माहम अनगा की बेटी माहबानू की सगाई अब्दुर्रहीम से कर देने की खुशी में अकबर ने माहम अनगा के बेटे अजीज कोका को खानेआजम की पदवी दी लेकिन कुछ दिनों बाद जब अकबर ने अतगाखाँ को राज्य का वकीले मुतलक[1] नियुक्त किया तो माहम अनगा समझ गयी कि अब मेरे दिन लद गये। माहम अनगा के बेटे आदमखाँ, जंवाई शिहाबुद्दीन, खानखाना मुनअमखाँ तथा हरम सरकार चलाने में शामिल रहने वाले दूसरे लोगों को अतगाखाँ की नियुक्ति अच्छी नहीं लगी और वे वकीले मुतलक की अवज्ञा करने लगे। एक दिन आदमखाँ अपने कुछ आदमियों के साथ महल में जा पहुँचा और सरकारी काम करते हुए अतगाखाँ की हत्या कर दी। इसके बाद वह महल के उस हिस्से की ओर बढ़ा जहाँ अकबर सो रहा था।
बादशाह को सोया हुआ जानकर और आदमखाँ को नंगी तलवार सहित बादशाही महल की ओर आते जानकर एक हिंजड़े[2] ने बादशाही महल के दरवाजे बंद कर दिये और स्वयं आदमखाँ का रास्ता रोककर खड़ा हो गया। शोरगुल से बादशाह की नींद खुल गयी और वह हरम के बाहर निकल आया। हींजड़ों के मुँह से सारी बात सुनकर अकबर ने आदमखाँ से पूछा कि उसने वकीले मुतलक की हत्या क्यों की?
आदमखाँ समझ नहीं सका कि अब हरम सरकार के दिन लद गये हैं और अकबर अब पहले वाला अकबर नहीं रहा है। वक्त की नजाकत समझना तो दूर रहा, आदमखाँ शराब के नशे में बादशाह से बक-झक करने लगा। इस पर अकबर ने अपनी म्यान से तलवार निकाल कर आदमखाँ की छाती पर टिका दी और उससे कहा कि वह अपनी तलवार हिंजड़े को दे दे लेकिन आदमखाँ ने अपनी तलवार हिंजड़े को देने की बजाय बादशाह की तलवार छीनने की चेष्टा की तथा बादशाह की कलाई पकड़ ली। इस बेअदबी से अकबर की खूनी ताकत हुंकार कर जाग बैठी। उसने आदमखाँ के मुँह पर कसकर मुक्का मारा जिससे आदमखाँ बेहोश हो गया।
अकबर ने हरम के हिंजड़ों को आदेश दिये कि आदमखाँ के हाथ-पैर बांध दिये जायें और उसे महल की मुंडेर से नीचे फैंक दिया जाये। जब हिंजड़ों ने आदमखाँ को नीचे फैंक दिया तो अकबर ने हिंजड़ों से कहा कि इसे एक बार फिर से मंुडेर पर ले जाओ और फिर से नीचे फैंको। हिंजड़ों ने कहा कि बादशाह सलामत यह तो मर चुका है। इस पर अकबर ने हिंजड़ों को लतियाते हुए कहा- ‘कमबख्तो! जैसा मैं कहूँ वैसा करो अन्यथा तुम्हें भी मुंडेर से नीचे फिंकवा दूंगा।’ हिंजड़े डर गये। उन्होंने बादशाह के आदेश से एक बार फिर आदमखाँ को मुंडेर से नीचे फैंक दिया। उसका शव पत्थरों पर बिखर गया। शैतानी खून के छींटे दूर-दूर तक उछल गये।
आदमखाँ का यह हश्र देखकर उसका बहनोई शियाबुद्दीन, खानखाना मुनअमखाँ और दूसरे साथी डर कर भाग गये। उन्हें भय हुआ कि कहीं अकबर उनके लिये भी वही आदेश न दे।
आदमखाँ से निबट कर अकबर माहम अनगा के महल में गया और उसने खाट पर पड़ी हुई माहम अनगा को पूरी घटना कह सुनाई। माहम को सारे समाचार पहले ही मिल गये थे। अपने बेटे की मौत का विवरण बादशाह के मुँह से सुनकर वह केवल इतना ही कह सकी- ‘शहंशाह! आपने बिल्कुल ठीक किया है।’ इस घटना के ठीक चालीसवें दिन माहम मर गयी।
[1] वकीले मुतलक का अर्थ था प्रधानमंत्री। बाद में यह पद दीवान कहलाने लगा।
[2] हिंजड़ों को ख्वाजा कहा जाता था।