Saturday, December 21, 2024
spot_img

आखिर बन गया पाकिस्तान

मुहम्मद अली जिन्ना ने अपनी जिंदगी के आखिरी 13 साल पाकिस्तान बनाने के लिए संघर्ष करते हुए बिताई। केवल इसी अवधि में उसे इतना बड़ा देश मिल गया। उसे स्वयं को विश्वास नहीं था कि कभी ऐसा हो गया किंतु उसके जीते जी आखिर बन गया पाकिस्तान।

भारत के शरीर से जहर अलग

7 अगस्त 1947 को जिन्ना वायसराय के डकोटा पर कराची चला गया। जाते समय वायसराय ने उसे रॉल्स रायस गाड़ी और मुसलमान एडीसी लेफ्टिनेंट अहसन का उपहार दिया तथा स्वयं छोड़ने के लिए हवाई अड्डे तक गया।

जिन्ना के लिए यही बहुत था कि तमाम बदनामियों के बावजूद आखिर बन गया पाकिस्तान किंतु भारतीय नेता इसे किस दृष्टि से देखते थे। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण सरदार पटेल के वक्तव्यों में देखा जा सकता है। जिन्ना के जाने के अगले दिन पटेल ने वक्तव्य दिया-

‘भारत के शरीर से जहर अलग कर दिया गया। हम लोग अब एक हैं और अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता। नदी या समुद्र के पानी के टुकड़े नहीं हो सकते। जहाँ तक मुसलमानों का सवाल है, उनकी जड़ें, उनके धार्मिक स्थान और केंद्र यहाँ हैं। मुझे पता नहीं कि वे पाकिस्तान में क्या करेंगे। बहुत जल्दी वे हमारे पास लौट आयेंगे।’

जिस दिन जिन्ना कराची पहुंचा, उसने अपने एडीसी से कहा- ‘मैंने कभी सोचा नहीं था कि यह मुमकिन होगा। मैंने अपनी जिन्दगी में पाकिस्तान देखने की उम्मीद भी नहीं की थी।’

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO.

जिन्ना के भारत-मोह के बारे में और भी लोगों ने लिखा है। यह ठीक वैसा ही था मानो कोई झगड़ालू बच्चा अपने खिलौने लड़-झगड़ कर दूसरों से अलग कर रहा हो और फिर सारे खिलौनों को अपना समझ रहा हो। 1946 के अंत में जब पाकिस्तान का बनना लगभग तय हो गया था, जिन्ना कुल्लू घाटी में व्यास नदी के किनारे शांत और रमणीक कस्बे कटराइन में ‘द रिट्रीट’ नामक एक सुंदर बंगला खरीदने की बातचती चला रहा था। पाकिस्तान का जो नक्शा उस समय आकार ग्रहण कर रहा था, उसकी सीमा में कुल्लू घाटी किसी भी हालत में नहीं आने वाली थी। 13 अगस्त 1947 को गवर्नर जनरल एवं वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने कराची पहुंचकर पाकिस्तान की एसेम्बली में भाषण दिया तथा जिन्ना को गवर्नर जनरल के पद की शपथ दिलवाकर तीसरे पहर भारत लौट आए।

पाकिस्तान के नेता माउण्टबेटन के भारत-प्रेम के कारण उनसे इतनी घृणा करते थे कि कई साल बाद जब माउण्बेटन भारत आए तो पाकिस्तान ने उनके हवाई जहाज को पाकिस्तान के ऊपर होकर उड़ने की अनुमति नहीं दी।

इस प्रकार 14 अगस्त 1947 को हिन्दू एवं मुस्लिम बहुल जनसंख्या के आधार पर भारत दो देशों में बंट गया। ब्रिटिश शासन के अधीन हिन्दू बहुल क्षेत्र ‘भारत संघ’ के रूप में तथा मुस्लिम बहुल क्षेत्र ‘पाकिस्तान’ के रूप में अस्तित्व में आया। 14 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय ने भारत की संविधान निर्मात्री परिषद में भाषण देकर भारत की स्वतंत्रता की घोषणा की।

दो सिरों वाला कटा-फटा पाकिस्तान

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया। इस प्रकार वायसराय माउण्टबेटन एवं मुहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान के निर्माण के लिए केवल 72 दिन का समय प्राप्त हुआ। पाकिस्तान के पास न कोई राजधानी मौजूद थी, न कोई संविधान मौजूद था, न भावी देश की कोई रूपरेखा मौजूद थी, न पाकिस्तान की सीमाएं मौजूद थीं, न उसकी सेनाएं मौजूद थीं और न राजस्व के स्रोत निश्चित थे।

72 दिन में बनने वाले पाकिस्तान के लिए केवल एक योजक तत्व था जिसके आधार पर पाकिस्तान का निर्माण किया जाना था और वह था- पाकिस्तान में सब-कुछ इस्लामिक होना चाहिए। और कुछ हो न हो, जिन्ना के लिए यही बहुत था कि जैसा भी था आखिर बन गया पाकिस्तान।

रैडक्लिफ रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जो पाकिस्तान अस्तित्व में आया उसके किसी भी अंग में कोई तारतम्य निर्मित नहीं हो पाया। अखण्ड भारत की कुल भूमि 43,16,746 वर्ग किलोमीटर थी जिसमें से 10,29,483 वर्ग किलोमीटर अर्थात् 23.85 प्रतिशत भूमि पाकिस्तान को मिली। ई.1947 में अखण्ड भारत की कुल जनंसख्या लगभग 39.5 करोड़ थी जिसमें से 3 करोड़ से कुछ अधिक पूर्वी-पाकिस्तान में तथा लगभग 3.5 करोड़ पश्चिमी-पाकिस्तान में चली गई।

इस प्रकार अखण्ड भारत की अनुमानतः 16 प्रतिशत जनसंख्या पाकिस्तान में चली गई। ई.1951 की जनगणनाओं में भारत की कुल जनसंख्या 36.10 करोड़ तथा पाकिस्तान की कुल जनसंख्या 7.50 करोड़ पाई गई। इस प्रकार पाकिस्तान की जनंसख्या दोनों की सम्मिलित जनसंख्या का 17.2 प्रतिशत थी। भारत की राजस्व-आय का 17 प्रतिशत तथा सेना का 33 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान को प्राप्त हुआ।

जिन्ना के पाकिस्तान के दो सिर थे, पहला सिर हिमालय की पहाड़ियों में था जिसे पश्चिमी पाकिस्तान कहा गया। पाकिस्तान की राजधानी का मालिक यही सिर था। दूसरा सिर बंगाल की खाड़ी में था, इसकी नैसर्गिक राजधानी कलकत्ता थी जो भारत में रह गई थी और कृत्रिम राजधानी कराची में थी जो इस सिर से 1600 किलोमीटर दूर थी।

पहला सिर पंजाबी मिश्रित उर्दू बोलता था तथा दूसरे सिर के द्वारा बोली जाने वाली बांग्ला भाषा को हेय समझता था। इस सिर का कुछ हिस्सा केवल सिंधी और कुछ हिस्सा केवल पश्तून समझता था। बंगाल की खाड़ी में स्थित पाकिस्तान का दूसरा सिर बंगला बोलता और समझता था तथा उर्दू बोलने वालों को जान से मार डालना चाहता था। यही था पाकिस्तान …… ऐसा ही बना था जिन्ना का पाकिस्तान।

सिक्खों की पीड़ा समझने वाला कोई नहीं था

जब पाकिस्तान बना तो सबसे अधिक क्षति सिक्खों को हुई। सम्पूर्ण सिक्ख जाति को बहुत बड़ी मात्रा में जन, धन एवं भूमि का बलिदान देना पड़ा। रावी, चिनाव, झेलम, सतलुज एवं व्यास के हरे-भरे मैदानों में सिक्ख तब से रहते आए थे जब उनके पुरखे हिन्दू हुआ करते थे। वे कब धीरे-धीरे हिन्दू से सिक्ख हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला किंतु ई.1947 के भारत विभाजन ने पंजाब को दो टुकड़ों में बांट दिया।

इससे पंजाब के हरे-भरे मैदान तो उनसे छिने ही, साथ ही लाखों सिक्खों को जान से हाथ धोना पड़ा और पचास लाख से अधिक सिक्खों को पूर्वी-पंजाब से भागकर पश्चिमी-पंजाब आना पड़ा। सिक्खों के प्राणों से भी प्रिय ऐतिहासिक नगर एवं गुरुद्वारे पाकिस्तान में चले गए। इनमें लाहौर, गुजरांवाला, ननकाना साहब तथा रावलपिण्डी के इतिहास गुरुओं के इतिहास से जुड़े हुए थे। ननकाना साहब में गुरु नानक का जन्म हुआ था।

लाहौर के बारे में तो पंजाबियों में यह कहावत कही जाती थी- ‘जिन लाहौर नहीं वेख्या ओ जनम्याई नई।’ हसन अब्दाल में गुरुद्वारा पंजी साहिब था, लाहौर के गुरुद्वारा डेरा साहिब में पांचवे गुरु अर्जुन देव की हत्या हुई थी, करतारपुर में गुरुद्वारा करतारपुर साहब था जहाँ गुरु नानक का निधन हुआ था। इनके साथ ही सिक्खों ने लाहौर स्थित महाराजा रंजीत सिंह के पवित्र स्थान को भी गंवा दिया। सिक्खों की पीड़ा को कोई समझे न समझे, मुस्लिमलीगियों के लिए यही बहुत था कि आखिर बन गया पाकिस्तान।

सिंधियों की पीड़ा सबसे भयानक थी

भारत विभाजन में सिंधी जाति ने अपने पुरखों की पूरी धरती ही खो दी। सिंधी जाति हजारों साल से सिंध क्षेत्र में रहती आई थी किंतु ई.712 से लेकर ई.1947 के बीच की अवधि में सिंधियों को पूरी तरह से या तो अपनी धरती खोनी पड़ी या अपना धर्म बदलना पड़ा। ई.1947 में हुए भारत विभाजन के समय सम्पूर्ण सिंध क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया। इसमें खैरपुर, दादू, लाड़कवा, जेकबाबाद, हैदराबाद, कराची, मीरपुर खास, जिला नवाबशाह, टण्डो आदम आदि मिलाकर लगभग 65 हजार वर्गमील का क्षेत्र था।

इस कारण इन क्षेत्रों में रहने वाले हिन्दू-सिंधी भारत में आ गए और मुस्लिम-सिंधी पाकिस्तान में रह गए। वर्तमान समय में पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र की जनसंख्या में लगभग 94 प्रतिशत मुसलमान एवं लगभग 6 प्रतिशत हिन्दू हैं। भारत में इस समय लगभग 38 लाख सिंधी रहते हैं। विभाजन के समय हिन्दू-सिंधियों की पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं था, समझने की तो कौन कहे, सुनने वाला तक कोई नहीं था।

सिंधियों की पीड़ा को कोई समझे न समझे, पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के लिए यही सबसे बड़ी खुशी थी कि आखिर बन गया पाकिस्तान।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source