Monday, March 10, 2025
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बोरोबुदुर बौद्ध चैत्य एवं विहार (12)

बोरोबुदुर बौद्ध चैत्य एवं विहार महायान बौद्ध विहार है जो मध्य जावा प्रान्त के मगेलांग नगर में स्थित है। यह भी परमबनन शिव मंदिर तथा प्लाओसान बौद्ध विहार की भांति मूलतः 9वीं सदी ईस्वी में निर्मित है। जिस समय यह बना था उस समय यह संसार का सबसे बड़ा बौद्ध विहार था। इसका यह स्थान आज भी सुरक्षित है।

बोरोबुदुर बौद्ध चैत्य एवं विहार छः वर्गाकार चबूतरों पर बना हुआ है जिसमें से तीन चबूतरों का ऊपरी भाग वृत्ताकार है। इस विहार में उत्कीर्णित प्रतिमाओं वाली 2,672 प्रस्तर शिलाएं (Relief panels) और 504 बौद्ध प्रतिमाएं पाई गई हैं। इसके केन्द्र में स्थित प्रमुख गुम्बद के चारों ओर स्तूप वाली 72 बुद्ध प्रतिमाएं हैं।

बोरोबुदुर बौद्ध चैत्य एवं विहार का निर्माण 9वीं सदी में शैलेन्द्र राजवंश के कार्यकाल में हुआ। विहार की बनावट जावाई बुद्ध स्थापत्यकला के अनुरूप है जो इंडोनेशियाई जावाई मूल के स्थानीय लोगों की पूर्वज पूजा और बौद्ध निर्वाण अवधारणा का मिश्रित रूप है।

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विहार के स्थापत्य में भारत की चौथी-पांचवी शताब्दी की गुप्त कालीन स्थापत्य कला का प्रभाव भी दिखाई देता है किंतु इण्डोनेशियाई स्थापत्य तत्व पर्याप्त मात्रा में उपस्थित हैं जिसके कारण इसे इंडोनेशियाई स्थापत्य संरचना माना जाना चहिए। इसकी रचना एक विशालाकाय स्तूप के रूप में मण्डलाकार है तथा सम्पूर्ण निर्माण, किसी स्मारक की तरह दिखाई देता है। वस्तुतः बोरोबुदुर बौद्ध चैत्य एवं विहार भगवान बुद्ध का पूजा-स्थल और विश्व-प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ-स्थल है। इस स्मारक के चारों ओर बौद्ध ब्रह्माण्डिकी के तीन प्रतीकात्मक स्तर बने हुए है जो कामध्यान (इच्छा की दुनिया), रूपध्यान (रूपों की दुनिया) और अरूपध्यान (निराकार दुनिया) कहलाते हैं। दर्शक इन तीनों स्तरों का चक्कर लगाते हुए इसके शीर्ष पर अर्थात् बुद्धत्व की अवस्था को पहुँचता है। स्मारक में हर ओर से सीढ़ियों और गलियारों की विस्तृत व्यवस्था है।

गलियारों में होते हुए निकलने पर 1,460 शिलालेखों (Narrative Relief Panels)  और स्तम्भ-वेष्टनों; सीढ़ियों पर लगने वाली घुमावदार छड़ों- ठंसनेजतंकमे) के माध्यम से दर्शनार्थियों को आगे बढ़ने के लिए स्वतः ही मार्गदर्शन मिलता रहता है। इस स्मारक का निर्माण कार्य 9वीं शताब्दी में आरम्भ हुआ था, मुख्य निर्माण तभी पूरे कर लिए गए थे किंतु उसके बाद की शताब्दियों में कुछ न कुछ निर्माण निरंतर चलता ही रहा था।

-डॉ. मोहन लाल गुप्ता

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