जब हुमायूँ ने भयभीत होकर लाहौर छोड़ दिया1 तथा वह रावी नदी पार करके उसके पश्चिमी तट पर चला गया तब कुछ दिन बाद शेरशाह का दूत हुमायूँ से मिलने आया।
हुमायूँ ने कहा- ‘अगले दिन सुबह उसे मेरे दरबार में हाजिर किया जाए।’
मिर्जा कामरान ने हुमायूँ से कहा- ‘कल मजलिस होगा और शेर खाँ का एलची आएगा। उस समय यदि मैं आपके गलीचे के कौने पर बैठूं तो शेर खाँ के दूत के सामने मेरी प्रतिष्ठा होगी।’
हुमायूँ ने कामरान की इस बात का क्या उत्तर दिया, इसकी तो जानकारी नहीं मिलती किंतु इतना अनुमान लगाया जा सकता है कि हुमायूँ अवश्य ही कामरान की दुष्टता को समझ गया होगा कि अब कामरान स्वयं को बादशाह के बराबर मानने लगा है।
गुलबदन बेगम ने लिखा है- ‘यह बात सुनकर बादशाह का हृदय सुस्त हो गया जिससे उसे निद्रा सी आ गई। उसने स्वप्न में देखा कि सिर से पांव तक हरा कपड़ा पहने हुए और हाथ में छड़ी लिए हुए एक पुरुष आया है जो कहता है कि धैर्य रखो, शोक मत करो। उसने अपनी छड़ी बादशाह के हाथ में देकर कहा कि अल्लाह तुम्हें एक पुत्र देगा जिसका नाम जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर होगा। बादशाह ने पूछा कि आपका क्या नाम है? इस पर उस पुरुष ने उत्तर दिया- जिंदाफील अहमद जाम। उस पुरुष ने यह भी कहा कि तुम्हारा वह पुत्र मेरे अंश से होगा।’
उस समय हुमायूँ की बेगम बीबी गौनूर गर्भवती थी। बादशाह द्वारा दिन में देखे गए सपने के आधार पर सबने अनुमान लगाया कि बीबी गौनूर को पुत्र होगा। कुछ दिनों बाद बीबी गौनूर ने एक पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम बख्शीबानू बेगम रखा गया। गुलबदन बेगम ने कामरान की इस मांग पर कि मुझे बादशाह के गलीचे के कौने पर बैठने की अनुमति दी जाए, हुमायूँ को नींद आने तथा दिन में ही स्वप्न देखकर जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर के जन्म की भविष्यवाणी सुनने की बात लिखकर इस पूरे प्रकरण का पटाक्षेप कर दिया है तथा संकेतों में ही यह कहने का प्रयास किया है कि कामरान की दुष्टता से हुमायूँ घबरा गया किंतु फरिश्तों ने हुमायूँ को हिम्मत न हारने का ढाढ़स दिलाया।
मिर्जा हैदर ने हुमायूँ को सलाह दी कि हुमायूँ को काश्मीर चले जाना चाहिए तथा वहीं से पुनः भारत विजय का आयोजन करना चाहिए। दूसरी ओर मिर्जा हिंदाल तथा यादगार मिर्जा की राय थी कि हुमायूँ को सिंध होते हुए गुजरात जाना चाहिए तथा वहाँ से भारत विजय की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।
अभी ये वार्ताएं चल ही रही थीं कि हुमायूँ को ज्ञात हुआ कि कामरान तथा शेरशाह के बीच गुप्त पत्र-व्यवहार चल रहा है। कामरान ने इस शर्त पर शेरशाह को सहयोग देने का वचन दिया है कि शेरशाह पंजाब और काबुल कामरान के अधिकार में छोड़ दे।
इस पर हुमायूँ समझ गया कि कामरान दगा करेगा, उस पर भरोसा करके लाहौर में रुकना स्वयं ही मौत के फंदे में फंसने जैसा है। इसलिए हुमायूँ ने मिर्जा हैदर की सलाह मानते हुए काश्मीर के लिए प्रस्थान किया। इस पर मिर्जा हिंदाल हुमायूँ से नाराज होकर सिंध की तरफ चला गया। जब हुमायूँ ने काश्मीर के लिए प्रस्थान करने का विचार किया तब हुमायूँ को सूचना मिली कि कामरान ने एक सेना भेजकर काश्मीर का मार्ग अवरुद्ध कर दिया है ताकि हुमायूँ काश्मीर नहीं जा सके।
इस पर हुमायूँ ने अपना मार्ग बदलकर बदख्शां की तरफ जाने का विचार किया जो अब तक हुमायूँ के अपने अधिकार में था तथा जिसका रास्ता काबुल से होकर जाता था किंतु कामरान ने हुमायूँ से कहा- ‘बादशाह बाबर ने मेरी माता गुलरुख बेगम को काबुल दिया था, इसलिए अब बादशाह हुमायूँ का वहाँ जाना उचित नहीं है।’
इस पर हुमायूँ ने कामरान से कहा- ‘बादशाह बाबर अक्सर कहा करते थे कि हम काबुल किसी को नहीं देंगे, यहाँ तक कि मेरे पुत्र भी काबुल का लोभ न करें क्योंकि जब से काबुल मेरे अधिकार में आया है, तब से मुझे हर युद्ध में विजय प्राप्त हुई है। हुमायूँ ने कहा कि बादशाह बाबर इसलिए भी काबुल किसी को नहीं देते थे क्योंकि उनके अधिकांश पुत्र काबुल में ही पैदा हुए थे।’
इस पर भी कामरान ने हुमायूँ के काबुल जाने के विचार का प्रतिवाद किया तो हुमायूँ ने कहा- ‘मैंने जीवन भर तुझ पर भ्रातृोचित व्यवहार किया है तथा सदैव तुझ पर कृपा की है, उस सब का क्या हुआ?’
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि हुमायूँ के यह कहने पर भी कामरान ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तो बादशाह हुमायूँ ने विचार किया कि इस समय मेरे पास सेना नहीं है और कामरान के पास सेना है, अतः मुझे कामरान की बात मान लेनी चाहिए। अतः बादशाह हुमायूँ ने काबुल जाने का विचार त्यागकर मुल्तान होते हुए सिंध जाने का निश्चय किया।
कामरान ने हुमायूँ को बदख्शां जाने से इसलिए रोक दिया था क्योंकि कामरान को भय था कि यदि हुमायूँ बदख्शां पहुंच गया तो वह काबुल, कांधार और गजनी के वे समस्त प्रदेश छीन लेगा जो बाबर के समय से कामरान के अधीन थे।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि हुमायूँ मुल्तान के दुर्ग में केवल एक दिन ठहरा। उस साल अनाज बहुत कम हुआ था। इसलिए दुर्ग में अनाज की बहुत कमी थी। हुमायूँ ने वह समस्त अनाज मनुष्यों में बांट दिया तथा अगले दिन उस स्थान पर आ गया जहाँ सात नदियां आकर मिलती थीं।
गुलबदन ने सात नदियों का उल्लेख गलत किया है, मुल्तान पांच नदियों के संगमों के निकट स्थित एक मोड़ पर बसा हुआ है इनमें से सतलज एवं रावी नदियां प्रमुख हैं।
हुमायूँ ने देखा कि नदी का पाट बहुत चौड़ा है तथा उसे पार करने के लिए एक भी नाव उपलब्ध नहीं है। वहीं पर हुमायूँ को समाचार मिला कि शेर खाँ का सेनापति खवास खाँ एक सेना लेकर हुमायूँ के पीछे आ रहा है। इस पर हुमायूँ ने बख्शू बिलोच के पास अपना संदेशवाहक भेज कर उससे सहायता उपलब्ध कराने का अनुरोध किया। इस पर बख्शू बिलोच ने बादशाह की सेवा में अन्न से भरी हुई एक सौ नावें भिजवाईं। हुमायूँ ने वह अन्न सैनिकों में बंटवा दिया और अपने सैनिकों सहित उन्हीं नावों में बैठकर रवाना हो गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता