भारत के इतिहास में गुगल काल केवल निर्माण के लिए ही नहीं जाना जाता है अपितु हिन्दू स्थापत्य, विशेषकर मंदिरों के विध्वंस के लिए बदनाम भी है। मुगलकाल में ध्वस्त भवन बहुत बड़ी संख्या में रहे होंगे, अब तो उनके नाम भी नहीं मिलते।
इस अध्याय में मुगल बादशाह बाबर से लेकर शाहजहाँ तक के काल में ध्वस्त भवनों की संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है। इस पूरे काल में बड़े स्तर पर हिन्दू स्थापत्य का विनाश हुआ। इनमें से कुछ भवनों का उल्लेख पुस्तक में स्थान-स्थान पर हुआ है।
बाबर तथा हुमायूँ के काल में भवनों का विध्वंस
बाबर के काल में राम-जन्मभूमि मंदिर का ध्वंस
मुगलकाल में ध्वस्त भवन की सूची में सबसे ऊपर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का नाम आता है। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या के श्रीराम मंदिर ‘जन्मस्थानम्’ को भंग करके उसी की सामग्री से एक ढांचा बनाया जिसे मुगल अभिलेखों में ‘जन्मस्थान मस्जिद’ कहा जाता था किंतु यहाँ लगे शिलालेख में बाबर का उल्लेख होने से जनता इसे बाबरी मस्जिद कहने लगी। ई.1992 के जनआंदोलन में हिन्दुओं ने उस ढांचे को ढहा दिया और वहाँ कपड़े का एक मंदिर बना दिया जिसमें रामलला की मूर्ति विराजमान है।
हुमायूँ के काल में चित्तौड़ दुर्ग का विध्वंस
मुगलकाल में ध्वस्त भवन की सूची में दूसरा नाम चित्तौड़ दुर्ग का नाम आता है। चित्तौड़ दुर्ग को हुमायूँ के शासनकाल में तोड़ा गया। ई.1534 में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने आक्रमण किया। चित्तौड़ की राजमाता कर्मवती ने हूमायूं को राखी भेजकर उससे प्रार्थना की कि वह दुर्ग की रक्षा करे किंतु बहादुरशाह ने हुमायूँ को यह कहकर रोक दिया कि इस समय मैं जेहाद पर हूँ। यदि शत्रु की मदद की तो कयामत के दिन अल्लाह को क्या मुंह दिखाएगा? बहादुरशाह ने दुर्ग को जलाकर राख कर दिया। इसके बाद अकबर एवं औरंगजेब की सेनाओं ने चित्तौड़ दुर्ग में अनेक भवन ध्वस्त किए।
अकबर के काल में भवनों का विध्वंस
अकबर के काल में वज्रेश्वरी देवी मंदिर का ध्वंस
आधुनिक हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा की घाटी में नगरकोट नामक अत्यंत प्राचीन सुरम्य एवं धार्मिक स्थान है जहाँ सदियों से हिन्दू राजा शासन करते आए थे। नगरकोट नामक एक स्थान में वज्रेश्वरी देवी का अति प्राचीन शक्तिपीठ स्थित है। महमूद गौरी, मुहम्मद बिन तुगलक तथा फीरोजशाह तुगलक इस शक्तिपीठ को पहले भी तोड़ चुके थे किंतु अवसर पाते ही हिन्दू इस मंदिर को फिर से बना लेते थे। अकबर के शासन काल में इस मंदिर को एक बार पुनः बुरी तरह नष्ट-भ्रष्ट किया गया। अकबर की सेनाओं ने कांगड़ा दुर्ग में स्थित मंदिर भी ध्वस्त कर दिए।
अकबर के समकालीन लेखक निजामुद्दीन अहमद ने अपनी पुस्तक तबकात ए अकबरी में अकबर की सेनाओं द्वारा नगरकोट में की गई हिंसा का उल्लेख किया है। वह लिखता है- ‘भूण की गढ़ी में महामाया का मंदिर है, उसे मुस्लिम सेनाओं ने अपने अधिकार में ले लिया। इस पर राजपूतों का एक शहीदी जत्था मुगल सेना पर चढ़ बैठा जिसे शीघ्र ही काट डाला गया। युद्ध से मचे हल्ले से घबराकर नगरकोट के हिन्दुओं की काले रंग की लगभग 200 गौएं शरण लेने के लिए मंदिर में घुस गईं, जब हिन्दू सैनिक, मुसलमानों पर तीरों और बंदूकों से गोलियों की बरसात कर रहे थे, तब उन गायों को सावग तुर्कों ने एक-एक करके काट दिया। ब्राह्मणों का एक बड़ा समूह था जो लम्बे समय से इस मंदिर में पूजा करते आसा था, उनमें से किसी ने भी युद्ध करने के बारे में विचार तक नहीं किया, किंतु उन्हें भी काट डाला गया। सैनिकों ने अपने जूतों में गायों का खून भर लिया तथा उस खून को मंदिर की छतों, दीवारों एवं फर्श पर बिखेर दिया।’
जब हिन्दुओं ने इस अत्याचार का बदला लेने का प्रयास किया तो शेख अहमद सरहिंदी ने अकबर से शिकायत की कि हिन्दू, मस्जिदों को तोड़कर उनके स्थान पर मंदिर बना रहे हैं।
अकबर के काल में चित्तौड़ दुर्ग में विनाश लीला
ई.1567 में अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग के विरुद्ध अभियान किया। उस समय चित्तौड़ पर राणा उदयसिंह का शासन था। अकबर ने इस दुर्ग की नीवों में बारूद भरकर उसकी दीवारों को उड़ा दिया तथा चित्तौड़ दुर्ग में 8 हजार हिन्दू सैनिकों और 40 हजार हिन्दू नागरिकों का कत्लेआम करवाया। इस दौरान बहुत सी इमारतें गिराई गईं।
अकबर के काल में हम्पी का विनाश
विजयनगरम् साम्राज्य दक्षिण भारत का एक विशाल हिन्दू साम्राज्य था जो भारत के मध्यकालीन इतिहास में भव्य मंदिरों के निर्माण के लिए जाना जाता है। विजयनगरम् साम्राज्य के अंतर्गत वर्तमान कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के क्षेत्र आते थे। इसकी राजधानी ‘हम्पी’ अब कर्नाटक में स्थित है।
हम्पी नगर में विश्व के सर्वश्रेष्ठ और विशालकाय मंदिर बने जिन्हें मुगलों के शासनकाल में दक्षिण भारत के शिया-मुस्लिम राज्यों ने तोड़कर नष्ट कर दिया। अब इन मंदिरों के खंडहर ही देखे जा सकते हैं। मुगलों के समय में ‘हम्पी’ रोम से भी समृद्ध नगर था। इसे ‘मंदिरों का शहर’ भी कहा जाता था।
जिस समय बाबर ने भारत पर राज्य स्थापित किया, उस समय विजयनगरम् पर राजा कृष्णदेव राय (ई.1509-29) का शासन था। अकबर के शासन-काल में ई.1565 में बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर और बरार की मुस्लिम सेनाओं ने संगठित होकर विजयनगरम् राज्य पर हमला किया तथा उसे नष्ट कर दिया। राजधानी हम्पी तथा अन्य नगरों को खण्डहरों और लाशों के ढेर में बदल दिया गया। यह भारत के क्रूरतम हमलों में से एक था।
जहाँगीर के काल में मंदिरों का विध्वंस
जहाँगीर के शासनकाल के आठवें वर्ष में उसी की आज्ञा से अजमेर में पुष्कर के हिन्दू मन्दिरों को नष्ट किया गया। जहाँगीर के एक समकालीन इतिहासकार ने अपनी पुस्तक इन्तखाब ए जहाँगीरशाही में लिखा है- ‘अहमदाबाद में एक दिन शिकायत मिली कि सेवरास (जैनों) ने बड़ी संख्या में गुजरात में भव्य मंदिर बना लिए हैं तथा उनमें मूर्तियों की पूजा कर रहे हैं। जहाँगीर ने आदेश दिया कि उन जैनों को मुगल सल्तनत से बाहर निकाल दिया जाए तथा उनके मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनाई जाएं।’
शाहजहाँ के काल में मंदिरों का विध्वंस
शाहजहाँ ने ई.1614 में अपने सूबेदारों को आदेश दिया कि जहाँगीर के शासन-काल में जिन मन्दिरों का निर्माण आरम्भ किया गया था, उन्हें गिरा दिया जाए। इस आदेश पर बनारस में 76 मन्दिरों को तोड़ा गया। शाहजहाँ की आज्ञा से बुन्देलखण्ड के हिन्दू मन्दिर तुड़वाये गए और जुझारसिंह के पुत्रों को मुसलमान बनाया गया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता