बाबर अपना टूटे हुए दिल में नाउम्मीदियों का समुद्र भर कर ट्रांसआक्सियाना से अफगानिस्तान लौटा था। उसे लगता था कि अपने बाप दादाओं की जमीन से उसे सिवाय अपमान और धोखे के कुछ नहीं मिला था लेकिन वह नहीं जानता था कि इस बार वह बदख्शां से ऐसा कीमती हीरा अपने साथ ले जा रहा है जो एक दिन उसके वंशजों का भाग्य बदल देगा। यह कीमती हीरा बैरमबेग[1] था जो बाबर की सेना में शामिल होकर अपना भाग्य आजमाने के लिये बदख्शां छोड़कर बाबर के साथ हो लिया था।
बैरमबेग अपना भाग्य आजमाने के लिये बाबर के साथ बदख्शां अफगानिस्तान और अफगानिस्तान से हिन्दुस्थान आया लेकिन बाबर के समक्ष उसे अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर नहीं मिला। हिन्दुस्थान में आकर बाबर एक के बाद एक लड़ाईयाँ जीतता रहा किंतु बैरमबेग बाबर के लिये सामान्य सिपाही की तरह लड़ता रहा।
बाबर की मृत्यु के बाद ई. 1526 में हुमायूँ हिन्दुस्तान का बादशाह हुआ। बैरामबेग तब भी इतिहास के नेपथ्य में बना रहा। इतिहास के पन्नों में बैरमबेग का पहली बार उल्लेख तब होता है जब हूमायूँ ई. 1535 में गुजरात के बादशाह सुल्तान बहादुर को चार महीने से चांपानेर के दुर्ग में घेर कर बैठा हुआ था।
एक दिन जब सेना किले के मुख्य दरवाजे पर जोर आजमाइश कर रही थी, हुमायूँ ने कुछ मामूली सिपाहियों को अपने साथ लिया और घोड़े पर चढ़कर चांपानेर किले का चक्कर लगाया। हुमायूँ किले के ऊँचे परकोटे को देखकर हैरान था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इस दुर्ग में वह कैसे घुसे! एक स्थान पर उसने देखा कि दुर्ग की दीवार मात्र साठ गज ऊँची है। हुमायूँ ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि किले की दीवार पर एक-एक गज की ऊँचाई से खूंटियाँ गाढ़ी जायें।
किले के भीतर के सैनिकों का सारा ध्यान उस समय किले के मुख्य दरवाजे पर था, इसलिये वे किले के पिछवाड़े में होने वाली आकस्मिक कार्यवाई को जान नहीं सके। जब खूंटियाँ गढ़ चुकीं तो हुमायूँ ने सैनिकों को उपर चढ़ने का आदेश दिया। उस समय तक रात हो चुकी थी। हुमायूँ के सिपाही एक-एक करके खूंटियों पर चढ़ने लगे। जब उनतालीस सैनिक खूंटियों पर चढ़ चुके तो हुमायूँ ने चालीसवें सिपाही को रुकने का संकेत किया और स्वयं खूंटी पर चढ़ने लगा। चालीसवाँ सिपाही बैरमबेग था। भाग्यलक्ष्मी ने उस पर प्रसन्न होने के लिये मानो वही रात, वही समय और वही स्थान चुना था!
जब हुमायूँ ने बैरमबेग को रुकने का संकेत किया तो बैरमबेग ने प्रतिवाद किया- ‘बादशाह सलामत! जब तक सबसे पहला सैनिक किले में न कूद जाये और जब तक मैं किले की दीवार पर चढ़कर आपको आवाज न दूँ तब तक आपको खूंटी पर नहीं चढ़ना चाहिये।’ बादशाह ने चालीसवें सिपाही की बात मान ली। बैरमबेग खूंटियों पर चढ़ता हुआ परकोटे पर पहुँच गया। वहाँ से उसने संकेत किया कि बादशाह सलामत खूंटी पर चढ़ सकते हैं।
बादशाह ने किले में आकर पहली बार उस अनजाने सिपाही पर भरपूर नजर डाली। चांदनी के उजाले में पहली ही नजर में बादशाह को चालीसवाँ सिपाही जंच गया। सचमुच ही वह रात बैरमबेग की थी। उसके बुद्धि चातुर्य से हुमायूँ ने मात्र तीन सौ सिपाहियों के बल पर उसी रात फतह हासिल कर ली।
किला हाथ में आते ही हुमायूँ ने जीत का बड़ा भारी जलसा किया। अपने दादा उमरशेख की भांति वह भी एक अय्याश आदमी था। सुरा और सुंदर स्त्रियाँ उसकी कमजोरी थीं। कहना आवश्यक न होगा कि साधारण सिपाही की हैसियत रखने वाले बैरमबेग को इस जलसे के दौरान अमीर का दर्जा मिल गया। अब वह बेरमबेग के स्थान पर बैरामखाँ कहलाने लगा।
[1] तुर्की भाषा में ‘बेग’का अर्थ होता है सरदार और ‘खां’माने बादशाह ।