Sunday, December 22, 2024
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21. बदायूनीं ने पानीपत के मैदान में प्रेतों की मारकाट की आवाजें सुनीं!

पानीपत का युद्ध जीतने के बाद बाबर ने उसी शाम हुमायूँ को आगरा तथा महदी ख्वाजा को दिल्ली के लिए रवाना किया ताकि वे लोग आगरा और दिल्ली के किलों में रखे खजाने पर अधिकार कर सकें। बाबर के इतिहास में आगे बढ़ने से पहले हमें एक बार पुनः कुछ देर के लिए पानीपत के मैदान में चलना होगा।

पानीपत के युद्ध-क्षेत्र को मुगलों के शासनकाल में प्रेतग्रस्त माना जाता था। ई.1588 में अकबर के दरबारी मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनीं को इस युद्ध-क्षेत्र में जाने का अवसर मिला।

उसने लिखा है कि मैंने एक दिन प्रातःकाल उस ओर से गुजरते समय, योद्धाओं के मारकाट की आवाजें सुनीं। पाठकों की सुविधा के लिए बताना समीचीन होगा कि यह वही मुल्ला बदायूनी है जिसने हल्दीघाटी के युद्ध-क्षेत्र में उपस्थित रहकर, मुगल सेना एवं महाराणा प्रताप के बीच हुए युद्ध का आंखों-देखा विवरण लिखा था।

वर्तमान समय में पानीपत भारत के हरियाणा प्रांत में स्थित है। इस प्रांत में स्थित कुरुक्षेत्र, तराईन, पानीपत तथा करनाल अनेक बड़े युद्धों के स्थल रहे हैं। पानीपत के मैदान में चार बड़े युद्ध लड़े गए। ई.1240 में दिल्ली की सुल्तान रजिया तथा उसके भाई बहरामशाह की सेनाओं के बीच भी पानीपत के मैदान में भयानक युद्ध हुआ।

ई.1526 में बाबर एवं इब्राहीम लोदी के बीच हुए युद्ध को पानीपत का पहला युद्ध कहा जाता है। ई.1556 में इसी स्थान पर दिल्ली के शासक महाराज हेमचंद्र विक्रमादित्य तथा अकबर की सेनाओं के बीच युद्ध लड़ा गया जिसे पानीपत का दूसरा युद्ध कहा जाता है। ई.1761 में अफगान आक्रांता अहमदशाह अब्दाली एवं मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ के बीच पानीपत का तीसरा युद्ध भी इसी स्थान पर हुआ था। इसे पानीपत का दूसरा युद्ध कहा जाता है।

महाभारत के युद्ध का मैदान कुरुक्षेत्र पानीपत से केवल 70 किलोमीटर दूर है। तराइन का युद्ध-क्षेत्र पानीपत से केवल 50 किलोमीटर दूर है जहाँ ई.1191 एवं ई.1192 में अफगान आक्रांता मुहम्मद गौरी तथा सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बीच दो युद्ध हुए थे जिन्हें क्रमशः तराइन की पहली लड़ाई एवं तराइन की दूसरी लड़ाई कहा जाता है।

ई.1739 में पानीपत से मात्र 30 किलोमीटर दूर स्थित करनाल में ईरानी आक्रांता नादिरशाह एवं दिल्ली के शासक मुहम्मदशाह रंगीला की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था।

ई.1526 के बाबर-इब्राहीम युद्ध में मिली विजय की स्मृति में बाबर ने पानीपत कस्बे से एक मील उत्तर-पूर्व में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। बाद में शेरशाह सूरी ने इस स्थान पर दो स्मारक बनवाए। पहला था सुल्तान इब्राहीम लोदी का और दूसरा उन चगताई सैनिकों का था जिन्हें शेरशाह ने स्वयं मारा था। जब अंग्रेज इस देश के स्वामी हुए, तब ई.1910 में उन्होंने इस स्थान पर अहमदशाह अब्दाली का विजय-स्मारक बनवाया।

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आगरा पहुंचने पर बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा- ‘मैं भारत को जीतने वाला तीसरा बादशाह हूँ। पहला था महमूद गाजी, दूसरा था शिहाबुद्दीन गौरी तथा तीसरा मैं हूँ।’ बाबर ने इस सूची में अपने पूर्वज तैमूर लंग का स्मरण नहीं किया है। उसका कारण यह प्रतीत होता है कि महमूद गजनवी के वंशजों ने भारत के कुछ हिस्से पर लम्बे समय तक शासन किया। महमूद गौरी के गुलामों ने भी भारत के बहुत बड़े हिस्से पर बहुत लम्बे तक शासन किया जबकि तैमूर लंग के किसी उत्तराधिकारी ने भारत के किसी भी हिस्से पर शासन नहीं किया।

भारत को जीतने वाले तीन बादशाहों में भी बाबर ने स्वयं को सबसे बड़ा ठहराया है। वह लिखता है- ‘महमूद गजनवी खुरसान का शासक होने के कारण साधन सम्पन्न था। खुरासान, दारुल मर्ज तथा समरकंद के बादशाह उसके अधीन थे और महमूद की सेना में 2 लाख सैनिक थे। मुहम्मद गौरी भी साधन-सम्पन्न था क्योंकि खुरासान का बादशाह गयासुद्दीन गौरी मुहम्मद गौरी का भाई था।

उसने एक 1,20,000 सैनिकों के साथ भारत पर आक्रमण किया था। जबकि मैं उन दोनों बादशाहों की तुलना में, साधनहीन था। जब मैंने पहली बार भारत के भेरा शहर को जीता तब मेरे पास केवल डेढ़ हजार सैनिक थे। जब पांचवीं बार मैंने भारत को जीता, तब मेरे पास नौकर-चाकर, व्यापारी तथा अन्य सेवकों सहित केवल 12 हजार थी।

मेरे पास बदख्शां, कंदूज, काबुल तथा कांधार जैसे गरीब देश थे जिनसे मुझे कुछ विशेष लाभ नहीं होता था। मेरे ये समस्त देश, शत्रुओं से घिरे हुए थे, इसलिए मुझे उनकी रक्षा पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था। उजबेग मेरे शत्रु थे जिनकी सेना में एक लाख सैनिक थे। भेरा से लेकर बिहार तक इब्राहीम लोदी का शासन था।

राज्य-विस्तार की दृष्टि से उसके सैनिकों की संख्या पांच लाख होनी चाहिए थी किंतु उसके अमीर उससे नाराज थे इसलिए केवल एक लाख सैनिक ही उसकी तरफ से लड़ने के लिए आए थे।’  इस प्रकार बाबर ने अपने संस्मरणों में आत्मप्रशंसा के साथ-साथ झूठ का भी पूरा सहारा लिया है।

बाबर ने लिखा है- ‘अब मैं भारत का बादशाह था किंतु चारों ओर अफगान-शत्रुओं से घिरा हुआ था। जौनपुर का सुल्तान हुसैन शर्की, गुजरात का सुल्तान मुजफ्फरशाह, दक्षिण में बहमनी सुल्तान थे, मालवा में महमूद खिलजी का राज्य था। बंगाल में नुसरतशाह सैयद का शासन था। काफिर शासकों में विजयनगर एवं चित्तौड़ के राज्य बड़े शक्तिशाली थे।

चित्तौड़ के राणा ने रणथंभौर, सारंगपुर, भिलसा और चंदेरी पर अधिकार जमा लिया था। मैंने जल्दी ही चंदेरी के काफिरों का नाश करा दिया तथा जो स्थान वर्षों से दारुल-हर्ब बना हुआ था, उसे दारुल-इस्लाम बना दिया। इन राज्यों के अतिरिक्त हिन्दुस्तान में चारों ओर राय एवं राजा बड़ी संख्या में फैले हुए हैं। इनमें से बहुत से, मुसलमानों के आज्ञाकारी हैं किंतु कुछ दूरस्थ राजा मुसलमान बादशाहों के अधीन नहीं हैं।’

बाबर ने अपनी पुस्तक में भारत के भूगोल, नदियाँ, पर्वत, जलवायु, कृषि, सिंचाई के संसाधन आदि का उल्लेख किया है और लिखा है- ‘हिन्दुस्तान की विलायतों अर्थात् प्रांतों तथा नगरों में कोई आकर्षण नहीं है। समस्त नगर एवं समस्त भूमि एक ही प्रकार की है। यहाँ के उद्यानों में चाहरदीवारी नहीं होती।’

बाबर ने अपनी पुस्तक में भारत के वनों एवं नगरों में पाए जाने वाले तोता, मैना, मोर, तीतर, चकोर, जंगली मुर्ग, बटेर, बत्तख तथा नीलकण्ठ आदि ढेर सारे पक्षियों का बड़ा रोचक वर्णन किया है। बाबर ने बहुत सारे जलचरों के साथ-साथ पानी पर बारह फुट तक लम्बी दौड़ लगाने वाले मेंढकों का रोचक वर्णन किया है।

उसने हाथी, गेंडा, बारहसिंहगा, जंगली भैंसा तथा नील गाय आदि भारतीय वन्यपशुओं का भी बड़ा रोचक वर्णन किया है क्योंकि ये पशु अफगानिस्तान एवं उज्बेकिस्तान में नहीं पाए जाते थे।

बाबर के वर्णन में भारत में पाई जाने वाली ‘गीनी गाय’ नामक एक पशु का उल्लेख किया गया है जो मेंढे अर्थात् नरभेड़ के बराबर होती थी और जिसका मांस बड़ा नरम होता था। बाबर ने अपने वर्णन में कई प्रकार के हिरणों, बंदरों, गिलहरियों एवं नेवलों आदि का भी उल्लेख किया है। उसने उत्तर भारत के मैदानों में पाए जाने वाले विविध प्रकार के फलों एवं फूलों का भी बड़ा रोचक वर्णन किया है।  

                                                           – डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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