Thursday, November 21, 2024
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शाहजहाँ के दुर्दिन

आदमी कुदरत से अपने लिए बेटे मांगता है तथा बेटे न होने पर जीवन भर दुखी रहता है किंतु शाहजहाँ उन बदनसीबों में से था जिसे कुदरत ने ढेरों बेटे दिए थे, ढेरों बेटियां दी थीं किंतु यही बेटे-बेटी शाहजहाँ के दुर्दिन लाने वाले सिद्ध हुए।

औरंगजेब के आदेश से शाहजहाँ को कैद करके आगरा के लाल किले के भीतर जनाना महल में रख दिया गया। शासन के समस्त अधिकार औरंगजेब ने अपने हाथों में ले लिए। सल्तनत में किए गए इतने बड़े परिवर्तनों के लिए किसी तरह का कोई शाही फरमान जारी नहीं हुआ। अब न किसी को बादशाह के दस्तखतों की आवश्यकता थी और न उसकी मुहर की। इस प्रकार औरंगजेब न केवल लाल किले का अपितु कोहिनूर हीरे और तख्ते ताउस का भी स्वामी हो गया।

औरंगजेब के परबाबा अकबर के समय से मुगलों का खजाना भरना आरम्भ हो गया था। पिछले सौ सालों से गंगा-यमुना के दो-आब से लेकर, रावी, चिनाव, झेलम सतलुज और व्यास नदियों के हरे-भरे पंजाब, मालवा और दक्कन के पठार तथा कृष्णा और कावेरी के दो-आब मुगलों का खजाना दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से भर रहे थे। अकबर, जहांगीर तथा शाहजहाँ ने अनेक हिन्दू राजवंशों द्वारा विगत कई शताब्दियों में संचित किए गए खजाने छीनकर आगरा में लाकर जमा कर लिए थे।

जब शाहजहाँ को बंदी बनाया गया तो यह सारा खजाना सहज रूप से औरंगजेब के अधिकार में चला गया। हालांकि दारा शिकोह युद्ध में जाने से पहले खजाने का बहुत बड़ा हिस्सा ऊटों और घोड़ों सहित अलग करके रख गया था ताकि यदि युद्ध का परिणाम विपरीत आए तो दारा इस खजाने को लेकर भाग सके तथा दारा ने ऐसा ही किया था किंतु शाहजहाँ को यह बात ज्ञात नहीं थी।

जब शाहजहाँ को ज्ञात हुआ कि दारा सामूगढ़ की लड़ाई में परास्त होकर भाग गया है तो शाहजहाँ ने भी बहुत से ऊँटों एवं घोड़ों की पीठ पर सोने की अशर्फियां लादकर दारा के पीछे दौड़ाई थीं ताकि उसका दुर्भाग्यशाली पुत्र धन के अभाव में दर-दर की ठोकरें न खाए तथा समय आने पर इसी धन की सहायता से नई सेना खड़ी कर ले।

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इतना होने पर भी मुगलों के खजाने का बहुत थोड़ा सा हिस्सा ही दारा के साथ जा पाया था। आगरा के लाल किले से जो खजाना औरंगजेब के हाथ लगा, वह इतना अधिक था कि उसका वर्णन करना संभव नहीं है।

शाहजहाँ पर औरंगजेब के पुत्र मुहम्मद का सख्त पहरा लगा दिया गया। अब शाहजहाँ मर कर ही इस पहरे से बाहर जा सकता था। वह केवल अपने पौत्र मुहम्मद की उपस्थिति में ही परिवार के किसी अन्य सदस्य से बात कर सकता था। बादशाह को किसी से भी पत्र-व्यवहार करने की अनुमति नहीं थी। बादशाह जो कुछ करता था अथवा कहता था, उसकी सूचना तुरन्त औरंगजेब तक पहुँचाई जाती थी।

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जहाँआरा ने अपने भाई औरंगजेब को कई बार संदेश भिजवाए कि वह एक बार औरंगजेब से मिलकर उसे बधाई देना चाहती है किंतु औरंगजेब उसके संदेशों के जवाब नहीं देता था। जब शहजादी बार-बार अपना अनुरोध दोहराती रही तो 11 जून 1658 को औरंगजेब ने अपनी बड़ी बहिन जहाँआरा को बुलवाया।

जहाँआरा ने औरंगजेब को उसकी सफलता के लिए बधाई दी तथा उसके सामने प्रस्ताव रखा कि वह अपने पिता शाहजहाँ को कैद से मुक्त कर दे। इसक बदले में बादशाह द्वारा चारों भाइयों में सल्तनता का बंटवारा कर दिया जाएगा किंतु औरंगजेब ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

इस पर जहाँआरा ने आंखों में आंसू भरकर अपने पत्थर-दिल भाई से कहा कि बेशक वह अपने बाप-दादों की सल्तनत पर शासन करे किंतु शहजादी जहाँआरा को वृद्ध और बीमार पिता की सेवा में रहने की अनुमति दे दे। औरंगजेब ने अपनी बड़ी बहिन की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। यह जहाँआरा के लिए बड़ी उपलब्धि थी।

शाहजहाँ जब तक जीवित रहा, लाल किले की खिड़की में बैठकर सूनी आँखों से ताजमहल की ओर ताकता रहा। शाहजहाँ के जिन ढेरों बच्चों को जन्म देते हुए मुमताज महल मौत के मुंह में समा गई थी, उन्हीं बच्चों ने शाहजहां से उसके ताज और तख्त, उसके प्रिय आभूषण और रत्न तथा महल और किले छीन लिए थे। शाहजहाँ के दुर्दिन उसे और भी नीचा दिखाने वाले थे।

शाहजहाँ यह सोच-सोच कर हैरान होता था कि नेकदिल मुमताज के पेट से कैसी बेरहम औलादों ने जन्म लिया था जिन्होंने अपने पिता को बंदी बनाकर उसे जिल्लत भरी जिंदगी जीने पर विवश कर दिया था।

केवल जहाँआरा ही शाहजहाँ के दुर्दिन जानकर उसके साथ रहती थी। बाकी सब तो महलों, किलों तथा सोने-चांदी के टुकड़ों के लिए एक-दूसरे को मारने पर तुले थे। शाहजहाँ की ढेरों बेगमों में से एक भी बेगम अब बादशाह का मुंह देखने नहीं आती थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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