Sunday, December 22, 2024
spot_img

जीनत महल

बहादुरशाह जफर की ढेर सारी बेगमें थीं जिनमें जीनत महल और ताज महल बेहद खूबसूरत थीं। बादशाह ने अपना मन बहलाने के लिए बेगमों के अतिरिक्त कुछ लौण्डियाएं भी रखी हुई थीं जिनके लिए उसने अपने हरम में चांदी के पांच पलंग बिछवा रखे थे।

हॉडसन ने दिल्ली के खूनी दरवाजे के निकट बादशाह बहादुरशाह जफर के दो पुत्रों एवं एक पौत्र को नंगा करके गोली मार दी तथा उनके शव कोतवाली के सामने फिंकवा दिए। सभी अंग्रेज सिपाही चाहते थे कि वे बादशाह तथा शहजादे को अपनी आंखों से देखें जिनके खिलाफ उन्हें चार महीने की लम्बी और रक्तरंजित लड़ाई लड़नी पड़ी थी। इसलिए सभी अंग्रेज सिपाहियों को कतार में लगकर उन शवों को देखने की इच्छा पूरी करनी पड़ी।

कम्पनी सरकार के अंग्रेज सैन्य अधिकारी फ्रेड मेसी ने लिखा है- ‘मैंने उन शवों को नंगा और अकड़ा पड़े हुए देखा। उन्हें देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि मुझे उनके अपराधों के बारे में कोई संदेह नहीं था। मुझे विश्वास है कि बादशाह उनके हाथों में केवल एक कठपुतली की हैसियत रखता था।’

बादशाह के पहरे पर नियुक्त चार्ल्स ग्रिफ्थ नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने इन शहजादों की हत्या करने के लिए विलियम होडसन की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि हॉडसन ने संसार को उन बदमाशों से मुक्त कर दिया। दिल्ली की पूरी सेना इस काम में होडसन के साथ है।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

इस सम्बन्ध में इंग्लैण्ड के भावुक लोगों की अपेक्षा भारत के अंग्रेज ही उचित निर्णय कर सकते हैं। मैंने उन शवों को उसी दोपहर में देखा था। मैने और जिन लोगों ने भी उनके निर्जीव शवों को देखा, किसी के हृदय में भी उन बदमाशों के लिए किंचित् भी दया या खेद नहीं था। उन्हें अपने अपराधों का सर्वथा उचित दण्ड मिला था। तीन दिन तक वे शव वहाँ पड़े रहे और फिर उन्हें बड़ी बेइज्जती के साथ गुमनाम कब्रों में दफना दिया गया।

शहजादों के शवों को देखने के बाद बहुत से उत्सुक अंग्रेज सिपाहियों की टोलियां लाल किले में पहुंचने लगीं जो कम्पनी सरकार के बंदी बादशाह को अपनी आखों से देखना चाहते थे। बादशाह बड़ी दयनीय अवस्था में अपनी बेगम के महल में बैठा था- पिंजरे में बंद किसी जानवर की तरह।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा है- ‘पाठकों के मन में बादशाह की यह छवि पिंजरे में बंद जानवर की तरह इसलिए भी लगती थी क्योंकि उसी सहन में जीनत महल का एक पालतू शेर भी बंधा हुआ था।’ जिस जेलर ने बादशाह तथा जीनत महल को बंदी बना रखा था, उसने 24 सितम्बर 1857 को उच्च अधिकारियों को एक पत्र लिखा कि इस शेर को यहाँ से हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि उसे भोजन देने वाला कोई नहीं है। या फिर उसे किसी हिंदुस्तानी को बेचकर धन कमाना चाहिए। यदि दोनों में से कोई काम संभव नहीं हो तो इस शेर को गोली मार देनी चाहिए।

ह्यू चिचेस्टर नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने अपने पिता के नाम दिल्ली से लंदन भेजे गए एक पत्र में लिखा- ‘मैंने उसे सूअर बादशाह को देखा, वह बहुत बूढ़ा है और ऐसे दिखता है जैसे कोई नौकर हो। पहले हमें मस्जिद के अंदर जाने या बादशाह से मिलने के लिए जूते उतारने पड़ते थे किंतु अब हमने यह सब छोड़ दिया है।’ कुछ और अधिकारियों ने अपने घरवालों को लिखा कि- ‘उन्होंने बादशाह से बुरी तरह बेइज्जती के साथ व्यवहार किया और उसे खड़े होकर सलाम करने के लिए विवश किया।’

एक अंग्रेज ने शेखी बघारी कि- ‘मैंने बादशाह की दाढ़ी नौंच ली।’

इन पत्रों से पता चलता है कि बादशाह के विरुद्ध अंग्रेज सिपाहियों की घृणा का पार नहीं था।

22 सितम्बर 1857 की रात को दिल्ली के नए कमिश्नर चार्ल्स साण्डर्स तथा उसकी पत्नी मैटिल्डा ने बादशाह से भेंट की। उस समय चार्ल्स ग्रिफ्थ बादशाह के पहरे पर था, उसने लिखा है-

‘बादशाह बरामदे में एक मामूली देसी चारपाई पर बिछे एक गद्दे पर पालथी मारे बैठा था। वह अजीम मुगल नस्ल का अंतिम प्रतिनिधि था। देखने में उसमें कोई विशेष बात नहीं थी। उसकी लम्बी सफेद दाढ़ी उसकी कमर की पेटी तक लटकती थी। वह सफेद रंग के कपड़े और सफेद रंग की एक तिकोनी टोपी पहने हुए था।

उसके पीछे दो खिदमतागर खड़े थे जो मोरछल हिला रहे थे जो कि बादशाहत की निशानी थी। यह उस व्यक्ति के लिए एक दयनीय नाटक था। जिसे हर शाही अधिकार से वंचित कर दिया गया था और जो अपने शत्रुओं के हाथों बंदी बनाया जा चुका था। उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। वह दिन-रात खामोशी से धरती की तरफ आंख गढ़ाए बैठा रहता था।’

मैटिल्डा साण्डर्स ने लिखा है- ‘जब चार्ल्स तथा मैटिल्डा ने बादशाह को बताया कि उसके दो पुत्रों एवं एक पोते को गोली मार दी गई है तो बादशाह ने इस समाचार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी किंतु जब पर्दे के पीछे खड़ी जीनत महल ने यह समाचार सुना तो वह बड़ी प्रसन्न हुई और उसने कहा कि बादशाह के बड़े बेटे की मौत की मुझे बेहद खुशी है क्योंकि अब मेरे बेटे जवांबख्त के तख्त पर बैठने का रास्ता साफ हो गया है।

कुछ लोग इसे ईमानदारी भी कह सकते हैं किंतु ख्वाबों में रहने वाली उस बेचारी औरत को यह ज्ञान नहीं था कि उसके पुत्र को इस संसार में कोई तख्त नहीं मिलेगा, जैसा कि उसे शीघ्र ही पता लगने वाला था।’

बादशाह तथा जीनत महल से मिलने के बाद मैटिल्डा साण्डर्स ताज बेगम से मिलने गई जो अपनी पुरानी विरोधी जीनत महल से दूर एक कमरे में रखी गई थी। मैटिल्डा ने अपनी डायरी में लिखा है- ‘हम लोग एक और बेगम से मिलने गए जो अपने जमाने में बहुत खूबसूरत मानी जाती थीं। हमने उनको अत्यंत शोकग्रस्त अवस्था में पाया। उनके कंधे और सिर काली मलमल के दुपट्टे से ढके हुए थे। उनकी माँ और भाई दोनों गदर के दौरान फैले हैजे से मर गए थे।’

लॉर्ड एल्फिंस्टन और जॉन लॉरेन्स ने लिखा है- ‘दिल्ली का घेरा उठा लिए जाने के बाद हमारी सेनाओं ने क्रूरता का जो प्रदर्शन किया और अत्याचार किए, उन्हें देखकर वास्तव में दिल दहलने लगता है। शत्रु-मित्र में कोई भेद नहीं करते हुए प्रचण्ड प्रतिशोध की अग्नि दहका दी गई। लूटमार करने में हमारी सेनाओं ने नादिरशाह को भी पीछे छोड़ दिया। जनरल आउटरम तो सम्पूर्ण दिल्ली को ही जलाने को कह रहा था।’

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source