करमसद गांव के लड़के ने लंदन में धूम मचा दी
वल्लभभाई द्वारा लंदन में किये गये असाधारण परिश्रम का परिणाम पहले ही टर्म में सामने आया। बैरिस्टर बनने के लिये 12 टर्म की परीक्षायें देनी होती थीं। पहली टर्म में ही उन्होंने सबसे अधिक अंक प्राप्त किये जिसके लिये उन्हें पांच पाउण्ड का पुरस्कार मिला तथा दो टर्म की छूट मिल गई। इस प्रकार छः महीने का समय और व्यय बच गया।
जब उन्होंने प्रथम श्रेणी में सर्वोच्च अंकों से बैरिस्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण की तो उनके नाम की लंदन में धूम मच गई। इंग्लैण्ड में रहने वाले भारतीयों का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। लंदन के इतिहास में यह पहली बार हुआ था कि किसी भारतीय ने इस परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया हो। लंदन की जिस महारानी के राज्य में सूरज नहीं डूबता था, उस राज्य के कौने-कौने से युवा आकर इस परीक्षा में बैठते थे, वल्लभभाई ने उन सबको पीछे छोड़ दिया था।
जब लंदन के समाचार पत्रों में वल्लभभाई के चित्र छपे तो गुजरात के उपेक्षित से करमसद गांव का जिद्दी लड़का रातों-रात पूरे यूरोप में नायक बन गया। इन समाचार पत्रों में सरदार की सफलता के समाचारों के शीर्षक कुछ इस प्रकार होते थे- करमसद गांव के लड़के ने लंदन में धूम मचा दी! दूर-दूर से भारतीय परिवार वल्लभभाई को बधाई देने के लिये आने लगे। अंग्रेजों ने भी सदाशयता दिखाने में कसर नहीं छोड़ी।
शेडर्ज नामक एक अंग्रेज किसी समय गुजरात में कमिश्नर रहा था, उसने जब वल्लभभाई के चित्र अखबारों में देखे तो वह स्वयं चलकर वल्लभभाई के पास पहुंचा और बधाई देने के साथ-साथ अपने घर पर भोजन करने का निमंत्रण देकर गया।
इस अपूर्व सफलता से सरदार पटेल के आत्मविश्वास में और अधिक वृद्धि हुई। अब वे संसार के किसी भी शिक्षित मनुष्य की आंखों में आंखें डालकर बात कर सकते थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता