काबुल तथा गजनी पर अधिकार करने के बाद बाबर ने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। जनवरी 1505 में बाबर हिन्दूकुश पर्वत में स्थित खैबर दर्रा पार करके कोहाट तक चला आया। उस काल में खैबर दर्रे को पार करते ही भारत की सीमा प्रारम्भ हो जाती थी।
कोहाट वर्तमान समय में पाकिस्तान के खैबर पख्तून जिले में है। आज कोहाट के क्षेत्र में केवल मुसलमान ही रहते हैं किंतु उस काल में कुछ अफगानी कबीले रहते थे जो हिन्दू धर्म में विश्वास रखते थे। यही कारण है कि आज भी इस क्षेत्र में हिन्दी बहुत अच्छी तरह से बोली जाती है।
जब बाबर कोहाट से बंगश के लिए रवाना हुआ तो एक संकरी घाटी में हजारों अफगान युद्धघोष करते हुए बाबर का रास्ता रोककर खड़े हो गए। बाबर के सैनिकों ने इन अफगानों के सिर काट डाले। जो लोग जीवित बचे वे दांत में तिनका दबाकर बाबर की शरण में आए जिसका अर्थ होता है कि हम तुम्हारी गऊ हैं, हमें मत मारो। बाबर ने लिखा है कि पराजित सैनिकों की यह प्रथा मैंने पहली बार देखी।
बाबर ने उन लोगों के धर्म के बारे में नहीं लिखा है किंतु अनुमान होता है कि ये लोग हिन्दू थे तथा उनमें प्राचीन हिन्दुओं की प्रथाएं प्रचलित थीं जिनमें मुँह में घास रखकर विजेता की शरण में जाना भी शामिल था। निश्चित रूप वे मुसलमान नहीं थे, इसीलिए बाबर ने उन सबके सिर काटकर कटे हुए सिरों की मीनार बनाने के आदेश दिए। बाबर के आदेश की पालना की गई।
बाबर ने कोहाट से चलकर चौपारा नामक गांव पर हमला किया। यहाँ से भी बाबर की सेना को भेड़ों, अनाज के गल्लों तथा अन्य वस्तुओं की प्राप्ति हुई। रात के समय ईसाखेल गांव के अफगानों ने बाबर के सैनिक शिविर पर हमला किया किंतु बाबर की सेना ने उन्हें शिविर में प्रवेश नहीं करने दिया। बाबर रात के समय स्वयं अपने शिविर का चक्कर लगाता था। यदि कोई सैनिक अपने पहरे वाले स्थान पर नहीं मिलता था तो बाबर उसकी नाक कटवा लेता था।
यहाँ से बाबर की सेना बन्नू तथा दश्त नामक गांवों को लूटने गई। इस क्षेत्र में एक सूखी नदी थी, इस कारण बाबर द्वारा लूटे गए पशुओं के लिए पानी की कमी हो गई। बाबर के सैनिकों द्वारा स्थानीय लोगों को पकड़कर पूछताछ करने से उन्होंने बताया कि यदि वे सूखी नदी में एक-डेढ़ गज खुदाई करेंगे तो उन्हें पर्याप्त जल मिल जाएगा। बाबर ने लिखा है- ‘उनकी बात सही निकली। एक-डेढ़ गज खुदाई करते ही पानी निकल आया जिससे हमारे जानवरों एवं सैनिकों का काम चल गया। भारत की सभी नदियों की यही विशेषता है कि थोड़ी सी खुदाई करने पर पानी निकल आता है।’
आगे चलकर यह जानकारी बड़े अभियानों के दौरान बाबर के बहुत काम आई। दश्त क्षेत्र से बाबर को बड़ी संख्या में घोड़े मिले जो व्यापार के लिए पाले जाते थे। इस क्षेत्र में दिन भर ऊंटों एवं घोड़ों के झुण्ड आते-जाते रहते थे जिन पर दूर-दूर तक व्यापार करने वाले व्यापारियों का सामान लदा रहता था। रात में भी यह सिलसिला नहीं रुकता था। बाबर के सैनिकों ने अपने मार्ग में पड़ने वाले व्यापारियों के सिर काटकर उनके ऊंट एवं घोड़े लूट लिए जिन पर कीमती सामान लदा हुआ था।
इस सामान में सफेद कपड़े, सुगंधित जड़ें, तथा शक्कर प्रमुख थे। इस क्षेत्र से बाबर को तीपूचाक नस्ल के घोड़े बड़ी संख्या में मिले जो पहाड़ी क्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी थे।
यहाँ से बाबर की सेना वापस काबुल के लिए लौट पड़ी। इस समय तक इस क्षेत्र में वर्षा आरम्भ हो चुकी थी और नदियों में बाढ़ आने लगी थी। इस कारण बहुत बड़ी संख्या में भैंसों, भेड़-बकरियों, ऊँटों एवं घोड़ों के कारण नदियों को पार करना बहुत कठिन हो गया। यहाँ से काबुल जाने के लिए कई मार्ग मिलते थे किंतु बाबर को ऐसा मार्ग चुनना था जिसमें नदियों की संख्या कम से कम हो।
7 मार्च 1505 को ईद थी। इसलिए बाबर की सेना एक नदी के किनारे ईद का स्नान करके गूमाल नदी की तरफ बढ़ गई। गूमाल के तट पर बाबर की सेना ने ईद की नमाज पढ़ी। बाबर की सेना गूमाल को पार करके जैसे ही एक पहाड़ पर चढ़ने लगी, एक तरफ से अफगानों ने आकर बाबर की सेना को घेर लिया। देखते ही देखते भयानक युद्ध आरम्भ हो गया जिसके कारण सैनिक चट्टानों से नीचे गिर-गिर कर मरने लगे। बाबर की सेना ने समस्त अफगान सैनिकों को मार डाला।
जब बाबर की सेना सिंद नदी के तट पर स्थित बीलह कस्बे में पहुंची तो यहाँ के लोग नावों में बैठकर भाग गए। बहुत से लोगों ने नदी में बने एक टापू पर शरण ली। बाबर की सेना ने टापू पर पहुंचकर लोगों को मार डाला तथा उनका सामान छीन लिया। इस दौरान बहुत से लोग नदी में बह गए।
इनमें बाबर के भी कुछ आदमी थे। बाबर की सेना ने हर उस आदमी को लूटा जो उसके मार्ग में पड़ा। इस मायने में बाबर की सेना पहाड़ी डाकुओं के किसी खूंखार गिरोह से कम नहीं थी जो निर्धन एवं निरीह नागरिकों एवं व्यापारियों के तन पर कपड़े तक नहीं छोड़ते थे।
जब बाबर तथा उसकी सेना पीर कानू की मजार पर पहुंचे तो बाबर के कुछ सैनिकों ने मजार के मुजाविरों को भी लूट लिया। जब बाबर को यह बात ज्ञात हुई तो बाबर ने उन सैनिकों को पकड़कर उनके टुकड़े करवा दिए। यहाँ से बाबर की सेना चूटीआली गांव में पहुंची।
इससे आगे का क्षेत्र इतना दुर्गम हो गया कि वहाँ घोड़े नहीं चल सकते थे। अतः बाबर की सेना को अपने अधिकांश घोड़े यहीं छोड़ने पड़े। इससे बाबर के पास केवल 300 घोड़े रह गए। हालांकि अधिकतकर भैंसें मारकर खाई जा चुकी थीं फिर भी बची हुई भैंसों को यहीं छोड़ देना पड़ा। यहाँ तक कि बाबर को एक कीमती बड़ा खेमा भी छोड़ना पड़ा जो उसने चौपरा के व्यापारियों से लूटा था।
चूटीआली से आगे निकलते ही एक रात भयानक वर्षा हुई। इससे बाबर के खेमे में घुटनों तक पानी भर गया और बाबर को सारी रात कम्बलों के एक ढेर पर बैठकर निकालनी पड़ी। बाबर ने लिखा है कि मार्ग में हमें एक ऐसी नदी पार करनी पड़ी जो चौड़ी तो बहुत नहीं थी किंतु गहरी बहुत थी।
इसलिए उसमें से ऊंटों एवं घोड़ों को तैराकर पार करवाया गया। कुछ सामान नावों द्वारा पार करवाया गया। अंत में बाबर की सेना गजनी पहुंच गई जो इन दिनों बाबर के अधिकार में था। गजनी में कुछ दिन रुकने के बाद मई 1505 में बाबर पुनः काबुल पहुंच गया।
इस प्रकार बाबर द्वारा भारत पर किए गए प्रथम आक्रमण में बाबर को दिखकाट की बुढ़िया द्वारा दिखाए गए सपने वाली सोने-चांदी की मोहरें और हीरे-जवाहरात तो नहीं मिले किंतु बाबर भारत से कुछ भैंसें, ऊंट, घोड़े, भेड़ें, कपड़े और शक्कर की बोरियां लूट लाया।
इसमें से अधिकांश सामग्री मार्ग में ही समाप्त हो गई। भारत से लूटी गई भेड़ें बाबर के साथ नहीं आ सकती थीं। अतः सेना की एक टुकड़ी उन भेड़ों को पीछे-पीछे ला रही थी। जब बाबर के ये सैनिक इन भेड़ों को लेकर नूर घाटी में पहुंचे तो नूर घाटी वालों ने बाबर के इन सैनिकों को मार डाला तथा उनकी भेड़ें छीनकर खा गए।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता