Friday, November 22, 2024
spot_img

22.भारतीयों की लंगोट का मजाक उड़ाता था बाबर!

पानीपत का युद्ध जीतने के बाद बाबर आगरा आ गया। आगरा आकर बाबर ने भारत के सम्बन्ध में कुछ संस्मरण लिखे। सोलहवीं शताब्दी की प्रथम चतुर्थांशी में लिखे गए इस विवरण में बाबर ने बहुत सी रोचक और उपयोगी बातें लिखी हैं किंतु भारतीयों का वर्णन करते समय उसने भारत के लोगों की बहुत निंदा की है तथा उन पर भूखे-नंगे एवं निकम्मे होने के आरोप लगाए हैं।

बाबर ने लिखा है- ‘भारत में अधिकांश लोग कारीगर तथा श्रमिक हैं। वे पीढ़ियों से यही काम करते आ रहे हैं। हिन्दुस्तान में बहुत कम आकर्षण है। यहाँ के निवासी न तो रूपवान् होते हैं और न सामाजिक व्यवहार में कुशल होते हैं। ये न तो किसी से मिलने जाते हैं और न कोई इनसे मिलने आता है।

न इनमें प्रतिभा होती है और न कार्यक्षमता। न इनमें शिष्टाचार होता है और न उदारता! भारतीय लोग कला-कौशल में न तो किसी अनुपात पर ध्यान देते हैं और न नियम तथा गुण पर। न तो यहाँ अच्छे घोड़े होते हैं और न अच्छे कुत्ते। न अंगूर होता है, न खरबूजा और न उत्तम मेवे। यहाँ न तो बरफ मिलती है और न ठण्डा जल।

यहाँ के बाजारों में न तो अच्छी रोटी ही मिलती है और न अच्छा भोजन ही प्राप्त होता है। यहाँ न हम्माम अर्थात् गरमपानी के गुसलखाने हैं, न मदरसे, न शमा, न मशाल और न शमादान! शमा तथा मशाल के स्थान पर यहाँ बहुत से मैले कुचैले लोगों का एक समूह होता है जो डीवटी कहलाते हैं। वे अपने बाएं हाथ में एक छोटी सी तीन पांव की लकड़ी लिए रहते हैं।

उसके एक किनारे पर मोमबत्ती की नोक के समान एक वस्तु सी लगी रहती है। इसमें अंगूठे के बराबर एक मोटी सी बत्ती लगी रहती है। वे अपने दाएं हाथ में एक तुम्बी सी लिए रहते हैं। उसमें एक बारीक छेद होता है जिससे बत्ती में तेल की धार टपकाई जाती है। धनी लोग सौ-दो सौ दीवटियों को अपने यहाँ रखते हैं। जब बादशाह या बेगम को आवश्यकता होती है तो यही मैले-कुचैले दीवटी बत्ती लेकर उनके निकट खड़े हो जाते हैं।’

बाबर ने लिखा है- ‘हिन्दुस्तान में बड़ी नदियों एवं तालाबों के अतिरिक्त कहीं जलधाराएं नहीं होतीं। इनके उद्यानों तथा भवनों में भी जलधाराएं नहीं होतीं। इनके घरों में कोई आकर्षण नहीं होता। न उनमें हवा जाती है, न उनमें सुडौलपन होता है और न अनुपात।

कृषक तथा निम्नवर्ग के लोग अधिकांशतः नंगे ही रहते हैं। वे लोग लत्ते का एक टुकड़ा बांध लेते हैं जो लंगोटा कहलाता है। नाभि से नीचे एक लत्ते के टुकड़े को दोनों जांघों के नीचे से लेते हुए पीछे ले जाकर बांध देते हैं। स्त्रियां भी लुंगी बांधती हैं। इसका आधा भाग कमर के नीचे होता है ओर दूसरा सिर पर डाल लिया जाता है।’

बाबर ने अपनी पुस्तक में अनेक विरोधाभासी बातें लिखी हैं। एक स्थान पर वह भारत एवं भारतवासियों की प्रशंसा करते हुए कहता है- ‘भारत वालों को समय, संख्या एवं तौल सम्बन्धी ज्ञान बहुत अधिक है जिससे ज्ञात होता है कि यह एक धनी देश है। हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बहुत बड़ा देश है।

यहाँ अत्यधिक सोना-चांदी है। वर्षा ऋतु में यहाँ की हवा बड़ी ही उत्तम होती है। कभी-कभी दिन भर में 15-20 बार वर्षा हो जाती है। स्वास्थ्यवर्द्धक एवं आकर्षक होने के कारण उसकी तुलना असम्भव है। केवल वर्षा ऋतु में ही नहीं सर्दियों एवं गर्मियों में भी यहाँ बहुत अच्छी हवा चलती है।’

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

बाबर ने लिखा है- ‘हिन्दुस्तान में भीरा (भेरा) से लेकर बिहार तक जो प्रदेश इस समय मेरे अधीन हैं, उनका वार्षिक राजस्व संग्रह 52 करोड़ रुपए है।’ जिस देश के लोगों को बाबर ने बारबार भूखा-नंगा और निकम्मा कहा है, उस देश के एक छोटे से हिस्से से बाबर को 52 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता था। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के लोग भूखे-नंगे थे या बाबर स्वयं जो हजारों किलोमीटर की यात्रा के कष्ट सहकर भारत का सोना-चांदी और सुंदर औरतें लूटने आया था!

बाबर ने स्वयं ही अपने संस्मरणों में रहंट, डोल, चरस तथा नहरों की जानकारी दी है जो इस बात के प्रमाण हैं कि भारत के किसान पूर्णतः बरसात पर निर्भर नहीं थे, वे धरती के गर्भ से जल लेकर खेतों में सिंचाई करते थे। ऐसे लोग भूखे-नंगे कैसे हो सकते थे! यदि थे तो उसके लिए क्या वे तुर्क एवं अफगान लुटेरे जिम्मेदार नहीं थे जो विगत साढ़े तीन सौ सालों से उत्तर भारत के मैदानों पर राज करते आ रहे थे!

बाबर ने अपनी पुस्तक में भारत के गांवों एवं नगरों के सम्बन्ध में एक रोचक बात लिखी है जो भारत के लोगों की दुर्दशा के कारण का कच्चा चिट्ठा अनायास ही खोल देती है।

बाबर ने लिखा है- ‘हिन्दुस्तान में पुरवे, गांव तथा नगर क्षण भर में बस जाते हैं और उसी प्रकार नष्ट भी हो जाते हैं। इस प्रकार बड़े-बड़े नगरों के निवासी जो वर्षों से वहाँ बसे होते हैं, यदि वहाँ से भागना चाहते हैं तो वे एक या डेढ़ दिन में वहाँ से इस प्रकार भाग जाते हैं कि लेश-मात्र भी उनका वहाँ कोई चिह्न नहीं रह पाता।

यदि उन्हें किसी स्थान को आबाद करना होता है तो उन्हें न तो नहर खोदने की आवश्यकता पड़ती है और न बंद बंधवाने की, क्योंकि यहाँ वर्षा के सहारे ही कृषि होती है। जनसंख्या की तो कोई सीमा ही नहीं। लोग एकत्र हो ही जाते हैं। कुआं अथवा तालाब खोद लेते हैं। घरों तथा दीवारों के बनाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। घास बहुत होती है, वृक्षों की तो कोई संख्या ही नहीं बताई जा सकती। झौंपड़ियां बना ली जाती हैं और तत्काल ग्राम अथवा नगर बस जाता है।’

यदि हम बाबर के उक्त कथन पर विचार करें कि उस काल के भारत में गांवों एवं नगरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना कोई समय गंवाए स्थानांतरित कर देने की प्रवृत्ति क्यों विकसित हो गई थी तो हम पाएंगे कि विगत सैंकड़ों सालों से पश्चिम की ओर से हो रहे विदेशी आक्रमणों के कारण भारत के लोगों को अपने गांव या नगर खाली करके बार-बार इधर-उधर भागना पड़ता था, इस कारण लोगों में यह प्रवृत्ति विकसित हो गई थी।

गांवों एवं नगरों के त्वरित पलायन की इस प्रवृत्ति के माध्यम से एक और बात पर ध्यान जाता है कि उस काल में भारतीयों के पास इतना सामान ही नहीं होता था जिसे लेकर भागना पड़े। अधिकांश लोग निर्धन थे, उनके पास एकाध कपड़े, थोड़े से अनाज और मिट्टी के दो-चार बर्तनों के अतिरिक्त और कुछ होता ही नहीं था। सारा धन महमूद गजनवी, मुहम्मद गौरी और तैमूर लंग जैसे तुर्क आक्रांता लूट कर ले जा चुके थे और तीन सौ सालों से दिल्ली के अफगान शासक लूट रहे थे।

उस काल के भारत में बहुत कम हिन्दू थे जिनके पास थोड़ा बहुत धन था किंतु वे भी निर्धनों की तरह रहते थे और अपना धन धरती में गाढ़ कर रखते थे। तुर्क एवं अफगान शासकों ने कई सौ सालों के शासन में हिन्दुओं पर यह प्रतिबंध लगा रखा था कि वे धन नहीं रख सकते, घोड़ा नहीं रख सकते, पक्का घर नहीं बना सकते, नए कपड़े नहीं पहन सकते। ऐसी स्थिति में लोगों को अपना शहर छोड़कर दूसरा शहर बसाने में भला क्या समय लग सकता था!

यदि बाबर की बात सही मान ली जाए तो भी भारतीयों को भूखा, नंगा और कुरूप बनाने के लिए कौन जिम्मेदार था! केवल और केवल बाबर के पूर्वज जो कभी हूण कबीलों के रूप में, कभी तुर्की कबीलों के रूप में, कभी मंगोल कबीलों के रूप में, कभी अफगानों के रूप में और कभी मुगलों के रूप में भारत में घुसते आ रहे थे और भारत की जनता का सर्वस्व हरण करते जा रहे थे।

  – डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source