इब्राहीम लोदी की माता ने 25 दिसम्बर 1526 को आगरा में बाबर को जहर दे दिया। इस कारण बाबर मरते-मरते बचा। उस समय बाबर की विभिन्न सेनाएं संभल, जौनपुर, गाजीपुर, रापरी, धौलपुर, बयाना, ग्वालियर, इटावा, कालपी तथा हिसार आदि स्थानों पर युद्ध कर रही थीं। भारत के बहुत से अफगान सेनापति एवं गवर्नर या तो पराजय के कारण या फिर पुराने सुल्तान इब्राहीम लोदी से असंतुष्ट होने के कारण बाबर से आ-आ कर मिलते जा रहे थे।
जब बाबर की सेना धौलपुर पहुंची तो वहाँ के अफगान अमीर मुहम्मद जैतून ने धौलपुर का किला बाबर के सेनापतियों को समर्पित कर दिया और वह स्वयं बाबर की सेवा में उपस्थित हुआ। बाबर ने धौलपुर को खालसा में शामिल करके मुहम्मद जैतून को कई लाख रुपए वार्षिक राजस्व वाली जागीर प्रदान करके अपनी सेवा में रख लिया।
उन्हीं दिनों समाचार मिला कि हिसार फिरोजा के पास हमीद खाँ सारंगखानी 4 हजार अफगानों के साथ उपद्रव मचा रहा है। बाबर ने भारत के पंजाब में स्थित हिसार के लिए हिसार फिरोजा नाम का प्रयोग किया है। उस काल में अफगानिस्तान में भी हिसार फिरोजा नामक स्थान था।
जब हमीद खाँ सारंगखानी हिसार में उपद्रव मचाने लगा तो बाबर ने एक सेना उसके विरुद्ध भेजी। इस सेना ने तेज गति से हिसार पहुंचकर बहुत से अफगानों के सिर काट लिए तथा कटे हुए सिर बाबर के पास भिजवा दिए।
इस समय बाबर का सबसे बड़ा पुत्र हुमायूं, अपने पिता बाबर के लिए बहुत बड़ा सहायक सिद्ध हुआ। उसने न केवल कन्नौज की तरफ एकत्रित हुए 30-40 हजार अफगानों को छिन्न-भिन्न कर दिया अपितु जौनपुर एवं अवध पर अधिकार करके वहाँ मुगल अधिकारी तैनात कर दिए।
जब हुमायूँ कालपी की ओर रवाना हुआ तो कालपी का गवर्नर आलम खाँ अत्यंत भयभीत होकर हुमायूँ की शरण में पहुंचा। हुमायूँ ने उसे अपनी सेवा में रख लिया।
उन्हीं दिनों बाबर को एक ऐसा समाचार मिला जिससे बाबर को अपने पैरों तले से धरती खिसकती हुई प्रतीत हुई। बाबर के गुप्तचरों ने उसे सूचना दी कि महाराणा सांगा बड़ी सेना लेकर आगरा की तरफ आ रहा है। इसलिए उसने हुमायूँ को संदेश भिजवाया- ‘चूंकि अफगानों को भगाने का तुम्हारा काम पूरा हो गया है, इसलिए तुम तत्काल अपनी सेना लेकर मेरे पास पहुंचो क्योंकि काफिर राणा सांगा काफी निकट पहुंच चुका है। हमें सर्वप्रथम उसका उपाय करना चाहिए।’ इस पर 6 जनवरी 1527 को हुमायूँ आगरा पहुंच गया।
बाबर ने लिखा है- ‘जब हम लोग काबुल में ही थे, तब राणा सांगा के दूत ने उपस्थित होकर सांगा की तरफ से निष्ठा प्रदर्शित की थी और यह निश्चय प्रकट किया था कि सम्मानित बादशाह काबुल की ओर से दिल्ली के निकट पहुंच जाएं तो मैं इस ओर से आगरा पर आक्रमण कर दूंगा। मैंने इब्राहीम को भी परास्त कर दिया, दिल्ली तथा आगरा पर भी अधिकार जमा लिया किंतु इस काफिर के किसी ओर हिलने के चिह्न दृष्टिगत नहीं हुए।
कुछ समय पश्चात् उसने कन्दार नामक किले को घेर लिया जो मकन के पुत्र हसन के अधीन था। हसन ने सहायता पाने के लिए अपने दूत मेरे पास भिजवाए किंतु मैंने उसकी कोई सहायता नहीं की क्योंकि मैं अभी तक इटावा, धौलपुर तथा बयाना पर अधिकार नहीं कर सका था।’
बाबर ने लिखा है कि महाराणा सांगा ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया था किंतु राणा सांगा बाबर की सहायता के लिए नहीं आया। बाबर का यह आरोप नितांत मिथ्या है। पाठकों को स्मरण होगा कि ‘दिल्ली सल्तनत की दर्दभरी दास्तान’ में हमने स्पष्ट किया था कि महाराणा सांगा गुजरात, मालवा, अहमदनगर तथा दिल्ली के मुस्लिम शासकों के विरुद्ध लम्बे समय से संघर्ष कर रहा था और उनके क्षेत्रों पर तेजी से अधिकार जमाता जा रहा था।
महाराणा सांगा का उद्देश्य भारत भूमि को मुस्लिम शासकों से मुक्त करवाने का था। ऐसी स्थिति में महाराणा सांगा बाबर को क्यों बुलाता? वह तो स्वयं ही दिल्ली और आगरा पर दृष्टि गढ़ाए बैठा था! इसलिए बाबर द्वारा महाराणा सांगा के सम्बन्ध में लिखी गई बात बिल्कुल झूठी है। किसी अन्य समकालीन लेखक ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है।
जब बाबर स्वयं ही अपने संस्मरणों में जमकर झूठ लिख रहा था, तब बाबर के इतिहासकारों द्वारा लिखे गए तथ्यों का कितना विश्वास किया जा सकता है, यह एक विचारणीय प्रश्न है!
बाबर को सूचना मिली कि मकन के पुत्र हसन ने कन्दार का किला राणा सांगा को समर्पित कर दिया। इससे बाबर को समझ में आ गया कि यदि बाबर ने महाराणा सांगा के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया तो महाराणा सांगा और भी किलों पर अधिकार कर लेगा। कुछ ही समय में बाबर की सेना ने इटावा पर अधिकार कर लिया।
बाबर ने इटावा के तुर्क गवर्नर को निकालकर इटावा महदी ख्वाजा को दे दिया। धौलपुर पर भी बाबर का अधिकार हो गया तथा धौलपुर जुनैद बरलस को प्रदान किया गया। इसी प्रकार कन्नौज सुल्तान मुहम्मद दूल्दाई को दिया गया।
इस प्रकार सांगा की ओर अग्रसर होने से पहले बाबर ने उत्तर भारत के मैदानों में स्थित अनेक नगरों एवं राज्यों पर अधिकार कर लिया जिससे उसके सैनिकों की संख्या में भी अभूतपूर्व वृद्धि हो गई थी।
बाबर चाहता था कि मेवात का शासक हसन खाँ मेवाती भी बाबर की अधीनता स्वीकार कर ले किंतु हसन खाँ मेवाती किसी भी कीमत पर बाबर को मारना चाहता था क्योंकि बाबर ने पानीपत के युद्ध में हसन खाँ मेवाती के पुत्र नाहर खाँ को बंदी बना लिया था जो कि इब्राहीम लोदी की तरफ से युद्ध करने गया था। बाबर ने अब तक नाहर खाँ को बंधक बना रखा था।
हसन खाँ मेवाती कई बार स्वयं आगरा जाकर बाबर से मिला किंतु बाबर ने हसन खाँ से कहा कि यदि उसे अपना पुत्र वापस चाहिए तो उसे बाबर की अधीनता स्वीकार करनी होगी किंतु हसन खाँ मेवाती बाबर की अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं था।
जब बाबर ने सुना कि हसन खाँ मेवाती महाराणा सांगा से मिल सकता है तो बाबर ने नाहर खाँ को बंदीगृह से बाहर निकालकर उसे खिलअत प्रदान की तथा अपने पिता के पास जाने की अनुमति दे दी। नाहर खाँ ने बाबर को आश्वासन दिया कि वह हर हाल में अपने पिता हसन खाँ को बाबर के पक्ष में ले आएगा।
बाबर ने लिखा है- ‘यह दुष्ट धूर्त अर्थात् हसन खाँ केवल अपने पुत्र की मुक्ति की प्रतीक्षा में चुपचाप बैठा था। जैसे ही उसे ज्ञात हुआ कि उसका पुत्र मुक्त हो गया है और अलवर आ गया है तो हसन खाँ आगरा के निकट टोडा भीम में महाराणा सांगा से मिल गया। हसन खाँ के पुत्र को इस अवसर पर मुक्त करना उचित नहीं था।’
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता