जिस समय हुमायूँ उज्बेगों के विरुद्ध बलख अभियान में व्यस्त था उस समय मिर्जा कामरान और मिर्जा अस्करी को बलख आने के आदेश दिए गए थे किंतु उन दोनों ने पुरानी चाल पर कायम रहते हुए न केवल बादशाह के आदेश की अवहेलना की अपितु हुमायूँ की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर मिर्जा कामरान ने अपने चचेरे भाई मिर्जा सुलेमान की पत्नी को एक प्रेम पत्र भिजवाया।
पाठकों को स्मरण होगा कि हुमायूँ ने अपने सौतेले भाई कामरान को कोलाव का तथा अपने चचेरे भाई मिर्जा सुलेमान को जफर दुर्ग का गवर्नर बनाया था।
मिर्जा सुलेमान की पत्नी बहुत सुंदर थी तथा मिर्जा कामरान की बहुत दिनों से उस पर कुदृष्टि थी। कामरान का विचार था कि मिर्जा सुलेमान तथा मिर्जा हुमायूँ उज्बेगों द्वारा मार डाले जाएंगे। अतः कामरान की दृष्टि में मिर्जा सुलेमान की पत्नी को पाने का यह अच्छा अवसर था।
मिर्जा कामरान ने बेगी आगः नामक स्त्री के हाथों एक पत्र और एक रूमाल अपने चचेरे भाई सुलेमान की स्त्री हरम बेगम के पास भिजवाया। बेगी आगः ने कोलाव से जफर दुर्ग पहुंचकर वह पत्र और रूमाल हरम बेगम के सामने रख दिया और उसे मिर्जा कामरान की ओर से मौखिक संदेश भी दिया।
बेगी आगः की इस धृष्टता को देखकर हरम बेगम ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि यह पत्र और रूमाल सुरक्षित करके रखो और जब मिर्जा कामरान बाहर से लौटकर आएं तो ये दोनों चीजें उनके सामने पेश करो। इस पर बेगी आगः ने हरम बेगम को समझाने का प्रयास किया। हरम बेगम ने बेगी आगः की ओर बड़ी घृणा और क्रोध से देखते हुए अपने सैनिकों से कहा कि इस बुढ़िया को पकड़ लो तथा मिर्जा इब्राहीम को हमारी सेवा में आने के लिए कहो।
मिर्जा इब्राहीम हरम बेगम का युवा पुत्र था। जब इब्राहीम ने अपने माता के कक्ष में आकर सलाम किया तो हरम बेगम ने इब्राहीम से कहा कि अपने पिता के लौटकर आने तक तुम इस दुष्ट स्त्री को पकड़ कर रखो। बेगम के आदेश की पालना की गई। कुछ लेखकों के अनुसार हरम बेगम स्वयं तलवार हाथ में लेकर शत्रु से युद्ध लड़ा करती थी और युद्ध में अपने पति सुलेमान के साथ जाया करती थी किंतु इस बार वह युद्ध में नहीं गई थी।
जब मिर्जा सुलेमान बलख से लौट कर आया तो हरम बेगम ने अपने पति सुलेमान तथा अपने पुत्र इब्राहीम को बुलाकर उनसे कहा कि मिर्जा कामरान ने तुम दोनों को कायर समझ लिया है। इसीलिए उसने मुझे ऐसा पत्र लिखा है। मैं उसकी भयओ लगती हूँ फिर भी उसने मुझे ऐसा पत्र भेजा है। उस काल में मुगलों में छोटे भाई की पत्नी को भयओ कहा जाता था। हरम बेगम ने कहा कि मैं इसी योग्य हूँ कि मुझे ऐसा पत्र लिखा जाए। यह स्त्री, जो है तो इंसान की औलाद किंतु ऐसा वाहियात पत्र लेकर आई है, इस औरत के टुकड़े करवाए जाने चाहिए क्योंकि यह न तो मुझसे डरती है और न तुम दोनों से।
हरम बेगम की ऐसी कठोर बातें सुनकर मिर्जा सुलेमान ने बेगी आगः के टुकड़े कर दिए तथा बादशाह हुमायूँ को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की सूचना भिजवाई। सुलेमान ने हुमायूँ को लिखा कि मिर्जा कामरान हमसे शत्रुता करना चाहता है, इसलिए उसने बादशाह के आदेश की अवहेलना करके बलख पहुंचने में कोताही की है और मेरी पत्नी को ऐसा छिछोरा पत्र भिजवाया है।
जब कामरान को ज्ञात हुआ कि मिर्जा सुलेमान ने बेगी आगः को मार डाला तथा बादशाह हुमायूँ को शिकायत लिख भेजी है तो कामरान को बादशाह का भय सताने लगा। उसने अपने पुत्र अबुल कासिम को मिर्जा अस्करी के पास भेज दिया और अपनी बेगम खानम से कहा कि वह अपनी पुत्री को लेकर खोस्त और अंदराब चली जाए तथा मेरा संदेश आने तक वहीं पर रहे। इसके बाद कामरान स्वयं अपनी एक पुत्री आयशा सुल्तान बेगम को अपने साथ लेकर कोलाब से टालिकान की ओर चला गया।
मिर्जा कामरान को आशा थी कि चूंकि उसकी पत्नी खानम, उज्बेगों की बेटी है इसलिए उज्बेग, खानम को तंग नहीं करेंगे किंतु जिस प्रकार कामरान में कोई नैतिकता नहीं थी, उसी प्रकार उज्बेगों ने भी नैतिकता नहीं दिखाई। जब उज्बेगों ने खानम को बहुत कम अनुचरों के साथ खोस्त एवं अंदराब की पहाड़ियों में यात्रा करते देखा तो उन्होंने खानम और उसकी पुत्री को लूट लिया। खानम ने अपना सर्वस्व लुटाकर अपने प्राण बचाए और बड़ी कठिनाई से अपने पीहर वालों के पास पहुंची।
मिर्जा कामरान को बलख में हुई हुमायूँ की पराजय के समाचार मिल चुके थे। कामरान यही चाहता था किंतु जब उसने सुना कि हुमायूँ जीवित ही काबुल पहुंच गया तो कामरान समझ गया कि अब जीवन में हुमायूँ से किसी तरह की रहम की आशा करना व्यर्थ है।
इधर जब हुमायूँ को मिर्जा सुलेमान का पत्र मिला तो उसने उसी समय काबुल छोड़ दिया तथा कामरान को पकड़ने के लिए टालिकान की ओर चल पड़ा। जब हुमायूँ किबचाक घाटी में पहुंचा तब कामरान ने उसे देख लिया। कामरान हुमायूँ के पीछे लग गया। जिस समय हुमायूँ एक तंग एवं नीची घाटी से निकल रहा था तब कामरान ने अचानक पहाड़ी के ऊपर प्रकट होकर लोहे के किसी शस्त्र से हुमायूँ के सिर पर पर करारा वार किया।
उस समय हुमायूँ सिर पर एक पगड़ी पहने हुआ था और पगड़ी के नीचे एक टोपी भी थी। हालांकि टोपी और पगड़ी को तो नुक्सान नहीं पहुंचा किंतु हुमायूँ का सिर फट गया तथा उसमें से रक्त की धार बहकर पैरों तक बहने लगी। कामरान ने समझा कि अब हुमायूँ का काम तमाम हो गया। इसलिए वह हुमायूँ को छोड़कर भाग गया।
गुलबदन बेगम ने लिखा है कि ठीक ऐसा ही एक प्रकरण बाबर के साथ भी हुआ था। उस पर भी किसी मुगल ने इसी तरह धोखे से वार किया था। उस समय बाबर एक लम्बी टोपी और पगड़ी पहने हुआ था। बाबर की टोपी और पगड़ी को भी कोई नुक्सान नहीं हुआ था किंतु बाबर के सिर से भी रक्त की धार बहने लगी थी। जिस तरह बाबर उस हमले के बाद जीवित बच गया था, उसी प्रकार हुमायूँ भी बच गया।
वस्तुतः गुलबदन बेगम ने पूरा विवरण नहीं लिखा है, किबचाक घाटी में हुमायूँ और कामरान की सेनाओं के बीच सम्मुख युद्ध हुआ था जिसमें हुमायूँ की सेना परास्त हुई थी और हुमायूँ को घायल हो जाने पर अपने प्राण बचाकर बदख्शां की तरफ भागना पड़ा था। मिर्जा हिंदाल तो वहाँ था ही, मिर्जा सुलेमान भी अपने पुत्र इब्राहीम एवं सेना के साथ बदख्शां पहुंच गया। इन सेनाओं के साथ हुमायूँ काबुल लौट गया। मिर्जा सुलेमान और मिर्जा इब्राहीम हुमायूँ को छोड़ने के लिए काबुल तक साथ आए। मिर्जा कामरान ने इन लोगों का पीछा किया किंतु इस बार मिर्जा सुलेमान की सेना साथ होने के कारण कामरान, हुमायूँ पर हाथ नहीं डाल सका।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता