बाबर चाहता था कि उसका पुत्र हुमायूँ मध्य-एशिया को जीतकर समरकंद को अपनी राजधानी बनाए किंतु हुमायूँ बाबर के आदेशों की अवहेलना करके भारत आ गया। भारत आकर हुमायूँ गंभीर रूप से बीमार हो गया। इस बार बाबर ने मुर्तजाअली करमुल्ला की परिक्रमा करके प्रार्थना की कि हे अल्लाह! यदि प्राण के बदले प्राण दिया जाता हो तब मैं बाबर, अपनी अवस्था और प्राण हुमायूँ को देता हूँ। उसी दिन से बाबर बीमार पड़ गया और हुमायूँ ठीक हो गया।
चिकित्सकों के अनुसार बाबर पर उस विष के दुष्प्रभाव दृष्टिगत हो रहे थे जो कुछ माह पहले इब्राहीम लोदी की माता बुआ बेगम ने बावर्चियों के माध्यम से बाबर को दिया था। इस कारण बाबर पर किसी औषधि का असर नहीं हो रहा था। हालांकि बाबर के चार पुत्र थे जिनमें से दो पुत्र हुमायूँ तथा अस्करी बाबर के पास आगरा में थे, कामरान काबुल में था एवं हिंदाल बदख्शां में था तथापि बाबर अपनी बीमारी की हालत में हिंदाल को बहुत याद किया करता था। बाबर ने मीर खुर्द बेग के पुत्र मीर बर्दी बेग को आदेश भिजवाए कि वह हिंदाल को लेकर भारत आ जाए।
बाबर बेसब्री से हिंदाल के आने की प्रतीक्षा करने लगा। जो कोई भी मुनष्य अफगानिस्तान से आता था, बाबर बहुत कातर होकर उससे पूछता था कि हिंदाल कहाँ है और क्या करता है? आखिर एक दिन मीर बर्दी बेग आगरा पहुंचा। बाबर ने उससे पूछा कि हिंदाल कहाँ है? कब आएगा? मीर बर्दी ने कहा कि शहजादा दिल्ली पहुंच गया है, आज या कल हुजूर की सेवा में आएगा। इस पर बाबर ने कहा कि अरे अभागे! हमने सुना है कि तेरी बहिन का विवाह काबुल में और तेरा लाहौर में हुआ है, इन्हीं विवाहों के कारण तू मेरे पुत्र को जल्दी लेकर नहीं आया!
अगले दिन हिंदाल बाबर की सेवा में उपस्थित हुआ। इसके कुछ दिन बाद बाबर इस असार-संसार से चला गया। कौन जाने इब्राहीम लोदी की माता द्वारा दिए गए जहर का असर था या हुमायूँ को अपनी जिंदगी देने की प्रार्थना का किंतु यह तय है कि बाबर की मृत्यु असमय हुई।
बाबर के पिता मिर्जा उमर शेख की मृत्यु के समय बाबर 11 साल का बालक था, तभी से वह अपना जीवन युद्ध के मैदानों में तीरों, तलवारों और तोपों के बीच बिता रहा था। इसीलिए इतिहासकारों ने बाबर को असमय प्रौढ़ बालक कहा है किंतु वास्तविकता यह थी कि जीवन भर संघर्षों की ज्वाला में झुलसकर बाबर व्यक्तित्व-विकृति (पर्सनल्टी डिसऑर्डर) का शिकार हो गया था।
एक ओर तो बाबर के भीतर एक ऐसा श्रेष्ठ इंसान रहता था जो कविता से प्रेम करता था, पुस्तकें पढ़ता और आत्मकथा लिखता था, अपने परिवार पर प्राण छिड़कता था और अपने पुत्रों को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचाना चाहता था तो दूसरी ओर बाबर के भीतर एक ऐसा खूंखार आदिम हिंसक मनुष्य बसता था जो हर समस्या का हल तलवार से निकालना चाहता था। एक ओर तो बाबर अपने परिवार से अत्यंत प्रेम करता था तो दूसरी ओर अपने शत्रुओं से धोखा करने, उनके सिर काटने, कटे हुए सिरों की मीनारें बनवाने और और मीनारों के सामने खड़े होकर गाजी की उपाधि धारण करने में लेशमात्र संकोच नहीं करता था। इंसानों के शरीरों से बहता हुआ खून, उनके कण्ठों से निकलती हुई चीखें और रहम के लिए गिड़गिड़ातीं भयाक्रांत-आवाजें बाबर को आनंद देती थीं।
एक ओर तो बाबर अपने पुरखों की राजधानी समरकंद से इतना प्रेम करता था कि अपने बड़े पुत्र हुमायूँ को समरकंद का बादशाह बनते हुए देखना चाहता था और दूसरी ओर बाबर स्वयं अपनी मातृभूमि मध्य-एशिया को लौटने के लिए तैयार नहीं था।
यह जानकर बहुत आश्चर्य होता है कि जो बाबर इंसानों का रक्त बहाने के लिए सदैव तत्पर रहता था, वह कविता लिखने और सुनने का बड़ा शौकीन था। बाबर ने अपने कुछ सैनिकों के नाम लिखे हैं जो अच्छी कविता करते थे। वे लोग नाव की यात्रा के समय अथवा रात्रिकाल में सिपाहियों को कविताएं सुनाकर उनका मनोरंजन किया करते थे। बाबर ने लिखा है कि मुहम्मद सालेह नामक एक सैनिक सबका मजाक उड़ाया करता था। उसने एक दिन नाव पर यात्रा करने के दौरान यह कविता सुनाई-
हे प्रियतम! तेरे सरीखे हावभाव वाले के होते हुए
किसी अन्य प्रियतम का कोई क्या करे?
जिस स्थान पर तू हो, वहाँ किसी और का कोई क्या करे?
इस पर बाबर ने सालेह मुहम्मद का मजाक बनाते हुए यह कविता बनाई-
तुझ सरीखे बदमस्त करने वाले का कोई क्या करे?
कोई बैल वाला किसी गधी का क्या करे।
बाबर ने लिखा है- ‘इस कविता को कहने के बाद मुझे बहुत ग्लानि हुई। मुझे लगा कि जब हम अपनी वाणी से बहुत सुंदर शब्द बोल सकते हैं तब हम उस वाणी का उपयोग गंदे शब्दों के लिए क्यों करें। इस कारण मैंने उसी दिन से हास्य-व्यंग्य वाली कविता करना छोड़ दिया।’
खराब कविता लिखने के पश्चाताप-स्वरूप बाबर ने तुर्की भाषा में एक बहुत अच्छी कविता लिखी जिसके भाव इस प्रकार थे-
हे वाणी! मैं तेरे साथ किस प्रकार व्यवहार करूं
क्योंकि तेरे कारण मेरे हृदय से रक्त प्रवाहित है
वह वाणी उत्कृष्ट थी जिससे ऐसे गीत निकले
व्यंग्य क्षुद्र तथा अश्लील असत्य तुझसे निकले।
यदि तू कहे, इस प्रतिज्ञा के कारण मैं न जलूंगा
तो तू अपनी लगाम को इस कलह के मैदान से मोड़ दे!
एक अन्य कविता में बाबर ने लिखा-
‘हे ईश्वर! हमने अपनी आत्मा के प्रति अत्याचार किया है। यदि तू हमें क्षमा न करेगा और हमारे प्रति दया न करेगा तो हम निःसंदेह उन लोकों में होंगे जो नष्ट होने वाले हैं।’
बबर लिखता है- ‘मैंने नए सिरे से पश्चाताप करते हुए तौबा की और अश्लील तथा नीच विचारों एवं बातों को त्यागकर अपने हृदय को सांत्वना दी। मैंने अपनी लेखनी तोड़ डाली। ईश्वर की ओर से पापी मनुष्य के लिए इस प्रकार की चेतावनी महान् सौभाग्य है। जो कोई भी इन चेतावनियों से सन्मार्ग पर आ जाए तो यह उसका बहुत बड़ा सौभाग्य है।’
यह बात समझ में नहीं आती कि जिस बाबर ने भारत में हिन्दुओं के सिर काटकर उनके ढेर बनवाए, जो बाबर विधर्मियों के प्रति अत्यंत क्रूर, हिंसक तथा रक्त-पिपासु चरित्र का प्रदर्शन करता था, वह आत्मा और परमात्मा जैसी अच्छी बातें कैसे सोच लेता था! संभवतः पर्सनल्टी डिसऑर्डर अर्थात् व्यक्तित्व की विकृति इसी को कहते हैं।
बाबर के पिता मिर्जा उमर बेग ने बाबर की शिक्षा-दीक्षा की निश्चय ही अच्छी व्यवस्था की होगी क्योंकि उमरबेग का दरबार उस समय के विद्वान व्यक्तियों से भरा हुआ था। बाबर का नाना यूनुस खाँ अपने समय का ख्यातिनाम विद्वान था। उसे चित्रकला, संगीतकला एवं अन्य कलाओं में अच्छी रुचि थी। नाना यूनुस खाँ ने बाबर को बहुत प्रभावित किया था। इस कारण बाबर में विभिन्न कलाओं के प्रति स्वाभाविक रूप से प्रेम पनप गया।
बाबर की माँ कूतलूक निगार खानम तुर्की एवं फारसी की अच्छी ज्ञाता थी। इस कारण बाबर में साहित्य के प्रति प्रेम जन्मा। बाबर प्रतिदिन कुछ न कुछ अवश्य लिखता था। वह अपने जीवन में जिस भी स्थान पर गया, उसने वहाँ का वर्णन अवश्य किया। वह उस स्थान के पक्षियों, वनस्पतियों, पहाड़ों, झीलों, नदियों, पशुओं, मनुष्यों, नगरों, बगीचों एवं भवनों आदि का बारीकी से वर्णन करता था जिससे स्पष्ट होता है कि उसे नगरों के निर्माण एवं भवनों की भी अच्छी जानकारी थी।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता