं की सुन्नत को रोकने वाले महाराजा कर्णसिंह के साथ राजकुमार केसरीसिंह तथा पद्मसिंह भी आए हैं तो औरंगजेब महाराजा कर्णसिंह की हत्या करवाने का साहस नहीं कर सका। क्योंकि ये वही केसरीसिंह तथा पद्मसिंह थे जिन्होंने शाहशुजा और औरंगजेब के बीच हुई खजुआ की लड़ाई में औरंगजेब के पक्ष में युद्ध किया था तथा विपुल पराक्रम का प्रदर्शन करके औरंगजेब को जीत दिलाई थी।
उस समय औरंगजेब इन दोनों राजकुमारों के अहसान के तले इतना दब गया था कि युद्ध समाप्त होने के बाद औरंगजेब ने अपनी जेब से रूमाल निकालकर केसरी सिंह तथा पद्म सिंह के बख्तरबंदों की धूल झाड़ी थी। अब वह उन्हीं राजकुमारों की आंखों के सामने उनके पिता कर्णसिंह की हत्या कैसे कर सकता था!
अतः औरंगजेब ने महाराजा कर्णसिंह की हत्या करने का विचार त्याग दिया तथा उसे पदच्युत करके औरंगाबाद भेज दिया। बीकानेर का राज्य महाराजा कर्णसिंह के बड़े पुत्र अनूपसिंह को दे दिया गया। औरंगाबाद पहुंचने के बाद महाराजा कर्णसिंह एक साल तक जीवित रहा। 22 जून 1669 को औरंगाबाद में ही महाराजा कर्णसिंह का निधन हुआ जहाँ आज भी उसकी छतरी बनी हुई है। महाराजा कर्णसिंह ने औरंगाबाद में कर्णसिंह पुरा नामक एक उपनगर बसाया जिसे आज भी कर्णपुरा मौहल्ले के नाम से जाना जाता है।
महाराजा कर्णसिंह का पुत्र महाराजा अनूपसिंह अपने समय का विख्यात राजा हुआ। उसने औरंगजेब की तरफ से दक्षिण के मोर्चे पर दीर्घकाल तक सेवाएं दीं तथा दक्षिण के मोर्चे पर तोड़े जाने वाले हिन्दू मंदिरों से प्रतिमाएं निकालकर बीकानेर भिजवाईं। महाराजा कर्णसिंह के छोटे कुंअर पद्मसिंह एवं केसरीसिंह औरंगजेब की तरफ से दक्षिण के मोर्चे पर लड़ते हुए मारे गए।
राजकुुमार पद्मसिंह को बीकानेर राजवंश का अब तक का सबसे वीर पुरुष माना जाता है। उसकी तलवार का वजन आठ पौण्ड तथा खाण्डे का वजन पच्चीस पौण्ड था। वह घोड़े पर बैठकर बल्लम से शेर का शिकार किया करता था। इस प्रकार बीकानेर का वीर राजवंश भी लाल किले के षड़यंत्रों एवं कुचक्रों से बचा नहीं रह सका।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता