कैबीनेट मिशन बड़ी आशा के साथ भारत आया था। मिशन के सदस्यों को उम्मीद थी कि उन्होंने भारत को आजाद करने का जो मार्ग दिखाया है, उसके लिए भारतवासी कैबीनेट मिशन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करेंगे किंतु मिशन के भारत की धरती छोड़ते ही भारत की राजनीति में सक्रिय विभिन्न तत्वों ने कैबीनेट मिशन प्लान को नकार दिया। इस कारण कैबीनेट प्लान की मृत्यु हो गई।
जिन्ना की ना ……!
10 जुलाई 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों से कहा कि- ‘कांग्रेस पर समझौतों का कोई बंधन नहीं है और वह हर स्थिति का सामना करने के लिए उसी तरह तैयार है जैसे कि अब तक करती आई है…… ऐसी हालत में ख्याली पुलाव पकानेऔर सपने देखने से तो कोई फायदा होने वाला नहीं है।’
मुस्लिम लीग ने नेहरू के वक्तव्य का अर्थ यह लगाया कि एक बार सत्ता प्राप्त कर लेने के बाद कांग्रेस इस योजना में संशोधन कर देगी। अतः जिन्ना ने 27 जुलाई को ही मुस्लिम लीग की बैठक बुलाई।
जिन्ना ने उन्हें बताया कि- ‘नेहरू कैबिनेट मिशन के समक्ष किए गए अपने वायदे से फिर गया है। इसलिए अब उन्हें नए हालात में उठाए जा सकने वाले कदमों के बारे में फैसला करना था।’
पहले लियाकत अली ने एक-एक प्रस्ताव ऊँची आवाज में पढ़ा और फिर उन पर चर्चा शुरू हुई जो दो दिन तक चलती रही।
सर फिरोज खान नून का आग्रह था- ‘बेहतर तो यह होगा कि हम अपनी गलती साफ तौर से कबूल करें जो हमने मिशन की योजना द्वारा तजवीज किए गए संघ को मान कर की है। हमें अपने पाकिस्तान के आदर्श की तरफ दोबारा लौट जाना चाहिए।’
मौलाना हसरत मोहानी जबरदस्त नारेबाजी के बीच उठे और लगभग चीखते हुए बोले- ‘अक्लमंदी इसी बात में है कि संवैधानिक प्रस्तावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया जाए। ….. हमें रोशनी का केवल एक ही मीरान रास्ता दिखा सकता है और वह है पूरी तरह संप्रभु पाकिस्तान का पृथक राज्य। सिर्फ कायद-ए-आजम के कहने की देर है, हिंदुस्तान के मुसलमान पल भर में बगावत का झंडा उठा लेंगे।’
दूसरे मौलानाओं, खानों और मुल्लाओं ने भी इसी तरह की बातें दोहराईं। राजा गजनफर अली ने वायदा किया- ‘अगर मिस्टर जिन्ना आवाज देंगे तो जिंदगी के हर हलके से मुलसममान आगे बढ़ कर पाकिस्तान हासिल करने के लिए संघर्ष में कूद पड़ेंगे।’
कौंसिल की राय सुनने के बाद जिन्ना और उनकी कार्यसमिति ने 29 जुलाई 1946 को दो पस्ताव पेश किए। पहले प्रस्ताव के जरिए लीग ने मिशन के मई प्रस्तावों को दी गई अपनी स्वीकृति वापस ले ली और दूसरे के माध्यम से आगे की जाने वाली सीधी कार्यवाही का रास्ता तय किया गया।
चूंकि मुस्लिम-भारत कोशिश कर-कर के थक चुका है, पर उसे समझौते और संवैधानिक तरीकों से भारतीय समस्या का शांतिपूर्ण समाधान करने में कामयाबी नहीं मिल पाई है, चूंकि कांग्रेस अंग्रेजों से साठ-गांठ करके भारत में ऊँची जाति के हिन्दुओं की हूकूमत कायम करने पर तुली हुई है, चूंकि हाल के घटनाक्रम में साबित हो गया है कि भारतीय मसलों का फैसला ताकत की राजनीति के दम पर होता है, न कि ईमानदारी और इंसाफ की बिनाह पर, चूंकि अब यह पूरी तरह साफ हो चुका है कि भारत के मुसलमान अब आजाद और पूरी तरह से संप्रभु पाकिस्तान राज्य की स्थापना के बिना चैन से नहीं बैठेंगे
……. वक्त आ गया है कि मुसलमान-राष्ट्र पाकिस्तान हासिल करने के लिए सीधी कार्यवाही पर उतर कर अपने हकों की दावेदारी करें। अपने गौरव की रक्षा करें, अंग्रेजों की मौजूदा गुलामी और ऊँची जाति के हिन्दू-प्रभुत्व के अंदेशे से छुटकारा हासिल करें।
कैबीनेट प्लान की मृत्यु की घोषणा
दोनों प्रस्तावों के पारित हो जाने के बाद जिन्ना ने नतीजा निकाला- ‘हमने एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक फैसला लिया है। जब से मुस्लिम लीग बनी है, हमने संवैधानिक तरीकों और संवैधानिक वार्ता के अलावा कोई और कदम नहीं उठाया। आज कांग्रेस और ब्रिटेन की मिली-जुली चाल के कारण हम मजबूरन यह कदम उठाने जा रहे हैं। हम पर दो मोर्चों से हमला हो रहा है।
……. आज हमने संविधानों और संवैधानिक तौर-तरीकों को अपना आखिरी सलाम बोल दिया है। हम जिन दो पक्षों से समझौता वार्ता कर रहे थे, उन्होंने पूरी वार्ता के दौरान हम पर पिस्तौलें ताने रखीं। एक की पिस्तौल के पीछे सत्ता और मशीनगनें थीं और दूसरे की पिस्तौल के पीछे असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर देने की धमकी थी। हमें इस हालात का मुकाबला करना ही होगा। हमारे पास भी एक पिस्तौल है।’
इस प्रकार मुस्लिम लीग ने कैबीनेट मिशन योजना की अपनी स्वीकृति रद्द करके पाकिस्तान प्राप्त करने के लिए सीधी कार्यवाही की घोषणा कर दी। इस घोषणा में कहा गया कि- ‘आज से हम वैधानिक तरीकों से अलग होते हैं।……. आज हमने अपने लिए एक अस्त्र तैयार किया है और उसके उपयोग की स्थिति में हैं। ‘
इस प्रकार कैबीनेट प्लान की मृत्यु की घोषणा कर दी गई तथा अब जिन्ना ने कैबीनेट प्लान के शव पर बैठकर भारत के हिन्दुओं का रक्त पीने की येजना बनाई जिनके सर्वमान्य नेता गांधीजी के कारण जिन्ना को पाकिस्तान नहीं मिल पा रहा था।
मुस्लिम लीग के साथ-साथ कुछ अन्य राजनीतिक तत्वों ने भी कैबीनेट योजना को अस्वीकार कर दिया। नेहरू के वक्तव्य पर मौलाना अबुल कलाम आजाद ने टिप्पणी की कि- ‘1946 की गलती बड़ी महंगी साबित हुई।’
जिन्ना ने सार्वजनिक रूप से वक्तव्य दिया- ‘इन तमाम तथ्यों ने बिना किसी शक के यह साबित कर दिया है कि भारत की समस्या का एकमात्र हल पाकिस्तान है। जब तक कांग्रेस और मि. गांधी यह दावा करते रहेंगे कि वे पूरे देश की नुमाइंदगी करते हैं…… तब तक वे सच्ची हकीकत और संपूर्ण सत्य से इन्कार करते रहेंगे कि मुसलमानों का एकमात्र अधिकारपूर्ण संगठन मुस्लिम लीग है और जब तक वे इसी कूटनीतिक चक्र में घूमते रहेंगे तब तक न कोई समझौता हो सकता है, न ही कोई आजादी मिल सकती है।
…… अब तो मि. गांधी सारी दुनिया के सलाहकार की भाषा बोलने लगे हैं। वे कहते हैं कि कांग्रेस ……. भारत की जनता की ट्रस्टी है। पिछले डेढ़ सौ साल से इस ट्रस्टी का हमें काफी तजरुबा हो चुका है। हम कांग्रेस को अपना ट्रस्टी नहीं बनाना चाहते। हम अब बड़े हो चुके हें। मुसलमानों का केवल एक ही ट्रस्टी है और वह है मुसलमान-राष्ट्र।’ जिन्ना ने कैबीनेट मिशन के सदस्यों को भी चुन-चुन कर निशाना बनाया।
उसने क्रिप्स पर आरोप लगाया कि- ‘क्रिप्स ने हाउस ऑफ कॉमन्स में मिशन के लक्ष्यों की जो सहज परिभाषा दी थी, उसके दायरे से चालबाजी के साथ बच निकलने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने शब्दों की बाजीगरी का सहारा लिया और सदन को गुमराह किया। मुझे खेद है कि क्रिप्स ने अपनी कानूनी प्रतिभा को भ्रष्ट किया है।’
जिन्ना ने कैबीनेट मिशन के दूसरे सदस्य पैथक लॉरेंस पर आरोप लगाया कि ‘उन्होंने हाउस ऑफ लॉर्ड्स में कहा था कि जिन्ना मुसलमानों के प्रतिनिधित्व पर अपनी इजारेदारी नहीं चला सकते। मैं कोई व्यापारी नहीं हूँ। मैं तेल के लिए रियायतें नहीं मांग रहा। न ही किसी बनिए की तरह सौदेबाजी और तोल-मोल कर रहा हूँ।’
भारत चाहता तो अपनी आजादी का मार्ग कैबीनेट मिशन प्लान के माध्यम से ढूंढ सकता था किंतु भारत में उपस्थित विभिन्न विभाजनकारी तत्वों ने कैबीनेट मिशन प्लान को नकार दिया इस कारण कैबीनेट प्लान की मृत्यु हो गई।
कैबीनेट प्लान की मृत्यु में सबसे बड़ा हाथ जिन्ना का था जो पाकिस्तान से कम किसी बात पर सहमत नहीं होता था और दूसरा हाथ गांधीजी का था जो मुसलमानों से इतना प्रेम करते थे कि किसी भी कीमत पर मुसलानों को अलग देश में जाते हुए देखने के लिए तैयार नहीं थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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