जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने ई.1526 में भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना की थी। उसे भारत के इतिहास में बाबर के नाम से जाना जाता है। उसका जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगना में हुआ था। उसका पिता मिर्जा उमर बेग, मंगोल शासक तैमूर लंग की चौथी पीढ़ी का वंशज था जबकि बाबर की माँ कूतलूक निगार खानम, तुर्क शासक चंगेज खाँ की तेरहवीं पीढ़ी की वंशज थी। इस प्रकार बाबर में विश्व के दो कुख्यात एवं रक्त-पिपासु आक्रांताओं का खून बहता था। वह पिता की ओर से मंगोलों का एवं माता की तरफ से तुर्कों का वंशज था।
बाबर के पिता मिर्जा उमर बेग ने बाबर की शिक्षा-दीक्षा की निश्चय ही अच्छी व्यवस्था की होगी क्योंकि उसका दरबार उस समय के विद्वान व्यक्त्यिों से भरा हुआ था। बाबर का नाना यूनुस खाँ अपने समय का ख्यातिनाम विद्वान था। उसे चित्रकला, संगीत एवं अन्य कलाओं में अच्छी रुचि थी। नाना यूनुस खाँ ने बाबर को बहुत प्रभावित किया था। इस कारण बाबर में विभिन्न कलाओं के प्रति स्वाभाविक रूप से प्रेम पनप गया।
बाबर की माँ कूतलूक निगार खानम तुर्की एवं फारसी की अच्छी ज्ञाता थी। इस कारण बाबर में साहित्य के प्रति प्रेम जन्मा। बाबर प्रतिदिन कुछ न कुछ अवश्य लिखता था। वह अपने जीवन में जिस भी स्थान पर गया, उसने वहाँ का वर्णन अवश्य किया। वह उस स्थान के पक्षियों, वनस्पतियों, पहाड़ों, झीलों, नदियों, पशुओं, मनुष्यों, नगरों, बगीचों एवं भवनों आदि का बारीकी से वर्णन करता था जिससे स्पष्ट होता है कि उसे नगरों के निर्माण एवं भवनों की भी अच्छी जानकारी थी।
जब बाबर 11 वर्ष का था, उसके पिता मिर्जा उमर बेग का निधन हो गया। इतनी कम आयु में बाबर को फरगना का राज्य संभालना पड़ा। उसी समय उसके ताऊ मिर्जा अहमद ने फरगना पर आक्रमण कर दिया जो कि समरकंद का शासक था। अहमद ने बाबर के कुछ नगरों पर अधिकार कर लिया। बाबर के मामा महमूद खाँ ने भी बाबर के राज्य पर आक्रण करके उसके कुछ नगर दबा लिए। कीश के अमीर ने भी बाबर के राज्य का कुछ भाग दबा लिया। इन कठिनाइयों में उसकी दादी ऐसान दौलत बेगम ने उसका मार्गदर्शन किया जिसके कारण बाबर अपने राज्य की रक्षा कर सका। राज्य बचाने के लिए किए गए कड़े संघर्ष के कारण उसमें समय से पहले ही प्रौढ़ता आ गई। इसलिए इतिहासकारों ने उसे ‘असमय प्रौढ़ बालक’ कहा है।
पाँच साल बाद जब बाबर के ताऊ अहमद मिर्जा की मृत्यु हुई और उसके पुत्रों में राज्याधिकार को लेकर झगड़ा हुआ तो बाबर ने समरकंद पर आक्रमण कर दिया। समरकंद उसके पूर्वजों की राजधानी थी इसलिए बाबर उस पर अपना नैसर्गिक अधिकार समझता था। समरकंद उन दिनों तुर्की सभ्यता एवं संस्कृति का बड़ा केन्द्र था। वहाँ के विद्यालय, पुस्तकालय, चिकित्सालय और राजाप्रासाद मुस्लिम जगत् में विख्यात थे। समरकंद के कवि, गणितज्ञ, साहित्यकार और ज्योतिषियों की धाक चारों ओर थी। समरकंद के वन-उपवन और पुष्प लोगों को मुग्ध कर देते थे।
जब बाबर ने समरकंद पर विजय प्राप्त की तो उसने समरकंद शहर का बारीकी से निरीक्षण किया एवं अपने आदमियों से उसकी चाहरदीवारी को नपवाया। बाबर ने अपनी पुस्तक ‘बाबरनामा’ में इस शहर का बड़ा रोचक वर्णन किया है। बाबर ने लिखा है कि समरकंद एक सुंदर शहर था जिसे इस्कंदर नामक तुर्क सरदार ने बसाया था। बाद में तैमूर बेग ने इसे अपनी राजधानी बनाया जिसे भारत में तैमूर लंग अर्थात् लंगड़ा तैमूर कहा जाता है। बाबर ने जब समरकंद पर अधिकार किया था तब इस शहर के चारों ओर एक सुंदर चाहरदीवारी बनी हुई थी जिसकी लम्बाई दस हजार कदम थी। समरकंद के पूर्व में फरगाना तथा काशगर, पश्चिम में बुखारा तथा ख्वारिज्म, उत्तर में ताशकंद और शाहरुखिया नामक नगर थे जिन्हें तुर्कों एवं मंगोलों ने दुनिया भर के नगरों को लूटकर समृद्ध किया था। समरकंद में भी बाबर के पूर्वज तैमूर बेग तथा उलूग बेग मिर्जा के बनाए हुए कई भवन तथा उद्यान थे जिन्हें बाबर ने अपनी आंखों से देखा था।
बाबर के पूर्वज उलूग बेग मिर्जा ने समरकंद में एक वेधशाला बनवाई थी जिसे जीचशाही कहा जाता था। इस वेधशाला में तीन मंजिलें थीं। बाबर ने इसे समरकंद के उत्तम भवनों में से एक कहा है। उलूग बेग मिर्जा ने इस वेधशाला में सूर्य, चन्द्र एवं अन्य नक्षत्रों की गति का अध्ययन करके कूरकानी जीच (पंचांग) तैयार किया था। यह पंचांग इतना प्रसिद्ध हुआ कि कई शताब्दियों तक विश्व के कई देशों में यही पंचांग प्रचलित रहा। उस समय तक सम्पूर्ण विश्व में केवल 7-8 वेधशालाओं का निर्माण हुआ था जिनमें से एक वेधशाला भारत के उज्जैन राज्य के राजा विक्रमादित्य के समय में बनी थी, बाबर ने उज्जैन की वेधशाला का समय 57 ईस्वी पूर्व बताया है तथा इस वेधशाला में बने पंचांग में कुछ दोष बताए हैं।
बाबर के समय एक और पंचांग का उपयोग होता था जिसे ‘ईलखानी जीच’ कहते थे। इसे ख्वाजा नसीर तूसी ने हुलाकू खाँ के समय ‘मरागा’ में तैयार किया था। बाबर ने ‘मामूनी जीच’ का भी उल्लेख किया है जिसे मामून खलीफा द्वारा निर्मित वेधशाला में तैयार किया गया था। उसने ‘बतलीमूस’ नामक वेधशाला का भी उल्लेख किया है। बाबारनामा में समरकंद के भवनों एवं वेधशालाओं के वर्णन से अनुमान लगाया जा सकता है कि बाबर में नगर-सौन्दर्य के सम्बन्ध में चेतना थी, उसकी इतिहास के अध्ययन में भी रुचि थी और वह नक्षत्र विद्या की बारीकियों को भी समझता था। समरकंद को ‘मावराउन्नहर’ तथा ‘बदलए-महफूजा’ भी कहा जाता था जिसका अर्थ होता है- ‘जिसे किसी शत्रु ने आज तक नहीं जीता।’ बाबर ने समरकंद की चाहरदीवारी में एक लोहे के फाटक का उल्लेख किया है जिसके बाहर शाह जिन्दा की मजार थी।
समरकंद के सम्बन्ध में बाबर ने लिखा है कि यह आश्चर्यजनक रूप से सुंदर है तथा यहाँ विभिन्न व्यवसाय करने वाले लोग एक ही बाजार में नहीं बैठते थे अर्थात् विभिन्न व्यवसाय वाले लोगों के लिए अलग-अलग बाजार बने हुए थे। बाबर ने इसे बड़ी ही आश्चर्यजनक योजना बताया है तथा समरकंद के नानबाइयों और बावरचियों की तारीफ करते हुए यह भी लिखा है कि संसार का सर्वोत्तम कागज यहीं बनता है।
कीश के मेहराब (Arches of Ketch)
बाबर ने अपनी पुस्तक में समरकंद के पास स्थित कीश नामक नगर का वर्णन भी किया है जो समरकंद से लगभग 48 मील दूर स्थित था। तैमूर लंग का जन्म इसी नगर में हुआ था। तैमूर लंग ने कीश में अपने लिए भव्य महलों का निर्माण करवाया था। उसने अपने दरबार के लिए एक भव्य मेहराबदार हॉल बनवाया था जिसमें उसके सेनापति बेग तथा दरबारी बेग उसकी दाईं एवं बाईं ओर बैठते थे। दरबार में उपस्थित होने के इच्छुक लोगों के लिए उसने दो छोटे हॉल बनवाए थे और दरबार में प्रार्थना करने के लिए दरबार भवन के चारों ओर छोटे-छोटे कमरे बनवाए थे।
बाबर ने लिखा है कि इस प्रकार की भव्य मेहराबें संसार में बहुत कम होंगी तथा कहा जाता है कि यह ‘किसरा के मेहराब’ से भी उत्तम है। तैमूर ने कीश में एक मदरसे तथा एक मकबरे का भी निर्माण करवाया था। जहाँगीर मिर्जा की कब्र तथा उसकी संतान के कुछ अन्य लोगों की कब्रें भी वहीं थीं जिनका उल्लेख बाबर ने अपनी पुस्तक में किया है।
बाबर ने लिखा है कि चूंकि कीश ऐसा स्थान नहीं था जिसे खूबसूरत नगर में बदला जा सके इसलिए तैमूर ने कीश की जगह समरकंद को अपनी राजधानी बनाया तथा वहाँ अनेक प्रकार के उत्तम भवन बनवाए। बाबर ने ‘ईतमाक दर्रे’ का भी उल्लेख किया है जो समरकंद एवं कीश के बीच स्थित पहाड़ियों में था तथा जहाँ से पत्थर लाए जाकर, समरकंद एवं कीश के महल एवं अन्य भवन बनाए गए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि कीश नगर के मेहराब (Arch) बाबर के मस्तिष्क पर छा गए। भविष्य में उसके समस्त भवनों को मेहराबदार ही बनाया गया। यही मेहराब मुगलों की स्थापत्य शैली की प्रमुख पहचान बन गई। मेहराब किसी भी द्वार या दीवार में बनाई गई आर्चनुमा आकृति को कहते हैं। यह गोलाई लिए हुए अथवा त्रिकोणात्मक आकृति लिए हुए हो सकता है।
पेशताक (कांधार)
बाबर ने कांधार में ‘पेशताक’ नामक एक भवन बनवाया। इसके लिए उसने ‘सरपूजा’ नामक पहाड़ से पत्थर कटवाकर मंगवाए। इस भवन को पत्थर काटने वाले 80 कारीगरों ने 9 वर्ष तक प्रतिदिन काम करके पूरा किया।
बाग-ए-बाबर (काबुल)
बाबर ने काबुल में भी एक बाग बनवाया जिसे बाग-ए-बाबर कहा जाता था। इसमें पानी की नहरें, बारादरियां, बैठक के कमरे आदि अनेक निर्माण करवाए गए थे जिसे बाद में तालिबानियों ने तबाह कर दिया। वर्तमान में इसके अवशेष ही देखे जा सकते हैं।
बाबर का भारत में प्रवेश
बाबर में नई चीजों को देखने और समझने का इतना प्रबल उत्साह था कि जब उसने 11 मार्च 1519 को झेलम पार करने के बाद जीवन में पहली बार बाल्टियों सहित रहट को देखा तब उसने रहट की कार्य-विधि को जानने के लिए कई बार पानी निकलवाकर देखा। ई.1526 में बाबर ने इब्राहीम लोदी को परास्त करके दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर लिया। बाबर भारत में केवल चार साल ही राज्य कर सका। इतने कम समय में वह अपना राज्य भी ढंग से व्यवस्थित नहीं कर सका इसलिए भवन निर्माण के बारे में सोचना भी कठिन ही था। फिर भी बाबर ने भारत में कुछ विध्वंस एवं कुछ निर्माण किए।
हिन्दू स्थापत्य का अनुकरण
उसे दिल्ली और आगरा की तुर्क तथा अफगान सुल्तानों द्वारा निर्मित इमरतें पसंद नहीं आईं। वह ग्वालियर में मानसिंह एवं विक्रमजीतसिंह के महलों की स्थापत्य शैली से अत्यधिक प्रभावित हुआ। उस काल में ग्वालियर के महल ही हिन्दू कला के सुंदर उदाहरण के रूप में शेष बचे थे। यद्यपि बाबर के अनुसार इनके निर्माण में किसी निश्चित नियम एवं योजना का पालन नहीं हुआ था तथापि वे बाबर को सुंदर एवं हृदयग्राही प्रतीत हुए। बाबर ने अपने लिए ग्वालयिर के अनुकरण पर महल बनवाए। बाबर ने स्वयं अपनी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि ‘मैंने आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर एवं कोल नामक स्थानों पर भवन निर्माण के कार्य में संगतराशों को लगाया।’
सतीश चन्द्र ने लिखा है- ‘बाबर के लिए स्थापत्य का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नियम-निष्ठता एवं समरूपता थी जो उसे भारतीय इमारतों में दिखाई नहीं दी। बाबर भारतीय कलाकारों के साथ काम करने के लिए उत्सुक था। इस कार्य हेतु उसने प्रसिद्ध अलबानियाई कलाकार ‘सिनान’ के शिष्यों को बुलाया। बाबर को भारत में स्थापत्य के क्षेत्र में ज्यादा कुछ करने का समय नहीं मिला और उसने जो कुछ बनवाया उसमें अधिकतर अब नष्ट हो चुके हैं।’
ऐसा प्रतीत होता है कि या तो उसने आगरा, सीकरी, बयाना आदि स्थानों पर बड़े निर्माण अर्थात् महल एवं दुर्ग आदि नहीं बनवाकर मण्डप, स्नानागार, कुएं, तालाब एवं फव्वारे जैसी लघु रचनाएं ही बनवाई थीं या फिर बाबर द्वारा निर्मित इमारतें मजबूत सिद्ध नहीं हुईं। क्योंकि वर्तमान में पानीपत के काबुली बाग की विशाल मस्जिद एवं रूहेलखण्ड में संभल की जामा मजिस्जद को छोड़कर, बाबर द्वारा निर्मित कोई भी इमारत उपलब्ध नहीं है। या तो वे बनी ही नहीं थीं या फिर वे समस्त इमारतें खराब गुणवत्ता के कारण नष्ट हो चुकी हैं।
यद्यपि पानीपत के काबुली बाग की मस्जिद एवं रूहेलखण्ड की मस्जिद पर्याप्त विशाल रचनाएं हैं तथापि उनमें शिल्प, स्थापत्य एवं वास्तु का कोई सौंदर्य दिखाई नहीं देता। इन दोनों भवनों के बारे में स्वयं बाबर ने स्वीकार किया है कि इनकी शैली पूरी तरह भारतीय थी। यहाँ भारतीय शैली से तात्पर्य मुगलों के पूर्ववर्ती दिल्ली सल्तनत-काल की स्थापत्य शैली से है। बाबर को भारत में समरकंद जैसी इमारतें बना सकने योग्य कारीगर उपलब्ध नहीं हुए। न बाबर के पास इतना धन एवं इतना समय था कि वह इमारतों का निर्माण करवा सके।
काबुली मस्जिद, पानीपत
बाबर ने ई.1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को परास्त करने के बाद अपनी विजय की स्मृति में ई.1527 में पानीपत में एक बाग और मस्जिद का निर्माण करवाया। बाबर की एक बेगम का नाम मुस्समत काबुली था। उसी के नाम पर इस बाग एवं मस्जिद का नाम काबुली बाग एवं काबुली मस्जिद रखा गया। यह एक विशाल एवं मजबूत भवन है किंतु स्थापत्य एवं शिल्प की दृष्टि से अत्यंत सामान्य है। इस मस्जिद के निर्माण के छः साल बाद हुमायूँ ने सलीमशाह को हराया तथा इस विजय की स्मृति में इस बाग में एक चबूतरा बनवाया जिसे फतेह मुबारक कहा जाता है। अकबर के काल में ई.1557 में इस मस्जिद में फारसी भाषा में दो शिलालेख लगवाए गए।
सम्भल की जामा मस्जिद
रूहेलखण्ड क्षेत्र में राप्ती नदी के तट पर एक पौराणिक नगर स्थित था जिसे मुगल काल में सम्भल कहा जाता था। इस नगर में पौराणिक युगीन ‘हरिहर मंदिर’ स्थित था। बाबर ने इस मंदिर को तोड़कर उसके ध्वंसावशेषों पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे जामा मस्दिज कहा गया। इस मस्जिद निर्माण में मेहराबों, मीनारों एवं गुम्बदों का प्रयोग किया गया। औरंगजेब के दूसरे पुत्र शहजादा मुअज्जम (बहादुरशाह प्रथम) ने भी इसमें कुछ निर्माण करवाए। उसने गोरखपुर का नाम मुअज्जमाबाद रखा तथा संभल में उर्दू बाजार का निर्माण करवाया। इस मस्जिद की उत्तर-दक्षिण में लम्बाई 90 फुट तथा पूरब-पश्चिम में चौड़ाई लगभग 80 फुट है। मस्जिद चारों तरफ से खुली हुई है।
मस्जिद जन्मस्थानम्
बाबर के शिया सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के ‘जन्मस्थानम्’ मंदिर को तोड़कर, उसी की सामग्री से उसी स्थल पर एक ढांचा खड़ा किया जिसे मुगल रिकॉर्ड्स में ‘मस्जिद-जन्मस्थानम्’ कहा गया। मीर बाकी ने इस ढांचे पर दो शिलालेख लगवाए जो इस प्रकार से हैं-
अयोध्या की जन्मस्थानम्-मस्जिद का प्रथम शिलालेख
शाह बाबर के आदेशानुसार जिसका न्याय,
एक ऐसी इमारत है जो आकाश की ऊँचाई तक पहुंचती है।
निर्माण कराया इस फिरिश्तों के उतरने के स्थान को,
सौभाग्यशाली अमीर मीर बाकी ने, बवद खैरे बाकी।
(बवद खैरे बाकी के दो अर्थ हैं। पहला अर्थ है- हिजरी 935 अर्थात् ई.1530; तथा दूसरा अर्थ है- यह सदाचरण अनन्त तक रहे।)
अयोध्या की बाबरी मस्जिद का द्वितीय शिलालेख
उसके नाम से जो महान् ज्ञानी है,
जो समस्त संसार का सृष्टा के उपरान्त मुस्तफा पर दरूद
जो दोनों लोकों के नबियों के सरदार हैं।
संसार में चर्चा है कि बाबर कलन्दर
कालचक्र में उसे सफलता प्राप्त हुई।
इन शिलालेखों में बाबर के नाम का उल्लेख होने के कारण इस ढांचे को जन-साधारण की भाषा में ‘बाबरी-मस्जिद’ कहा जाने लगा। इस ढांचे को वर्ष 1992 में एक जन-आंदोलन में ढहा दिया गया।
आराम बाग, आगरा
भारत का सबसे पुराना मुग़ल उद्यान आगरा का आरामबाग था जिसका निर्माण ई.1528 में बाबर ने करवाया था। यह उद्यान ताजमहल से 2.5 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित है। इस उद्यान में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय रचनाएं बनाई गई हैं। यह बाग यमुना नदी के बायें तट पर स्थित है। बाबर ने अपनी पुस्तक बाबरनामा में इसका उल्लेख किया है। इसे बाग-ए-नूर-अफसाँ भी कहा जाता था। ई.1530 में जब बाबर की मृत्यु हुई तो उसे सबसे पहले इसी बाग में दफनाया गया। बाद में बाबर के शव को उसकी इच्छानुसार काबुल ले जाया गया। ई.1775 से ई.1803 तक आगरा मराठों के अधिकार में रहा। उनके समय में आरामबाग को रामबाग कहा जाने लगा।
यह बाग ऊँची चाहरदिवारी से घिरा है जिसके कोने की बुर्जियों के ऊपर स्तम्भयुक्त मंडप हैं। नदी के किनारे दो-दो मंजिले भवनों के बीच में एक ऊँचा पत्थर का चबूतरा है। जहाँगीर ने इस बाग की संरचनाओं में कुछ परिवर्तन किए। बाद में ब्रिटिश शासनकाल में भी कुछ नव-निर्माण करवाए गए। इस स्मारक के उत्तरी-पूर्वी किनारे पर एक और चबूतरा है जहाँ से हम्माम के लिए रास्ता है। हम्माम की छत मेहराबदार है। नदी से पानी निकालकर एक चबूतरे से बहते हुए चौड़े नहरों, कुंडों एवं झरनों के रास्ते दूसरे चबूतरे तक लाया जाता था।
बाबर द्वारा निर्मित अन्य भवन
बाबर ने आगरा के लोदी किले में जामा मस्जिद बनवाई। वह राजपूताने की सीमा पर ऐसे भवन बनवाना चाहता था जो ठण्डे हों। इसलिए उसके आदेश से आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर तथा अन्य नगरों में कुछ भवनों का निर्माण किया गया जो अब शेष नहीं बचे हैं। धौलपुर नगर के बाहर स्थित कमलताल के निकट बाबरकालीन भवनों के ध्वंसावशेष देखे जा सकते हैं। जब बाबर खानवा के युद्ध के लिए धौलपुर पहुंचा था तब यह कमलताल मौजूद था। इसके चारों ओर सुंदर भवन एवं उद्यान थे जो अब नष्ट हो गए हैं तथा उन पर अवैध मुस्लिम बस्तियां बस गई हैं।
गुलबदन बेगम का वर्णन
बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने बाबर द्वारा करवाए गए निर्माण कार्यों का उल्लेख अपनी पुस्तक ‘हुमायूँनामा’ में किया है। उसने लिखा है कि बाबर ने आगरा में यमुना के इस पार कई भवनों के निर्माण की आाज्ञा दी। हरम और बाग के मध्य अपनी खिलवत खास के लिए पत्थर का एक महल बनवाया और दीवानखाना में भी एक महल का निर्माण करवाया। भवन के किनारे एक बावली और चारों बुर्जों में चार कमरों के निर्माण की आज्ञा दी। नदी के किनारे चार आंगन वाले एक भवन का निर्माण करवाया।
गुलबदन लिखती है कि बाबर ने धौलपुर में पत्थर की, दस गज लम्बी और चौड़ी एक बावली बनाने की आज्ञा दी तथा अपने सैनिकों से कहा कि यदि उन्होंने राणा सांगा को परास्त कर दिया तो वह इस बावली को शराब से भर देगा। चूंकि सांगा पर विजय प्राप्त करने से पहले ही बाबर ने शराब न पीने की शपथ ले ली थी इसलिए इस बावली को नींबू के शरबत से भरवाया गया। गुलबदलन के इस वर्णन में कुछ अतिश्योक्ति है। जिसे वह बावली बता रही है, वह एक छोटा सा कुण्ड है तथा कमलताल के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण बाबर ने नहीं करवाया था, यह बाबर के भारत आने से पहले भी मौजूद था और एक विशाल बाग के भीतर स्थित था। गुगलबदन ने यमुना के निकट जिन भवनों के निर्माण का उल्लेख किया है वे अब उपलब्ध नहीं हैं। या तो वे बने ही नहीं, और यदि बने तो नष्ट हो गए।
बाबर का मकबरा (काबुल)
बाबर की मृत्यु के बाद, बाबर की इच्छानुसार, उसके शव को काबुल ले जाकर, बाबर द्वारा निर्मित बाग-ए-बहार के भीतर दफन किया गया। वहाँ एक छोटा सा मकबरा भी बना हुआ है जिसके बाहर की जालियां देखते ही बनती हैं। तालिबानियों ने बाग-ए-बाबर को तो बर्बाद कर दिया है किंतु यह मकबरा अब भी सुरक्षित है।
बाबर भले ही अफगानिस्तान छोड़कर भारत आ गया था किंतु अफगानिस्तान में आज भी उसे नायक के रूप में देखा जाता है। भारत में भले ही बाबर ने मनुष्यों के सिर काटकर उनकी मीनारें बनाईं और अपने पैरों से लुढ़काईं किंतु अफगानिस्तान में बाबर को सुशिक्षित, वैज्ञानिक चिंतन युक्त सुसभ्य व्यक्ति माना जाता है। आधुनिक अफगानिस्तान में बाबर के अनेक स्मारक बनाए गए हैं जिनमें से बहुत से स्मारक तालिबानियों ने नष्ट कर दिए हैं।