बारदोली में अंग्रेज सरकार द्वारा की जा रही मनमानियों के विरोध में सरदार पटेल ने जनता से कहा कि यह हाथी और मच्छर की लड़ाई है। गोरी सरकार पागल हाथी है, इम इसके कान में मच्छर बनकर घुसेंगे!
बारदोली आंदोलन को सुचारू रूप से चलाने के लिये वल्लभभाई ने सूक्ष्मता से तैयारी की। उन्होंने बारदोली तहसील को पांच भागों में विभक्त किया तथा हर भाग में एक छावनी स्थापित की। इन छावनियों में किसानों के आवास हेतु आधारभूत सुविधायें जुटाई गईं ताकि जब सरकार अन्यायपूर्वक कार्यवाहियां करके किसानों को उनके घरों से निकाल दे तब वे इन छावनियों में आकर रह सकें।
प्रत्येक गांव तक सत्याग्रह का संदेश पहुंचाने की व्यवस्था की गई। इसी प्रकार पूरे क्षेत्र में घटने वाली घटनाओं की सूचना केन्द्रीय कार्यालय तक पहुंचाने के लिये भी व्यापक प्रबंध किये गये। आंदोलन के समाचार जनसाधारण तक पहुंचाने के लिये सत्याग्रह खबर समाचार पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया गया। इस आंदोलन को चलाने के लिये सरदार ने गुजरात की जनता से अपील की कि वे मुक्त हस्त से दान दें ताकि अंग्रेज सरकार से लोहा लिया जा सके।
इस प्रकार हाथी और मच्छर की लड़ाई आरम्भ हो गई। गुजरात की जनता को सरदार पटेल पर पूरा भरोसा था इसलिये जनता ने जी खोलकर दान दिया। इसके बाद सरदार ने बारदोली क्षेत्र के गांवों का दौरा आरम्भ किया। वे गांव-गांव जाकर लोगों को एकत्रित करते और उनके समक्ष जोशीले भाषण देते। सरदार ने किसानों से कहा कि उनसे उनके पुरखों की जमीनें नहीं छीनी जा सकतीं। यदि सरकार जमीनें छीनने का काम करती है तो समझना चाहिये कि देश में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है अपितु लुटेरे राज्य कर रहे हैं।
लुटेरों से हम अच्छी तरह निबटना जानते हैं। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि आंदोलन के नेता और किसान आपस में ऐसे मिल जायें जैसे दूध और पानी मिल जाते हैं। जब तक दूध में मिला पानी नहीं खौलता, तब तक दूध बरतन से बाहर नहीं निकल सकता और जब पानी खौलने लगता है तो दूध, बरतन से बाहर निकलकर आग को बुझाने की चेष्टा करता है। इस प्रकार दोनों एक दूसरे की रक्षा करने का प्रयास करते हैं।
सरदार ने किसानों से कहा कि गोरी सरकार पागल हाथी के समान व्यवहार कर रही है। अपनी ताकत के सामने किसानों को मच्छर समझती है। इसलिये हमें मच्छर बनकर ही इस पागल हाथी के कानों में घुसना होगा। यदि हम ऐसा कर सके तो यह विशाल हाथी तड़पकर जमीन पर गिर पड़ेगा।
सरदार की बातें किसानों के हृदय और मस्तिष्क को छूती थीं। वे इस दृढ़ संकल्प नेता के पीछे आंखें मूंदकर चल पड़े। किसानों को विश्वास था कि उनका नेता समस्या का अंत लेकर ही दम लेगा और यदि इस बार उन्होंने अपने नेता का साथ न देकर कमजोरी दिखाई तो सरकार भविष्य में भी किसानों पर बेखौफ होकर अत्याचार करेगी।
इसलिये इस आंदोलन को पहले के समस्त आंदोलनों से भी अधिक समर्थन मिला। 12 जून 1928 को गांधीजी की अपील पर पूरे देश में बारदौली दिवस मनाया गया। बारदोली दिवस मनाने से हाथी और मच्छर की लड़ाई पूरे देश के सामने प्रकट हो गई।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता