सोलहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में अहमद नगर अपने सरदारों की आपसी लड़ाई से अत्यंत जर्जर हो चला था। बुरहान निजामशाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा इब्राहीम निजामशाह अहमदनगर के तख्त पर बैठा। मात्र चार माह बाद ही वह बीजापुर के बादशाह आदिलखाँ के मुकाबिले में मारा गया। उस समय इब्राहीम निजामशाह का बेटा बहादुरशाह मात्र डेढ़ वर्ष का था। अतः इब्राहीम की बहिन चाँदबीबी राजकाज चलाने लगी लेकिन मुस्लिम सरदारों को एक औरत का शासन स्वीकार नहीं हुआ। वे चाँद बीबी के विरुद्ध दो धड़ों में विभक्त हो गये।
पहला धड़ा दक्खिनियों का था जिनका नेता मियाँ मंझू था। दूसरा धड़ा हबशियों का था। उनका नेता इखलास खाँ था। दक्खिनियों के नेता मियाँ मंझू ने अहमदनगर में घुसकर इब्राहीम निजामशाह के डेढ़ साल के बेटे बहादुरशाह को उसकी फूफी चाँद बीबी से छीनकर जुनेर के किले में भेज दिया और दौलताबाद में कैद अहमदशाह को बुलाकर तख्त पर बैठा दिया। उस समय तो हबशी भी मियाँ मंझू के इस काम से सहमत हो गये किंतु बाद में जब उनके सरदार इखलासखाँ को पता लगा कि अहमदशाह राजवंश में से नहीं है तो उसने मियाँ मंझू से झगड़ा किया।
हबशियों ने अहमदशाह के स्थान पर दुबारा से बहादुर शाह को अहमदनगर का सुल्तान बनाने के लिये अहमदनगर को घेर लिया और जुनेर के किलेदार से किले में कैद बहादुरशाह को मांगा। जुनेर का किलेदार मियाँ मंझू का विश्वस्त आदमी था। उसने बहादुरशाह हब्शियों को सौंपने से इन्कार कर दिया। जब हब्शी किसी भी तरह बहादुरशाह को नहीं पा सके तो उन्होंने अहमदनगर के बाजार से मोती शाह नाम के एक लड़के को पकड़ लिया और घोषणा की कि यह लड़का निजाम के परिवार से है अतः उसे बादशाह बनाया जाता है। कुछ दक्खिनी सरदार भी हब्शियों से आ मिले। इससे दस बारह हजार हब्शी और दक्खिनी घुड़सवार उस बादशाह के साथ हो गये।
इस पर मियाँ मंझू ने गुजरात से शहजादी मुराद[1] को अहमदनगर बुलवाया। अभी शहजादी मार्ग में ही थी कि हब्शियों में जागीरों और कामों के बंटवारे को लेकर आपस में तलवार चल गयी। बहुत से हब्शी आपस में ही कट कर मर गये। दक्खिनी सरदार हब्शियों की यह हालत देखकर फिर से मियाँ मंझू की सेवा में चले गये। अपने आदमियों को फिर से अपने पास आया देखकर मियाँ मंझू ने हब्शियों पर हमला कर दिया और बहुत से हब्शी मार गिराये। शेष हब्शी जान बचाकर भाग खड़े हुए।
हब्शियों से निबटकर मियाँ मंझू ने चाँदबीबी से निबटने की योजना निर्धारित की किंतु उसी समय उसने सुना कि मुगल शहजादा मुराद और खानखाना अब्दुर्रहीम विशाल सेना लेकर अहमद नगर की ओर बढ़ रहे हैं। मंझू जानता था कि वह मुगल सेना के सामने कुछ घंटे भी नहीं टिक सकेगा। इसलिये उसने अनसारखाँ को खजानों तथा चाँदबीबी की चौकसी पर नियुक्त किया तथा स्वयं बीजापुर, बरार और गोलकुण्डा से सहायता लेने के बहाने से अहमदनगर से बाहर निकल गया।
मंझू के अहमदनगर से बाहर निकलते ही चाँदबीबी ने मुरतिजा निजामशाह के धाभाई मुहम्मदखाँ के साथ मिलकर अनसारखाँ को मार डाला और किले में बहादुर निजामशाह की दुहाई फेर दी।
[1] यह शहजादी बुरहान निजामशाह के परिवार से थी।